अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 63
ऋषिः - आत्मा
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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इ॒यं नार्युप॑ब्रूते॒ पूल्या॑न्यावपन्ति॒का। दी॒र्घायु॑रस्तु मे॒ पति॒र्जीवा॑ति श॒रदः॑ श॒तम्॥
स्वर सहित पद पाठइ॒यम् । नारी॑ । उप॑ । ब्रू॒ते॒ । पूल्या॑नि । आ॒ऽव॒प॒न्ति॒का । दी॒र्घऽआ॑यु: । अ॒स्तु॒ । मे॒ । पति॑: । जीवा॑ति । श॒रद॑: । श॒तम् ॥२.६३॥
स्वर रहित मन्त्र
इयं नार्युपब्रूते पूल्यान्यावपन्तिका। दीर्घायुरस्तु मे पतिर्जीवाति शरदः शतम्॥
स्वर रहित पद पाठइयम् । नारी । उप । ब्रूते । पूल्यानि । आऽवपन्तिका । दीर्घऽआयु: । अस्तु । मे । पति: । जीवाति । शरद: । शतम् ॥२.६३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
(इयम्) यह (नारी) नारी [नर की पत्नी] (पूल्यानि) संगति के कर्मों को [बीजसमान] (आवपन्तिका) बोदेतीहुई (उप ब्रूते) बोलती है−“(मे) मेरा (पतिः) पति (दीर्घायुः) लम्बी आयुवाला (अस्तु) होवे, और (शतं शरदः) सौ वर्षों (जीवाति) जीता रहे” ॥६३॥
भावार्थ
पत्नी प्रयत्न करकेपरमात्मा की प्रार्थना करे कि उस का पति सुख से पूर्ण आयु भोगे और इसी प्रकारपति भी पत्नी की पूर्ण आयु के लिये पुरुषार्थ करे ॥६३॥
टिप्पणी
६३−(इयम्) (नारी) नरस्यपत्नी (उपब्रूते) कथयति (पूल्यानि) पूल संहतौ-क्यप्। संहतिकर्माणि। संगतिबीजानि (आवपन्तिका) टुवप बीजतन्तुसन्ताने-शतृ, स्वार्थे कन्, टाप् बीजवद् विस्तारयन्ती (दीर्घायुः) दीर्घजीवनः (अस्तु) (पतिः) (जीवाति) जीवेत् (शरदः) वर्षाणि (शतम्)बहूनि ॥
विषय
पूल्य आववन
पदार्थ
१. (इयं नारी) = यह नारी (पूल्यानि अवन्तिका) = पूल्यों का वपन करती हुई [पूल to collect] संग्रह-कार्यों के बीज का वपन करती हुई, अर्थात् घर में मेल व निर्माण के कार्यों की ही प्रवृत्ति को पैदा करती हुई उपबूते-प्रभु से प्रार्थना करती है कि-(मे पतिः दीर्घायुः अस्त) = मेरा पति दीर्घजीवी हो, (शरदः शतं जीवाति) = वे सौ वर्ष के पूर्ण आयुष्य तक जीनेवाले बनें। २. वस्तुत: स्त्री के संग्रहात्मक कार्यों से घर का वातावरण उत्तम बना रहता है और पति का जीवन आनन्दमय व दीर्घ होता है। इस नारी के विग्रहात्मक कार्य ही घर के वातावरण को कलहमय बनाकर पति के जीवन को निरानन्द व अल्प कर देते हैं।
भावार्थ
घर में नारी इसप्रकार वर्ते कि परस्पर सबका मेल बना रहे और प्रसन्नता से पति का जीवन दीर्घ हो।
भाषार्थ
(इयम्) यह (नारी) वधू (पूल्यानि) फुल्लियों अर्थात् लाजाओं की (आ वपन्तिका) आहुतियां देती हुई (उपब्रूते) कहती है कि (मे) मेरा (पतिः) पति (दीर्घायुः) दीर्घ आयु वाला (अस्तु) हो, (शतम्) सौ (शरदः) सरदियों अर्थात् वर्षों तक (जीवाति) जीवित रहे।
टिप्पणी
