यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 37
ऋषिः - कुत्स ऋषिः
देवता - रुद्रा देवताः
छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
2
नमः॒ स्रुत्या॑य च॒ पथ्या॑य च॒ नमः॒ काट्या॑य च॒ नीप्या॑य च॒ नमः॒ कुल्या॑य च सर॒स्याय च॒ नमो॑ नादे॒या॑य च वैश॒न्ताय॑ च॥३७॥
स्वर सहित पद पाठनमः॑। स्रुत्या॑य। च॒। पथ्या॑य। च॒। नमः॑। काट्या॑य। च॒। नीप्या॑य। च॒। नमः॑। कुल्या॑य। च॒। स॒र॒स्या᳖य। च॒। नमः॑। ना॒दे॒याय॑। च॒। वै॒श॒न्ताय॑। च॒ ॥३७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमः स्रुत्याय च पथ्याय च नमः काट्याय च नीप्याय च नमः कुल्याय च सरस्याय च नमो नादेयाय च वैशन्ताय च नमः कूप्याय ॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः। स्रुत्याय। च। पथ्याय। च। नमः। काट्याय। च। नीप्याय। च। नमः। कुल्याय। च। सरस्याय। च। नमः। नादेयाय। च। वैशन्ताय। च॥३७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्यैरुदकेन कथमुपकर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
मनुष्यैः स्रुत्याय च पथ्याय च नमः काट्याय च नीप्याय च नमः कुल्याय च सरस्याय नमश्च नादेयाय च वैशन्ताय च नमो दत्त्वा दया प्रकाशनीया॥३७॥
पदार्थः
(नमः) अन्नदानम् (स्रुत्याय) स्रुतौ प्रस्रवणे भवाय (च) (पथ्याय) पथि भवाय गन्तुकाय (च) मार्गादिशोधकाय (नमः) सत्करणम् (काट्याय) काटेषु कूपेषु भवाय। काट इति कूपनामसु पठितम्॥ (निघं॰३।२३) (च) (नीप्याय) नितरामापो यस्मिन् स नीपस्तत्र भवाय (च) तत्सहायिने (नमः) सत्करणम् (कुल्याय) कुल्यासु नदीषु भवाय। कुल्या इति नदीनामसु पठितम्॥ (निघं॰१।१३) (च) (सरस्याय) सरसि तडागे भवाय (च) (नमः) अन्नादिदानम् (नादेयाय) नदीषु भवाय (च) (वैशन्ताय) वेशन्तेषु क्षुद्रेषु जलाशयेषु भवाय (च)॥३७॥
भावार्थः
मनुष्यैः स्रोतसां मार्गाणां कूपानां जलप्रायदेशानां महदल्पसरसां च जलं चालयित्वा यत्र कुत्र बद्ध्वा क्षेत्रादिषु पुष्कलान्यन्नफलवृक्षलतागुल्मादीनि संवर्धनीयानि॥३७॥
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य लोग जल से कैसे उपकार लेवें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि (स्रुत्याय) स्रोता नाले आदि में रहने (च) और (पथ्याय) मार्ग में चलने (च) तथा मार्गादि को शोधने वाले को (नमः) अन्न दे (काट्याय) कूप आदि में प्रसिद्ध (च) और (नीप्याय) बड़े जलाशय में होने (च) तथा उसके सहायी का (नमः) सत्कार (कुल्याय) नहरों का प्रबन्ध करने (च) और (सरस्याय) तालाब के काम में प्रसिद्ध होने वाले का (नमः) सत्कार (च) और (नादेयाय) नदियों के तट पर रहने (च) और (वैशन्ताय) छोटे-छोटे जलाशयों के जीवों को (च) और वापी आदि के प्राणियों को (नमः) अन्नादि देके दया प्रकाशित करें॥३७॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि नदियों के मार्गों, बंबों, कूपों, जलप्राय देशों, बड़े और छोटे तालाबों के जल को चला, जहां-कहीं बांध और खेत आदि में छोड़ के, पुष्कल अन्न, फल, वृक्ष, लता, गुल्म आदि को अच्छे प्रकार बढ़ावें॥३७॥
विषय
नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।
भावार्थ
( स्रुत्याय च ) स्रुति, छोटे २ मार्गों या नालों के अध्यक्ष, ( पथ्याय च ) बढ़े मार्ग, पथों के अध्यक्ष, ( काट्याय च ) काट, अर्थात् बुरे मार्ग, या विषम मार्ग, या कूप या नहर या पुलों के अध्यक्ष, ( नीप्याय च ) बहुत गहरे जल के स्थानों के अध्यक्ष, ( कुल्याय च ) नहरों के प्रबन्ध में, या बनाने में लगा पुरुष, (सरस्याय) तालाबों के बनाने या प्रबन्ध में लगा पुरुष (नादेयाय) नद नालों पर का अध्यक्ष ( वैशन्ताय च ) वेशन्त ताल, तलैय्याओं का अध्यक्ष इनको भी यथोचित वेतन और अधिकार प्राप्त हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निचृदार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
