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अथर्ववेद के काण्ड - 13 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 39
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    रोहि॑तः का॒लो अ॑भव॒द्रोहि॒तोऽग्रे॑ प्र॒जाप॑तिः। रोहि॑तो य॒ज्ञानां॒ मुखं॒ रोहि॑तः॒ स्वराभ॑रत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रोहि॑त: । का॒ल: । अ॒भ॒व॒त् । रोहि॑त: । अग्रे॑ । प्र॒जाऽप॑ति: । रोहि॑त: । य॒ज्ञाना॑म् । मुख॑म् । रोहि॑त: । स्व᳡: । आ । अ॒भ॒र॒त् ॥२.३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रोहितः कालो अभवद्रोहितोऽग्रे प्रजापतिः। रोहितो यज्ञानां मुखं रोहितः स्वराभरत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रोहित: । काल: । अभवत् । रोहित: । अग्रे । प्रजाऽपति: । रोहित: । यज्ञानाम् । मुखम् । रोहित: । स्व: । आ । अभरत् ॥२.३९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 39
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (रोहितः) सबका उत्पन्न करनेवाला [परमेश्वर] (अग्रे) पहिले से [वर्तमान होकर] (कालः) कालवाला [तीनों कालों का स्वामी], और (रोहितः) सबका उत्पन्न करनेवाला [परमात्मा] (प्रजापतिः) प्रजाओं [उत्पन्न पदार्थों] का पालनेवाला (अभवत्) हुआ। (रोहितः) सर्वोत्पादक [ईश्वर] (यज्ञानाम्) संयोग-वियोग व्यवहारों का (मुखम्) मुखिया [प्रधान] है, (रोहितः) सर्वजनक [परमात्मा] ने (स्वः) आनन्द को (आ) सब प्रकार (अभरत्) धारण किया है ॥३९॥

    भावार्थ

    सर्वोत्पादक अनादि अनन्त परमेश्वर परमाणुओं के संयोग-वियोग से सृष्टि बना कर सबका कारण हुआ है, सब लोक उसी की भक्ति कर के पुरुषार्थपूर्वक सुखी रहें ॥३९॥

    टिप्पणी

    ३९−(रोहितः) अ० १३।१।१। सर्वोत्पादकः परमेश्वरः (कालः) काल-अर्शआद्यच्। कालवान्। त्रिकालस्वामी (अभवत्) (रोहितः) (अग्रे) सृष्ट्यादौ (प्रजापतिः) प्रजानां सृष्टपदार्थानां पालकः (रोहितः) (यज्ञानाम्) संयोगवियोगव्यवहाराणाम् (मुखम्) मुख्यः। प्रधानः (रोहितः) (स्वः) सुखम् (आ) समन्तात् (अभरत्) धारितवान् ॥

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    विषय

    'काल व प्रजापति' प्रभु

    पदार्थ

    १. (रोहितः) = सदा से वृद्ध वे प्रभु ही (कालः अभवत्) = काल हैं दिक्कालाकाश: न परमात्मनो व्यतिरिचयन्ते', भूत, भविष्यत्, वर्तमानरूप कालत्रयी के स्वामी वे प्रभु ही हैं। (रोहित:) = सदा से बृद्ध वे प्रभु ही अग्ने (प्रजापतिः) = सबसे आगे, सर्वमुख्य प्रजापति हैं, प्रजाओं के रक्षक हैं। २. (रोहित:) = ये रोहित प्रभु ही (यज्ञानां मुखम्) = वेद द्वारा सब यज्ञों का प्रतिपादन करनेवाले हैं और (रोहित:) = ये रोहित प्रभु इन यज्ञों द्वारा (स्वः आभरत्) = सुख व आनन्द का भरण करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    सदा से वृद्ध वे प्रभु ही काल है, प्रजापति हैं, यज्ञों के प्रतिपादक व सुखों के पोषक हैं।

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    भाषार्थ

    (रोहितः) सर्वोपरि आरूढ़ (कालः अभवत्) कालरूप हुआ, (रोहितः) सर्वोपरि आरूढ़ (अग्रे) आरम्भ में (प्रजापतिः) प्रजापति हुआ। (रोहितः) सर्वोपरि आरूढ़ (यज्ञानां मुखम्) यज्ञों का मुख हुआ, (रोहितः) सर्वोपरि आरूढ़ ने (स्वः) प्रकाशमय द्युलोक (आभरत) रचा है।