[पूल्यानि=पंजाब में फुल्लियां बोलते हैं। पारस्कर गृह्यसूत्रों में पूल्यानि के स्थान में “लाजान्” पठित है। यथा “इयं नार्युपब्रूते लाजानावपन्तिका”] [व्याख्या- पारस्कर गृह्यसूत्रों के अनुसार यह लाजाहोम है। हिन्दी में लाजाओं को खीलें तथा पंजाबी में फुल्लियां कहते हैं। ये भूने हुए व्रीहि अर्थात् धान होते हैं। आयुर्वेद में खीलों को पथ्य-भोजन माना है। वेद में व्रीहि और यव [जौ] को प्राण और अपान कहा है। “प्राणापानौ व्रीहियवौ” (अथर्व० ११।४।१३)। तथा व्रीहि और यव के सेवन से यक्ष्मरोग का विनाश होता है। यथा “शिवौ ते स्तां व्रीहियवावबलासावदोमधौ। एतौ यक्ष्मं वि बाधेते एतौ मुञ्चतो अंहसः१”॥ (अथर्व० ८।२।१८)। लाजाएं भी सम्भवतः यक्ष्म तथा अंहस् का विनाश करने वाली है, अतः वधू लाजाहोम द्वारा पति की दीर्घायु चाहती है, और सौ वर्षों तक उस का जीवन।] [१. व्रीहि (चावल) और यव (जौं) बल का निरसन नहीं करते, और अदन अर्थात् खाने में मधुर होते हैं। ये दोनों यक्ष्मरोग के होने में बाधक होते हैं, ये दोनों दुःखप्रद रोग से छुड़ाते हैं। अदोमधौ=अदसि (भक्षणे)+मधु। अबलासौ=आ+बल+अस् (क्षेपणे)।]
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
(इयं नारी) यह स्त्री (पूल्यानि) फुल्लियों या खीलों को (आवपन्तिका) अग्नि में आहुति करती हुई (उपब्रूते) परमात्मा से प्रार्थना करती है कि (मे पतिः) मेरा पति (दीर्घायुः) दीर्घ आयु वाला (अस्तु) हो। और वह (शरदः शतम्) सौ बरस तक (जीवाति) जीवे।
टिप्पणी
‘पूल्पानि, पूल्यानीत्यनेन संदिह्यते वर्णाकृतिसाम्यात्।’ (च०) ‘एधन्तां पितरो मम’ इति पैप्प० सं०। (द्वि०) ‘गुल्पानि’ इत्यापस्तम्ब०। ‘कुल्पानि’ इति क्वचित्। ‘लाजान् आवपन्तिका’ (च०) ‘एधन्तां ज्ञातयो मम’ इति पा० गृ० सू०। ‘शतं वर्षाणि जीवतु’ इत्यधिकः पामै ० मै० ब्रा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
This bride, offering oblations of roasted rice with holiness and laying foundations of familial life with heart and soul, says: May my husband live a full happy long life of hundred years.
Translation
This women, scattering handfuls of grain, says : "may my husband be long-lived; may he live through a hundred autumns".
Translation
This lady offering the oblations of roasted paddy in the fire, prays "By God's grace may my husband be long-lived and live hundred autumns.
Translation
This woman thus prays to God, as she offers husks of corn as an oblation: long live my husband! yea, a hundred autumns let him live!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६३−(इयम्) (नारी) नरस्यपत्नी (उपब्रूते) कथयति (पूल्यानि) पूल संहतौ-क्यप्। संहतिकर्माणि। संगतिबीजानि (आवपन्तिका) टुवप बीजतन्तुसन्ताने-शतृ, स्वार्थे कन्, टाप् बीजवद् विस्तारयन्ती (दीर्घायुः) दीर्घजीवनः (अस्तु) (पतिः) (जीवाति) जीवेत् (शरदः) वर्षाणि (शतम्)बहूनि ॥
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