Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 4
    ऋषिः - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    0

    सोमो॑ददद्गन्ध॒र्वाय॑ गन्ध॒र्वो द॑दद॒ग्नये॑। र॒यिं च॑पु॒त्रांश्चा॑दाद॒ग्निर्मह्य॒मथो॑ इ॒माम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑: । द॒द॒त् । ग॒न्ध॒र्वाय॑ । ग॒न्ध॒र्व: । द॒द॒त् । अ॒ग्नये॑ । र॒यिम् । च॒ । पु॒त्रान् । च॒ । अ॒दा॒त् । अ॒ग्नि: । मह्य॑म् । अथो॒ इति॑ । इ॒माम् ॥२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमोददद्गन्धर्वाय गन्धर्वो दददग्नये। रयिं चपुत्रांश्चादादग्निर्मह्यमथो इमाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोम: । ददत् । गन्धर्वाय । गन्धर्व: । ददत् । अग्नये । रयिम् । च । पुत्रान् । च । अदात् । अग्नि: । मह्यम् । अथो इति । इमाम् ॥२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    १−सामान्य अर्थ ॥(सोमः) सोम [शान्ति आदि शुभ गुण] (गन्धर्वाय) गन्धर्व [वेदवाणी के धारण करनेवालेगुण] के लिये [कन्या को] (ददत्) देता है, (गन्धर्वः) गन्धर्व [वेदवाणी के धारणकरनेवाला गुण] (अग्नये) अग्नि [विद्या और शरीर के तेज] के लिये (ददत्) देता है। (अथो) फिर (अग्निः) अग्नि [विद्या और शरीर का तेज] (इमाम्) इस [स्त्री] को (च)और (रयिम्) धन को, (च) और (पुत्रान्) पुत्रों को (मह्यम्) मुझ [युवा ब्रह्मचारी]को (अदात्) देता है ॥४॥ २−नियोगविषयक अर्थ ॥ (सोमः) सोम [ऐश्वर्यवान् विवाहित पति] (गन्धर्वाय) गन्धर्व [वेदवाणी के धारण करनेवाले दूसरेनियुक्त पुरुष] के लिये [स्त्री को] (ददत्) छोड़ता है। (गन्धर्वः) गन्धर्व [वेदवाणी का धारण करनेवाला दूसरा नियुक्त पुरुष] (अग्नये) अग्नि [ज्ञानी तीसरेनियुक्त पुरुष] के लिये (ददत्) छोड़ता है। (अथो) फिर (अग्निः) अग्नि [ज्ञानीतीसरा नियुक्त पुरुष] (इमाम्) इस [स्त्री] को, (च) और (रयिम्) धन को (च) और (पुत्रान्) पुत्रों को (मह्यम्) मेरे लिये [अर्थात् चौथे नियुक्त पुरुष के लिये] (अदात्) छोड़ता है ॥४॥

    भावार्थ

    जब कन्या माता-पिता औरआचार्या से यथाक्रम सुशिक्षित होकर युवती हो जावे, तब यथाक्रम माता-पिता औरआचार्य से शिक्षा पाया हुआ युवा ब्रह्मचारी वैसी गुणवती कन्या से विवाह करकेधनवान् और पुत्रवान् होवे ॥४॥ मनुष्य को योग्य है कि सदा एकस्त्रीव्रत रहे, चाहे वहविवाहित हो वा नियुक्त हो, और विवाहित स्त्री के मर जाने वा रोगी हो जाने पर आपत्काल में ही एक-दूसरे के पीछे अन्य तीन स्त्रियों तक नियोग करके धन और सन्तानप्राप्त करे। इसी प्रकार स्त्री भी एक विवाहित पति के मर जाने वा रोगी हो जाने परआपत्काल में ही अन्य तीन नियुक्त पतियों के साथ एक-दूसरे के पीछे रह कर धन औरसन्तान की रक्षा करे ॥४॥यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१०।८५।४१ ॥

    टिप्पणी

    ४−(सोमः) शान्त्यादिगुणः। ऐश्वर्यवान्विवाहितपुरुषः (ददत्) दद दाने त्यागे च। ददाति। त्यजति कन्यां स्त्रियं वेतिशेषः (गन्धर्वाय) वेदवाणीधारकाय गुणाय नियुक्तपुरुषाय वा (गन्धर्वः) (ददत्) (अग्नये) विद्याप्राप्तिशरीरपुष्टिजन्यतेजसे। ज्ञानवते तृतीयनियुक्तपुरुषाय (रयिम्) धनम् (च) (पुत्रान्) (च) (अदात्) ददाति। त्यजति (अग्निः) ज्ञानवान्तृतीयनियुक्तपुरुषः (मह्यम्) यूने ब्रह्मचारिणे। चतुर्थनियुक्तपुरुषाय (अथो)पुनः (इमाम्) स्त्रियम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'सोम+गन्धर्व+अग्रि+मानव' को धन व पुत्रों की प्राप्ति