जिलाध्यक्ष
पदार्थ
१. (स्स्रुत्याय च नमः) = स्रोतों-नाले आदि में नियुक्त पुरुष का हम आदर करते हैं (च) = और (पथ्याय च) = उन वारिप्रवाहों के साथ-साथ बने हुए मार्गों के शोधक पुरुष के लिए हम आदर देते हैं । २. (काट्याय च नमः) = कूप आदि में नियुक्त पुरुष का हम आदर करते हैं, (च) = और (नीप्याय) = [ नीचैः पतन्त्यापो यत्र] बड़े गहरे जलाशयों में नियुक्त पुरुष का भी हम सम्मान करते हैं । ३. (कुल्याय च नमः) = नहरों का प्रबन्ध करनेवाले के लिए हम आदर देते हैं, (च) = और (सरस्याय) = तालाब [Tanks] आदि के काम में प्रसिद्ध होनेवाले के लिए हम मान का भाव धारण करते हैं। ४. (नादेयाय च नमः) = नदियों के विषय में नियुक्त पुरुष के लिए हम नमस्कार करते हैं, (च) = तथा (वैशन्ताय च) = छोटे-छोटे जोहड़ों- (अल्पसरः) = [ponds] का ध्यान करनेवाले का हम सत्कार करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - राष्ट्र में भिन्न-भिन्न स्थानों में नियुक्त जलाध्यक्षों का उचित आदर करना चाहिए। इनके कार्य की शुद्धि पर ही राष्ट्र में सारे क्षेत्रों की सिंचाई निर्भर है, अन्नोत्पादन में इनका स्थान बड़ा महत्त्वपूर्ण है। अतः
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी नद्या, कालवे, विहिरी व तलाव यांचे जल व जलीय प्रदेशातील जल शेती व बांध इत्यादीमध्ये सोडावे व पुष्कळ अन्न, फळे, वृक्ष, लता, खोड इत्यादी चांगल्या प्रकारे वाढवावीत.
विषय
मनुष्यांनी पाण्यापासून कशा प्रकारे (व कोणते) फललाभ घ्यावेत, पुढील मंत्रात हा विषय-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - मनुष्यांचे कर्तव्य आहे की (स्रुत्याय) लहान स्रोताजवळ (झरे, ओढे आदीच्या आश्रयाने वसलेल्या गावांच्या रहिवासी लोकांसाठी (च) आणि (पथ्याय) वाटेवर चालत राहणार्या (भटक्या जाती जमातीसाठी) (च) तसेच नवीन मार्ग शोधणार्या वा निर्माण करणार्या कर्मचार्यांसाठी (नम:) भोजनाची व्यवस्था करावी. तसेच (काट्याय) विहीर, आड आदींजवळ राहणार्या (च) व (नीप्याय) मोठ्या सरोवराच्या काठी वसलेल्या लोकांना (च) आणि त्यांच्या अधितजनांना (नम:) अन्नादी द्यावे व त्यांचा सत्कार करावा. त्याचप्रमाणे (क्रुल्याय) कालवे निर्माण करणार्या कामगारांसाठी (च) आणि (सरस्याय) तलाव, धरण आदी तयार च्या कमी गुंतलेल्या कर्मचार्यांसाठी (च) आणि (नादेयाय) नदीतटावर राहणार्या (च) आणि (वेशन्ताय) लहान-लहान तलाव, बंधारे आदीत राहणार्या प्राण्यांसाठी (च) तसेच विहीर, कुंड आदीत राहणार्या जीवांसाठी (नम:) इतर सर्व लोकांनी अन्न आदी जीवनावश्यक पदार्थ पुरवावेत वा द्यावेत व अशाप्रकारे त्यांच्याविषयी सहानुभूती दाखवावी. ॥37॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यांनी हे केले पाहिजे की त्यानी नदी, कुंड, विहीरी, जलीय-प्रदेश यासर्व ठिकाणी उपलब्ध पाणी लहान-मोठ्या तलावात (साठवून) (तसेच कालव्याद्वारे दूर दूरपर्यंत नेऊन बंधारे, धरण, शेते यामध्ये न्यावे आणि त्याद्वारे भरपूर धान्य, फळे, वृक्ष, वेली झाडी-झुडपे वाढवावीत. ॥37॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Food to him who dwells in rivulets, to him who keeps the paths clean. Homage to him expert in constructing wells, and water-falls. Homage to him who knows how to construct canals and tanks. Homage to him who lives on the banks of streams and food for compassion to the animalcules residing in small ponds.
