अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 60
ऋषिः - आत्मा
देवता - पथ्यापङ्क्ति
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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यदी॒यं दु॑हि॒तातव॑ विके॒श्यरु॑दद्गृ॒हे रोदे॑न कृण्वत्यघम्। अ॒ग्निष्ट्वा॒ तस्मा॒देन॑सःसवि॒ता च॒ प्र मु॑ञ्चताम् ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । इ॒यम् । दु॒हि॒ता । तव॑ । वि॒ऽके॒शी । अरु॑दत् । गृ॒हे । रोदे॑न । कृ॒ण्व॒ती । अ॒घम् । अ॒ग्नि:। त्वा॒ । तस्मा॑त् । एन॑स: । स॒वि॒ता । च॒ । प्र । मु॒ञ्च॒ता॒म् ॥२.६०॥
स्वर रहित मन्त्र
यदीयं दुहितातव विकेश्यरुदद्गृहे रोदेन कृण्वत्यघम्। अग्निष्ट्वा तस्मादेनसःसविता च प्र मुञ्चताम् ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । इयम् । दुहिता । तव । विऽकेशी । अरुदत् । गृहे । रोदेन । कृण्वती । अघम् । अग्नि:। त्वा । तस्मात् । एनस: । सविता । च । प्र । मुञ्चताम् ॥२.६०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
[हे गृहस्थ !] (यदि)यदि (इयम्) यह (तव) तेरी (दुहिता) पुत्री (विकेशी) बाल बिखेरे हुए, (रोदेन)विलाप के साथ (अघम्) दुःख (कृण्वती) करती हुई (गृहे) घर में (अरुदत्) रोवे। (अग्निः) तेजस्वी (च) और... म० ५९ ॥६०॥
भावार्थ
[मन्त्र ५९] के समानहै ॥६०॥
टिप्पणी
६०−(इयम्) उपस्थिता (दुहिता) पुत्री (तव) (विकेशी) विकीर्णकेशा (अरुदत्)रुद्यात् (कृण्वती) कुर्वती। अन्यद्गतम्-म० ५९ ॥
विषय
अघ-निवारक 'अग्नि व सविता'
पदार्थ
१. (यदि) = यदि (इमे) = ये (केशिनाः जनाः) = बिखरे हुए बालोंवाले लोग (ते गृहे) = तेरे घर में (अघं कृण्वन्ति) = [अध: pain, grief, distress] शोक करते हुए (रोदेन समनर्तिषुः) = नाच-कूद करने लगें-बिलखें तो (तस्मात् एनसः) = उस [एनस् unhappiness], निरानन्दता से-दुःखमय वातावरण से (अग्निः सविता च) = अग्नि और सविता-वह अग्रणी, सवोत्पादक प्रभु (त्वा प्रमुञ्चताम्) = तुझे मुक्त करें। तुम्हारे अन्दर आगे बढ़ने की भावना हो तथा निर्माण के कार्यों में लगे रहने की प्रवृत्ति हो। ऐसा होने पर घर में इसप्रकार बिलख-बिलखकर रोने के दृश्य उपस्थित न होंगे। २. (यदि इयम्) = यदि यह (तव दुहिता) = तेरी दूरेहिता-बिवाहिता कन्या विकेशी = बालों को खोले हुए (गृहे अरुदन्) = घर में रोती है और (रोदेन) = अपने रोने से (अपं कृण्वती) = दुःख के वातावरण को उपस्थित कर देती है और इसीप्रकार (यत्) = जो (जामय:) = तेरी विवाहिता बहिनें, (यत् युवतयः) = और युवति कन्याएँ (ते गृहे समनर्तिषु:) = तेरे घर में नाच-कूद मचा देती है और रोदेन (अघं कृण्वति) = रोने के द्वारा दुःखमय वातावरण बना देती हैं, इसीप्रकार (यत्) = जो (ते प्रजायाम्) = तेरी सन्तानों में, (पशुषु) = गवादि पशुओं में (यत् वा) = अथवा (गृहेषु) = पत्नी में (अघकृद्भिः) = किन्हीं पापवृत्तिवालों ने (निष्ठितम् अरघं कृतम्) = [निष्ठितम्-firm, certain] निश्चितरूप से स्थाई कष्ट उत्पन्न कर दिया है तो अग्नि और सविता तुझे उस कष्ट से मुक्त करें। वस्तुत: आगे बढ़ने की भावना से और घर में सबके निर्माण कार्यों में लगे रहने से इसप्रकार के कष्टों में रोने के अवसर उपस्थित ही नहीं होते। सामान्यत: घरों में शान्ति बनी रहती है। अग्नि व सविता की उपासना के अभाव में अज्ञान की वृद्धि होती है, दु:खद घटनाएँ उपस्थित हो जाती हैं और रोने-धोने के दृश्य उपस्थित हुआ करते हैं।
