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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 164 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 164/ मन्त्र 24
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    गा॒य॒त्रेण॒ प्रति॑ मिमीते अ॒र्कम॒र्केण॒ साम॒ त्रैष्टु॑भेन वा॒कम्। वा॒केन॑ वा॒कं द्वि॒पदा॒ चतु॑ष्पदा॒क्षरे॑ण मिमते स॒प्त वाणी॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गा॒य॒त्रेण॑ । प्रति॑ । मि॒मी॒ते॒ । अ॒र्कम् । अ॒र्केण॑ । साम॑ । त्रैस्तु॑भेन । वा॒कम् । वा॒केन॑ । वा॒कम् । द्वि॒ऽपदा॑ । चतुः॑ऽपदा । अ॒क्षरे॑ण । मि॒म॒ते॒ । स॒प्त । वाणीः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गायत्रेण प्रति मिमीते अर्कमर्केण साम त्रैष्टुभेन वाकम्। वाकेन वाकं द्विपदा चतुष्पदाक्षरेण मिमते सप्त वाणी: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गायत्रेण। प्रति। मिमीते। अर्कम्। अर्केण। साम। त्रैस्तुभेन। वाकम्। वाकेन। वाकम्। द्विऽपदा। चतुःऽपदा। अक्षरेण। मिमते। सप्त। वाणीः ॥ १.१६४.२४

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 164; मन्त्र » 24
    अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरीश्वरविषयमाह ।

    अन्वयः

    हे विद्वांसो यो जगदीश्वरो गायत्रेणार्कमर्केण साम त्रैष्टुभेन वाकं द्विपदा चतुष्पदाऽक्षरेण वाकेन वाकं सप्त वाणीश्च प्रति मिमीते तज्ज्ञानं ये मिमते ते कृतकृत्या जायन्ते ॥ २४ ॥

    पदार्थः

    (गायत्रेण) गायत्री छन्दसा (प्रति) (मिमीते) रचयति (अर्कम्) ऋग्वेदम् (अर्केण) ऋचां समूहेन (साम) सामवेदम् (त्रैष्टुभेन) त्रिवेदविद्यास्तवनेन (वाकम्) यजुः (वाकेन) यजुषा (वाकम्) अथर्ववेदम् (द्विपदा) द्वौ पादौ यस्मिंस्तेन (चतुष्पदा) चत्वारः पादा यस्मिंस्तेन (अक्षरेण) नाशरहितेन (मिमते) (सप्त) गायत्र्यादिसप्तछन्दोन्विताः (वाणीः) वेदवाचः ॥ २४ ॥

    भावार्थः

    येन जगदीश्वरेण वेदस्थान्यक्षरपदवाक्यछन्दोऽध्यायादीनि निर्मितानि तस्मै सर्वे मनुष्या धन्यवादं दद्युः ॥ २४ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! जो जगदीश्वर (गायत्रेण) गायत्री छन्द से (अर्कम्) ऋक् (अर्केण) ऋचाओं के समूह से (साम) साम (त्रैष्टुभेन) त्रिष्टुप्छन्द वा तीन वेदों की विद्याओं को (=की) स्तुतियों से (वाकम्) यजुर्वेद (द्विपदा) दो पद जिस में विद्यमान वा (चतुष्पदा) चार पदवाले (अक्षरेण) नाशरहित (वाकेन) यजुर्वेद से (वाकम्) अथर्ववेद और (सप्त) गायत्री आदि सात छन्द युक्त (वाणीः) वेदवाणी को (प्रति, मिमीते) प्रतिमान करता है और जो उसके ज्ञान को (मिमते) मान करते हैं वे कृतकृत्य होते हैं ॥ २४ ॥

    भावार्थ

    जिस जगदीश्वर ने वेदस्थ अक्षर, पद, वाक्य, छन्द, अध्याय आदि बनाये हैं, उसको सब मनुष्य धन्यवाद देवें ॥ २४ ॥

