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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 44
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    3

    नमो॒ व्रज्या॑य च॒ गोष्ठ्या॑य च॒ नम॒स्तल्प्या॑य च॒ गेह्या॑य च॒ नमो॑ हृद॒य्याय च निवे॒ष्याय च॒ नमः॒ काट्या॑य च गह्वरे॒ष्ठाय॑ च॒॥४४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। व्रज्या॑य। च॒। गोष्ठ्या॑य। गोस्थ्या॒येति॒ गोऽस्थ्या॑य। च॒। नमः॑। तल्प्या॑य। च॒। गेह्या॑य। च॒। नमः॑। हृ॒द॒य्या᳖य। च॒। नि॒वे॒ष्या᳖येति॑ निऽवे॒ष्या᳖य। च॒। नमः॑। काट्या॑य। च॒। ग॒ह्व॒रे॒ष्ठाय॑। च॒ ॥४४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो व्रज्याय च गोष्ठ्याय च नमस्तल्प्याय च गेह्याय च नमो हृदय्याय च निवेष्याय च नमः काट्याय च गह्वरेष्ठाय च नमः शुष्क्याय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। व्रज्याय। च। गोष्ठ्याय। गोस्थ्यायेति गोऽस्थ्याय। च। नमः। तल्प्याय। च। गेह्याय। च। नमः। हृदय्याय। च। निवेष्यायेति निऽवेष्याय। च। नमः। काट्याय। च। गह्वरेष्ठाय। च॥४४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 44
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    कीदृशा जनाः सुखिनो भवन्तीत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    ये मनुष्या व्रज्याय च गोष्ठ्याय च नमस्तल्प्याय च गेह्याय च नमो हृदय्याय च निवेष्याय च नमः काट्याय च गह्वरेष्ठाय च नमो दद्युस्ते सुखं भजेरन्॥४४॥

    पदार्थः

    (नमः) अन्नादिदानम् (व्रज्याय) व्रजिषु क्रियासु भवाय (च) (गोष्ठ्याय) गोष्ठेषु गवां स्थानेषु साधवे (च) (नमः) अन्नम् (तल्प्याय) तल्पे शयने साधवे (च) (गेह्याय) गेहे नितरां भवाय (च) (नमः) सत्कृतिम् (हृदय्याय) हृदये साधवे (च) (निवेष्याय) नितरां व्याप्तौ साधवे (च) (नमः) अन्नादिदानम् (काट्याय) कटेष्वावरणेषु भवाय (च) (गह्वरेष्ठाय) गह्वरेषु गहनेषु तिष्ठति तत्र सुसाधवे (च)॥४४॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या मेघवृष्टिजन्यतृणादिरक्षणेन गवादीन् वर्द्धयेयुस्ते पुष्कलं भोगं लभेरन्॥४४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    कैसे मनुष्य सुखी होते हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जो मनुष्य (व्रज्याय) क्रियाओं में प्रसिद्ध (च) और (गोष्ठ्याय) गौ आदि के स्थानों के उत्तम प्रबन्धकर्त्ता को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें (तल्प्याय) खट्वादि के निर्माण में प्रवीण (च) और (गेह्याय) घर में रहने वाले को (च) भी (नमः) अन्न देवें (हृदय्याय) हृदय के विचार में कुशल (च) और (निवेष्याय) विषयों में निरन्तर व्याप्त होने में प्रवीण पुरुष का (च) भी (नमः) सत्कार करें (काट्याय) आच्छादित गुप्त पदार्थों को प्रकट करने (च) और (गह्वरेष्ठाय) गहन अति कठिन गिरिकन्दराओं में उत्तम रहने वाले पुरुष को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें, वे सुख को प्राप्त होवें॥४४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य मेघ से उत्पन्न वर्षा और वर्षा से उत्पन्न हुए तृण आदि की रक्षा से गौ आदि पशुओं को बढ़ावें, वे पुष्कल भोग को प्राप्त होवें॥४४॥

