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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 63
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - भुरिगार्ष्युष्णिक् स्वरः - गान्धारः
    2

    यऽए॒ताव॑न्तश्च॒ भूया॑सश्च॒ दिशो॑ रु॒द्रा वि॑तस्थि॒रे। तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि॥६३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। ए॒ताव॑न्तः। च॒। भूया॑सः। च॒। दिशः॑। रु॒द्राः। वि॒त॒स्थि॒र इति॑ विऽतस्थि॒रे। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥६३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये एतावन्तश्च भूयाँसश्च दिशो रुद्रा वितस्थिरे । तेषाँ सहस्रयोजने व धन्वानि तन्मसि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये। एतावन्तः। च। भूयासः। च। दिशः। रुद्राः। वितस्थिर इति विऽतस्थिरे। तेषाम्। सहस्रयोजन इति सहस्रऽयोजने। अव। धन्वानि। तन्मसि॥६३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 63
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तदेवाह॥

    अन्वयः

    वयं य एतावन्तश्च भूयांसश्च रुद्रा दिशो वितस्थिरे तेषां सहस्रयोजने धन्वान्यवतन्मसि॥६३॥

    पदार्थः

    (ये) (एतावन्तः) यावन्तो व्याख्याताः (च) (भूयांसः) तेभ्योऽप्यधिकाः (च) (दिशः) पूर्वाद्याः (रुद्राः) प्राणजीवाः (वितस्थिरे) विविधतया तिष्ठन्ति (तेषाम्) (सहस्रयोजने) एतत्संख्यापरिमिते देशे (अव) विरोधार्थे (धन्वानि) अन्तरिक्षावयवान्। धन्वेत्यन्तरिक्षनामसु पठितम्॥ (निघण्टौ १।३) (तन्मसि)॥६३॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः सर्वासु दिक्षु स्थितान् जीवान् वायून् वा यथावदुपयुञ्जते, तेषां सर्वकार्याणि सिद्धानि भवन्ति॥६३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हम लोग (ये) जो (एतावन्तः) इतने व्याख्यात किये (च) और (रुद्राः) प्राण वा जीव (भूयांसः) इन से भी अधिक (च) सब प्राण तथा जीव (दिशः) पूर्वादि दिशाओं में (वितस्थिरे) विविध प्रकार से स्थित हैं (तेषाम्) उन के (सहस्रयोजने) हजार योजन के देश में (धन्वानि) आकाश के अवयवों के (अव, तन्मसि) विरुद्ध विस्तृत करते हैं॥६३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य सब दिशाओं में स्थित जीवों वा वायुओं को यथावत् उपयोग में लाते हैं, उन के सब कार्य सिद्ध होते हैं॥६३॥

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    विषय

    नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( ये ) जो ( एतावन्त: च ) इतने पूर्व कहे और (भूयांसः च) इनसे भी अधिक ( रुदाः) प्राणियों को दण्ड देने वाले राज-पुरुष (दिशः) समस्त दिशों में ( वितस्थिरे) विविध पदों पर स्थित हैं ( तेषां सहस्र० ) इत्यादि पूर्ववत् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भुरिगनुष्टुप् । गांधारः ।

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    विषय

    एतावन्तः-भूयांसः

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (एतावन्तः च) = इतने, जिनका कि ऊपर मन्त्रों में उल्लेख किया गया है, (च) = अथवा (भूयांसः) = और भी जिनका स्पष्ट उल्लेख नहीं हुआ - वे सबके सब (रुद्राः) = प्रजा दुःखद्रावक राजपुरुष जोकि (दिशः वितस्थिरे) = भिन्न-भिन्न दिशाओं में अपने-अपने नियुक्ति स्थानों में स्थित हैं । २. (तेषाम्) = उन सबके धन्वानि अस्त्रों को (सहस्त्रयोजने) = हज़ारों योजनों की दूरी तक (अवतन्मसि) = हम सुदूर विस्तृत करते हैं, इनके दूर-दूर तक शत्रुओं का संहार करनेवाले अस्त्र प्रजा रक्षण व प्रजा के सुख-वर्धन का साधन बनते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सब राजपुरुषों का एक ही ध्येय होना चाहिए कि शस्त्र प्रयोग के नैपुण्य से शत्रुओं का शातन [नाश] करके प्रजा के दुःखों को दूर करें और उसके सुख का वर्धन करें। इसी में 'रुद्र' नाम की सार्थकता है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे सर्व दिशांमध्ये स्थित असलेल्या जीवांचा व वायूंचा यथायोग्य उपयोग करून घेतात त्यांची सर्व कामे सिद्ध होतात.