    टिप्पणी

    [सूर्य भी दिन-रात के द्वारा काल की रचना करता है, परमेश्वर तो काल का भी काल है "ज्ञः कालकालो गुणी सर्व विद्यः (श्वेता० उप० अ० ६।२)। सूर्य प्रजाओं का पति अर्थात् रक्षक है, परमेश्वर भी प्रजाओं का रक्षक है "ता आपः स प्रजापतिः” (यजु० ३२।१)। सूर्य के उदयास्त ऋतु तथा बर्षकाल की दृष्टि से यज्ञ किये जाते हैं, परमेश्वर तो यज्ञस्वरूप, यज्ञों का मुख्य देवता, और यज्ञों का सिर है "स यज्ञः तस्य यज्ञः स यज्ञस्य शिरस्कृतम्" (अथर्व० १३‌‌।४(७)।४०)। सूर्य प्रकाश देता है, परमेश्वर ने प्रकाशमय द्युलोक रचा है]।

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    विषय

    रोहित, परमेश्वर और ज्ञानी।

    भावार्थ

    (रोहितः) रोहित, सर्वोत्पादक, तेजस्वी वह परम आत्मा ही (कालः) कालस्वरूप (अभवत्) है। (अग्ने) सृष्टि के पूर्व में (रोहितः) वही सर्वोत्पादक परमेश्वर (प्रजापतिः) प्रजापति, प्रजा का पालक धाता था। (रोहितः यज्ञानाम् मुखम्) ‘रोहित’ ही यज्ञों का मुख था और उसी (रोहितः) रोहित ने (स्वः आभरत्) समस्त स्वर्ग या आनन्दधाम को भरपूर कर रखा है। अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतो मुखः। मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्॥ गी० १०। ३३॥

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘रोहितो लोको भवत्’ (च०) ‘रोहितो ज्योतिरुच्यते’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्म रोहितादित्यो देवता। १, १२-१५, ३९-४१ अनुष्टुभः, २३, ८, ४३ जगत्यः, १० आस्तारपंक्तिः, ११ बृहतीगर्भा, १६, २४ आर्षी गायत्री, २५ ककुम्मती आस्तार पंक्तिः, २६ पुरोद्व्यति जागता भुरिक् जगती, २७ विराड़ जगती, २९ बार्हतगर्भाऽनुष्टुप, ३० पञ्चपदा उष्णिग्गर्भाऽति जगती, ३४ आर्षी पंक्तिः, ३७ पञ्चपदा विराड़गर्भा जगती, ४४, ४५ जगत्यौ [ ४४ चतुष्पदा पुरः शाक्वरा भुरिक् ४५ अति जागतगर्भा ]। षट्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    Rohita, the highest Lord of glory, became, i.e., generated and pervaded, and pervades existential time and is the Time Absolute. Rohita is Prajapati, the first, Original creator, generator and sustainer of the world and life in existence. Rohita is the one absolute deity of yajna, in fact Yajna Itself of the universe, and Rohita is eternal Bliss and freedom of Moksha.

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    Translation

    The ascendant Lord has become the time. The ascendant Lord has been the Lord of creatures in the beginning. The ascendant Lord is the mouth of sacrifices. The ascendant Lord has brought the Hight.

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    Translation

    This sun becomes Kal, the time (through its activities the flow of time is realized). This sun becomes the protector of people at preliminary stage. This sun is the mouth or main medium of Yajna. This gives light.

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    Translation

    Since the beginning of creation, God is the Lord of Time* the Fosterer of mankind, the head of all enterprises and the Bestower of divine light.

    Footnote

    Time: past, Present and Future.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३९−(रोहितः) अ० १३।१।१। सर्वोत्पादकः परमेश्वरः (कालः) काल-अर्शआद्यच्। कालवान्। त्रिकालस्वामी (अभवत्) (रोहितः) (अग्रे) सृष्ट्यादौ (प्रजापतिः) प्रजानां सृष्टपदार्थानां पालकः (रोहितः) (यज्ञानाम्) संयोगवियोगव्यवहाराणाम् (मुखम्) मुख्यः। प्रधानः (रोहितः) (स्वः) सुखम् (आ) समन्तात् (अभरत्) धारितवान् ॥

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