यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 18
नमो॑ बभ्लु॒शाय॑ व्या॒धिनेऽन्ना॑नां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ भ॒वस्य॑ हे॒त्यै जग॑तां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ रु॒द्राया॑तता॒यिने॒ क्षेत्रा॑णां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमः॑ सू॒तायाह॑न्त्यै॒ वना॑नां॒ पत॑ये॒ नमः॑॥१८॥
स्वर सहित पद पाठनमः॑। ब॒भ्लु॒शाय॑। व्या॒धिने॑। अन्ना॑नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। भ॒वस्य॑। हे॒त्यै। जग॑ताम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। रु॒द्राय॑। आ॒त॒ता॒यिन॒ इत्या॑ततऽआ॒यिने॑। क्षेत्रा॑णाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। सू॒ताय॑। अह॑न्त्यै। वना॑नाम्। पत॑ये। नमः॑ ॥१८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो बभ्लुशाय व्याधिनेन्नानां पतये नमो नमो भवस्य हेत्यै जगताम्पतये नमो नमो रुद्रायाततायिने क्षेत्राणाम्पतये नमो नमः सूतायाहन्त्यैवनानां पतये नमो नमो रोहिताय ॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः। बभ्लुशाय। व्याधिने। अन्नानाम्। पतये। नमः। नमः। भवस्य। हेत्यै। जगताम्। पतये। नमः। नमः। रुद्राय। आततायिन इत्याततऽआयिने। क्षेत्राणाम्। पतये। नमः। नमः। सूताय। अहन्त्यै। वनानाम्। पतये। नमः॥१८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तादृशमेव विषयमाह॥
अन्वयः
राजपुरुषादिमनुष्यैर्बभ्लुशाय व्याधिने नमोऽन्नानां पतये नमो भवस्य हेत्यै नमो जगतां पतये नमो रुद्रायाततायिने नमः क्षेत्राणां पतये नमः सूतायाहन्त्यै नमो वनानां पतये नमो देयं कार्यं च॥१८॥
पदार्थः
(नमः) अन्नम् (बभ्लुशाय) यो बभ्लुषु राज्यधारकेषु शेते तस्मै (व्याधिने) रोगिणे (अन्नानाम्) गोधूमादीनाम् (पतये) पालकाय (नमः) सत्कारः (नमः) अन्नम् (भवस्य) संसारस्य (हेत्यै) वृद्ध्यै (जगताम्) जङ्गमानां मनुष्यादीनाम् (पतये) स्वामिने (नमः) सत्कारः (नमः) अन्नम् (रुद्राय) शत्रूणां रोदकाय (आततायिने) समन्तात् ततं विस्तृतं शत्रुदलमेतु शीलमस्य तस्मै (क्षेत्राणाम्) धान्योद्भवाधिकरणानाम् (पतये) पालकाय (नमः) अन्नम् (नमः) अन्नम् (सूताय) क्षत्रियाद् विप्रकन्यायां जाताय वीराय प्रेरकाय वा (अहन्त्यै) या राजपत्नी कञ्चन न हन्ति तस्यै (वनानाम्) जङ्गलानाम् (पतये) पालकाय (नमः) अन्नम्॥१८॥
भावार्थः
येऽन्नादिना सर्वान् प्राणिनः सत्कुर्वन्ति, ते जगति प्रशंसिता भवन्ति॥१८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
राजपुरुष आदि मनुष्यों को चाहिये कि (बभ्लुशाय) राज्यधारक पुरुषों में सोते हुए (व्याधिने) रोगी के लिये (नमः) अन्न देवें (अन्नानाम्) गेहूं आदि अन्न के (पतये) रक्षक का (नमः) सत्कार करें (भवस्य) संसार की (हेत्यै) वृद्धि के लिये (नमः) अन्न देवें (जगताम्) मनुष्यादि प्राणियों के (पतये) स्वामी का (नमः) सत्कार करें (रुद्राय) शत्रुओं को रुलाने और (आततायिने) अच्छे प्रकार विस्तृत शत्रुसेना को प्राप्त होने वाले को (नमः) अन्न देवें (क्षेत्राणाम्) धान्यादियुक्त खेतों के (पतये) रक्षक को (नमः) अन्न देवें (सूताय) क्षत्रिय से ब्राह्मण की कन्या में उत्पन्न हुए प्रेरक वीर पुरुष और (अहन्त्यै) किसी को न मारने हारी राजपत्नी के लिये (नमः) अन्न देवें और (वनानाम्) जङ्गलों की (पतये) रक्षा करने हारे पुरुष को (नमः) अन्नादि पदार्थ देवें॥१८॥