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    विषय

    नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( व्रज्याय ) व्रज अर्थात् गौओं के रेवड़ों के अध्यक्ष ( गोष्ठयाय) सरकारी गोशालाओं के अध्यक्ष, (तत्प्याय) विस्तरयोग्य पदार्थों पर नियुक्त सेवक, ( गेह्याय ) गृह, मकान पर नृत्य अधिकारी, (हृदय्याय च ) हृदय को सदा प्रसन्न करनेवाले खिलौने और खेल करने वाले, हृदय के प्रेमी (निवेष्याय च) उत्तम वेष पहनाने और बनाने वाला अथवा ( निवध्याय च ) आवर्त या निहार या कोहरा को दूर करने वाला (काव्याय च ) कट, चटाई आदि बनाने में प्रवीण' या उचित रूप से बिछाने वाला, (गह्वरेष्ठाय च ) पर्वतों के गहरी, गहरे जल और विषम स्थानों का उत्तम परिचित इन सबको (नमः) उचित आदर और अन्नादि वृत्ति प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आर्षी त्रिष्टुप । धैवतः ॥

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    विषय

    विविध कर्मकर

    पदार्थ

    १. (व्रज्याय च नमः) = [व्रजे गोसमूहे भवः] गोचारण में कुशल पुरुष के लिए नमस्कार हो, - और (गोष्ठ्याय) = गोशालाओं के अध्यक्ष के लिए आदर हो । २. (तल्प्याय च नमः) = [तल्प शय्या] शयनागार के कर्मों में कुशल पुरुष के लिए आदर हो, उत्तम शय्यादि बनानेवाले का आदर हो, (च) = और (गेह्याय) = गृहकार्य में कुशल पुरुष के लिए भी आदर हो। ३. (हृदय्याय च नमः) = हृदय को प्रसन्न करनेवाले खिलौने आदि बनाने में कुशल पुरुष के लिए आदर हो, (च) = और (निवेष्याय) = उत्तम वेश [dresses] बनानेवाले का आदर हो। ४. (काट्याय च नमः) = कुओं के बनाने में कुशल पुरुष का आदर हो, (च) = और (गह्वरेष्ठाय) = कन्दराओं व गम्भीर जलाशयों के निर्माण में कुशल पुरुष का हम आदर करें। [गह्वरं गिरिगुहा, महदुदकं वा - उ०]।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र में गडरिये से लेकर गम्भीर जलाशयों के निर्माता आदि मन्त्र - वर्णित सभी कर्मकरों का हम आदर करें, उन्हें तुच्छ न समझें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे मेघांपासून वृष्टी व त्यापासून उत्पन्न झालेले गवत वगैरेंचे रक्षण करून पशूंचे पोषण करतात त्यांना पुष्कळ भोगपदार्थ प्राप्त होतात.

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    विषय

    कोणती माणसे सुखी होतात, पुढील मंत्रात हा विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (व्रज्याय) कर्म करण्यात कुशल आहेत त्याना (च) आणि (गौष्ठ्याय) गायीचा गोठा आदी स्थानांचा उत्तम प्रबन्ध करणार निपुण आहेत (च) त्यांना देखील जे लोक (नम:) अन्न-भोजनादी देतात, तसेच जे लोक (तल्प्याय) खाट, बाज, पलंग आदी तयार करण्यात प्रवीण आहेत (च) आणि (गेह्याय) घरात राहणारे (अपंग, असहाय्य असल्यामुळे ज्याना घरीच राहावे लागते) अशा लोकांना आणि (हृदय्याय) भाव-भावना जाणण्यात कुशल (वा मनोचिकित्सक) आहेत, तसेच जे (निवेष्याय) विविध विषयात गती असणारे कर्मनिष्ठ आहेत, अशा लोकांना जे (नम:) सस्कृत करतात, आदर-सन्मान देतात, (ते लोक सुखी होतात) (च) तसेच जे लोक (गहरेष्ठाय) गहन गिरिकंदरात राहणार्‍या श्रेष्ठ पुरुषांचा (च) गुणज्ञ लोक नेहमी सुखी असतात. ॥44॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक मेधापासून होणार्‍या वृष्टीजलाची साठवण आणि वृष्टीजलापासून उगवणार्‍या गवत (पाला, तृण, झाडी वनस्पती) आदींचे रक्षण करतात आणि त्याद्वारे गौ आदी पशूंची वंशवृद्धी करतात, ते पुष्कळ भोग्य पदार्थ प्राप्त करून सुखी होतात ॥44॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Food to the expert in deeds, and to the manager of cow-pens. Food to the efficient couch-maker, and to him who lives peacefully in his house. Homage to him who is skilled in mental deliberations, and to him who is proficient in diving deep into intricate topics. Food to him who explores the mysteries of nature, and to him who dwells in inaccessible mountain caves.