भावार्थ
यदि घरों में सब आगे बढ़ने की भावना से युक्त हों और निर्माण के कार्यों में प्रवृत्त रहें तो व्यर्थ के कलहों के कारण रोने-धाने के दृश्य उपस्थित ही न हों।
भाषार्थ
हे वधु! (यदि) यदि (इयम्) यह (तव) तेरी (दुहिता) पुत्री (रोदेन) रुदन द्वारा (अघम्) मृत्यु को (कृण्वती) प्रकट करती हुई (गृहे) घर में, (विकेशी) केश बिखेर कर (अरुदत्) रोई है, तो (तस्मात्) उस (एनसः) मृत्यु के कारणीभूत पाप से (अग्निः) अग्नि (च) और (सविता) सूर्य (त्वा) तुझे (प्र मुञ्चताम्) छुड़ावें।
टिप्पणी
[विकेशी=दुःख और आपत्ति के समय, गृहस्थ जीवनोपयोगी श्रृङ्गार का रहना अस्वाभाविक है। इसलिये मृत्यु आदि की आपत्ति के समय में दुहिता के शृङ्गार के अभाव को विकेशी पद द्वारा सूचित किया है। (अग्निः त्वा) शेष अभिप्राय पूर्ववत्]।
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
(यदि) यदि (इयम्) यह (तव) तेरी (दुहिता) सब कामों को पूर्ण करने हारी स्त्री या दूर देश में विवाह के निमित्त दी गयी कन्या (विकेशी) बाल खोल खोल कर (गृहे) घर भर में (रोदन) अपने रोने से (अघम्) बुरा, दुःखदायी दृश्य (कृण्वती) उपस्थित करती हुई (अरुदत्) रोवे तो (अग्निः त्वा० इत्यादि) अग्नि = आचार्य और सविता = परमेश्वर या तुम्हारे पिता तुम्हें इस बुरे दृश्य से मुक्त करें।
टिप्पणी
(प्र०) ‘यदस्तै दुहिता तव विक्रेष्वरुजत्’। ‘बाहूरोधेन कृण्वस्यघम्’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
If this daughter of yours, crying and wailing with dishevelled hair in your house, enact a scene of sin and sorrow, then may Agni and Savita save you and release you from that deathly sin.
Translation
If this daughter of yours has wept with loosened hair in your house, creating unpleasantness with wails and cries, may the Lord adorable and inspirer, free you from that nuisance.
Translation
If, this daughter of yours weeps and bails (due to some miseries fallen on her) committing sin with weeping and cry, throwing loose her long hair, in your house, let Agni................evil.
Translation
If in thy house thy daughter weeps, with wild disheveled locks, causing distress with her lament, may the learned Acharya free thee from that suffering, may God deliver thee from that.
Footnote
Savita means God or father.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६०−(इयम्) उपस्थिता (दुहिता) पुत्री (तव) (विकेशी) विकीर्णकेशा (अरुदत्)रुद्यात् (कृण्वती) कुर्वती। अन्यद्गतम्-म० ५९ ॥
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