अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 25
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - द्विपदार्ची जगती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
1
वि॒द्युत्पुं॑श्च॒ली स्त॑नयि॒त्नुर्मा॑ग॒धो वि॒ज्ञानं॒ वासोऽह॑रु॒ष्णीषं॒रात्री॒ केशा॒ हरि॑तौ प्रव॒र्तौ क॑ल्म॒लिर्म॒णिः ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒ऽद्युत् । पुं॒श्च॒ली । स्त॒न॒यि॒त्नु: । मा॒ग॒ध: । वि॒ऽज्ञान॑म् । वास॑: । अह॑: । उ॒ष्णीष॑म् । रात्री॑ । केशा॑: । हरि॑तौ । प्र॒ऽव॒र्तौ । क॒ल्म॒लि: । म॒णि: ॥२.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
विद्युत्पुंश्चली स्तनयित्नुर्मागधो विज्ञानं वासोऽहरुष्णीषंरात्री केशा हरितौ प्रवर्तौ कल्मलिर्मणिः ॥
स्वर रहित पद पाठविऽद्युत् । पुंश्चली । स्तनयित्नु: । मागध: । विऽज्ञानम् । वास: । अह: । उष्णीषम् । रात्री । केशा: । हरितौ । प्रऽवर्तौ । कल्मलि: । मणि: ॥२.२५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर की सर्वत्र व्यापकता का उपदेश।
पदार्थ
(विद्युत्) बिजुली [बिजुली समान चञ्चलता] (पुंश्चली) पुंश्चली [पर पुरुषों में जानेवाली व्यभिचारिणीस्त्री तथा परस्त्रीगामी व्यभिचारी पुरुष के समान घृणित], (स्तनयित्नुः) मेघ कीगर्जन (मागधः) भाट [स्तुतिपाठक के समान], (विज्ञानम्) विज्ञान [विवेक] (वासः)वस्त्र [समान], (अहः) दिन (उष्णीषम्) [धूप रोकनेवाली] पगड़ी [समान], (रात्री)रात्री (केशाः) केश [समान], (हरितौ) दोनों धारण आकर्षण गुण (प्रवर्तौ) दोगोलकुण्डल [कर्णभूषण समान] और (कल्मलिः) [गति देनेवाली] तारा गुणों की झलक (मणिः) मणि [मणियों के हार समान] ॥२५॥
भावार्थ
जो मनुष्य परमात्मामें लवलीन होता है, वही वेदज्ञान और मोक्षज्ञान से जितेन्द्रिय और सर्वहितैषीहोकर संसार में सब पदार्थों से उपकार लेकर आनन्द पाता है ॥२४-२८॥
टिप्पणी
२५−(विद्युत्)तडिद्वच्चञ्चलता (स्तनयित्नुः) मेघगर्जनम्। शेषं गतम्-म० ५ ॥
विषय
विद्युत, स्तनयित्नु, श्रुतविश्रुत
पदार्थ
१. इस उन्नति की दिशा में चलनेवाले व्रात्य की विद्यत (पंश्चली) = बिजली के समान विशिष्ट ज्ञान की दीप्ति पत्नी होती है-प्रेरिका होती है। (स्तनयित्नु) = मेघ गर्जना इसका (मागधः) = स्तुतिपाठ होता है। मेघ गर्जना में भी यह प्रभु की महिमा को देखता है। शेष पञ्चम मन्त्रवत्। २. (श्रुतं च विश्रुतं च) = प्रकृति-विज्ञान व अध्यात्म-विज्ञान इस व्रात्य विद्वान् के (परिष्कन्दौ) = सेवक होते हैं। प्रकृति-विज्ञान से यह अभ्युदय को सिद्ध करता है तो अध्यात्म-विज्ञान से यह निःश्रेयस की साधना करनेवाला होता है। शेष पूर्ववत्।
भावार्थ
यह व्रात्य विद्वान् निरन्तर उन्नत होने के लिए, विशिष्ट ज्ञानदीप्ति को प्राप्त करने के लिए यत्नशील होता है। यह मेघ-गर्जना में भी प्रभु-स्तवन होता हुआ देखता है। प्रकृति विज्ञान इसके अभ्युदय का साधक होता है और आत्मविज्ञान इसे निःश्रेयस का अधिकारी बनाता है।
भाषार्थ
(विद्युत्) विजुली१ की चमक (पुश्चली) व्रात्य-संन्यासी की सहचारिणी धर्मपत्नी होती है, (स्तनयित्नुः) मेघ२ की गर्जना (मागधः) गायक होती है। (विज्ञानम्.....) विज्ञान ..... आदि, पूर्ववत् (मन्त्र ५)।
टिप्पणी
[बढ़े हुए योगाभ्यास में योगी को ध्यान में नानाविध ज्योतियां दृष्टिगोचर होती हैं। ये ज्योतियां आंखों के विषयरूप नहीं होती, अपितु मानसिक होती हैं। नीहार अर्थात् कोहरे की प्रतीति, धूम, सूर्य, वायु के चलने, अग्नि, जुगनू या ताराओं की चमक, विद्युत्, स्फटिक, चांद आदि की प्रतीतियां ध्यानावस्थित योगी को होती हैं। ये प्रतीतियां ईश्वरीयदर्शन से पूर्व होती हैं। इन प्रतीतियों के होते, समय पर, योगी को ईश्वरदर्शन हो जाता है। इन प्रतीतियों में "विद्युत की चमक" भी है, जिसका कि वर्णन मन्त्र २५ में हुआ है। यथा "नीहारधूमार्कानिलानलानां खद्योतविद्युत्स्फटिकशशीनाम्। एतानि रूपाणि पुरःसराणि ब्रह्मण्यभिव्यक्तिकराणि योगे॥" (श्वेता० उप० अ० २।