    पदार्थ

    १. (सोमः) = सोम [सौम्यस्वभाव का व्यक्ति] जिसके लिए कन्या के माता-पिता ने अपनी कन्या देने का निश्चय किया हुआ था, (गन्धर्वाय ददत्) = गन्धर्व के लिए इस कन्या को देनेवाला होता है, अर्थात् सौम्यता के साथ ज्ञानयुक्त पति प्रास हो जाता है तो फिर सोम के साथ सम्बन्ध न करके उस गन्धर्व के साथ ही सम्बन्ध किया जाता है। (गन्धर्व:) = ये गन्धर्व [ज्ञानी] भी (अग्नये ददत्) = इस कन्या को (अग्नि) = प्रगतिशील के लिए देता है, अर्थात् यदि सौम्यता व ज्ञान के साथ प्रगतिशीलता का गुण भी मिल जाए तो वह पति उत्तम होता है। सोम' उत् है, 'सोम+गन्धर्व' उत्तर है और 'सोम+गन्धर्व+अग्नि' उत्तम है। यह (अग्नि:) = प्रगतिशील व्यक्ति भी (अथो) = अब, निश्चय से (इमाम्) = इस युवति को (मह्यम्) = मुझ मानव के लिए (अदात्) = देता है और वह अग्नि मेरे लिए (रयिं च पुत्रान् च) = धन और उत्तम सन्तति को प्राप्त करानेवाला होता है।

    भावार्थ

    सौम्य' पति ठीक है, सौम्य से अधिक उत्कृष्ट [ज्ञानी] है, उससे भी उत्कृष्ट प्रगतिशील स्वभाववाला। इस प्रगतिशील में मानवता और अधिक शोभा को बढ़ा देती है। सोने पर सुहागे का काम करनेवाली होती है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (सोमः) सोम, जाया को (गन्धर्वाय) गन्धर्व के प्रति (ददत्) देता है, (गन्धर्वः) गन्धर्व (अग्नये) अग्नि के प्रति (ददत्) देता है। (अग्निः) अग्नि ने (मह्यम्) मेरे प्रति अर्थात् मनुष्यज के प्रति (रयिम्) सम्पत्ति को, (च) और (पुत्रान् च) पुत्र को, (अथो) तथा (इमाम्) इस जाया को (अदात्) दिया है।

