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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 35
    ऋषिः - आत्मा देवता - पुरोबृहती त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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    नमो॑गन्ध॒र्वस्य॒ नम॑से॒ नमो॒ भामा॑य॒ चक्षु॑षे च कृण्मः। विश्वा॑वसो॒ ब्रह्म॑णाते॒ नमो॒ऽभि जा॒या अ॑प्स॒रसः॒ परे॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । ग॒न्ध॒र्वस्य॑ । नम॑से। नम॑: । भामा॑य । चक्षु॑षे । च॒ । कृ॒ण्म॒: । विश्व॑वसो॒ इति॒ विश्व॑ऽवसो । ब्रह्म॑णा । ते॒ । नम॑: । अ॒भि । जा॒या: । अ॒प्स॒रस॑: । परा॑ । इ॒हि॒ ॥२.३५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमोगन्धर्वस्य नमसे नमो भामाय चक्षुषे च कृण्मः। विश्वावसो ब्रह्मणाते नमोऽभि जाया अप्सरसः परेहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । गन्धर्वस्य । नमसे। नम: । भामाय । चक्षुषे । च । कृण्म: । विश्ववसो इति विश्वऽवसो । ब्रह्मणा । ते । नम: । अभि । जाया: । अप्सरस: । परा । इहि ॥२.३५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 35
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (गन्धर्वस्य) विद्याधारण करनेवाले पुरुष के (नमसे) अन्न [भोजन] के लिये (नमः) [यह] अन्न है, (च) और (भामाय) प्रकाशयुक्त (चक्षुषे) नेत्र [अर्थात् इन्द्रियों के हित] के लिये (नमः) अन्न (कृण्मः) हम बनाते हैं। (विश्वावसो) हे समस्त धनवाले वर ! (ते) तेरेलिये (ब्रह्मणा) जलसहित (नमः) अन्न है, (जायाः) जन्म के कारणों, (अप्सरसः अभि)अप्सराओं [कामों में व्यापक स्त्रियों] के सामने (परा इहि) निकट जा ॥३५॥

    भावार्थ

    सुन्दर स्वच्छ रोचकखान-पान से वधू-वर को सन्तुष्ट करें और वे दोनों सब बड़े कार्यकुशल स्त्री-पुरुषों का उपकार मान कर उनका सत्कार करें ॥३५॥

    टिप्पणी

    ३५−(नमः) अन्नम्-निघ० २।७। (गन्धर्वस्य) विद्याधारकपुरुषस्य (नमसे) अन्नाय। भोजनाय (नमः) (अन्नम्) (भामाय)अर्तिस्तुसुहुसृधृक्षिक्षुभाया०। उ० १।१४०। भा दीप्तौ-मन्। दीप्यमानाय (चक्षुषे)मेत्राय। सर्वेन्द्रियायेत्यर्थः (च) (कृण्मः) कुर्मः (विश्वावसो) हे सर्वधनिन्वर (ब्रह्मणा) उदकेन सह-निघ० १।१२। (ते) तुभ्यम् (नमः) अन्नम् (अभि) अभीत्य (जायाः) उत्पत्तिकारणानि (अप्सरसः) म० ९। कर्मसु व्यापनशीलाः स्त्रियः (परा)निकटे (इहि) गच्छ ॥

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    विषय

    नमसे, भामाय चक्षुषे

    पदार्थ

    १. (गन्धर्वस्य) = ज्ञान को धारण करनेवाले इस युवक को (नमसे नमः) = नम्रता के लिए अथवा शत्रुओं को झकानेवाले बल के लिए हम नमस्कार (कृण्म:) = करते हैं (च) = और इस युवक के (भामाय) = तेजस्विता से दीप्त (चक्षुषे) = नेत्रों के लिए (नमः) = नमस्कार करते हैं। हे (विश्वावसो) = घर में सबको बसानेवाले व सब आवश्यक धनोंवाले युवक! (ब्रह्मणा) = ज्ञान के कारण (ते नमः) = हम तेरे लिए नमस्कार करते हैं। तू (अप्सरस:) = गृहकार्यों में गतिशील (जाया: अभि) = पत्नी का लक्ष्य करके [परा towards]-(इहि) = उसकी ओर जानेवाला हो।

    भावार्थ

    उत्तम गृहपति वही है जो 'नम्रता, उत्तम बल, दीस नेत्र व ज्ञान' से युक्त है। यह घर में सबको बसाने के लिए आवश्यक धनों का अर्जन करनेवाला हो। क्रियाशील पत्नी को प्रास होकर उत्तम सन्तान को प्रास करे।

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    भाषार्थ

    (गन्धर्वस्य) परमेश्वर के (नमसे) नत होने, झुकने के लिए (नमः) नमस्कार (कृण्मः) हम करते हैं, (भामाय) उस की ज्योति के लिए (नमः) नमस्कार (च) तथा (चक्षुषे) जगत् के निरीक्षण या कृपादृष्टि के लिए (नमः) नमस्कार करते हैं। (विश्वावसो) हे विश्व में वसे हुए! (ब्रह्मणा) वेद के मन्त्रों द्वारा (ते) तेरे लिए (नमः) नमस्कार हो, (जायाः) जायारूप (अप्सरसः) अपनी प्राकृतिक शक्तियों की ओर (परेहि) तू गमन करता रह।

