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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 22
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - निचृदष्टिः स्वरः - मध्यमः
    2

    नम॑ऽउष्णी॒षिणे॑ गिरिच॒राय॑ कुलु॒ञ्चानां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नम॑ऽइषु॒मद्भ्यो॑ धन्वा॒यिभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नम॑ऽआतन्वा॒नेभ्यः॑ प्रति॒दधा॑नेभ्यश्च वो॒ नमो॒ नम॑ऽआ॒यच्छ॒द्भ्योऽस्य॑द्भ्यश्च वो॒ नमः॑॥२२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। उ॒ष्णी॒षिणे॑। गि॒रि॒च॒रायेति॑ गिरिऽच॒राय॑। कु॒लु॒ञ्चाना॑म्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। इ॒षु॒मद्भ्य॒ इती॑षु॒मत्ऽभ्यः॑। ध॒न्वा॒यिभ्य॒ इति॑ धन्वा॒ऽयिभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। आ॒त॒न्वा॒नेभ्य॒ इत्या॑ऽतन्वा॒नेभ्यः॑। प्र॒ति॒दधा॑नेभ्य॒ इति॑ प्रति॒ऽदधा॑नेभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। आ॒यच्छ॑द्भ्य॒ इत्या॒यच्छ॑त्ऽभ्यः। अस्य॑द्भ्य॒ इत्यस्य॑त्ऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑ ॥२२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमऽउष्णीषिणे गिरिचराय कुलुञ्चानाम्पतये नमो नमऽइषुमध्ब्यो धन्वायिभ्यश्च वो नमो नमऽआतन्वानेभ्यः प्रतिदधानेभ्यश्च वो नमो नमऽआयच्छद्भ्यो स्यद्भ्यश्च वो नमः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। उष्णीषिणे। गिरिचरायेति गिरिऽचराय। कुलुञ्चानाम्। पतये। नमः। नमः। इषुमद्भ्य इतीषुमत्ऽभ्यः। धन्वायिभ्य इति धन्वाऽयिभ्यः। च। वः। नमः। नमः। आतन्वानेभ्य इत्याऽतन्वानेभ्यः। प्रतिदधानेभ्य इति प्रतिऽदधानेभ्यः। च। वः। नमः। नमः। आयच्छद्भ्य इत्यायच्छत्ऽभ्यः। अस्यद्भ्य इत्यस्यत्ऽभ्यः। च। वः। नमः॥२२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    वयं राजप्रजाजना उष्णीषिणे गिरिचराय नमः कुलुञ्चानां पतये नम इषुमद्भ्यो नमो धन्वायिभ्यश्च वो नम आतन्वानेभ्यो नमः प्रतिदधानेभ्यश्च वो नम आयच्छद्भ्यो नमोऽस्यद्भ्यश्च वो नमः कुर्मो दद्मश्च॥२२॥

    पदार्थः

    (नमः) सत्करणम् (उष्णीषिणे) प्रशस्तमुष्णीषं शिरोवेष्टनं विद्यते यस्य तस्मै ग्रामण्ये (गिरिचराय) यो गिरिषु पर्वतेषु चरति तस्मै जाङ्गलाय (कुलुञ्चानाम्) ये कुशीलेन लुञ्चन्ति अपनयन्ति परपदार्थास्तेषाम् (पतये) प्रपातकाय (नमः) सत्करणम् (नमः) अन्नम् (इषुमद्भ्यः) बहव इषवो विद्यन्ते येषां तेभ्यः (धन्वायिभ्यः) धनूनि धनूंष्येतुं शीलमेषां तेभ्यः (च) (वः) युष्मभ्यम् (नमः) अन्नम् (नमः) सत्कारम् (आतन्वानेभ्यः) समन्तात् सुखविस्तारकेभ्यः (प्रतिदधानेभ्यः) ये शत्रून् प्रति शस्त्राणि दधति तेभ्यः (च) (वः) युष्मभ्यम् (नमः) सत्करणम् (नमः) अन्नम् (आयच्छद्भ्यः) निग्रहीतृभ्यः (अस्यद्भ्यः) प्रक्षिपद्भ्यस्त्यजद्भ्यः (च) (वः) युष्मभ्यम् (नमः) सत्करणम्॥२२॥