    टिप्पणी

    [व्याख्या– मन्त्र में "मनुष्यज" पति कहता है कि "यह जाया पहिले सोम की थी, सोम ने इसे गन्धर्व को दिया, गन्धर्व ने इसे अग्नि को दिया, अग्नि ने सम्पत्ति, पुत्रों और इस जाया को मुझे दिया। प्रतीत होता है मन्त्र १ से ४ में, कन्या की चार अवस्थाओं का वर्णन, उस के पतियों अर्थात् रक्षकों के रूप में हुआ है। कन्या जब छोटी है तब वह सौम्यगुण प्रधान होती है। इसीलिये छोटे बच्चों को सौम्य, सौम्या तथा सौम्यी शब्दों द्वारा सम्बोधित किया जाता है। इन शब्दों में सोम का अर्थ है चन्द्रमा। चन्द्रमा शीतल, शान्तिप्रद होता है। इन्हीं गुणों की प्रधानता के कारण छोटे बच्चों को सौम्य आदि शब्दों द्वारा पुकारा जाता है। छोटा बच्चा जब गुरुकुल में प्रविष्ट होता है तो उसे "सोमाय राज्ञे" शब्द द्वारा स्मरण किया है (अथर्व० २।१३।२)। छोटी अवस्था में सौम्यगुण के प्राधान्य के कारण कन्या का पति अर्थात् रक्षक "सोम" कहा है। कन्या की आयु बढ़ी, तब सौम्यगुणों का प्राधान्य शनैः शनैः कम होने लगा। कन्या में यौवनावस्था के चिह्न दृष्टिगोचर होने लगे। सौम्यजीवन की पिछली अवस्था में मानसिक विकार शनैः शनैः जड़ पकड़ने लगे। प्रेम और अनुराग के हाव-भाव प्रकट होने लगे। गन्ध, मोद, प्रमोद, रूपसम्पत् शोभा की भावनाएं जागरित होने लगीं "गन्धो मे मोदो मे प्रमोदो मे। तन्मे युष्मासु (गन्धर्वेषु) (जैमिनीय ३।३।२५।४), "रूपमिति गन्धर्वाः" (उपासते) (श० ब्रा० १०।५।२।२०), "वरुणो आदित्यो राजा, तस्य गन्धर्वा विशः त इमे आसते इति युवानः शोभना उपसमवेता भवन्ति" (आश्वलायन श्रौतसूत्र, १०।७।३)। इसी प्रकार इस अवस्था में गान्धर्वविद्या अर्थात् संगीत की ओर रुचि बढ़ने लगी "गाथयैति परिष्कृता" (अथर्व० १४।१।७) यह अवस्था गन्धर्वावस्था है। इस अवस्था में कन्या का पति अर्थात् रक्षक गन्धर्व है। कालान्तर में "अग्नि" पति होता है, रक्षक होता है। रजस्वला में "रजस्" की अभिव्यक्ति अग्नि की अभिव्यक्ति है। आयुर्वेद में रजस् को आग्नेय कहा है। रजस् रक्षक है इस में निम्नलिखित प्रमाण है। "सोमः शौचं ददत्तासां गन्धर्वः शिक्षितां गिरम् अग्निश्च सर्वभक्षत्वं तस्मात् निष्कल्मषाः स्त्रियः"(वौधायन धर्मसूत्र, प्रश्न २, अध्याय २ सूत्र ५८), अर्थात् सोम ने स्त्रियों को शुचिपन दिया, गन्धर्व ने शिक्षिता वाणी दी, अग्नि ने सब को खा जाने का गुण दिया, इसलिये स्त्रियां निष्कल्मष अर्थात् अशुद्धि से रहित हैं। अभिप्राय यह कि कन्या की सौम्यावस्था में सुकुमारावस्था में, उस में स्वाभाविकरूप से भावों तथा व्यवहारों की शुचिता होती है, उसमें छल-कपट नहीं होता। गन्धर्व का सम्बन्ध गानविद्या से है। गानविद्या द्वारा वाणी शिक्षित होती है, जिस से गाने के आरोह-अवरोह आदि में व्यक्ति निपुण हो जाता है। गान का अभिप्राय वैदिक दृष्टि में पवित्र सामगानों से है। अग्निशक्ति अर्थात् मासिक रजोदर्शन के प्रभाव से कन्या के शारीरिक दोष नष्ट हो जाते हैं। ठीक प्रकार से रजोदर्शन न होने से स्त्रियां रुग्ण हो जाती हैं। रजोदर्शन के ठीक होते रजस्-रूपी-अग्नि स्त्रियों के सब रोगों का भक्षण कर लेती है। इस रजोदर्शन के प्रारम्भ में ही कन्या का विवाह मनुष्यज-वर के साथ न कर देना चाहिये, रजोदर्शन की अवस्था का पूर्ण परिपाक कन्या में, २४ वर्षों की आयु में होता है। यह अवस्था सूर्या ब्रह्मचारिणी की है। सूर्या ब्रह्मचारिणी का विवाह आदित्य ब्रह्मचारी के साथ होता है। विवाह के समय गोदान तथा कन्या की विदाई के समय पिता से मिली वस्त्रादि की भेंट को मन्त्र में "रयि" कहा है, जोकि मनुष्यज पति को मिलती है। सूर्या ब्रह्मचारिणी के साथ मनुष्यज पति को "पुत्र" भी मिलते हैं। इस का अभिप्राय यह है कि पूर्ण ब्रह्मचर्य के कारण सूर्या प्रजोत्पादन की अनुद्-बुद्ध (potenial) अवस्था वर्तमान थी, जो कि विवाहानन्तर पुत्र पुत्रियों के रूप में प्रकट होती है। इस अवस्था से सम्पन्न सूर्या, आदित्य ब्रह्मचारी को मिलती है। और ऐसी सूर्या का दाता अग्नि अर्थात् परिपक्व रजस्-अवस्था ही होती है।] [विशेष वक्तव्य— अथर्व० १४।२।१-४ मन्त्रों में (१) "पतिभ्यः" में बहुवचन तथा "प्रजया सह"; मन्त्र (३) "पुनःपत्नीम्" अदात्; मन्त्र (३) में, सोम, गन्धर्व, अग्नि और मनुष्यज पतियों; तथा मन्त्र (४) में "रयिं च पुत्रांश्च अथो इमाम्"; इन शब्दों की दृष्टि से इन मन्त्रों के अर्थ नियोगपरक भी होते हैं। इस प्रकार ये चार मन्त्र द्व्यर्थक हैं, विवाहपरक भी और नियोगपरक भी। मन्त्र ३ का नियोग विषयक अर्थ महर्षिदयानन्दकृत निम्नलिखित है— "अब पतियों की संज्ञा कहते हैं- (सोमः प्रथमो विविदे) उन में से जो विवाहित पति होता है, उस की सोम संज्ञा है। क्योंकि वह सुकुमार होने से मृदु, आदि गुणयुक्त होता है। (गन्धर्वो विविद उत्तरः) दूसरा पति जो नियोग से होता है, सो गन्धर्वसंज्ञक अर्थात् भोग में अभिज्ञ होता है। (तृतीयो अग्निष्टे पतिः) तीसरा पति जो नियोग से होता है, वह अग्निसंज्ञक अर्थात् तेजस्वी अधिक उमरवाला होता है। (तुरीयस्ते मनुष्यजाः) और चौथे से लेके दशम पर्यन्त जो नियुक्त पति होते हैं, वे सब मनुष्यसंज्ञक होते हैं, क्योंकि वे मध्यम होते हैं। (सत्यार्थप्रकाश, तथा ऋग्वेदादिभाष्य भाष्य भूमिका)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    (सोमः) सोम कन्या को (गन्धर्वाय ददद्) गन्धर्व के हाथ प्रदान करता है। (गन्धर्वः) गन्धर्व (अग्नये ददद्) उसे अग्नि के हाथ प्रदान करता है (अग्निः) अग्नि (रयिम्) वीर्य या रज और पुत्रों को (ददद्) प्रदान करता हुआ (इमाम्) इस कन्या को (अथो) तदनन्तर (मह्यम् अदाद्) मुझ पति को प्रदान करता है।

