अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 68
ऋषिः - आत्मा
देवता - विराट् पुरउष्णिक्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
1
कृ॒त्रिमः॒कण्ट॑कः श॒तद॒न्य ए॒षः। अपा॒स्याः केश्यं॒ मल॒मप॑ शीर्ष॒ण्यं लिखात् ॥
स्वर सहित पद पाठकृ॒त्रिम॑: । कण्ट॑क: । श॒तऽद॑न् । य: । ए॒ष: । अप॑ । अ॒स्या: । केश्य॑म् । मल॑म् । अप॑ । शी॒र्ष॒ण्य᳡म् । लि॒खा॒त् ॥२.६८॥
स्वर रहित मन्त्र
कृत्रिमःकण्टकः शतदन्य एषः। अपास्याः केश्यं मलमप शीर्षण्यं लिखात् ॥
स्वर रहित पद पाठकृत्रिम: । कण्टक: । शतऽदन् । य: । एष: । अप । अस्या: । केश्यम् । मलम् । अप । शीर्षण्यम् । लिखात् ॥२.६८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
(कृत्रिमः) शिल्पी काबनाया हुआ, (शतदन्) सौ [बहुत] दाँतोंवाला (यः एषः) जो यह (कण्टकः) काँटोंवाला [कंघा आदि] है। वह (अस्याः) इस [प्रजा अर्थात् स्त्री-पुरुषों] के (केश्यम्) केशके और (शीर्षण्यम्) शिर के (मलम्) मल को (अप अप लिखात्) सर्वथा खरोंच डाले ॥६८॥
भावार्थ
जैसे शिल्पी के बनायेकंघा ककई से काढ़ने पर केश शुद्ध होते और शिर का क्लेश दूर होता है, वैसे हीअनेक प्रयत्नों से अज्ञान के मिटने पर आत्मा की शुद्धि होती है॥६८॥
टिप्पणी
६८−(कृत्रिमः) शिल्पिना कृतः (कण्टकः) कटि गतौ-ण्वुल् अर्शआद्यच्। कण्टकःकन्तपो वा कृन्ततेर्वा कण्टतेर्वा स्याद् गतिकर्मणः निरु० ६।३२। कण्टकयुक्तः कृन्तकः (शतदन्)छन्दसि च। पा० ५।४।१४२। दतृ इत्ययमादेशः। बहुदन्तोपेतः (यः) (एषः) (अस्याः)प्रजायाः (केश्यम्) केशे भवम् (मलम्) मालिन्यम् (शीर्षण्यम्) शिरसि भवम् (अपअप लिखात्) भृशं विलिख्य दूरीकुर्यात् ॥
विषय
कृत्रिम कण्टक
पदार्थ
१. (यः) = जो (एष:) = यह (शतदन) = सैकड़ों दाँतोंवाली (कृत्रिमः) = शिल्पियों द्वारा निर्मित (कण्टक:) = कंघी है, वह (अस्याः) = इस वधू के (केश्यम्) = केशों में होनेवाले (शीर्षण्यं मलम्) = सिर के मल को (अपलिखात्) = दूर व सुदूर कर दे। २. कंघी से बाहर से सिर-शुद्धि इसप्रकार हो जाती है कि उसमें किसी प्रकार की जुएँ आदि पड़कर क्लेश का कारण नहीं बन पातीं। जहाँ अन्तःशुद्धि अत्यन्त आवश्यक है, वहाँ बाह्यशुद्धि उसमें सहायक बनती है।
भावार्थ
सिर के बालों को कंघी से शुद्ध कर लेना आवश्यक है। इससे मल-सञ्चित होकर केशों में जुएँ आदि पड़ने की आशंका नहीं रहती।
भाषार्थ
(यः) जो (एषः) यह (कृत्रिमः) कारीगर का बनाया हुआ, (शतदन्) सौ दन्तों वाला (कण्टकः) कंघा है, वह (अस्याः) इस वधू के (केश्यम्) केशों के (मलम्) मल को (अप लिखात्) दूर करे, (शीर्षण्यम्) और सिर के मल को (अप) दूर करे।
टिप्पणी
[कण्टकः संस्कृत में कङ्कतः=कंघा। कङ्कत शब्द कण्टक का अपभ्रंश है] [व्याख्या-वधू को चाहिये कि वह कंघे का प्रयोग प्रतिदिन करे। कंघे से केशों का मल दूर होता है, तथा सिर के अर्थात् सिर के केशों की जहां जड़ें होती हैं वहां पर जमामल भी दूर होता है।]
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
बालों को वधू कंघी से सवारा करे। (यः एषः) जो यह (शतदन्) सैंकड़ों दांतों वाला (कृत्रिमः) कृत्रिम (कण्टकः*) कण्टक अर्थात् कंघा है वह (अस्याः) इस वधू के (शीर्षण्यम्) सिर के और (केश्यम्) केशों के (मलम्) मलको (अप अप लिखात्) बाहर निकाल कर दूर करे।
टिप्पणी
(प्र०) ‘कृत्रिमः कंकदः’ (तृ०) ‘अपास्यात् केश्यम्’ इति पैप्प० सं०। ‘कङ्कतः’ इति च क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
Let this hundred-toothed comb made by the artist scrape and remove the dirt of the head and hair of this bride and this people of the bride’s and bridegroom’s families.
Translation
May this hundred toothed artificial thorn (i.e., the comb) scratch away the dirt of her hair and of her head.
Translation
Let this artificial comb which is wrought with hundred teeth, cast away and remove the dirt from her hair and head.
Translation
Let this artificial comb, wrought with a hundred teeth, remove all impurity from the hair and head of this woman.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६८−(कृत्रिमः) शिल्पिना कृतः (कण्टकः) कटि गतौ-ण्वुल् अर्शआद्यच्। कण्टकःकन्तपो वा कृन्ततेर्वा कण्टतेर्वा स्याद् गतिकर्मणः निरु० ६।३२। कण्टकयुक्तः कृन्तकः (शतदन्)छन्दसि च। पा० ५।४।१४२। दतृ इत्ययमादेशः। बहुदन्तोपेतः (यः) (एषः) (अस्याः)प्रजायाः (केश्यम्) केशे भवम् (मलम्) मालिन्यम् (शीर्षण्यम्) शिरसि भवम् (अपअप लिखात्) भृशं विलिख्य दूरीकुर्यात् ॥
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