    भावार्थः

    राजप्रजाजनैः प्रधानपुरुषादयः वस्त्रान्नादिदानेन सत्करणीयाः॥२२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हम राज और प्रजा के पुरुष (उष्णीषिणे) प्रशंसित पगड़ी को धारण करने वाले ग्रामपति और (गिरिचराय) पर्वतों में विचरने वाले जंगली पुरुष का (नमः) सत्कार और (कुलुञ्चानाम्) बुरे स्वभाव से दूसरों के पदार्थ खोंसने वालों को (पतये) गिराने हारे का (नमः) सत्कार करते (इषुमद्भ्यः) बहुत बाणों वाले को (नमः) अन्न (च) तथा (धन्वायिभ्यः) धनुषों को प्राप्त होने वाले (वः) तुम लोगों के लिये (नमः) अन्न (आतन्वानेभ्यः) अच्छे प्रकार सुख के फैलाने हारों का (नमः) सत्कार (च) और (प्रतिदधानेभ्यः) शत्रुओं के प्रति शस्त्र धारण करने हारे (वः) तुम को (नमः) सत्कार प्राप्त (आयच्छद्भ्यः) दुष्टों को बुरे कर्मों से रोकने वालों को (नमः) अन्न देते (च) और (अस्यद्भ्यः) दुष्टों पर शस्त्रादि को छोड़ने वाले (वः) तुम्हारे लिये (नमः) सत्कार करते हैं॥२२॥

    भावार्थ

    राजा और प्रजा के पुरुषों को चाहिये कि प्रधान पुरुष आदि का वस्त्र और अन्नादि के दान से सत्कार करें॥२२॥

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    विषय

    प्रजा की पीड़ा को नाश करना।

    भावार्थ

    ( उष्णीषिणे ) ऊंची पगड़ी पहनने वाले ग्रामपति या अध्यक्ष को ( नमः ) आदर प्राप्त हो । ( गिरिवराय ) पर्वतों पर विचरण करने वाले ( कुलुञ्चानां पतये ) कुत्सित उपायों से लूट लेने वालों के पति, पालक उनपर नियुक्त शासक को ( नमः ) आदर प्राप्त हो । ( इषुमदृभ्यः ) बाण वालों को ( धन्वायिभ्यश्च नमः ) धनुष लेकर विचरने वालों को ( नमः ) अन्नादि प्राप्त हो । ( आतन्वानेभ्यः प्रतिदधानेभ्यः च नमः नमः ) धनुष पर डोरी तानने वालों को और बाण लगा कर छोड़ने वालो को भी आदर प्राप्त हो । ( आयच्छद्भ्यः अस्यद्भ्यः च वः नमःनमः ) धनुषों को खैंचने या शत्रुओं को निग्रह करने वाले, और बाण आदि शस्त्रास्त्रों को फेंकने वाले तुम वीरों को भी ( नमः ) आदर प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निवृष्टिः । मध्यमः ॥

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    विषय

    उष्णीषिणे व गिरिचर- ग्रामणी व गिरिचर

    पदार्थ

    १. (उष्णीषिणे) = जिसके माथे पर पगड़ी रक्खी गई है, उस प्रशस्त पगड़ीवाले ग्रामणी के लिए जो (गिरिचराय) = वेदवाणी में स्थित होकर विचरण करनेवाला है, अर्थात् शास्त्रानुकूल ग्राम की सब व्यवस्था करनेवाला है, उसके लिए (नमः) = हम नमस्कार करते हैं। इस 'गिरिचर ग्रामणी' के लिए जो (कुलुञ्चानाम्) [कुत्सितं लुञ्चन्ति] = बुरी तरह से अपहरण करनेवालों का अथवा कुलानि लुञ्चन्ति कुलों को बरबाद करनेवालों का अथवा कुशीलेन लुञ्चन्ति [द०] = बुरे स्वभाव से धनों के नष्ट करनेवालों का (पतये) = दण्ड से पतन करनेवाला है, उस गिरिचर ग्रामणी के लिए (नमः) = हम नमस्कार करते हैं । २. ग्राम आदि की रक्षा के लिए नियत (वः) = तुम (इषुमद्भ्यः) = प्रशस्त बाणोंवालों के लिए, (धन्वायिभ्यः च) = [धन्वना यन्ति - म ०] धनुष के साथ विचरनेवालों के लिए (नमः) = नमस्कार करते हैं। ३. (आतन्वानेभ्यः) = धनुष पर ज्या को चढ़ानेवालों के लिए (च) = और उन धनुषों पर (प्रतिदधानेभ्यः) = बाण सन्धान करनेवाले (वः) = तुम्हारे लिए (नमः) = - नमस्कार हो। ४. (आयच्छद्भ्यः) = इन धनुषों का आकर्षण करनेवालों के लिए (नमः) = नमस्कार हो, (च) = और (वः) = तुम्हारे (अस्यद्भ्यः) = बाणादि को फेंकनेवाले रक्षापुरुषों के लिए (नमः) = नमस्कार हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ग्राम के मुखिया को शास्त्रानुसार व्यवहार करना है और कुलुञ्चों का नाश करने के लिए रक्षा-पुरुषों को नियत करना है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    राजा व प्रजा यांनी विशेष अशा पुरुषाचा अन्न, वस्त्र इत्यादी देऊन सत्कार करावा.