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    विषय

    पुन्हा तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (यो) जे किंवा ज्यांचे (एतावन्त:) आतापर्यंत वर्णन केले आहे (च) आणि (रूद्रा:) ज्या प्राणांचे (वायूंचे) वा जीवांचे वर्णन केले आहे (भूयांस:) त्यांच्यापेक्षा अधिक जे जे वायू वा जीव (दिश:) पूर्व आदी दिशांमध्ये (वितास्थिरे) स्थिर आहेत अथवा विद्यमान आहेत, (तेयाम्) त्यांच्या (सहस्रयोजने) हजार योजन विस्तृत देशात (धन्वानि) आकाशातदेखील आम्ही (आपल्या अस्त्रशस्त्रादींना) (अव, तन्मसि) विस्तृत करतो. (आकाश, समुद्र, भूमी यांवर विद्यमान सर्व वायू आणि प्राण्यांच्या रक्षणासाठी आम्ही (सैनिक) आपले अस्त्र-शस्त्र वापरतो. ॥63॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जी माणसे सर्व दिशांमधे विद्यमान प्राण्यांचा आणि वायूंचा (आपल्या हितासाठी) यथोचित उपयोग करतात (मनुष्यबळ आणि ऊर्जाशक्ती यांच्यापासून योग्य लाभ घेतात) त्यांची सर्व कार्ये पूर्ण होतात. ॥63॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    We use the forces of nature against the creatures, mentioned above and still more, lodged in different directions, though they be a thousand leagues afar.

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    Meaning

    And Rudra powers (of beneficence, affliction and retribution in nature) conceived and realized so far and even more exist variously in all the directions (on the earth, in the sky and in heaven). We deal with their arms and armaments appropriately with all our might and mind in faith (worshipping, extending, negating or fighting and eliminating) in a thousand ways over vast areas of time and space.

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    Translation

    The terrible punishers, who are so many and more than even these, occupy all the regions. May we get their bows unbent even a thousand leagues away. (1)

    Notes

    Diśaḥ, दश दिश:, all the ten regions and mid-regions.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তদেবাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–আমরা (য়ে) যাহারা (এতাবন্তঃ) এত ব্যাখ্যাকৃত (চ) এবং (রুদ্রাঃ) প্রাণ বা জীব (ভূয়াংসঃ) ইহা অপেক্ষা অধিক (চ) সকল প্রাণ তথা জীব (দিশঃ) পূর্বাদি দিক্গুলিতে (বিতস্থিরে) বিবিধ প্রকারে স্থিত (তেষাম্) তাহাদের (সহস্রযোজনে) সহস্র যোজনের দেশে (ধন্বানি) আকাশের অবয়বগুলিকে (অব, তন্মসি) বিরুদ্ধ বিস্তার করি ॥ ৬৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যে সব মনুষ্য সকল দিকে স্থিত জীবসকল বা বায়ুগুলিকে যথাবৎ উপযোগে আনে তাহাদের সকল কার্য্য সিদ্ধ হয় ॥ ৬৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ऽএ॒তাব॑ন্তশ্চ॒ ভূয়া॑ᳬंসশ্চ॒ দিশো॑ রু॒দ্রা বি॑তস্থি॒রে ।
    তেষা॑ᳬं সহস্রয়োজ॒নেऽব॒ ধন্বা॑নি তন্মসি ॥ ৬৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য় এতাবন্ত ইত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
    ভুরিগার্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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