भावार्थ
जो अन्नादि से सब प्राणियों का सत्कार करते हैं, वे जगत में प्रशंसित होते हैं॥१८॥
विषय
नाना रुद्र की नियुक्ति । उनका मानपद, अधिकार एवं नियन्त्रण ।
भावार्थ
( बभ्लुशाय ) बभ्रवर्ण, खाकी रंग की पोषाक पहनने वाले या राज्य के भरण पोषण करने वाले (व्याधिने) शिकारी पुरुष को (नमः) अन्न प्राप्त हो । ( अन्नानां पतये नमः ) अन्नों के पालक खेतों पर पड़ने वाले मृग, हाथी और साम्भर आदि वनैले पशुओं से खेतों के बचाने वाले को ( नमः ) राष्ट्रान्न में से भाग, पद, अधिकार आदि प्राप्त हो । ( भवस्य हेत्यै ) 'भवस्य' उत्पन्न होने वाले प्राणियों के 'हेति' धारण पोषण करने वाले उनकी वृद्धि करने के लिये और ( जगतां पतये नमः ) जंगम प्राणियों के पालन कर्त्ता को ( नमः ) बलवीर्य, अधिकार प्राप्त हो । ( रुद्राय आततायिने नमः ) चारों तरफ विस्तृत शत्रु दलपर आक्रमण करने वाले अथवा धनुष चढ़ाकर चढ़ाई करने वाले को ( नमः ) वल, वीर्य, अधिकार प्राप्त हो । ( क्षेत्राणां पतये नमः ) क्षेत्रों की रक्षा करने वाले को अधिकार मिले । (सूताय ) घोड़ों को हाकने में समर्थ और ( अहन्त्यै ) युद्ध में किसी को स्वयं न मारने वाले को ( नमः ) अन्न, बज्र या खड्ग प्राप्त हो । ( वनानां पतये नमः ) वनों के पालक को शस्त्र प्राप्त हो । 'सूताय' – क्षत्रियाद्वप्रकिन्यायां जाताय वीराय प्रेरकाय इति दयानन्दः । तच्चिन्त्यम् ।
टिप्पणी
'नमो वाभ्रुशाया व्या०' इति काण्व०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रुद्रा देवताः । निचृदष्टिः । मध्यमः ॥
विषय
अन्न क्षेत्र-वन
पदार्थ
१. (बभ्लुशाय) = [बभ्लुषु राज्यधारकेषु शेते कर्मसु - द०] - सदा राज्यधारक कर्मों में निवास करनेवाले, (व्याधिने) [विध्यति - उ०] = शत्रुओं का वेधन करनेवाले के लिए, राष्ट्र-रक्षा के लिए शत्रुओं का संहार करनेवाले का (नमः) [] हम आदर करते हैं। शत्रु संहार के साथ (अन्नानां पतये) = अन्नों के रक्षक के लिए हम (नमः) = नमस्कार करते हैं। राजा ने जहाँ शत्रु संहार के लिए सेना व अस्त्रादि पर ध्यान देना है वहाँ उसने अन्न की भी पूर्ण व्यवस्था करनी है। शत्रुओं से बची हुई प्रजा कहीं अन्न संकट का शिकार न हो जाए। राष्ट्र में गोलियाँ-हीगोलियाँ [bullets and bullets] न हों, भोजन [ bread] भी हो। २. (भवस्य) = संसार के ऐश्वर्य की [भूतिः भव - ऐश्वर्य] (हेत्यै) = [हि वृद्धौ] वृद्धि करनेवाले का हम (नमः) = आदर करते हैं। राजा का कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्र के ऐश्वर्य को बढ़ाए और इस ऐश्वर्य वृद्धि के द्वारा (जगतां पतये नमः) = क्रियाशील पुरुषों की रक्षा करनेवाले के लिए हम नतमस्तक होते हैं। राष्ट्र में कोई भी आलसी, अकर्मण्य व याचक नहीं होना चाहिए। ३. (रुद्राय) = शत्रुओं के रुलानेवाले (आततायिने) = [ आ समन्तात् ततं शत्रुदलमेतुं शीलमस्य - द०] चारों ओर फैले हुए शत्रुदलों पर आक्रमण करनेवाले के लिए हम (नमः) = नमस्कार करते हैं, परन्तु साथ ही (क्षेत्राणां पतये) = अन्न क्षेत्रों की रक्षा करनेवाले को (नमः) = हम आदर देते हैं। शत्रुनाश के साथ क्षेत्रों के नाश होने पर शत्रुनाश