Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 16

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 42
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    2

    नमः॒ पार्या॑य चावा॒र्याय च॒ नमः॑ प्र॒तर॑णाय चो॒त्तर॑णाय च॒ नम॒स्तीर्थ्या॑य च॒ कूल्या॑य च॒ नमः॒ शष्प्या॑य च॒ फेन्या॑य च॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। पार्या॑य। च॒। अ॒वा॒र्या᳖य। च॒। नमः॑। प्र॒तर॑णा॒येति॑ प्र॒ऽतर॑णाय। च॒। उ॒त्तर॑णा॒येत्यु॒त्ऽतर॑णाय। च॒। नमः॑। तीर्थ्या॑य। च॒। कूल्या॑य। च॒। नमः॑। शष्प्या॑य। च॒। फेन्या॑य। च॒ ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च नमः सिकत्याय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। पार्याय। च। अवार्याय। च। नमः। प्रतरणायेति प्रऽतरणाय। च। उत्तरणायेत्युत्ऽतरणाय। च। नमः। तीर्थ्याय। च। कूल्याय। च। नमः। शष्प्याय। च। फेन्याय। च॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 42
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    ये मनुष्याः पार्य्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च नमः कुर्वन्तु प्रदद्युश्च ते सुखं प्राप्नुयुः॥४२॥

    पदार्थः

    (नमः) अवारे सत्करणम् (पार्याय) दुःखेभ्यः पारे वर्त्तमानाय (च) (अवार्याय) अवारे अर्वाचीने भागे भवाय (च) (नमः) सत्करणम् (प्रतरणाय) नौकादिना परतटादर्वाचीने तटे प्राप्ताय प्रापयित्रे वा (च) (उत्तरणाय) अर्वाचीनतटात् परतटं प्राप्नुवते प्रापयते वा (च) (नमः) अन्नम् (तीर्थ्याय) तीर्थेषु वेदविद्याध्यापकेषु सत्यभाषणादिषु च साधवे (च) (कूल्याय) कूलेषु समुद्रनद्यादितटेषु साधवे (च) (नमः) अन्नादिदानम् (शष्प्याय) शष्पेषु तृणादिषु साधवे (च) (फेन्याय) फेनेषु बुद्बुदाकारेषु साधवे (च)॥४२॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्यानेषु नौकादिषु सुशिक्षितान् कैवर्त्तकादीन् संस्थाप्य समुद्रादिपारावारौ गत्वागत्य देशदेशान्तरद्वीपद्वीपान्तरव्यवहारेण धनं निष्पाद्याभीष्टं साधनीयम्॥४२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जो मनुष्य (पार्याय) दुःखों से पार हुए (च) और (अवार्याय) इधर के भाग में हुए का (च) भी (नमः) सत्कार (च) तथा (प्रतरणाय) उस तट से नौकादि द्वारा इस पार पहुँचे वा पहुँचाने (च) और (उत्तरणाय) इस पार से उस पार पहुंचने वा पहुँचाने वाले का (नमः) सत्कार करें (तीर्थ्याय) वेदविद्या के पढ़ाने वालों और सत्यभाषणादि कामों में प्रवीण (च) और (कूल्याय) समुद्र तथा नदी आदि के तटों पर रहने वाले को (च) भी (नमः) अन्न देवें (शष्प्याय) तृण आदि कार्यों में साधु (च) और (फेन्याय) फेन बुद्बुदादि के कार्यों में प्रवीण पुरुष को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें, वे कल्याण को प्राप्त होवें॥४२॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि नौकादि यानों में शिक्षित मल्लाह आदि को रख समुद्रादि के इस पार, उस पार जा-आके देश-देशान्तर और द्वीपद्वीपान्तरों में व्यवहार से धन की उन्नति करके अपना अभीष्ट सिद्ध करें॥४२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( पार्याय च ) पार, परले तट के अध्यक्ष, ( अवार्याय च ) उरले तट के अध्यक्ष, ( प्रतरणाय ) परले तट से इस तट को पहुंचाने वाली नौका के अध्यक्ष ( उत्तरणाय ) इस तट से उस परले तट तक पहुंचने वाली नौका के अध्यक्ष, ( तीर्थ्याय ) तीर्थं, घाट आदि के अधिष्ठता ( कुल्याय च ) तट पर का अध्यक्ष, ( शष्याय च ) घास तृण गुल्मादि के अध्यक्ष या शुल्कग्राही और ( फेन्याय च ) फेन, दूध आदि के पदार्थों पर नियत शुल्कग्राही अथवा जहां नदी, धारापात से झागयाती गिरे ऐसे प्रपातों के अध्यक्ष इन सब को (नमः) उचित वेतन आदि प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृदार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पारोवर्यवित्

