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अथर्ववेद के काण्ड - 13 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 19
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - आर्षी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    त॒रणि॑र्वि॒श्वद॑र्शतो ज्योति॒ष्कृद॑सि सूर्य। विश्व॒मा भा॑सि रोचन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त॒रणि॑: । वि॒श्वऽद॑र्शत: । ज्यो॒ति॒:ऽकृत् । अ॒सि॒ । सू॒र्य॒ । विश्व॑म् । आ । भा॒सि॒ । रो॒च॒न॒ ॥२.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य। विश्वमा भासि रोचन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तरणि: । विश्वऽदर्शत: । ज्योति:ऽकृत् । असि । सूर्य । विश्वम् । आ । भासि । रोचन ॥२.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 19
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    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (सूर्य) हे सूर्य ! तू (तरणिः) अन्धकार से पार करनेवाला (विश्वदर्शतः) सबका दिखानेवाला और (ज्योतिष्कृत्) [चन्द्र आदि में] प्रकाश करनेवाला (असि) है। (रोचन) हे चमकनेवाले तू (विश्वम्) सबको (आ) भले प्रकार (भासि) चमकाता है ॥१९॥

    भावार्थ

    जैसे यह सूर्य अग्नि, बिजुली, चन्द्रमा, नक्षत्र आदि पर अपना प्रकाश डालकर उन्हें चमकीला बनाता है, वैसे ही परमात्मा अपने सामर्थ्य से सब सूर्य आदि को रचता है और वैसे ही विद्वान् लोग विद्या के प्रकाश से संसार को आनन्द देते हैं ॥१९॥इस मन्त्र पर ऋग्वेद में सायणाचार्य का लेख इस प्रकार है−“रात्रि में जलमय चन्द्र आदि बिम्बों पर सूर्य की किरणें लौटकर अन्धकार को हटाती हैं, जैसे द्वार पर रक्खे दर्पण पर गिरायी गयी सूर्य की किरणें घर के भीतर के अन्धकार को हटाती हैं” ॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।५०।४, यजुर्वेद ३३।३६, और सामवेद पू० ६।१४।९ ॥

    टिप्पणी

    १९−(तरणिः) अन्धकारात् तारकः (विश्वदर्शतः) सर्वस्य दर्शयिता (ज्योतिष्कृत्) चन्द्रादिलोकेषु प्रकाशस्य कर्ता (असि) (सूर्य) (विश्वम्) सर्वं दृश्यमानम् (आ) समन्तात् (भासि) प्रकाशयसि (रोचन) हे प्रकाशमान ॥

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    विषय

    त्रिविध स्वास्थ्य

    पदार्थ

    १. हे (सूर्य) = सूर्य! (तरणिः) = तू हमें रोगों से तारनेवाला है। उदय होता हुआ सूर्य रोग-कृमियों को नष्ट करता है और इसप्रकार हमें नीरोग बनाता है। (विश्वदर्शत:) = [विश्व दर्शतं द्रष्टव्यं यस्य] सूर्य सारे संसार का पालन करता है [दृश् to look after] । (ज्योतिषकृत् असि) = तू सर्वत्र प्रकाश करनेवाला है। हे (रोचन) = सर्वत्र प्रकाश करनेवाले! तू (विश्वं आभासि) = सम्पूर्ण अन्तरिक्ष को समन्तात् प्रकाशित कर देता है। सूर्य के उदय होते ही सम्पूर्ण अन्तरक्षि सब ओर से चमक जाता है। २. सूर्य शरीर को रोगों से रहित करके स्वस्थ बनाता है [तरणि]। मस्तिष्क को यह ज्योर्तिमय करता है [ज्योतिष्कृत्] और हृदयान्तरिक्ष को सब मलिनताओं से रहित करके चमका देता है एवं सूर्य के प्रकाश का प्रभाव 'शरीर, मस्तिष्क व मन' सभी को सौन्दर्य प्रदान करनेवाला है।

     

    भावार्थ

    सूर्य'शरीर, मन व मस्तिष्क' के विविध स्वास्थ्य को प्राप्त कराता है।

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    भाषार्थ

    (सूर्य) हे सूर्य! (तरणिः) रात्रि के अन्धकार से तराने वाला, (विश्व दर्शतः) सब वस्तुओं का दर्शाने वाला, (ज्योतिष्कृत्) प्रकाश करने वाला (असि) तू है। (रोचन) हे रुचिकर तथा सुन्दर! (विश्वम् आभासि) सब को तू चमकाता हैं।

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    विषय

    रोहित, परमेश्वर और ज्ञानी।

    भावार्थ

    हे (रोचन) प्रकाशस्वरूप, सर्व प्रकाशक आत्मन् ! परमात्मन् ! तू (तरणिः) सबको तराने-हारा (विश्वदर्शतः) सूर्य के समान सबको दर्शाने वाला, एवं सब संसार के लिये परम दर्शनीय है। और हे (सूर्य) सर्वोत्पादक सूर्य ! तू ही (ज्योतिः कृत् असि) समस्त सूर्य चन्द्र नक्षत्र आदि ज्योतियों के रचने-हारा है। तू सचमुच (विश्वम् आभासि) समस्त विश्व को प्रकाशित करता और सर्वत्र स्वयं प्रकाशित होता है। ‘तस्य भासा सर्वमिदं विभाति’। उप०।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘रोचनम्’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्म रोहितादित्यो देवता। १, १२-१५, ३९-४१ अनुष्टुभः, २३, ८, ४३ जगत्यः, १० आस्तारपंक्तिः, ११ बृहतीगर्भा, १६, २४ आर्षी गायत्री, २५ ककुम्मती आस्तार पंक्तिः, २६ पुरोद्व्यति जागता भुरिक् जगती, २७ विराड़ जगती, २९ बार्हतगर्भाऽनुष्टुप, ३० पञ्चपदा उष्णिग्गर्भाऽति जगती, ३४ आर्षी पंक्तिः, ३७ पञ्चपदा विराड़गर्भा जगती, ४४, ४५ जगत्यौ [ ४४ चतुष्पदा पुरः शाक्वरा भुरिक् ४५ अति जागतगर्भा ]। षट्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    O Sun, you are the saviour, redeemer from darkness, illuminator of the world, light giver even for lights of the world. You shine over the world, beautiful, glorious.

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    Translation

    O self-radiant God, you are the supreme light that outstrips all in speed, and it is your spiritual radiance that awakens each one of us, and shines through the entire firmament. (See also Rg. 1.50.4)

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    Translation

    This luminiferous sun is Tarani, the impelling force, illumining to bring all the objects to visibility, and creator of light. This illuminates whole universe.

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    Translation

    O Refulgent God, Thou art our Redeemer from ignorance, Thou art all-beautiful. Thou art Maker of the light. Thou illumest all the radiant realm!

    Footnote

    See Rig, 1-50-4, Yajur, 33-36..

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १९−(तरणिः) अन्धकारात् तारकः (विश्वदर्शतः) सर्वस्य दर्शयिता (ज्योतिष्कृत्) चन्द्रादिलोकेषु प्रकाशस्य कर्ता (असि) (सूर्य) (विश्वम्) सर्वं दृश्यमानम् (आ) समन्तात् (भासि) प्रकाशयसि (रोचन) हे प्रकाशमान ॥

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