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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 21
    ऋषिः - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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    शर्म॒ वर्मै॒तदाह॑रा॒स्यै नार्या॑ उप॒स्तिरे॑। सिनी॑वालि॒ प्र जा॑यतां॒ भग॑स्य सुम॒ताव॑सत्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शर्म॑ । वर्म॑ । ए॒तत् । आ । ह॒र॒। अ॒स्यै । नार्यै॑ । उ॒प॒ऽस्तरे॑ । सिनी॑वालि । प्र । जा॒य॒ता॒म् । भग॑स्य । सु॒ऽम॒तौ । अ॒स॒त् ॥२.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शर्म वर्मैतदाहरास्यै नार्या उपस्तिरे। सिनीवालि प्र जायतां भगस्य सुमतावसत्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शर्म । वर्म । एतत् । आ । हर। अस्यै । नार्यै । उपऽस्तरे । सिनीवालि । प्र । जायताम् । भगस्य । सुऽमतौ । असत् ॥२.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 21
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    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वान् !] (एतत्) यह [गृहकार्यरूप] (शर्म) सुखदायक (वर्म) कवच (अस्यै नार्यै) इस नारी को (उपस्तिरे) ओढ़ने के लिये (आ हर) ला। (सिनीवालि) हे अन्नवाली पत्नी ! [तुझ से] (प्र जायताम्) उत्तम सन्तान उत्पन्न होवे, और वह [सन्तान] (भगस्य) भगवान् [ऐश्वर्यवान् परमात्मा] की (सुमतौ) सुमति में (असत्) रहे ॥२१॥

    भावार्थ

    पति आदि सब वधू को गृहकार्य में सदा सहाय देवें, जैसे योद्धा को कवच रणक्षेत्र में सहाय देता है, औरसब पुरुष उस वधू के वीर ईश्वरभक्त सन्तान से सुख प्राप्त करें ॥२१॥इस मन्त्र काउत्तरार्द्ध ऊपर मन्त्र १५ में आचुका है ॥

    टिप्पणी

    २१−(शर्म) सुखप्रदम् (वर्म) कवचम् (एतत्) (आ हर) आनय (अस्यै) (नार्यै) (उपस्तिरे) अवचक्षे च। पा० ३।४।१५। स्तृञ्स्तॄञ् आच्छादने-एश् प्रत्ययो बाहुलकात् तुमर्थे। उपस्त्रे। उपस्तर्तुम्।आच्छादयितुम्। अन्यद् व्याख्यातम्-म० १५ ॥

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    विषय

    शर्म-वर्म

    पदार्थ

    एक गृहपत्नी के लिए 'देवयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ व पितृयज्ञ' सुखदायक कवच के रूप में हों। इस कवच को धारण करके यह रोगों, वासनाओं व अल्पायुष्य' का शिकार न हो। इसकी सुव्यवस्था के द्वारा इसका शान्त मस्तिष्क पति उत्तम सन्तानोंवाला व प्रभु की प्रेरणा में चलनेवाला हो।

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    भाषार्थ

    (एतत्)१ इस (शर्म) सुखदायक और (वर्म) कवचरूप गार्हपत्याग्नि को, (अस्यै=अस्याः, नार्या) इस नारी के (उपस्तरे) बिस्तरे के समीप (आ हर) हे पति! तू ला। (सिनीवालि) हे अन्नवाली तथा सुन्दर केशों वाली ! तुझ से (प्रजायताम्) सन्तान उत्पन्न हो, जोकि (भगस्य) भगों से सम्पन्न तेरे पति की (सुमतौ) सुमति में (असत्) रहे।

    टिप्पणी

    [उपस्तरे=बिस्तरे के समीप यथा “उपद्यवि" (६।४९।३), अर्थात् द्युलोक के समीप] [व्याख्या- प्रसूतिकाल में गर्भवती ऐसे कमरे में रहे जिस में कि गार्हपत्याग्नि हो, और उस में दैनिक अग्निहोत्र होता रहे। यह अग्नि आसन्नप्रसवा वधू के बिस्तरे के समीप रहे। यह अग्नि सुखदायक है, और स्वास्थ्य तथा आरोग्य देती है (शर्म)। यह अग्नि आसन्न प्रसवा के लिए मानो कवच है। (वर्म) इस कवच के रहते आसन्नप्रसवा पर रोगों के बाण प्रहार नहीं होते। मन्त्र के उत्तरार्द्ध भाग का भाव, अथर्व० १४।२।१५ में देखो। मन्त्र में केवल यह दर्शाया है कि सन्तानोत्पत्तिकाल के निकट, प्रसूतिकर्म के हेतु, क्या करना चाहिये।] [१. शर्म और वर्म नपुंसक लिङ्गी है, इस दृष्टि से "एतत्" शब्द नपुंसकलिङ्गी पठित है। अर्थात "तत शर्म, वर्म"।]

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    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे पुरुष वर ! (अस्यै) इस (नार्यै) स्त्री के लिये (शर्म) सुखदायक और (वर्म) कष्ट के निवारक (एतत्) यह सब पदार्थ (उपस्तरे) बिस्तर पर ओढ़ने बिछाने के लिये (आ हर) ले आ, उपस्थित कर। हे (सिनीवालि) स्त्रीजनो ! यह वधू (प्र जायताम्) उत्तम रीति से पुत्र उत्पन्न करे और (भगस्य) ऐश्वर्यशील पति के (सुमतौ) उत्तम मति के अधीन (असत्) रहे।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘नार्या उपस्तिरे’ इति ह्विटनिसम्मतः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    Bring comfortable cover and clothing for this woman in the bed. O noble lady, give birth to noble progeny which may enjoy the love and favour of the good will of Bhaga, lord of good fortune, for the home and family.

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    Translation

    Bring for this woman such a comfortable and protective bedding, so that, O divine midwife, may she give birth to children and be favoured by the Lord of good fortune (enjoy the marital bliss).

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    Translation

    O man! bring pleasure and safety for this bride in this bed-wrapper. O bride you prosper with offspring and be concordant with the mind of husband, the symbol of wealth.

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    Translation

    O bridegroom, bring for this woman all comfortable and painless cloths to be spread on her bed. O lady, the controller of provisions, bear children, and live in God’s grace!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(शर्म) सुखप्रदम् (वर्म) कवचम् (एतत्) (आ हर) आनय (अस्यै) (नार्यै) (उपस्तिरे) अवचक्षे च। पा० ३।४।१५। स्तृञ्स्तॄञ् आच्छादने-एश् प्रत्ययो बाहुलकात् तुमर्थे। उपस्त्रे। उपस्तर्तुम्।आच्छादयितुम्। अन्यद् व्याख्यातम्-म० १५ ॥

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