अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 28
ऋषिः - आत्मा
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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सु॑मङ्ग॒लीरि॒यंव॒धूरि॒मां स॒मेत॒ पश्य॑त। सौभा॑ग्यम॒स्यै द॒त्त्वा दौर्भा॑ग्यैर्वि॒परे॑तन॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽम॒ङ्ग॒ली । इ॒यम् । व॒धू: । इ॒माम् । स॒म्ऽएत॑ । पश्य॑त । सौभा॑ग्यम् । अ॒स्यै । द॒त्त्वा । दौ:ऽभा॑ग्यै: । वि॒ऽपरे॑तन ॥२.२८॥
स्वर रहित मन्त्र
सुमङ्गलीरियंवधूरिमां समेत पश्यत। सौभाग्यमस्यै दत्त्वा दौर्भाग्यैर्विपरेतन॥
स्वर रहित पद पाठसुऽमङ्गली । इयम् । वधू: । इमाम् । सम्ऽएत । पश्यत । सौभाग्यम् । अस्यै । दत्त्वा । दौ:ऽभाग्यै: । विऽपरेतन ॥२.२८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
[हे विद्वानो !] (इयम्वधूः) यह वधू (सुमङ्गलीः) बड़े मङ्गलवाली है, (समेत) मिलकर आओ और (इमाम्) इसे (पश्यत) देखो। (अस्यै) इस [वधू] को (सौभाग्यम्) सुभागपन [पति की प्रीति] (दत्त्वा) देकर (दौर्भाग्यैः) दुर्भागपनों से [इस को] (विपरेतन) पृथक् रक्खो॥२८॥
भावार्थ
सब विद्वान् लोग मिलकरआशीर्वाद देवें कि वधू पति की प्राणप्रिया होकर सदा आनन्द से रहे और कभी कष्ट नउठावे ॥२८॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।८५।३३, और महर्षिदयानन्दकृतसंस्कारविधि विवाहप्रकरण में आशीर्वाद देने के लिये विवाह में आये लोगों केबुलाने में विनियुक्त है ॥
टिप्पणी
२८−(सुमङ्गलीः) छान्दसो विसर्गः। बहुमङ्गलवती (इयम्)दर्शनीया (वधूः) (इमाम्) (समेत) समेत्य आगच्छत (पश्यत) अवलोकयत (सौभाग्यम्)सुभगत्वम्। पतिप्रियत्वम्। बह्वैश्वर्यवत्वम् (अस्यै) (वध्वै) (दत्त्वा) (दौर्भाग्यैः)दुर्भगत्वैः। ऐश्वर्यराहित्यैः। पतिस्नेहशून्यकर्मभिः (विपरेतन)अन्तर्गतण्यर्थः। विपरागमयत। पृथक् कुरुत ताम् ॥
विषय
सौभाग्य के लिए आशीर्वाद
पदार्थ
१. जब बारात लौटती है तब नववधू को देखने के लिए सभी पड़ोसी बन्धु उपस्थित होते हैं। उस समय वर प्रार्थना करता है कि हे सज्जनो व बन्धुओ! (इयं वधूः सुमंगली:) = यह नववधू उत्तम मंगलवाली है। आप सब (सम् एत) = यहाँ मिलकर उपस्थित हों और (इमाम् पश्यत) = इसे अपनी कृपादृष्टि से अनुगृहीत करो। (अस्यै) = इस नववधू के लिए (सौभाग्यं दत्वा) = सौभाग्य देकर और इसके (दौर्भाग्यैः) = दौर्भाग्यों को परे फेंकने के लिए साथ ही लेकर (विपरेतन) = घरों को लौटिए। जैसे वैद्य रोगी को स्वास्थ्य देकर व उसके रोग को ले-जाता है, उसीप्रकार सब महानुभाव इसे सौभाग्य देकर इसके दौर्भाग्यों को दूर ले-जाइए। (या:) = जो (दुर्हार्द: युवतयः) = उत्तम हृदयवाली युवतियों नहीं हैं, जिन्हें इस नववधू से कुछ ईर्ष्या भी है (च) = और (याः) = जो (इह) = यहाँ (जरती: अपि) = वृद्ध स्त्रियाँ भी हैं, वे (नु) = अब (अस्यै) = इस नववधू के लिए (वर्च: संदत्त) = तेजस्विता प्रदान करें और (अथ) = अब (अस्यै) = इसके लिए (संदत्त = मंगल आशीर्वाद दें और आशीर्वाद देने के बाद ही (अस्तं विपरेतन) = घरों को वापस जाएँ।
भावार्थ