से बची हुई प्रजा अन्नाभाव से मृत हो जाएगी । ४. अन्त में (सूताय) = उत्तम प्रेरणा देनेवाले और उस उत्तम प्रेरणा के द्वारा (आहन्त्यै) = न नष्ट होने देनेवाले धर्माध्यक्ष को (नमः) = हम आदर देते हैं। अथवा (सूताय) = उस सारथि के लिए जो (आहन्त्यै) = [हन्=गति] युद्ध में सर्वत्र घोड़ों को ले जानेवाला है हम आदर देते हैं और (वनानाम्) = [Those who win] विजेताओं के (पतये) = मुखिया के लिए (नमः) = हम नतमस्तक होते हैं। अथवा (वनानाम्) = [वन = light] प्रकाश की किरणों के (पतये) = स्वामी के लिए, अर्थात् उत्कृष्ट ज्ञानियों के लिए हम आदर देते हैं। वन 'शब्द का अर्थ घर' भी है। राष्ट्र में घरों के पति [Housing administrator ] के लिए हम आदर देते हैं, उस अध्यक्ष के लिए जिसका काम घरों की उचित व्यवस्था करना है। अथवा वनों - जङ्गलों के रक्षक का हम आदर करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम राष्ट्र-रक्षक पुरुषों का उचित आदर करें।
मराठी (2)
भावार्थ
जे लोक अन्न इत्यादींनी सर्व प्राण्यांचा सत्कार करतात त्यांची जगात प्रशंसा होते.
विषय
पुनश्च, तोच विषय (राजधर्म) पुढील मंत्रात :
शब्दार्थ
शब्दार्थ – राजपुरुषा आदी मनुष्यांचे कर्तव्य आहे की त्यानी (बभ्लुशाय) राज्यशासनात कार्यरत (अधिकारी व सेवक) लोकांपैकी जे झोपलेले (अपंग वा अकार्यक्षम) वा (व्यधिने) रोगी असतील, त्यांना अन्नादी द्यावे. तसेच (अन्नानाय्) गहू आदी धान्याच्या (पतये) रक्षकाचा (नम:) सत्कार करावा. (भवस्य) जगाच्या (हेत्यै) उन्नतीकरिता (नम:) अन्नधान्याची व्यवस्था करावी. (जगताय्) मनुष्य आदी प्राण्यांच्या (पतये) स्वामीचा (राजा, सेनापती, गोपालक आदींचा) (नम:) सत्कार करावा (रुद्राय) शत्रूंना रडविणार्या आणि (आततायिने) विशाल शत्रुसैन्यावर आक्रमण करणार्या वीरांसाठी (नम:) अन्न, (युद्धसामग्री, औषधें आदी) (नम:) आवश्यक धान्यादी द्यावे. (क्षेत्राणाम्) धान्यांनी भरलेल्या शेतांच्या (पतये) स्वामी (कृषक, वैश्य आदींना) (नम:) रक्षण द्यावे. (सूताय) क्षत्रिय पुरुषाच्या संबंधातून ब्राह्मण कन्येच्या पोटी जन्मलेल्या उत्साही ??? पुरुषाला आणि (अहन्त्यै) कोणाची हत्या न करणार्या राजपत्नीसाठी (नम:) अन्न-धान्य, आवश्यक वस्तू आदींची व्यवस्था करावी आणि (वनानाम्) वनांची (पतये) रक्षा करणार्या पुरुषाला (नम:) अन्न-धान्य आदी पदार्थ द्यावेत (राजाधिकारी लोकांनी शासनकार्यासाठी राबणार्या लोकांसाठी योग्य ते धान्य, वेतन आदींचा प्रबन्ध केला पाहिजे) ॥18॥
भावार्थ
भावार्थ - जे लोक अन्न-धान्य आदी वस्तूंद्वारे सर्व प्राण्यांचा सत्कार करताना, (त्याना सुखी करतात) तेच संसारात प्रशंसित होतात. ॥18॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Let the state-officials give food to the patient who lives in their midst. Let them pay homage to the growers of corn. Let them grant grain for the progress of the world. Let them offer homage to the lord of human beings. Let them give food to the tormentor of the foes, and the fighter from all directions against vast armed foes. Let them give food to the brave warrior, and the queen who injures none. Let them give food to the Lord of forest.