Meaning
All hail and support for those who live by the side-walks, springs and trails. Welcome and hospitality for the travellers on the high roads and all support for the keepers of the roads. Care and caution for the mountain pass and the foot-hills and all support for those who live thereby. All love and care and reverence for streams and lakes, rivers and rivulets, pools and tanks, and all hail and hospitality for the users and keepers of these. Salutations, exhortations and cheers to those who love and live by these !
Translation
Our homage be to him, who rules over pathways; (1) and rules over highways. (2) Ourhomage be to him, who rules over wells; (3) and rules over springs. (4) Our homage be to him, who rules over canals; (5) and rules over lakes. (6) Our homage be to him, who rules over rivers; (7) and rules over ponds. (8)
Notes
Srutyāya, स्रुतिः क्षुद्रमार्गः, तत्र भवः स्रुत्यः तस्मै, to one who is found on (or rules over) pathways. Katyaya, : :, to one who rules over wells. Also, काट: विषमो मार्गः, difficult terrain. Nipyāya, नीचैर्यन्ति यत्र आपः सः नीपः, तत्र भकः, तस्मै, where the downward waters flow, a skirt of mountains; to one who rules over them, Also, a spring, Vaiśantāya, वेशन्तः तडागः, a pond.
बंगाली (1)
विषय
মনুষ্যৈরুদকেন কথমুপকর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
মনুষ্যগণ জল হইতে কী উপকার লইবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–মনুষ্যদের উচিত যে, (স্রুত্যায়) স্রোত, নালা আদিতে নিবাসকারী (চ) এবং (পথ্যায়) মার্গে গমনশীল (চ) তথা মার্গাদি সংস্কারকারীদিগকে (নমঃ) অন্ন দিবে । (কাট্যায়) কূপ আদিতে প্রসিদ্ধ (চ) এবং (নীপ্যায়) বড় জলাশয়ে হইবার (চ) তথা উহার সাহায্যকারীকে (নমঃ) সৎকার (কুল্যায়) খালের ব্যাবস্থাকারী (চ) এবং (সরস্যায়) পুকুরের কাজে বিখ্যাত হওয়ার ব্যক্তিদেরকে (নমঃ) সৎকার (চ) এবং (নাদেয়ায়) নদীতটের উপর নিবাসকারী (চ) এবং (বৈশন্তায়) ক্ষুদ্র ক্ষুদ্র জলাশয়ের জীবদেরকে (চ) এবং সরোবরাদির প্রাণিসকলকে (নমঃ) অন্নাদি দিয়া দয়া প্রকাশিত করিবে ॥ ৩৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে নদী, পথ, স্রোত, কূপ, জলপ্রায় দেশ, বড় ও ছোট পুকুরের জল চালনা করিয়া যেখানে কোথাও বাঁধ ও ক্ষেতাদিতে ছাড়িয়া পুঙ্কল অন্ন, ফল, বৃক্ষ, লতা, গুল্মাদিকে উত্তম প্রকার বৃদ্ধি করাইবে ॥ ৩৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
নমঃ॒ স্রুত্যা॑য় চ॒ পথ্যা॑য় চ॒ নমঃ॒ কাট্যা॑য় চ॒ নীপ্যা॑য় চ॒ নমঃ॒ কুল্যা॑য় চ সর॒স্যা᳖য় চ॒ নমো॑ নাদে॒য়া॑য় চ বৈশ॒ন্তায়॑ চ ॥ ৩৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
নমঃ শ্রুতায়েত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রা দেবতাঃ । নিচৃদার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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