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    Meaning

    Homage to the lord of the meadow and to the warmth of the cow-shed. Homage to the angels of the bed and to the inmates of the home. Homage to the spirit in the heart and to the lord of human settlements. Homage to the mountain mysteries and to the spirit of the darkest caves.

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    Translation

    Our homage be to Him, who is the master of cattle-farms; (1) and to Him, who is the master of cow-stalls. (2) Our homage be to Him, who is the master of beds; (3) and to Him, who is the master of homes. (4) Our homage be to Him, who rules overpools; (5) and to Him, who rules over whirlpools. (6) Our homage be to Him, who rules over wells; (7) and to Him, who rules over abysses. (8)

    Notes

    Hṛdayyāya,ह्रद is to be substituted for हृदय, a pool; to one who pervades the pools. The commentators have trans lated it as हृदये भव:, dwelling in the hearts, but that does not fit in the context as other preceding and following names refer to the geographical regions. Niveṣpyāya, निवेष्प: आवर्त;,a whirlpool; to one who per vades such whirlpools.

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    बंगाली (1)

    विषय

    কীদৃশা জনাঃ সুখিনো ভবন্তীত্যুপদিশ্যতে ॥
    কেমন মনুষ্য সুখী হয়, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ– যেসব মনুষ্য (ব্রজায়) ক্রিয়াগুলিতে প্রসিদ্ধ (চ) এবং (গোষ্ঠ্যায়) গাভি আদির স্থানগুলির উত্তম ব্যাবস্থাপককে (চ)(নমঃ) অন্নাদি দিবে, (তল্প্যায়) খট্বাদির নির্মাণে প্রবীণ (চ) এবং (গেহ্যায়) গৃহে নিবাসকারীকে (চ)(নমঃ) অন্ন দিবে, (হৃদয়্যায়) হদয়ের বিচারে কুশল (চ) এবং (নিবেষ্যায়) বিষয়গুলিতে নিরন্তর ব্যাপ্ত হওয়ায় প্রবীণ পুরুষের (চ)(নমঃ) সৎকার করিবে । (কাট্যায়) আচ্ছাদিত গুপ্ত পদার্থগুলিকে প্রকটকারী (চ) এবং (গহ্বরেষ্ঠায়) গহন অতি কঠিন গিরিকন্দরাগুলিতে উত্তম থাকা পুরুষকে (চ)(নমঃ) অন্নাদি দিবে, তাহারা সুখ প্রাপ্ত হউক ॥ ৪৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যে মনুষ্য মেঘ হইতে উৎপন্ন বর্ষা এবং বর্ষা হইতে উৎপন্ন তৃণাদির রক্ষা দ্বারা গাভি আদির পশুসকলের বৃদ্ধি করিবে সে পুষ্কল ভোগ প্রাপ্ত হইবে ॥ ৪৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    নমো॒ ব্রজ্যা॑য় চ॒ গোষ্ঠ্যা॑য় চ॒ নম॒স্তল্প্যা॑য় চ॒ গেহ্যা॑য় চ॒ নমো॑ হৃদ॒য়্যা᳖য় চ নিবে॒ষ্যা᳖য় চ॒ নমঃ॒ কাট্যা॑য় চ গহ্বরে॒ষ্ঠায়॑ চ॒ ॥ ৪৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    নমো ব্রজ্যায়েত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
    আর্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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