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अथर्ववेद के काण्ड - 13 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 11
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - बृहतीत्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    पूर्वाप॒रं च॑रतो मा॒ययै॒तौ शिशू॒ क्रीड॑न्तौ॒ परि॑ यातोऽर्ण॒वम्। विश्वा॒न्यो भुव॑ना वि॒चष्टे॑ हैर॒ण्यैर॒न्यं ह॒रितो॑ वहन्ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पू॒र्व॒ऽअ॒प॒रम् । च॒र॒त॒: । मा॒यया॑ । ए॒तौ । शिशू॒ इति॑ । क्रीड॑न्तौ । परि॑। या॒त॒: । अ॒र्ण॒वम् । विश्वा॑ । अ॒न्य: । भुव॑ना । वि॒ऽचष्टे॑ । है॒र॒ण्यै: । अ॒न्यम् । ह॒रित॑: । व॒ह॒न्ति॒ ॥2.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूर्वापरं चरतो माययैतौ शिशू क्रीडन्तौ परि यातोऽर्णवम्। विश्वान्यो भुवना विचष्टे हैरण्यैरन्यं हरितो वहन्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूर्वऽअपरम् । चरत: । मायया । एतौ । शिशू इति । क्रीडन्तौ । परि। यात: । अर्णवम् । विश्वा । अन्य: । भुवना । विऽचष्टे । हैरण्यै: । अन्यम् । हरित: । वहन्ति ॥2.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (एतौ) यह दोनों [सूर्य चन्द्रमा] (पूर्वापरम्) आगे-पीछे (मायया) बुद्धि से [ईश्वरनियम से] (चरतः) विचरते हैं, (क्रीडन्तौ) खेलते हुए (शिशू) दो बालक [जैसे] (अर्णवम्) अन्तरिक्ष में (परि) सब ओर (यातः) चलते हैं। (अन्यः) एक [सूर्य] (विश्वा) सब (भुवना) भुवनों को (विचष्टे) देखता है, (अन्यम्) दूसरे [चन्द्रमा] को (हरितः) [सूर्य की] आकर्षक किरणें (हैरण्यैः) तेजोमय [वा सुनैले] कामों के द्वारा (वहन्ति) ले चलती हैं ॥११॥

    भावार्थ

    सूर्य और चन्द्रमा ईश्वरनियम से उत्पन्न हुए हैं, तेजस्वी सूर्य प्रकाशरहित चन्द्रमा को अपने आकर्षण में रखकर प्रकाशित और उपकारी करता है, वैसे ही मनुष्य शुभ गुणों से प्रतापी होकर दूसरों को गुणवान् करें ॥११॥इस मन्त्र के प्रथम तीन पाद कुछ भेद से-ऋ० १०।८५।१८। में हैं, और पीछे-अथर्व० ७।८१।१। में आचुके हैं, और आगे-अ० १४।१।२३। में हैं ॥

    टिप्पणी

    ११−(पूर्वापरम्) यथा तथा पूर्वापरपर्यायेण (चरतः) विचरतः (मायया) ईश्वरप्रज्ञया (एतौ) दृश्यमानौ सूर्याचन्द्रमसौ (शिशू) अ० ७।८१।१। बालकौ यथा (क्रीडन्तौ) विहरन्तौ (परि) (सर्वतः) (यातः) गच्छतः (अर्णवम्) समुद्रम्। अन्तरिक्षम् (विश्वा) सर्वाणि (अन्यः) एकः सूर्यः (भुवना)) चन्द्रादिलोकान् (विचष्टे) विविधं पश्यति (हैरण्यैः) विकारे अण्। तेजोमयैः सुवर्णमयैर्वा कर्मभिः (अन्यम्) द्वितीयं चन्द्रमसम् (हरितः) आकर्षकाः किरणाः (वहन्ति) गमयन्ति ॥

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    विषय

    दो शिशु [सूर्य और चन्द्र]

    पदार्थ

    १. (एतौ) = ये दो (शिशू) = प्रभु के सन्तानों के समान सूर्य और चन्द्रमा (मायया) = प्रभु की माया से-अद्भुत रचना कौशल से [Extraordinary power, wisdom], (क्रीडन्तौ) = खेलते हुए-से (पूर्वापरं चरतः) = पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते हैं, इस प्रकार (अर्णवं परियात:) = अन्तरिक्ष में सर्वत्र गति करते हैं। २. इनमें (अन्य:) = एक 'सूर्य' (विश्वा भुवना विचष्टे) = सब लोकों को प्रकाशित करता है और (अन्यम्) = दुसरे 'चन्द्र' को (हरित:) = सूर्यरश्मियाँ ही (हैरण्यैः) = हितरमणीय प्रकाशों से (वहन्ति) = ले-चलती हैं। सूर्य की किरणें ही चन्द्र को ज्योर्तिमय करती है। सूर्य का आतप चन्द्र में प्रतिक्षित होने पर 'ज्योत्स्ना' के रूप में हो जाता है और हमारे लिए हितरमणीय बन जाता है।

    भावार्थ

    प्रभु की माया से सूर्य व चन्द्र आकाश में क्रीड़ा करते हुए पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हैं। सूर्य सब भुवनों को प्रकाशित करता है और चन्द्र अपनी हितरमणीय ज्योत्स्ना द्वारा हमें आनन्दित करनेवाला होता है।