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    विषय

    पुढील मंत्रात तोच विषय (राजधर्म) प्रतिपादित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - आम्ही राजपुरुषांनी तसेच प्रजाजनांनी (प्रशंसनीय कर्म वा सेवा केल्यामुळे) उष्णीविणे) शानदार पागोटे धारण करणार्‍या ग्रामपती (सरपंच, सभापती, चौधरी आदींचा) तसेच (गिरिचराय) (पर्वतभ्रमण करून नवनव्या औषधी, द्रव्य, धातू आदींचा शोध लावणार्‍या) वनधारी मनुष्यांचा (नम:) सत्कार करावा. (वा केला पाहिजे). तसेच (कुलुञ्चानाम्) वाईट स्वभाव असल्यामुळे दुसर्‍याचे धन हिसकावून घेणार्‍या दुर्जनांना (पतये) भूमीवर पाडणार्‍या राजसेवकांचा (नम:) आम्ही सत्कार करतो. (इषुमद्भ्य:) पुष्कळ बाण-संग्रह असणार्‍या वीरास (नम:) आम्ही अन्न देतो. (व) तसेच (धन्वाविभ्य:) धनुष्य धारण करणार्‍या (व:) तुम्हा वीर लोकांकरिता आम्ही (नम:) अन्नादीची व्यवस्था करतो. (आतन्वानेभ्य:) सर्वांकरिता सुखाचा विस्तार करणार्‍यांचा आम्ही (नम:) सत्कार करतो. तसेच (प्रतिदधानेभ्य:) शत्रूंविरूद्ध शस्त्र घेऊन उभे ठाकणारे (व:) तुम्हा लोक आमच्या (नम:) सत्कारास पात्र आहात. (आयच्छद्भ्य:) आम्ही दुर्जनांना दुष्कर्म करण्यापासून परावृत्त करणार्‍या लोकांना (नम:) अन्न-भोजनादी देतो. (च) आणि (अस्यद्भ्य:) दुष्टांवर शस्त्र चालविणार्‍या (व:) तुमच्यासारख्या शूरवीराचा आम्ही (नम:) आदर-सन्मान करतो. ॥22॥

    भावार्थ

    भावार्थ - राजपुरुष तसेच प्रजाजन यांनी (ग्राम, नगर, जनपद यातील जनहितकारी कर्म करणार्‍या श्रेष्ठजनांच्या वस्त्र आणि अन्न आदी पदार्थ देऊन सत्कार करावा (त्याच्या पुरस्कार आदीद्वारे सन्मान करावा) ॥22॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Homage to the turban-wearing villager, the haunter of mountains, the suppressor of the evil-minded dacoits. Food to you who bear arrows and to you who carry bows. Homage to you who add to our happiness, and take up arms against foes. Food to you who dissuade the wicked from evil deeds, and homage to you who use arms against them.

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    Meaning

    Salutations to the village chief of the turban of distinction. Salutations to the chief of the mountaineers. Salutations to the controller of the antisocial mischief. Salutations to the men of the arrow and the missile. Salutations to the men of the bow and the carrier rocket. Salutations to you again and again. Salutations to those who advance the line of defence and security. Salutations to the forces of offence in defence. Salutations to the keepers of law and order. Salutations to the marksmen who take on the target.