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    विषय

    दिन दूनी रात चौगुनी

    पदार्थ

    १. (गायत्रेण) = यज्ञ के द्वारा (अर्कम्) = उपासना, पूजा [Prayer] को (प्रतिमिमीते) = सम्यक्तया सिद्ध करता है, अर्थात् प्रभु की वास्तविक पूजा यज्ञ के द्वारा सिद्ध होती है। पुरुषसूक्त में कहा है– 'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः '– देव लोग यज्ञरूप विष्णु की यज्ञ के द्वारा ही उपासना करते हैं। २. (अर्केण) = इस अर्चना से (साम) = सच्ची शान्ति की प्राप्ति होती है। इस अर्चना से हमारा जीवन त्रिविध तापों से रहित होकर शान्तिमय हो सकेगा। ३. (त्रैष्टुभेन) = आध्यात्मिक, आधिभौतिक व आधिदैविक – त्रिविध तापों के समाप्त होने पर ही (वाकम्) = ज्ञान की प्राप्ति होती है। शारीरिक व्याधि, मानसिक चिन्ता व बुद्धि की मलिनता तो ज्ञान प्राप्ति में बाधक हैं ही, यदि आधिभौतिक शान्ति न हो तब भी ज्ञान प्राप्ति सम्भव नहीं। इसी प्रकार भूकम्प, बाढ़, अतिवृष्टि आदि आधिदैविक अशान्तियाँ भी ज्ञान प्राप्ति में विघ्न हैं। सब प्रकार से शान्त वातावरण में ही ज्ञान का उद्भव होता है । ४ ज्ञान प्राप्ति का ठीक उपक्रम हो जाने पर (वाकेन) = ज्ञान से (वाकम्) = ज्ञान द्(विपदा चतुष्पदा) = दिन दूना और रात चौगुना [by leaps and bounds] बढ़ने लगता है। पहले गुरु सुझा रहे थे, अब तो हमें स्वयं सूझने लगा। हम ज्ञान-मार्ग पर छलाँगें मारते हुए आगे बढ़ चलते हैं और अन्त में स्थिति यह आती है कि - ५. अक्षरेण सर्वव्यापक, अविनाशी प्रभु के द्वारा (सप्त वाणी) = सात छन्दों से युक्त वेदवाणी को हम मिमते मापने लगते हैं | हृदयस्थ प्रभु हमें वेद का साक्षात्कार कराने लगते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - यज्ञ के द्वारा उपासना होती है, इस उपासना से शान्ति मिलती है, शान्ति से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान से ज्ञान उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ अन्त में प्रभु से प्रातिभिक [Intutional] ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

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    विषय

    चारों वेदों की उत्पत्ति और उनको ज्ञान करने की का विधि ।

    भावार्थ

    वह परमेश्वर ( गायत्रेण ) गायत्री छन्द से ( अर्कं ) ऋग्वेद को (प्रति मिमीते) बनाता है । ( अर्केण साम ) ऋचाओं के समूह से (साम) सामवेद को रचता है । ( त्रैष्टुभेन ) त्रिष्टुभ् छन्द या तीनों वेदों के मन्त्रों से ( वाकम् ) यजुर्वेद को रचता है । और ( वाकेन ) यजुर्वेद से ( वाकम् ) अथर्ववेद को रचता है, ( द्विपदा ) दो चरणों और ( चतुष्पदा ) चार चरणों वाले (अक्षरेण) अक्षरों से ही विद्वान् लोग (सप्त वाणीः) सातो उन्दोमय वाणियों को ( प्रति मिमते ) ज्ञान करते हैं । अथवा (२) ( अर्कं) अर्चना करने योग्य प्रभु को विद्वान् पुरुष (गायत्रेण प्रतिमिमीते ) गायत्र छन्द अर्थात् ऋग्वेद से ज्ञान करता है । ( साम ) सर्वत्र समान रूप से व्यापक प्रभु का वह ( अर्केण ) ऋक् समूह से या ऋचाओं के आश्रय लेकर ज्ञान करे । ( वाकं ) प्रश्न प्रति प्रश्न या गुरु के उपदेश द्वारा जानने योग्य परमेश्वर को ( त्रैष्टुभेन ) त्रिष्टुभ छन्द द्वारा ज्ञान करे और ( वाकेन ) प्रश्न प्रतिप्रश्न या गुरूपदेश द्वारा ही उस उपदेष्टव्य परमेश्वर को जान लेता है। द्विपात् अक्षर अर्थात् पुरुष, जीव और चतुष्पात् अक्षर परमेश्वर दोनों के ज्ञान पूर्वक ही विद्वान् ( सप्त वाणीः ) सातों छन्दों में विभक्त वेद वाणियों का ( प्रति मिमते ) पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें । अन्य पक्षों का सप्रमाण संक्षिप्त स्पष्टीकरण देखो ( अथर्ववेद भाष्य का० ९ । १० मन्त्र २ )