    टिप्पणी

    [नमसे= नम प्रह्वत्वे। प्रह्वत्व का अर्थ है झुकना, अनुकूल होना। प्रलयावस्था के अनन्तर जगदुत्पत्ति के प्रति परमेश्वर का झुकाव, अनुकूलता। "जायाः परेहि" द्वारा सृष्ट्यारम्भ में जाया के प्रति परमेश्वर के गमन का कथन सूचित किया है। जायाः से अभिप्राय प्रकृति की उत्पादन शक्तियों से है। भामाय = भाम = प्रभा = ज्योतिः। सृष्टि की विराट्-अवस्था में परमेश्वर की ही ज्योति सृष्टि में चमकती है "तस्य भासा सर्वमिदं विभाति"। चक्षुषे = परमेश्वर को "सहस्राक्ष" कहा है (यजु० ३१।१), क्योंकि यह जगत् के हजारों अर्थात् असंख्य पदार्थों का निरीक्षण कर रहा होता है, और सब जीवों को कर्मानुसार फल देकर, उन के सुधार के लिए उन पर कृपादृष्टि किये रहता है। इस भाव को "अनुग्रहः सर्गः" (तत्त्वसमास संख्या सूत्र १७) द्वारा परमेश्वर की अनुग्रह दृष्टि का वर्णन हुआ है। इसी भावना को “स प्रजाभ्यो वि पश्यति" (अथर्व० १३।१४।१।१३१) तथा "स सर्वस्मै वि पश्यति" (अथर्व० ३१।१४।२।१९) द्वारा प्रकट किया है। गर्भाधान के समय पति-पत्नी, सात्त्विक भावनाओं के जागरण के निमित्त, भोगेच्छा से रहित, जगदुत्पत्ति में परमेश्वर के सात्त्विक कर्म का स्मरण करते हैं। इसीलिये मन्त्र में “जाया परेहि" का वर्णन हुआ है।]

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    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    (गन्धर्वस्य) गन्धर्व, युवा पुरुष के (नमसे) बल वीर्य के लिये (नमः कृण्मः) हम आदर भाव प्रकट करें। और (भामाय) उसके प्रति दीप्तिमान् क्रोधपूर्ण (चक्षुषे) दृष्टि के लिये भी (नमः कृण्मः) हम नमस्कार करते हैं। हे (विश्वावसो) नाना धनों के स्वामिन् ! (ते) तेरा हम (ब्रह्मणा) ब्रह्म, वेदमन्त्र द्वारा (नमः) पूजा करते हैं। तू (जायाः) अपनी जाया, स्त्री रूप (अप्सरसः) स्त्रियों के (अभि) पास (परेहि) जा। ‘विश्वावसो, जायाः, अप्सरसः’ इत्यादिषु एकवचनबहुवचेन जात्याख्यायाम् बोध्ये।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘गन्धर्वस्य मनसे’ इति ह्विटनिकामितः। ‘गन्धर्वस्य नमसो नमो भासाय’ (तृ०) ‘विश्वावसो नमो ब्रह्मणा ते कृणोमि’ इति पैप्प० सं०॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    Homage to Gandharva’s adoration, i.e., to man’s adoration of his consort, we do homage to his loving eye and passion of love. O man of manly wealth of the world, we do you homage with Vedic chant, go and meet your Apsara partner, lovely nymph of your heart’s desire.

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    Translation

    Homage to the, food provided by the sustainer of the earth (the cloud); to the wrathful eye we pay homage. O master of all sorts of wealth, homage to you with sacred knowledge. May you go away, to your wives, the energies-active within the waters (apsaras).

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    Translation

    May there be homage for the strength marriageable youth, may we pay homage for his eye full of fiery anger. O marriageable youth, we pay our homage to you with vedic verses pronounced, you go to your consort who is like mymph.

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    Translation

    Homage we pay to the Youngman’s strength, obeisance to his eye and fiery anger. O opulent husband, we revere thee with Vedic verses. Go thou to thy wife fit to bear children.

    Footnote

    Plural number has been used, whereas it conveys the sense of singular number.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३५−(नमः) अन्नम्-निघ० २।७। (गन्धर्वस्य) विद्याधारकपुरुषस्य (नमसे) अन्नाय। भोजनाय (नमः) (अन्नम्) (भामाय)अर्तिस्तुसुहुसृधृक्षिक्षुभाया०। उ० १।१४०। भा दीप्तौ-मन्। दीप्यमानाय (चक्षुषे)मेत्राय। सर्वेन्द्रियायेत्यर्थः (च) (कृण्मः) कुर्मः (विश्वावसो) हे सर्वधनिन्वर (ब्रह्मणा) उदकेन सह-निघ० १।१२। (ते) तुभ्यम् (नमः) अन्नम् (अभि) अभीत्य (जायाः) उत्पत्तिकारणानि (अप्सरसः) म० ९। कर्मसु व्यापनशीलाः स्त्रियः (परा)निकटे (इहि) गच्छ ॥

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