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    Translation

    Our homage be to him, who wearing a turban roams in the mountains. (1) To the leader of grabbers our homage be. (2) Our homage be to you, who carry arrows; (3) and to those, who carry bows, our homage be. (4) Our homage to you, who bend your bows; (5) and to you, who aim your arrows, our homage be. (6) Our homage to you, who draw the string of your bow; (7) and to those, who shoot arrows, our homage be. (8)

    Notes

    Uşnisine, literally, for one wearing a turban, but here, one who puts on a turban in such a way as to mask his face. T: प्रावृत्य ग्रामे अपहर्तुं प्रवृत्तः' । Kuluñcānām, कुत्सितं लुञ्चति, कुलं लुञ्चति, कुं लुञ्चति वा इति कुलुंच:, one who robs mercilessly, one who robs the whole family, or one, who robs lands, home etc. i. e. hardened land grabbers; of such grabbers. From nama işumadbhyaḥ upto svapatibhyasca vo namah in the kandikā 28 are the उभयतोनमस्कारा: मंत्रा:, verses with homage from both sides. Thereafter are अन्यतरतोनमस्काराः मन्त्राः, verses with homage from one side only. Dhanvāyibhyaḥ, to those who carry bows. Atanvānah, आरोपयति ज्यां धनुषि यः सः, one who puts a string on his bow; one who bends his bow. Pratidadhānah, प्रतिधत्ते संदधते बाणं यः सः, one who takes aim with an arrow (or gun). Ayacchadbhyaḥ, धनूंषि आकर्षद्भ्य:, to those who are stretch ing or drawing their bows. Asyadbhyaḥ, to those who are shooting (arrows). From √असु क्षेपणे, to throw, or to shoot.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–আমরা রাজা ও প্রজাগণ (উষ্ণীষিণে) প্রশংসিত পাগড়িকে ধারণকারী গ্রামপতি এবং (গিরিচরায়) পর্বত মধ্যে বিচরণকারী জংলী পুরুষের (নমঃ) সৎকার এবং (কুলুঞ্চানাম্) মন্দ স্বভাবের ফলে অপরের বস্তু আত্মসাৎকারীকে (পতয়ে) ভূপাতিতকারীর (নমঃ) সৎকার করি, (ইষুমদ্ভ্যঃ) বহু বাণযুক্ত কে (নমঃ) অন্ন (চ) তথা (ধন্বায়িভ্যঃ) ধনুক প্রাপ্তিকারী (বঃ) তোমাদিগের জন্য (নমঃ) অন্ন (আতন্বানেভ্যঃ) উত্তম প্রকার সুখ বিস্তারকারীর (নমঃ) সৎকার (চ) এবং (প্রতিদধানেভ্যঃ) শত্রুদিগের প্রতি শস্ত্র ধারণকারী (বঃ) তোমাদিগকে (নমঃ) সৎকার প্রাপ্ত (আয়চ্ছদ্ভ্যঃ) দুষ্টদিগকে মন্দ কর্ম হইতে প্রতিহত কারীদিগকে (নমঃ) অন্ন দিই (চ) এবং (অস্যদ্ভ্যঃ) দুষ্টদের প্রতি শস্ত্রাদি নিক্ষেপকারীগণ (বঃ) তোমার জন্য (নমঃ) সৎকার করে ॥ ২২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–রাজা ও প্রজার লোকদিগের উচিত যে, প্রধান পুরুষাদির বস্ত্র এবং অন্নাদির দান দ্বারা সৎকার করিবে ॥ ২২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    নম॑ऽউষ্ণী॒ষিণে॑ গিরিচ॒রায়॑ কুলু॒ঞ্চানাং॒ পত॑য়ে॒ নমো॒ নম॑ऽইষু॒মদ্ভ্যো॑ ধন্বা॒য়িভ্য॑শ্চ বো॒ নমো॒ নম॑ऽআতন্বা॒নেভ্যঃ॑ প্রতি॒দধা॑নেভ্যশ্চ বো॒ নমো॒ নম॑ऽআ॒য়চ্ছ॒দ্ভ্যোऽস্য॑দ্ভ্যশ্চ বো॒ নমঃ॑ ॥ ২২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    নম উষ্ণীষিণ ইত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রা দেবতাঃ । নিচৃদষ্টিশ্ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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