    पदार्थ

    १. (पार्याय च नम:) = [ परायां साधु] पराविद्या, अर्थात् ब्रह्मविद्याओं में निपुण आचार्य का हम आदर करते हैं, (च) = और (अवार्याय) = [अवरायां साधु] अपराविद्या, अर्थात् प्रकृतिविद्या में निपुण आचार्य के लिए हमारा आदर हो। अपराविद्या से मनुष्य संसार - सागर के इस किनारे पर ही रहता है और पराविद्या से पार पहुँचता है २. (प्रतरणाय च नमः) = अपराविद्या से मृत्यु को तैरने व तैरानेवाले का हम आदर करते हैं, (च) = और उत्तरणाय पराविद्या के द्वारा संसारोत्तरण हेतु संसार से तरानेवाले आचार्य को हम आदर देते हैं । ३. (तीर्थ्याय च नमः) = ज्ञानादि के द्वारा सब पापों से तरानेवाले तीर्थों में उत्तम आचार्य के लिए हम नमस्कार करते हैं, (च) = और कूल्याय (च) = [कूल् To protect, to prevent] ज्ञान के द्वारा ही मानस विकारों से रक्षा करनेवालों तथा रोगों को शरीर में प्रवेश से रोकनेवालों में उत्तम इन 'कूल्य' आचार्यों के लिए हमारा आदर का भाव हो। ४. इन आचार्यों के 'पार्य व अवार्य' आदि बन पाने का रहस्य इस बात में है कि ये वनस्पति भोजन पर ही प्राणयात्रा करते हैं, अतः कहते हैं कि (शष्याय च नमः) = घास-तृण आदि, अर्थात् वानस्पतिक भोजन पर ही गुज़र करनेवालों का हम आदर करते हैं, (च) = और (फेन्याय) = फेनमय दुग्धादि का सेवन करनेवालों के लिए हमारा नमस्कार हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- पारोवर्यवित् आचार्यों का हम सदा मान करनेवाले बनें। हम भी इनकी भाँति वनस्पति व दुग्ध पर ही जीवन निर्वाह करनेवाले हों ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    माणसांनी नौका इत्यादी यानांमध्ये प्रशिक्षित नावाड्यांना ठेवावे. समुद्रात इकडून तिकडे देशदेशांतरी व द्वीपद्वीपांतरी जावे, यावे आणि धन प्राप्त करून आपले ईप्सित साध्य करावे.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुढील मंत्रातही तोच विषय (कल्याण कसे होईल) प्रतिपादित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - जे लोक (पार्याय) दु:ख (सागराच्या पार वा पलीकडे गेले आहेत (निर्द्वन्द्व व समाधानी आहेत) (च) तसेच जे (अवर्याय) दु:खसागराच्या या तीरावर आहेत (दु:ख दूर करण्याचे उपाय शोधत आहेत) त्यांना (नम:) जे नमन व संस्कृत करतात (त्यांचे कल्याण होते) तसेच (प्रतरणाय) नौका आदी साधनांनी त्या किनार्‍यावरून लोकांना या तीरावर आणणार्‍या लोकांचा (कोळी वा नाविकांचा) (च) आणि (उत्तरणाय) या किनार्‍यावरून त्या तीरावर नेणार्‍या लोकांचा (नाविकांचा) (नम:) जे सत्कार करतात, (त्यांचे सदैव कल्याण होते) याशिवाय (तीर्थ्याय) वेदविद्या शिकविणार्‍या अध्यापकांचा अथवा सत्यभाषण आदी पवित्र कार्यांमधे व्यस्त असणार्‍या गुणिजनांचा जे सत्कार करतात, (च) आणि (कूल्याय) समुद्राच्या वा नदीतीरावर राहणार्‍या लोकांना (च) देखील (नम:) जे अन्न आदी देतात, तसेच (शष्याय) तृण, (गवत, लाकूड आदी पदार्थांचा संचय करण्यात प्रवीण असलेल्या (लाकूडतोड्या, गवळी आदी) लोकांना (च) आणि (फेन्याय) पाण्यावरील फेस, (तरंग) बुडबुडे आदीपासून (ऊर्जा वा शक्ती संपादित करणार्‍या) कुशल लोकांना (च) देखील जे (नम:) अन्न आदी देतात, त्या लोकांचे सदैव हित होत असते ॥42॥