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    भाषार्थ

    सूर्य और चांद (मायया) परमेश्वर की प्रज्ञा द्वारा (पूर्वापरम्) एक दूसरे के आगे पीछे (चरतः) विचरते हैं, (शिशू) दोनों शिशु (क्रीडन्तौ) मानो परस्पर क्रीड़ा करते हुए (अर्णवम्) प्रकाश समुद्र के (परियातः) चारों ओर जाते हैं। (अन्यः) एक अर्थात् सूर्य (विश्वा भुवना) सब भुवनों को (विचष्टे) देखता है, (अन्यम्) दूसरे चन्द्रमा को (हैरण्यैः) हिरण्य सदृश चमकीले नक्षत्रों द्वारा [निर्दिष्ट मार्ग से] (हरितः) सूर्य की रश्मियां रूपी अश्व, (वहन्ति) ढोते हैं, मार्ग पर चलाते हैं।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में पूर्णिमा के चांद और सूर्य रूपी दो शिशुओं की क्रीड़ा का वर्णन हुआ है। पूर्णिमा से अतिरिक्त अवस्था में चांद पृष्ट्यामयी (ऋ० १।१०५।१८) अर्थात् पृष्ठरोगी है, कुबड़ा है, अतः क्रीड़ा में असमर्थ है। ये एक-दूसरे के आगे-पीछे एक दूसरे को पकड़ने की मानो क्रीड़ा कर रहे हैं। इस क्रीड़ा में परमेश्वरीय माता की प्रज्ञा सहायिका है। मायया; माया प्रज्ञानाम (निघं० ३।९)। चन्द्रमा नक्षत्रों का पति है। यथा “चन्द्रमा नक्षत्रणामधिपतिः” (अथर्व० ५।२४।१०)। अतः नक्षत्र उस की प्रजाएं हैं। नक्षत्र (हैरण्यैः) निज स्वामी का मार्ग प्रदर्शन करते हैं। और वह सूर्य के अश्वों द्वारा अपनी प्रजा के निरीक्षणार्थ जाता है। हरितः = हरण करने वाले, सूर्य रथ के अश्व। यथा “हरित आदित्यस्य" (निघं० १।१५), अर्थात् आदित्य के अश्व हैं, हरितः। चन्द्र और सूर्य की क्रीड़ा के लिये देखो अथर्व० (१।८१।१; १४।१।२३)।]

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    विषय

    रोहित, परमेश्वर और ज्ञानी।

    भावार्थ

    (एतौ) ये दोनों (क्रीडन्तौ) खेलते हुए (शिशू) दो बालकों के समान परमात्मा और आत्मा दोनों (मायया) माया-अलौकिक बुद्धि से (अर्णवं परियातः) समुद्र तक पहुंचते हैं उन दोनों में से (अन्यः) एक (विश्वा) समस्त (भुवना) लोकों को साक्षीरूप से (विचष्टे) देखता है (अन्यः) दूसरे को (हैरण्यैः) हिरण्य, अभिरमणीय इन्द्रिय आदि गम्य, भोग्य विषयों द्वारा (हरितः) हरणशील प्राणगण (वहन्ति) धारण करते है।

    टिप्पणी

    (च०) ‘ऋतूँरन्यो विदधज्जायसे नवः’ इति अथर्व० ७। ८। १। १।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्म रोहितादित्यो देवता। १, १२-१५, ३९-४१ अनुष्टुभः, २३, ८, ४३ जगत्यः, १० आस्तारपंक्तिः, ११ बृहतीगर्भा, १६, २४ आर्षी गायत्री, २५ ककुम्मती आस्तार पंक्तिः, २६ पुरोद्व्यति जागता भुरिक् जगती, २७ विराड़ जगती, २९ बार्हतगर्भाऽनुष्टुप, ३० पञ्चपदा उष्णिग्गर्भाऽति जगती, ३४ आर्षी पंक्तिः, ३७ पञ्चपदा विराड़गर्भा जगती, ४४, ४५ जगत्यौ [ ४४ चतुष्पदा पुरः शाक्वरा भुरिक् ४५ अति जागतगर्भा ]। षट्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    These two children of Nature, sun and the moon, playing, shining and moving one after the other, by the mysterious power and law of Divinity, range over the depth and vastness of the spatial ocean. One of them, the sun, watches and illuminates all regions of the world, and the other, the moon, radiations of the sun bear and carry with their golden beams.

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    Translation

    They two move on one after the other by intellect; two playing young ones go about the ocean; the one looks abroad upon all beings; yellow steeds draw the other with golden (trappings ?). (See also Av. VII.81. 1)

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    Translation

    These two Shishu. the child of matter (the sun and the moon) by the skill of God playing their parts moves east and west and they move round in the sky. One of them the sun illuminates all the worlds and another one, the moon producing seasons becomes new (by daily change of its phases).

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    Translation

    Through supernatural power, both God and, acting as the leader and follower, sporting like two young creatures, work in the world. One of the pair beholds all living creatures: with beautiful organs the vital breaths bear the other.

    Footnote

    God is the leader and soul the follower? ‘One’ refers to God, and ‘other’ to soul. See Rigreda, 10-85-18, Atharva, 7-81-1, and Atharva, 14-1-23.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(पूर्वापरम्) यथा तथा पूर्वापरपर्यायेण (चरतः) विचरतः (मायया) ईश्वरप्रज्ञया (एतौ) दृश्यमानौ सूर्याचन्द्रमसौ (शिशू) अ० ७।८१।१। बालकौ यथा (क्रीडन्तौ) विहरन्तौ (परि) (सर्वतः) (यातः) गच्छतः (अर्णवम्) समुद्रम्। अन्तरिक्षम् (विश्वा) सर्वाणि (अन्यः) एकः सूर्यः (भुवना)) चन्द्रादिलोकान् (विचष्टे) विविधं पश्यति (हैरण्यैः) विकारे अण्। तेजोमयैः सुवर्णमयैर्वा कर्मभिः (अन्यम्) द्वितीयं चन्द्रमसम् (हरितः) आकर्षकाः किरणाः (वहन्ति) गमयन्ति ॥

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