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ देवता-१-४१ विश्वेदेवाः । ४२ वाक् । ४२ आपः । ४३ शकधूमः । ४३ सोमः ॥ ४४ अग्निः सूर्यो वायुश्च । ४५ वाक् । ४६, ४७ सूर्यः । ४८ संवत्सरात्मा कालः । ४९ सरस्वती । ५० साध्याः । ५१ सूयः पर्जन्या वा अग्नयो वा । ५२ सरस्वान् सूर्यो वा ॥ छन्दः—१, ९, २७, ३५, ४०, ५० विराट् त्रिष्टुप् । ८, १८, २६, ३१, ३३, ३४, ३७, ४३, ४६, ४७, ४९ निचृत् त्रिष्टुप् । २, १०, १३, १६, १७, १९, २१, २४, २८, ३२, ५२ त्रिष्टुप् । १४, ३९, ४१, ४४, ४५ भुरिक त्रिष्टुप् । १२, १५, २३ जगती । २९, ३६ निचृज्जगती । २० भुरिक् पङ्क्तिः । २२, २५, ४८ स्वराट् पङ्क्तिः । ३०, ३८ पङ्क्तिः। ४२ भुरिग् बृहती । ५१ विराड्नुष्टुप् ॥ द्वापञ्चाशदृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या जगदीश्वराने वेदातील अक्षर, पद, वाक्य, छन्द, अध्याय इत्यादी तयार केलेले आहेत, त्याला सर्व माणसांनी धन्यवाद द्यावेत. ॥ २४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    In gayatri metre the Rks are composed. With Rks, the Samans are composed. With trishtubh metre Vak, Yajus are composed. By Vak, Yajurveda, and further Vak, Atharva Veda, is composed and formed. And with two-pada and four-pada constituents of the eternal Word, all the seven forms of Vedic compositions in metric forms of verse, are composed.$(In scientific terms, gayatri is Parameshthi Prana, universal energy at the highest level, from universal energy, specific forms of energy are created. One of these specific forms is Rk, rhythmic energy operative in thought consciousness. When pranic energy passes through a particular physical structure such as the reed or the larynx, sound is produced. When rhythm is added to sound, music is produced. When elements of sound are related to particular points of the speech mechanism, then phonemes, elements of sound in language forms, are produced. And when the elements of sound are joined in correspondence with thought, then language is produced. When feeling and emotion is added to language and expressed, then song is created and composed. Thus from Rks, thought energies of consciousness composed in language, joined to celebrative joy, Samans are created. When the music and songs of joy are joined to practical situations in the holy business of living, then Yajus are created as holy formations of life’s values. And then from thought, song and practical formulae in holy living the comprehensive body of Atharva hymns is created. The classification of Vedic knowledge is thus explained in terms of knowledge, Rgveda, song, Samveda, action, Yajurveda, and comprehensive message, Atharva-veda, which is also known as Brahma Veda. In this way, from the elements of energy, sound, thought, feeling and emotion in divine consciousness, specially love and joy, all language and linguistic compositions both divine and human, sacred and secular, are created.)

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Again something about God.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! those who acquire the knowledge of God through the Gayatri (and other meters) reveal the Rigveda through a number of Riks (Mantras); Samaveda is revealed through Trishtup in the praise of the knowledge, action and devotion; and the Yajurveda with Jāgati (and other meters); and with the eternal mantras of two or four lines study the Atharvaveda. Endowed with Seven Principal meters, they achieve well the aim of their life.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    All should thank God who has made wonderful letters (words), sentences and chapters of the Vedas for the good of mankind.

    Foot Notes

    (अर्कम् ) ऋग्वेदम् = Rigveda. ( वाकम् ) यजुः एवं अथर्ववेदम् = Yajurveda and Atharvaveda. (वैष्टुभेन) त्रिवेदविद्या स्तवेन == With the praise of the threefold subjects consisting of knowledge, action and devotion.

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