    भावार्थ

    भावार्थ - बुद्धिमान मनुष्यांनी कुशल प्रशिक्षित नाविक आदी लोकांना आपल्या सेनेत ठेऊन त्यांना समुद्र, नदी आदींच्या या तीरावर वा या तीरावरून त्या तीरावर (दूर-दूरच्या सागरी प्रदेशावर) पाठवावे. त्यांना देश-देशांतरी. आणि द्वीप-द्वीपांतरी पाठवून विविध उद्योग-व्यापार करीत आपल्या धन-संपत्तीत वृद्धी केली पाहिजे ॥42॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Homage to him who is beyond misery, and to him who is struggling for release. Homage to him who crosses over and to him who crosses back. Food to the teachers of the Vedas, and speakers of truth, and to the dwellers on the banks of seas and rivers. Food to him who knows the science of grass, and to him who knows the science of foam.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Salutations to the lord across the river, and to him this side of the flow. And salutations to the captain who steers all across the seas, and to him who steers across and above. And salutations to him who is both the guide and the goal and to him who awaits us on the shore. And salutations to him who shines green in vegetation, and to him who floats with the foam.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Our homage be to Him, who is on the other side of this world; (1) and to Him, who is on this side of the world. (2) Our homage be to Him, who helps us to swim across; (3) and to Him, who carries across. (4) Our homage be to Him, who rules over the fords; (5) and to Him, who rules over the banks. (6) Our homage be to Him, who pervades the weeds; (7) and to Him who pervades the foam (8)

    Notes

    Pāryāya, संसाराब्धे: परतीरे, to one who is on the other shore of the ocean (of this life); who looks after or manages the yonder world. Avāryāya,अवार: अर्वाक् तीर:, this shore of the ocean. पारावारे परार्वाची तीरे पात्रं यदन्तरम्' pāra and avāra are the yonder and this shore, and pătra is what lies between them. Saspyāya, शष्पं बालतृणं गंगातीरे उत्पन्नं कुशाङ्कुरादि, the weeds or reeds, that grow on the banks of a river, to him, who rules over, or dwells in or pervades them.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–যে মনুষ্য (পার্য়ায়) দুঃখ হইতে উত্তীর্ণ (চ) এবং (অবার্য়ায়) এইদিকের অংশে ঘটিত ঘটনার (চ)(নমঃ) সৎব্যবহার (চ) তথা (প্রতরণায়) ঐ তট হইতে নৌকাদি দ্বারা এই পারে পৌঁছায় বা পৌঁছাইয়া দেয় (চ) এবং (উত্তরণায়) এই পার হইতে ঐ পার পৌঁছায় বা পৌঁছাইয়া দেয় যে ব্যক্তি তাহার (নমঃ) সৎকার করিবে । (তীর্থ্যায়) বেদবিদ্যা অধ্যাপনকারী এবং সত্যভাষণাদি কর্ম্মে প্রবীণ (চ) এবং (কূল্যায়) সমুদ্র তথা নদী আদির তটের উপর নিবাসকারীকে (চ)(নমঃ) অন্ন দিবে, (শষ্প্যায়) তৃণাদি কার্য্যে সাধু (চ) এবং (ফেন্যায়) ফেনা বুদ্বুদের কার্য্যে প্রবীণ পুরুষকে (চ)(নমঃ) অন্নাদি দিবে, তাহারা কল্যাণ প্রাপ্ত হউক ॥ ৪২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, নৌকাদি যানে শিক্ষিত মাঝি আদিকে রাখিয়া সমুদ্রাদির এই পার ঐ পার যাতায়াত করিয়া এবং দেশ-দেশান্তর ও দ্বীপ-দ্বীপান্তর মধ্যে ব্যবহার পূর্বক ধনের উন্নতি করিয়া স্বীয় অভীষ্ট সিদ্ধ করুক ॥ ৪২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    নমঃ॒ পার্য়া॑য় চাবা॒র্য়া᳖য় চ॒ নমঃ॑ প্র॒তর॑ণায় চো॒ত্তর॑ণায় চ॒ নম॒স্তীর্থ্যা॑য় চ॒ কূল্যা॑য় চ॒ নমঃ॒ শষ্প্যা॑য় চ॒ ফেন্যা॑য় চ ॥ ৪২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    নমঃ পার্য়ায়েত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
    নিচৃদার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top