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अथर्ववेद के काण्ड - 13 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 17
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - आर्षी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    अप॒ त्ये ता॒यवो॑ यथा॒ नक्ष॑त्रा यन्त्य॒क्तुभिः॑। सूरा॑य वि॒श्वच॑क्षसे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑ । त्ये । ता॒यव॑: । य॒था॒ । नक्ष॑त्रा । य॒न्ति॒ । अ॒क्तुऽभि॑: । सूरा॑य । वि॒श्वऽच॑क्षसे ॥२.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप त्ये तायवो यथा नक्षत्रा यन्त्यक्तुभिः। सूराय विश्वचक्षसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप । त्ये । तायव: । यथा । नक्षत्रा । यन्ति । अक्तुऽभि: । सूराय । विश्वऽचक्षसे ॥२.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (विश्वचक्षसे) सबके दिखानेवाले (सूराय) सूर्य के लिये (अक्तुभिः) रात्रियों के साथ (नक्षत्रा) चलनेवाले तारागण (अप यन्ति) भाग जाते हैं, (यथा) जैसे (त्ये) वे (तायवः) चोर [भाग जाते हैं] ॥१७॥

    भावार्थ

    सूर्य के प्रकाश से रात्रि का अन्धकार मिट जाता है, मन्द चमकनेवाले नक्षत्र छिप जाते हैं और चोर लोग भाग जाते हैं, वैसे ही वेदविज्ञान फैलने से अधर्म का नाश और धर्म की वृद्धि होती है ॥१७॥यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१।५०।२, और सामवेद में पू० ६।१४।७ ॥

    टिप्पणी

    १७−(अप) दूरीभावे (त्ये) ते (तायवः) तायृ सन्तानपालनयोः यद्वा तसु उपक्षये-उण् सस्य यः। चोराः। स्तेनाः-निघ० ३।२४। (यथा) (नक्षत्रा) अमिनक्षियजि०। उ० ३।१०५। णक्ष गतौ-अत्रन्। नक्षत्राणि नक्षतेर्गतिकर्मणः-निरु० ३।२०। गतिशीलास्तारकाः (यन्ति) गच्छन्ति (अक्तुभिः) पः किच्च। उ० १।७१। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-तुन्, कित्, नलोपः। रात्रिभिः सह-निरु० १२।२–३। (सूराय) सूर्याय (विश्वचक्षसे) विश्वस्य चक्षो दर्शनं यस्मात् तस्मै। सर्वदर्शकाय ॥

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    विषय

    वासना-नक्षत्र-विलय

    पदार्थ

    १. (विश्वचक्षसे) = सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करनेवाले (सूराय) = सूर्य के लिए (अक्तुभिः) = रात्रियों के साथ (नक्षत्रा अपयन्ति) = सब नक्षत्र इस प्रकार दूर भाग जाते हैं (यथा) = जैसे (त्ये तायवः) = वे चोर भाग जाते हैं। २. इसी प्रकार उस ब्रह्म का हृदय में प्रकाश होने पर अज्ञान-अन्धकाररूप रात्रियों के साथ वासनारूप नक्षत्र भी विलीन हो जाते हैं।

    भावार्थ

    हम हदयों में प्रभु का ध्यान करें, यही वासनाओं को विलीन करने का मार्ग है।

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    भाषार्थ

    (यथा) जैसे (त्ये) वे (तायवः) चोर (अक्तुभिः) रात्रियों के साथ (अप यन्ति) भाग जाते हैं वैसे (नाक्षत्रा) नक्षत्र, रात्रियों के साथ भाग जाते है (विश्व चक्षसे सूराय) विश्व के द्रष्टा सूर्य के निमित्त१। तायुः स्तेननाम (निघं० ३‌।२४)। अक्तुः रात्रिनाम (निघं० ४।३)

    टिप्पणी

    [१. सूर्य को उदयोन्मुख होते जान कर, रात्रि के साथ चोर और नक्षत्र अपगत हो जाते हैं।]

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    विषय

    रोहित, परमेश्वर और ज्ञानी।

    भावार्थ

    (विश्वचक्षसे) समस्त विश्व को देखने वाले या समस्त विश्व को अपने प्रकाश से प्रदीप्त करने वाले (सूराय) सूर्य के तीव्र प्रकाश के कारण (यथा) जिस प्रकार (अक्तुभिः) अपने दीप्तियों या अन्धकारमय रात्रियों सहित (अपयन्ति) विलुप्त हो जाते हैं उसी प्रकार (विश्वचक्षसे सूराय) सर्वद्रष्टा सूर्य के समान योगी के प्रबल प्रभाव से (त्ये) वे नाना प्रकार के (तायवः) चार स्वभाव, अज्ञान अन्धकार के गहरे पर्दे में छिप कर विषय वासना रूप से आत्मा को छलने, लुभाने वाले भोग और वञ्चनाकारी लोग भी (अपयन्ति) भाग जाते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्म रोहितादित्यो देवता। १, १२-१५, ३९-४१ अनुष्टुभः, २३, ८, ४३ जगत्यः, १० आस्तारपंक्तिः, ११ बृहतीगर्भा, १६, २४ आर्षी गायत्री, २५ ककुम्मती आस्तार पंक्तिः, २६ पुरोद्व्यति जागता भुरिक् जगती, २७ विराड़ जगती, २९ बार्हतगर्भाऽनुष्टुप, ३० पञ्चपदा उष्णिग्गर्भाऽति जगती, ३४ आर्षी पंक्तिः, ३७ पञ्चपदा विराड़गर्भा जगती, ४४, ४५ जगत्यौ [ ४४ चतुष्पदा पुरः शाक्वरा भुरिक् ४५ अति जागतगर्भा ]। षट्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    And those stars, which love to be with the nights to steal the light of the sun and shine, disappear at dawn so that the world may see the sun and share the light.

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    Translation

    In His supreme transcendental glow, all other translent lights fade away, like thieves. (See also Rg. 1.50.2)

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    Translation

    The constellations like the thieves disappear with the might for giving place to sun which illuminates all.

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    Translation

    Just as Constellations with their gloom, disappear at dawn, due to the lustre of the Sun, the illuminator of the universe, so through the magnanimity of a yogi, do passions, lurking like thieves and bewitching the soul, depart

    Footnote

    See Rig, 1-50-2, Atharva, 20-47-14.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(अप) दूरीभावे (त्ये) ते (तायवः) तायृ सन्तानपालनयोः यद्वा तसु उपक्षये-उण् सस्य यः। चोराः। स्तेनाः-निघ० ३।२४। (यथा) (नक्षत्रा) अमिनक्षियजि०। उ० ३।१०५। णक्ष गतौ-अत्रन्। नक्षत्राणि नक्षतेर्गतिकर्मणः-निरु० ३।२०। गतिशीलास्तारकाः (यन्ति) गच्छन्ति (अक्तुभिः) पः किच्च। उ० १।७१। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-तुन्, कित्, नलोपः। रात्रिभिः सह-निरु० १२।२–३। (सूराय) सूर्याय (विश्वचक्षसे) विश्वस्य चक्षो दर्शनं यस्मात् तस्मै। सर्वदर्शकाय ॥

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