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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 20
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी गायत्री, पदपङ्क्ति,त्रिपदा प्राजापत्या त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    1

    अह॑श्च॒ रात्री॑च परिष्क॒न्दौ मनो॑ विप॒थम्। मा॑त॒रिश्वा॑ च॒ पव॑मानश्च विपथवा॒हौ वा॒तः सार॑थीरे॒ष्मा प्र॑तो॒दः। की॒र्तिश्च॒ यश॑श्च पुरःस॒रावैनं॑ की॒र्तिर्ग॑च्छ॒त्या यशो॑गच्छति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अह॑: । च॒ । रात्री॑ । च॒ । प॒रि॒ऽस्क॒न्दौ । मन॑: । वि॒ऽप॒थम् । मा॒त॒रिश्वा॑ । च॒ । पव॑मान: । च॒ । वि॒प॒थ॒ऽवा॒हौ । वात॑: । सार॑थि: । रे॒ष्मा । प्र॒ऽतो॒द: । की॒र्ति: । च॒ । यश॑: । च॒ । पु॒र॒:ऽस॒रौ । आ । ए॒न॒म् । की॒र्ति: । ग॒च्छ॒ति॒ । आ । यश॑: । ग॒च्छ॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥२.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अहश्च रात्रीच परिष्कन्दौ मनो विपथम्। मातरिश्वा च पवमानश्च विपथवाहौ वातः सारथीरेष्मा प्रतोदः। कीर्तिश्च यशश्च पुरःसरावैनं कीर्तिर्गच्छत्या यशोगच्छति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अह: । च । रात्री । च । परिऽस्कन्दौ । मन: । विऽपथम् । मातरिश्वा । च । पवमान: । च । विपथऽवाहौ । वात: । सारथि: । रेष्मा । प्रऽतोद: । कीर्ति: । च । यश: । च । पुर:ऽसरौ । आ । एनम् । कीर्ति: । गच्छति । आ । यश: । गच्छति । य: । एवम् । वेद ॥२.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 2; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर की सर्वत्र व्यापकता का उपदेश।

    पदार्थ

    (अहः) दिन (च च) और भी (रात्री) रात्री (परिष्कन्दौ) [सब ओर चलनेवाले] दो सेवक [समान], (मनः) मन.... [मन्त्र ६, ७, ८] ॥२०॥

    भावार्थ

    मनुष्य वेदज्ञान औरमोक्षज्ञान द्वारा परमात्मा के प्राप्त करके दुष्कर्मों के सर्वथा त्याग औरसत्कर्मों के निरन्तर निष्काम अनुष्ठान से संसार में आनन्द पाता है ॥१˜८, १९,२०॥

    टिप्पणी

    २०−(अहः) दिनम् (रात्री) रात्रिः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ६ ॥

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    विषय

    प्रत्याहार में सफल बनने के लिए

    पदार्थ

    १. इस व्रात्य विद्वान् के प्रत्याहार की दिशा में चलने पर इस (पुंश्चली) = ज्ञानवाणी की अधिष्ठात्री देवता पत्नी के समान होती है-प्रेरणा देनेवाली होती है। (हस: मागधः) = हास्य इसका स्तुतिपाठक होता है, इसे अपने चारों ओर खिलते हुए फूल व चमकते हुए [twinkling] तारे प्रभु-स्तवन करते प्रतीत होते है। शेष पञ्चम मन्त्रवत्। २. (अह च रात्री च) = दिन और रात (परिष्कन्दौ) = सेवक [servant] होते हैं। दिन इसे यज्ञादि उत्तम कर्मों को करने का अवसर देता है और रात्री इसे अपने अन्दर फिर से शक्ति भरने में सहायक होती है। शेष सप्तमाष्टममन्त्रवत्।

    भावार्थ

    यह व्रात्य विद्वान् इस प्रत्याहार में सफलता प्राप्त करने के लिए सरस्वती का प्रिय बनता है, प्रसन्न रहता हुआ प्रभु-स्तवन करता है, दिन को यज्ञादि उत्तम कर्मों में व्यतीत करता है और रात्रि में विश्राम करता हुआ फिर से अपने में शक्ति भरता है।

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    भाषार्थ

    (अहः च, रात्री च) दिन और रात, इस संन्यासी के (परिष्कन्दौ) चारों ओर से रक्षक होते हैं। (मनो....) मन् आदि पूर्ववत् (मन्त्र ६, ७, ८)

    टिप्पणी

    [जिसने परमेश्वर को वर लिया और जिस को परमेश्वर ने वर लिया, उस के रक्षक प्रत्येक दिन और रात होते हैं। उसे किसी अन्य द्वारा रक्षा की आवश्यकता नहीं रहती]।

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    विषय

    व्रत्य प्रजापति का वर्णन।

    भावार्थ

    उसकी पश्चिम दिशा में इरा=अन्नपुंश्चली हस=आनन्द प्रमोद, उसका मागध = स्तुतिपाठक, विज्ञान वस्त्र, दिन पगड़ी रात्रि केश हैं, इत्यादि पूर्ववत् (ऋचा सं० ५) और रात्रि दो हरकारे मन रथ है, इत्यादि पूर्ववत् ऋचा (सं० ९)

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-४ (प्र०), १ ष०, ४ ष० साम्नी अनुष्टुप् १, ३, ४ (द्वि०) साम्नी त्रिष्टुप, १ तृ० द्विपदा आर्षी पंक्तिः, १, ३, ४ (च०) द्विपदा ब्राह्मी गायत्री, १-४ (पं०) द्विपदा आर्षी जगती, २ (पं०) साम्नी पंक्तिः, ३ (पं०) आसुरी गायत्री, १-४ (स०) पदपंक्तिः १-४ (अ०) त्रिपदा प्राजापत्या त्रिष्टुप्, २ (द्वि०) एकपदा उष्णिक्, २ (तृ०) द्विपदा आर्षी भुरिक् त्रिष्टुप् , २ (च०) आर्षी पराऽनुष्टुप, ३ (तृ०) द्विपदा विराडार्षी पंक्तिः, ४ (वृ०) निचृदार्षी पंक्तिः। अष्टाविंशत्यृचं द्वितीयं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    Day and night, his guards, mind, his chariot, cosmic energy and pranic energy, his chariot horses, wind his charioteer, whirlwind, his goad, honour and fame, his fore-running pilots. Honour and fame indeed receive and welcome him who knows and follows Vratya in truth, the lord who creates and cares for his children.

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    Translation

    The day and the night (become) his two footmen, the mind his war-chariot, the atmospheric wind and the purifying wind (become) his two chariot-horses, the gale his charioteer and the tempest his Whip; glory and fame become his two forerunners; to him comes the glory, (to him) comes the fame, who knows it thus.

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    Translation

    The day and night like attendents and the mind is like chariot. Rest as previous one.

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    Translation

    Day and Night are his running footmen, mind is his war chariot. In¬ breath and out-breath are the horses of his chariot, air is his charioteer, storm his goad. Fame and glory are his harbingers. Fame and glory come to him who hath this knowledge of God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(अहः) दिनम् (रात्री) रात्रिः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ६ ॥

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