Meaning
Salutations to Rudra, brown breaker of the enemies. Salutations to the protector and promoter of food. Salutations to the saviour warrior of existence. Salutations to the lord of the moving worlds. Exhortations to the warrior up in arms. Salutations to the regions of the world. Salutations to the pioneer of love and leader of humanity. Salutations to the lord protector of the forests.
Translation
Our homage be to the brown-tanned shooter. (1) To the lord of foodgrains our homage be. (2) Our homage be to the weapon of life. (3) To the lord of moving beings our homage be. (4) Our homage be to the terrible punisher, whose bow is well-stretched. (5) To the lord of the fields our homage be. (6) Our homage be to the charioteer, who does not kill. (7) To the lord of the forests our homage be. (8)
Notes
Babhluṣāya, बभ्रुवर्णाय, to the brown-tanned. Vyādhine, विध्यति शत्रून् इतिव्याधी, तस्मै, to one who pierces enemies. Bhavasya hetyai, भवः संसारः, तस्य हेतिः आयुधं, weapon of life. भवः जन्म, तस्य छेत्रे, to one who puts an end to the cycle of birth and death. Also, the Lord eternally existent. Atatāyine, आततेन धनुषा एति, तस्मै, उद्यतायुधाय, one who comes with his bow bent to kill. Kṣetrāṇāṁ pataye, to the lord offields. Also, anteri TeT, to the protector of bodies. Ahantyai, to avoid slaughter. Also, न हंति इति अहंति: तस्मै, to one who does not kill. Sūtāya, to the charioteer. (Mean ing not clear; whether homage is paid to the charioteer of Rudra, or Rudra Himself is the charioteer).
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তাদৃশমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–রাজপুরুষাদি মনুষ্যদিগের উচিত যে, (বভ্লুশায়) রাজ্যধারক পুরুষদিগের মধ্যে শয়ন রত (ব্যাধিনে) রুগীর জন্য (নমঃ) অন্ন দিবে । (অন্নানাম্) গমাদি অন্নের (পতয়ে) রক্ষকের (নমঃ) সৎকার করিবে । (ভবস্য) সংসারের (হেত্যৈ) বৃদ্ধির জন্য (নমঃ) অন্ন দিবে । (জগতাম্) মনুষ্যাদি প্রাণিসকলের (পতয়ে) স্বামীর (নমঃ) সৎকার করিবে । (রুদ্রায়) শত্রুদিগকে রোদন করাইবার এবং (আততায়িনে) উত্তম প্রকার বিস্তৃত শত্রুসেনা প্রাপ্ত হইবার লোকদিগকে (নমঃ) অন্ন দিবে । (ক্ষেত্রাণাম্) ধান্যাদিযুক্ত ক্ষেত্রের (পতয়ে) রক্ষককে (নমঃ) অন্ন দিবে । (সূতায়) ক্ষত্রিয় দ্বারা ব্রাহ্মণ কন্যাতে উৎপন্ন প্রেরক বীর পুরুষ এবং (অহন্ত্যৈ) কাহাকেও না মারিবার রাজপত্নীর জন্য (নমঃ) অন্ন দিবে এবং (বনানাম্) জঙ্গলের রক্ষাকর্ত্তা পুরুষকে (নমঃ) অন্নাদি পদার্থ প্রদান করিবে ॥ ১৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যাহারা অন্নাদি দ্বারা সমস্ত প্রাণিদিগের সৎকার করে তাহারা জগতে প্রশংসিত হয় ॥ ১৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
নমো॑ বভ্লু॒শায়॑ ব্যা॒ধিনেऽন্না॑নাং॒ পত॑য়ে॒ নমো॒ নমো॑ ভ॒বস্য॑ হে॒ত্যৈ জগ॑তাং॒ পত॑য়ে॒ নমো॒ নমো॑ রু॒দ্রায়া॑ততা॒য়িনে॒ ক্ষেত্রা॑ণাং॒ পত॑য়ে॒ নমো॒ নমঃ॑ সূ॒তায়াऽহ॑ন্ত্যৈ॒ বনা॑নাং॒ পত॑য়ে॒ নমঃ॑ ॥ ১৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
নমো বভ্লুশায়েত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রা দেবতাঃ । নিচৃদষ্টিশ্ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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