    टिप्पणी

    ‘सोमोऽददाद्गन्धर्वाय गन्धर्वोऽग्नये ददात्। पशूश्च मह्यं पुत्रांश्चाग्निर्ददात्यथो त्वाम्’ इति मै० ब्रा०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    Soma, the state of child-like innocence, gave her unto Gandharva, rising self awareness of identity toward puberty, Gandharva gave her unto Agni, state of adolescence, love and maturtiy, and Agni, on maturity, balanced and tempered identity with education, gives her to me with homely wealth and noble progeny implicit in her.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Soma (the youthful love) gives her to the Gandharva (attachment personified), the Gandharva gives her to Agni (heat of passion), and finally Agni has given her to me for the sake of children and wealth. (Rg. X.85.41)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Whom the Soma hands over to the Gandharva, it gives to her to Agni and consequently Agni gives this bride, wealth, and sons to me, the husband, O bride. [ N.B. When these two verses described above are taken as pregnant with thought of Niyoga the meaning will be grasped in the sens of Niyoga. In that context the 1st man of Niyoga will be called Soma, the second as Gandharva the third as Agni and all others up to eleven as Manushya the men. But when the Niyoga is not taken as theme of them the meaning will be taken as given above.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Tranquillity develops in the girl the sentiment of following the Vedic law, which in turn brings her knowledge and strength of character, which bestows on me riches and sons and this my bride.

    Footnote

    See Rig, 10-85-41.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(सोमः) शान्त्यादिगुणः। ऐश्वर्यवान्विवाहितपुरुषः (ददत्) दद दाने त्यागे च। ददाति। त्यजति कन्यां स्त्रियं वेतिशेषः (गन्धर्वाय) वेदवाणीधारकाय गुणाय नियुक्तपुरुषाय वा (गन्धर्वः) (ददत्) (अग्नये) विद्याप्राप्तिशरीरपुष्टिजन्यतेजसे। ज्ञानवते तृतीयनियुक्तपुरुषाय (रयिम्) धनम् (च) (पुत्रान्) (च) (अदात्) ददाति। त्यजति (अग्निः) ज्ञानवान्तृतीयनियुक्तपुरुषः (मह्यम्) यूने ब्रह्मचारिणे। चतुर्थनियुक्तपुरुषाय (अथो)पुनः (इमाम्) स्त्रियम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top