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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 29
    ऋषिः - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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    या दु॒र्हार्दो॑युव॒तयो॒ याश्चे॒ह जर॑ती॒रपि॑। वर्चो॒ न्वस्यै सं द॒त्ताथास्तं॑ वि॒परे॑तन॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या: । दु॒:ऽहार्द॑: । यु॒व॒तय॑: । या: । च॒ । इ॒ह । ज॒र॒ती॒: । अपि॑ । वर्च॑: । नु । अ॒स्यै । सम् । द॒त्त॒ । अथ॑ । अस्त॑म् । वि॒ऽपरे॑तन ॥२.२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या दुर्हार्दोयुवतयो याश्चेह जरतीरपि। वर्चो न्वस्यै सं दत्ताथास्तं विपरेतन॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या: । दु:ऽहार्द: । युवतय: । या: । च । इह । जरती: । अपि । वर्च: । नु । अस्यै । सम् । दत्त । अथ । अस्तम् । विऽपरेतन ॥२.२९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 29
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (याः) जो तुम (युवतयः)हे युवा स्त्रियो ! (च) और (याः) जो तुम (जरतीः) हे वृद्ध स्त्रियो ! (अपि) भी (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवाली (इह) यहाँ पर हो। वे तुम (अस्यै) इस [वधू] को (वर्चः) अपना तेज (नु) शीघ्र (सम् दत्त) दे डालो, (अथ) फिर (अस्तम्) अपने-अपनेघर (विपरेतन) चली जाओ ॥२९॥

    भावार्थ

    जो दुष्ट स्त्रियाँ घरमें आ जावें, वधू अपनी चतुरायी से उन्हें ऐसा परास्त करे कि वे अपना तेज गँवाकरचली जावें और फिर कभी न आवें ॥२९॥इस मन्त्र का चौथा पाद ऋग्वेद १०।८५।३३। मेंहै। यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण मेंव्याख्यात है ॥

    टिप्पणी

    २९−(याः) स्त्रियः (दुर्हार्दः) अ० २।७।५। हार्दम् आनुकूल्यंकरोति हार्दयतीति, हार्दयतेः-क्विपि णिलोपे रूपम्। दुष्टहृदयाः। क्रूरचित्ताः (युवतयः) तरुणस्त्रियः (याः) (च) (इह) गृहे (जरतीः) हे वृद्धस्त्रियः (अपि) (वर्चः) स्वतेजः (नु) शीघ्रम् (अस्यै) वध्वै (सम्) सम्यक् (दत्त) प्रयच्छत (अथ)अपि च (अस्तम्) स्वगृहम् (विपरेतन) विपरां विविधं दूरे गच्छत ॥

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    विषय

    सौभाग्य के लिए आशीर्वाद

    पदार्थ

    १. जब बारात लौटती है तब नववधू को देखने के लिए सभी पड़ोसी बन्धु उपस्थित होते हैं। उस समय वर प्रार्थना करता है कि हे सज्जनो व बन्धुओ! (इयं वधूः सुमंगली:) = यह नववधू उत्तम मंगलवाली है। आप सब (सम् एत) = यहाँ मिलकर उपस्थित हों और (इमाम् पश्यत) = इसे अपनी कृपादृष्टि से अनुगृहीत करो। (अस्यै) = इस नववधू के लिए (सौभाग्यं दत्वा) = सौभाग्य देकर और इसके (दौर्भाग्यैः) = दौर्भाग्यों को परे फेंकने के लिए साथ ही लेकर (विपरेतन) = घरों को लौटिए। जैसे वैद्य रोगी को स्वास्थ्य देकर व उसके रोग को ले-जाता है, उसीप्रकार सब महानुभाव इसे सौभाग्य देकर इसके दौर्भाग्यों को दूर ले-जाइए। (या:) = जो (दुर्हार्द: युवतयः) = उत्तम हृदयवाली युवतियों नहीं हैं, जिन्हें इस नववधू से कुछ ईर्ष्या भी है (च) = और (याः) = जो (इह) = यहाँ (जरती: अपि) = वृद्ध स्त्रियाँ भी हैं, वे (नु) = अब (अस्यै) = इस नववधू के लिए (वर्च: संदत्त) = तेजस्विता प्रदान करें और (अथ) = अब (अस्यै) = इसके लिए (संदत्त = मंगल आशीर्वाद दें और आशीर्वाद देने के बाद ही (अस्तं विपरेतन) = घरों को वापस जाएँ।