वर चाहता है कि सभी पड़ोसी व बन्धुजन इस नववधू को सौभाग्य का आशीर्वाद दें। कुछ ईर्ष्या के होने पर भी युवतियाँ इससे आशीर्वाद ही दें। वृद्धाओं की भी यह आशीर्वादपात्र बने। ये सब इसके दौर्भाग्यों को दूर फेंकने का कारण बनें।
भाषार्थ
(सुमङ्गलीः) उत्तम-मङ्गल वाली (इयम्) यह (वधूः) वधू है। (समेत) हे सद्गृहस्थी ! तुम मिल कर आओ, (इमाम्) इस वधू को (पश्यत) देखो। (अस्यै) इसे (सौभाग्यम्) सौभाग्य का आशीर्वाद (दत्वा) दे कर, (दौर्भाग्यः) और दौर्भाग्यों से (वि) वियुक्त कर के (परेतन) परे चलते जाओ।
टिप्पणी
[भावार्थ-विवाह में उपस्थित सज्जनों के प्रति कहा है कि आप इस वधू को देखिये और इसे सौभाग्यों की प्राप्ति और दौर्भाग्यों से रहित होने के आशीर्वाद, क्रम से, देकर निज स्थानों पर जाइये।
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
हे भद्र पुरुषो ! (इयम्) यह (सुमङ्गली :) शुभ मङ्गलमणी (वधूः) नववधू है। (सम् एत) आओ, पधारो। (इमां पश्यत) इसको देखो। और (अस्यै) इसको (सौभाग्यम्) उत्तम सौभाग्य का आशीर्वाद (दत्वा) प्रदान करके (विपरेतन) आप अपने अपने घरों को पधारें। (याः) जो (युवतयः) जवान स्त्रियां (दुर्हादः) दुष्ट हृदय वाली हैं वे (दौर्भाग्यैः) दौर्भाग्यों सहित (विपरेतन) लौट जावें। और (याः च) जो (इह) इस स्थान पर (जरतीः अपि) वृद्ध स्त्रियां भी हैं वे (अस्यै) इसको (नु) ही (वर्चः) तेज (सं दत्त) प्रदान करें। (अथ) और अनन्तर (अस्तं) अपने अपने घर को (विपरेतन) लौट जायें।
टिप्पणी
(तृ० च०) ‘सौभाग्यमस्यै दत्त्वायाथाऽस्तं विपरेतन’ इति ऋ०। ‘सौभाग्यम्। अस्यै। दत्वाय। अथ। अस्तम्। विपरा। इतन’ इति पदपाठः। इत्येव प्रायो गृह्यसूत्रेषु। ‘दौर्भाग्येन’ परेतन इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
Come you all and meet this bride, she is so good and auspicious harbinger of good fortune. Wish her all well with good fortune and protect her against all adversity and misfortune, then you may leave.
Translation
Propitious is this bride. Come all of you and have a look at her. Granting good fortune to her, go back driving the misfortunes away. (Rg. X. 85. 33; Variation)
Translation
This is the well-dressed and adarned bride, come and look at her O men Wish prosperity for her and blessing her go to your places removing all the ill fortunes.
Translation
Ye learned persons, this bride is highly fortunate. Come all of you and look at her. Wish her prosperity., Keep evil luck away from her!
Footnote
See Rig 10-85-33. Swami Dayananda has commented on this Verse in the Sanskar Vidhi in the chapter on marriage.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२८−(सुमङ्गलीः) छान्दसो विसर्गः। बहुमङ्गलवती (इयम्)दर्शनीया (वधूः) (इमाम्) (समेत) समेत्य आगच्छत (पश्यत) अवलोकयत (सौभाग्यम्)सुभगत्वम्। पतिप्रियत्वम्। बह्वैश्वर्यवत्वम् (अस्यै) (वध्वै) (दत्त्वा) (दौर्भाग्यैः)दुर्भगत्वैः। ऐश्वर्यराहित्यैः। पतिस्नेहशून्यकर्मभिः (विपरेतन)अन्तर्गतण्यर्थः। विपरागमयत। पृथक् कुरुत ताम् ॥
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