अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 41
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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सर्वा॒ दिशः॒ सम॑चर॒द्रोहि॒तोऽधि॑पतिर्दि॒वः। दिवं॑ समु॒द्रमाद्भूमिं॒ सर्वं॑ भू॒तं वि र॑क्षति ॥
स्वर सहित पद पाठसर्वा॑:। दिश॑: । सम् । अ॒च॒र॒त् । रोहि॑त: । अधि॑ऽपति: । दि॒व: । दिव॑म् । स॒मु॒द्रम् । आत् । भूमि॑म् । सर्व॑म् । भू॒तम् । वि । र॒क्ष॒ति॒ ॥२.४१॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वा दिशः समचरद्रोहितोऽधिपतिर्दिवः। दिवं समुद्रमाद्भूमिं सर्वं भूतं वि रक्षति ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वा:। दिश: । सम् । अचरत् । रोहित: । अधिऽपति: । दिव: । दिवम् । समुद्रम् । आत् । भूमिम् । सर्वम् । भूतम् । वि । रक्षति ॥२.४१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(दिवः) प्रकाश के (अधिपतिः) अधिपति [बड़े स्वामी], (रोहितः) सर्वजनक [परमेश्वर] ने (सर्वाः) सब (दिशः) दिशाओं में (सम् अचरत्) संचार किया है। (दिवम्) सूर्य, (समुद्रम्) अन्तरिक्ष (आत्) और (भूमिम्) भूमि और (सर्वम्) सब (भूतम्) सत्तावाले [जगत्] की (वि) विविध प्रकार (रक्षति) रक्षा करता है ॥४१॥
भावार्थ
सर्वशक्तिमान् परमेश्वर सब में व्यापक होकर सबकी रक्षा करता है, सब मनुष्य उसकी उपासना करें ॥४१॥
टिप्पणी
४१−(सर्वाः) (दिशः) पूर्वादिदिशाः (समचरत्) विचरितवान् (रोहितः) सर्वजनकः परमेश्वरः (अधिपतिः) अध्यक्षः (दिवः) प्रकाशस्य (दिवम्) सूर्यम् (समुद्रम्) अन्तरिक्षम् (आत्) अपि (भूमिम्) (सर्वम्) (भूतम्) जगत् (वि) विविधम् (रक्षति) पाति ॥
विषय
'व्यापक, अधिपति, रक्षक' प्रभु
पदार्थ
१. (रोहितः) = वे तेजस्वी सदावृद्ध प्रभु (दिवः अधिपतिः) = सम्पूर्ण ज्ञान व प्रकाश के स्वामी हैं। जहाँ-जहाँ देवत्व है, प्रकाश है वह सब उस प्रभु का ही है। ये प्रभु (सर्वाः दिश: समचरत्) = सब दिशाओं में संचार करते हैं-सर्वत्र व्याप्त है। २. ये प्रभु (दिवम्) = द्युलोक को (समुद्रम्) = अन्तरिक्षलोक को (आत्) = और (भूमिम्) = इस पृथिवी को, (सर्वं भूतम्) = सब प्राणियों को विरक्षति रक्षित करते हैं।
भावार्थ
प्रभु सर्वत्र व्याप्त है, प्रकाश के अधिपति हैं, सबका रक्षण करते हैं।
भाषार्थ
(दिवः अधिपतिः रोहितः) द्युलोक का अधिपति अर्थात् स्वामी रोहित (सर्वाः दिशः) सब दिशाओं में (समचरत्) संचार करता है [रश्मियों द्वारा मन्त्र ४०]। (दिवम्) द्युलोक, (समुद्रम्) समुद्र, (आत्) और (भूमिम्) भूमि (सर्वम् भूतम्) तथा सब प्राणियों की (वि रक्षति) रक्षा करता है।
टिप्पणी
[सूर्य तो निज रश्मियों द्वारा दिशाओं में विचरता है, वह भी सीमितरूप में; परन्तु परमेश्वर सब दिशाओं में असीमितरूप में, और दिशाओं को अतिक्रान्त कर के भी विचरता है। दिवः, दिवम् = सूर्य द्युलोक का एक नक्षत्र मात्र है। द्युलोक का वास्तविक अधिपति तथा रक्षक परमेश्वर है]।
विषय
रोहित, परमेश्वर और ज्ञानी।
भावार्थ
(दिवः) द्यौलोक, सूर्य का भी स्वामी (रोहितः) रोहित परमेश्वर (सर्वाः दिशः सम् अचरत्) समस्त दिशाओं में व्यापक है क्योंकि (दिवम्) आकाश (समुद्रम्) समुद्र (आत् भूमिम्) और भूमि को भी व्यापक कर वही (सर्वम्) समस्त (भूतम्) उत्पन्न प्राणिसंसार की वह (वि रक्षति) विविध प्रकार से रक्षा करता है।
टिप्पणी
(प्र०) ‘संचरति’ (द्वि०) ‘तो अधि’ (तृ०) ‘भूम्यं’, (च०) ‘सर्वलोकान् वि’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्म रोहितादित्यो देवता। १, १२-१५, ३९-४१ अनुष्टुभः, २३, ८, ४३ जगत्यः, १० आस्तारपंक्तिः, ११ बृहतीगर्भा, १६, २४ आर्षी गायत्री, २५ ककुम्मती आस्तार पंक्तिः, २६ पुरोद्व्यति जागता भुरिक् जगती, २७ विराड़ जगती, २९ बार्हतगर्भाऽनुष्टुप, ३० पञ्चपदा उष्णिग्गर्भाऽति जगती, ३४ आर्षी पंक्तिः, ३७ पञ्चपदा विराड़गर्भा जगती, ४४, ४५ जगत्यौ [ ४४ चतुष्पदा पुरः शाक्वरा भुरिक् ४५ अति जागतगर्भा ]। षट्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Rohita, the Sun
Meaning
Rohita, sojourns with and over space in all quarters, Rohita is the presiding deity of the regions of heaven, and Rohita sustains and protects the solar region, the sea, the earth and all forms of existence all ways.
Translation
The ascendant Lord, the sovereign of the heaven, moves about in all the quarters; He guards the sky, the ocean, the earth and also all the beings.
Translation
The sun is the master of heaven. This comes to all the regions. The sun protects heaven, middle-region, earth and all the creatures.
Translation
God, the imperial Lord of light pervades all the regions. He watches over heaven, ocean, and earth and all created beings.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४१−(सर्वाः) (दिशः) पूर्वादिदिशाः (समचरत्) विचरितवान् (रोहितः) सर्वजनकः परमेश्वरः (अधिपतिः) अध्यक्षः (दिवः) प्रकाशस्य (दिवम्) सूर्यम् (समुद्रम्) अन्तरिक्षम् (आत्) अपि (भूमिम्) (सर्वम्) (भूतम्) जगत् (वि) विविधम् (रक्षति) पाति ॥
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