    भावार्थ

    वर चाहता है कि सभी पड़ोसी व बन्धुजन इस नववधू को सौभाग्य का आशीर्वाद दें। कुछ ईर्ष्या के होने पर भी युवतियाँ इससे आशीर्वाद ही दें। वृद्धाओं की भी यह आशीर्वादपात्र बने। ये सब इसके दौर्भाग्यों को दूर फेंकने का कारण बनें।

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    भाषार्थ

    (याः) जो (दुर्हार्दः) प्रतिकूल हृदयों वाली (युवतयः) युवा-स्त्रियां, (च) और (याः) जो (जरतीः) बूढ़ी स्त्रियां (अपि) भी (इह) यहां उपस्थित है, वे तुम सब (अस्यै) इस वधू के लिए (वर्चः) वर्चस्विनी बनी रहने का (नु) अवश्य (संदत्त) मिलकर आशीर्वाद देओ (अथ) तदनन्तर (अस्तम्) अपने अपने घरों को (वि परेतन) लौटो।

    टिप्पणी

    [युवतयः=युवतियों में ईर्ष्या की सम्भावना ऐसे शुभ अवसरों पर हो सकती है। उन्हें भी आशीर्वाद ही देने के लिए प्रेरणा दी गई है]

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    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे भद्र पुरुषो ! (इयम्) यह (सुमङ्गली :) शुभ मङ्गलमणी (वधूः) नववधू है। (सम् एत) आओ, पधारो। (इमां पश्यत) इसको देखो। और (अस्यै) इसको (सौभाग्यम्) उत्तम सौभाग्य का आशीर्वाद (दत्वा) प्रदान करके (विपरेतन) आप अपने अपने घरों को पधारें। (याः) जो (युवतयः) जवान स्त्रियां (दुर्हादः) दुष्ट हृदय वाली हैं वे (दौर्भाग्यैः) दौर्भाग्यों सहित (विपरेतन) लौट जावें। और (याः च) जो (इह) इस स्थान पर (जरतीः अपि) वृद्ध स्त्रियां भी हैं वे (अस्यै) इसको (नु) ही (वर्चः) तेज (सं दत्त) प्रदान करें। (अथ) और अनन्तर (अस्तं) अपने अपने घर को (विपरेतन) लौट जायें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    All those who are young, all those who are elderly, even those who are distraught at heart, pray wish her that she may shine with lustre, and having blessed her, pray you may leave.

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    Translation

    What evil-minded young women are here and so also the old ones, may they give their prowess to this bride and then go back home.

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    Translation

    Ler these young ladies who all ill-disposed and the ladies who are old and are here, give, this bride the brilliance and go their respective houses.

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    Translation

    Ye youthful maidens, ill disposed, and all ye aged women here, give all your brilliance to the bride, then to your several houses depart!

    Footnote

    See Rig, 10-85-33. This verse has been explained by Swami Dayananda in the Sanskar Vidhi in the chapter on Grihastha Ashrama.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २९−(याः) स्त्रियः (दुर्हार्दः) अ० २।७।५। हार्दम् आनुकूल्यंकरोति हार्दयतीति, हार्दयतेः-क्विपि णिलोपे रूपम्। दुष्टहृदयाः। क्रूरचित्ताः (युवतयः) तरुणस्त्रियः (याः) (च) (इह) गृहे (जरतीः) हे वृद्धस्त्रियः (अपि) (वर्चः) स्वतेजः (नु) शीघ्रम् (अस्यै) वध्वै (सम्) सम्यक् (दत्त) प्रयच्छत (अथ)अपि च (अस्तम्) स्वगृहम् (विपरेतन) विपरां विविधं दूरे गच्छत ॥

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