११)। विद्युत् की प्रतीति व्रात्य-संन्यासी के लिये स्नेहमयी धर्मपत्नी के सदृश है। विद्युत् का वर्णन केवल दृष्टान्त मात्र है। योगी को अन्य प्रतीतियां भी होती रहती हैं। स्तनयित्नु = मेघ की गर्जना। जैसे मेघ में विद्युत् की चमक और मेघ की गर्जना होती है, इसी प्रकार योगी को ध्यानावस्था में विद्युत् आदि की चमक का भी भान होता है, और मेघगर्जना आदि का भी। ऐसी अव्यक्त ध्वनियों को योग की परिभाषा में "नाद" कहते हैं। ये नाद भी कई तरह के हैं। घण्टा बजने का नाद, झींगड़ की आवाज, ढोल आदि की ध्वनि आदि। इस अवस्था पर पहुंचें हुए योगी के लिये ये नाद ही गायन रूप होते हैं, और योगी का चित्त इन गायनों का गायक होता है]। [१. उत्तरध्रुव या सप्तर्षितारामण्डल के समीप उत्तरध्रुव की ओर प्राकृतिक वैद्युत-प्रकाश भी दृष्टिगोचर होता है, जिसे कि “Northern lights" या "Aurora borealis" भी कहते हैं। इस का वर्णन निम्नलिखित है, "A luminous meteoric phenomenon of electrical character seen in and towards The Solar regions, with a tremulous motion, and giving forth streams of light" (Chambers's Western Century Dictionary)। अर्थात् उत्तरध्रुव में या उत्तर-ध्रुव की ओर एक चमकता दृश्य दिखाई देता है जो कि विद्युत् का सा होता है, साथ ही उस में कम्पनशील गति होती हैं, और उस में से प्रकाश की धारा या प्रवाह वह रहा होता है। इस प्रकार सप्तर्षि तारामण्डल के साथ प्राकृतिकविद्युत् का भी सम्बन्ध है। सम्भव है कि मन्त्रोक्त "विद्युत्" पद द्वारा ध्रुवीय प्रकाश अभिप्रेत हो। २. स्तनयित्नु = मेघगर्जना। यह आध्यात्मिक नादरूप है, जैसे कि विद्युत् आध्यात्मिक-विद्युत् है। मेघ भी आध्यात्मिक मेघ है, न कि अन्तरिक्षस्थ प्राकृतिक-मेघ। इस आध्यात्मिक-मेघ को "धर्ममेघसमाधि" कहते हैं ॥ यथा "प्रसंख्यानेऽप्यसीदस्य सर्वथा विवेकख्यातेः धर्ममेघः समाधिः" (योग ४।२९)। इस समाधि में सम्भवतः कोई विशेष प्रकार के नाद होती हों जिन्हें कि मन्त्र में स्तनयित्नु कहा हैं।]
विषय
व्रत्य प्रजापति का वर्णन।
भावार्थ
उसकी उत्तर दिशा में विद्युत् पुंश्चली है, ‘स्तनयित्नु’ = गर्जन स्तुतिपाठक है, विज्ञान वस्त्र है इत्यादि (देखो ऋचा सं० ५) श्रुत और विश्रुत ये दोनों उसके हरकारे हैं मन रथ है। पूर्ववत, देखो व्याख्या (ऋचा सं० ८। ९)॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-४ (प्र०), १ ष०, ४ ष० साम्नी अनुष्टुप् १, ३, ४ (द्वि०) साम्नी त्रिष्टुप, १ तृ० द्विपदा आर्षी पंक्तिः, १, ३, ४ (च०) द्विपदा ब्राह्मी गायत्री, १-४ (पं०) द्विपदा आर्षी जगती, २ (पं०) साम्नी पंक्तिः, ३ (पं०) आसुरी गायत्री, १-४ (स०) पदपंक्तिः १-४ (अ०) त्रिपदा प्राजापत्या त्रिष्टुप्, २ (द्वि०) एकपदा उष्णिक्, २ (तृ०) द्विपदा आर्षी भुरिक् त्रिष्टुप् , २ (च०) आर्षी पराऽनुष्टुप, ३ (तृ०) द्विपदा विराडार्षी पंक्तिः, ४ (वृ०) निचृदार्षी पंक्तिः। अष्टाविंशत्यृचं द्वितीयं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
Vidyut, electric energy, becomes his favourite love, thunder and lightning his admirer, knowledge, his shawl, the day, his turban, the night, his hair, sun and moon rays, his ear rings, and flower buds, his jewels.
Translation
The brightening becomes his sweet-heart, the thunder-cloud his praise-singer, comprehension his garment, day his turban, night his hair, two rays his two ear-rings, the brightness (of stars), his jewel;
Translation
The electricity is like lady desiring her master, lightning his penegyrist, science like apron, day like turban, night like hair, the two suns like attendants and the splendor of star like jewel.
Translation
Lightning is his leman, thunder his panegyrist. Knowledge his vesture, day his turban, might his hair, the Sun and Moon his ear-rings, the splendour of the stars his jewel.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२५−(विद्युत्)तडिद्वच्चञ्चलता (स्तनयित्नुः) मेघगर्जनम्। शेषं गतम्-म० ५ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal