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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 7
    ऋषिः - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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    या ओष॑धयो॒ यान॒द्यो॒ यानि॒ क्षेत्रा॑णि॒ या वना॑। तास्त्वा॑ वधु प्र॒जाव॑तीं॒ पत्ये॑रक्षन्तु र॒क्षसः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या: । ओष॑धय: । या: । न॒द्य᳡: । यानि॑ । क्षेत्रा॑णि । या । वना॑ । ता: । त्वा॒ । व॒धु॒ । प्र॒जाऽव॑तीम् । पत्ये॑ । र॒क्ष॒न्तु॒ । र॒क्षस॑: ॥२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ओषधयो यानद्यो यानि क्षेत्राणि या वना। तास्त्वा वधु प्रजावतीं पत्येरक्षन्तु रक्षसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या: । ओषधय: । या: । नद्य: । यानि । क्षेत्राणि । या । वना । ता: । त्वा । वधु । प्रजाऽवतीम् । पत्ये । रक्षन्तु । रक्षस: ॥२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 7
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    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (याः) जो (ओषधयः)ओषधियाँ [अन्न, सोमलता आदि], (याः) जो (नद्यः) नदियाँ, (यानि) जो (क्षेत्राणि)खेत और (या) जो (वना) वन [वृक्ष वाटिका आदि] हैं। (ताः) वे सब [ओषधि आदि], (वधु)हे वधू ! (त्वा प्रजावतीम्) तुझ श्रेष्ठ सन्तानवाली को (पत्ये) पति के लिये (रक्षसः) राक्षस [विघ्न] से (रक्षन्तु) बचावें ॥७॥

    भावार्थ

    गृहाश्रमी स्त्री-पुरुषों को योग्य है कि अन्न, ओषधि, नदियों, वन, उपवन आदि आवश्यक पदार्थों कायथावत् उपयोग करके कष्टों से बचकर सुखी रहें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(याः) (ओषधयः) अन्नसोमलतादयः (याः) (नद्यः) (यानि) (क्षेत्राणि) अन्नोत्पत्तिस्थानानि (या) यानि (वना) वनानि।वनोपवनवाटिकादीनि (ताः) पूर्वोक्ता ओषध्यादयः (त्वा) (वधु) हे पत्नि (प्रजावतीम्) उत्तमसन्तानयुक्ताम् (पत्ये) स्वामिहिताय (रक्षन्तु) पालयन्तु (रक्षसः) रक्षणीयं यस्मात् तस्माद् राक्षसात् विघ्नात् ॥

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    विषय

    रोगकृमि-भय-निवारण

    पदार्थ

    (याः ओषधयः) = जो ओषधियाँ हैं, (याः नद्यः) = जो नदियाँ हैं (यानि क्षेत्राणि) = जो क्षेत्र [खेत] हैं (या वना) = जो भी वन हैं, हे (वधु) = सन्तान को वहन करनेवाली पनि! (ता:) = वे सब (त्वा) = तुझे (पत्ये) = इस पति के हित के लिए, इसके वंश के अविच्छेद के लिए (प्रजावतीम्) = प्रशस्त प्रजा [सन्तान]-बाला करें। ये सब तुझे (रक्षस:) = अपने रमण के लिए औरों का क्षय करनेवाले रोगकृमियों से (रक्षन्तु) = रक्षित करें।

    भावार्थ

    घर का सारा वातावरण इसप्रकार का हो कि वहाँ रोगकृमिजनित रोगों का भय न हो। इस स्वस्थ वातावरण में गृहपत्नी उत्तम सन्तान को जन्म देती हुई पति के वंश के अविच्छेद का कारण बने।

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    भाषार्थ

    (याः) जो (ओषधयः) ओषधियां है (याः) जो (नद्यः) नदियां हैं, (यानि) जो (क्षेत्राणि) खेत, (या=यानि) जो (वना=वनानि) वन, उपवन तथा बगीचे हैं, (ताः) वे ओषधियां आदि (रक्षसः) रक्षक हो कर (पत्ये प्रजावतीम्) पति के लिये प्रजोत्पन्न करने वाली (त्वा) तुझ को (वधु) हे वधु ! (रक्षन्तु) सुरक्षित करें।

    टिप्पणी

    [गर्भवती को ओषधियों का सेवन करते रहना चाहिये, ताकि गर्भस्थ शिशु स्वस्थ रहे, और माता भी स्वस्थ तथा रोगों से मुक्त रहे। गर्भावस्था में नदी, वन, बगीचों में भ्रमण स्वास्थ्यवर्धक होता है। अथर्व० १३।४।२५ में रक्षस् शब्द का प्रयोग रक्षक१ परमेश्वर के लिए हुआ है। "रक्षसः" पञ्चमी विभक्ति में अभिप्राय यह होगा कि कथित उपाय, राक्षसरूपी रोगों से तेरे रक्षक हों][१. यथा "स एव मृत्युः सोऽमृतं सोऽभ्वं स रक्षः"।]

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    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    (याः ओषधयः) जितनी ओषधियां हैं, (याः नद्यः) जो नदियां हैं, (यानि क्षेत्राणि) जितने क्षेत्र हैं, (या वनानि) जितने वन हैं (ताः) वे सब हे वधु ! (पत्ये) पति के हित के लिये (प्रजावतीं त्वाम्) प्रजा से युक्त गर्भिणी तुझको (रक्षसः) विघ्नकारी, गर्भोपघातक दुष्ट पुरुष और बाधक कारण से (रक्षतु) रक्षा करे।

    टिप्पणी

    ‘यानि धन्वानि ये वनाः’ (च०) ‘प्रत्येमुञ्चत्वंहसः’ इति आपस्त०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    All herbs and trees, all streams and rivers, all fields and forests which are around, may they all, O bride, as protectors and guardians, protect you as the mother of progeny for your husband against all evils and attacks of negativity.

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    Translation

    Whatsoever the herbs are there, whatsoever the rivers, whatsoever the fields, whatsoever the forests, may all those, O bride, guard you, the bearer of children, from the destroyers of life for your husband.

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    Translation

    O bride ! may all these herbaceous plants, all these rivers, all these fields and all these forests save from diseases to you who is bearing progeny for her husband.

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    Translation

    May all the plants, all the rivers, may all the fields, all the forests, O bride, protect thee from every sort of obstacle, guard thee, the mother of children, for thy lord!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(याः) (ओषधयः) अन्नसोमलतादयः (याः) (नद्यः) (यानि) (क्षेत्राणि) अन्नोत्पत्तिस्थानानि (या) यानि (वना) वनानि।वनोपवनवाटिकादीनि (ताः) पूर्वोक्ता ओषध्यादयः (त्वा) (वधु) हे पत्नि (प्रजावतीम्) उत्तमसन्तानयुक्ताम् (पत्ये) स्वामिहिताय (रक्षन्तु) पालयन्तु (रक्षसः) रक्षणीयं यस्मात् तस्माद् राक्षसात् विघ्नात् ॥

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