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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 12
    ऋषिः - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    कुतः॒ केशा॒न्कुतः॒ स्नाव॒ कुतो॒ अस्थी॒न्याभ॑रत्। अङ्गा॒ पर्वा॑णि म॒ज्जानं॒ को मां॒सं कुत॒ आभ॑रत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कुत॑: । केशा॑न् । कुत॑: । स्नाव॑: । कुत॑: । अस्थी॑नि । आ । अ॒भ॒र॒त् । अङ्गा॑ । पर्वा॑णि । म॒ज्जान॑म् । क: । मां॒सम् । कुत॑: । आ । अ॒भ॒र॒त् ॥१०.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुतः केशान्कुतः स्नाव कुतो अस्थीन्याभरत्। अङ्गा पर्वाणि मज्जानं को मांसं कुत आभरत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कुत: । केशान् । कुत: । स्नाव: । कुत: । अस्थीनि । आ । अभरत् । अङ्गा । पर्वाणि । मज्जानम् । क: । मांसम् । कुत: । आ । अभरत् ॥१०.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 12
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    हिन्दी (4)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (कुतः) किससे [किस उपादेय कारण से प्राणियों के] (केशान्) केशों को, (कुतः) कहाँ से (स्नाव) सूक्ष्मनाड़ी [वायु ले चलनेवाली नस], (कुतः) कहाँ से (अस्थीनि) हड्डियों को (आ अभरत्) उस [कर्त्ता परमेश्वर] ने लाकर धरा। (अङ्गा) अङ्गों, (पर्वाणि) जोड़ों, (मज्जानम्) मज्जा [हड्डी के भीतर के रस], और (मांसम्) मांस को (कः) कर्ता [प्रजापति परमेश्वर] ने (कुतः) कहाँ से (आ अभरत्) ला कर धरा ॥१२॥

    भावार्थ

    परमेश्वर प्राणियों के शरीर के बड़े और छोटे अवयव किस सामग्री से बनाता है। इस का भी उत्तर अगले मन्त्र में है ॥१२॥यह मन्त्र १०, ११ तथा १२ का उत्तर है ॥

    टिप्पणी

    १२−(कुतः) पञ्चम्यास्तसिल्। पा० ५।३।७। कु तिहोः। पा० ७।२।१०४। किमस्तसिल् कु च। कस्मादुपादेयकारणात् (अङ्गा) शरीराङ्गानि (पर्वाणि) शरीरसन्धीन् (मज्जानम्) अस्थ्यन्तर्गतं रसम् (कः) करोतेः-ड। कर्ता प्रजापतिः। कः कमनो या क्रमणो वा सुखो वा-निरु० १०।२२। अन्यद् व्याख्यातम्-म० ११ ॥

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    विषय

    किसने?किससे?

    पदार्थ

    १. (केशान्) = केशों को (कुतः आभरत्) = किस मूल उपादानकारण से बनाकर रक्खा? (स्नाव कुत:) = स्नायुओं को किस पदार्थ से बनाया? (अस्थीनि कुतः) = हड्डियों को किस उपादान से बनाया? (अंगा) = अन्य अंगों को (पर्चा) = पर्वों को (मांसम्) = मांस को (मनानम्) = अस्थिरस को (कुतः आभरत्) = किस उपादान से आभृत किया? तथा (कः) [आभरत्] = किसने इन सबका आभरण किया?

    भावार्थ

    किसने ये सब केश आदि पदार्थ बनाये? किस पदार्थ से बनाये ?

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    भाषार्थ

    (यदा) जब (केशान्, अस्थि, स्नाव, मांसम्, मज्जानम्) केशों, हड्डियों, कण्डराओं, मांस, मज्जा को (आ भरत्) उस ने शरीर में भर दिया, और (शरीरम्) शरीर को (पादवत् कृत्वा) पैरों समेत कर के [वह कारीगर] (अनु) तत्पश्चात् (कम् लोकम्) किस लोक में (प्राविशत्) प्रविष्ट हो गया।

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    विषय

    मन्यु रूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (कः) प्रजापति ने (केशान् कुतः) केशों को कहां से (आभरत्) अर्थात् किस मूल उपादान से बना कर रखा ? (स्नाव कुतः) स्नायुओं को किस पदार्थ से बनाया और (अस्थीनि कुतः आभरत्) हड्डियों को किस उपादान से बनाया। इसके बाद फिर (अंगा) अन्य अंगों को, (पर्वा) पोरुओं को और (मांसम्) मांस को (कुत आभरत्) किस उपादान से बना कर इस शरीर में ला कर रखा है ? अथवा—दो प्रश्न हैं। १. किसने ये सब केश आदि पदार्थ बनाये ? २. उसने बनाये तो किस पदार्थ से ?

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘स्नावः’ इति बहुत्र। (च०) ‘कुताभरत्’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Constitution of Man

    Meaning

    Who and whence bore and brought hair, whence sinews, whence bones? Who bore and brought parts of the body, the joints, the marrow? Who bore and brought the flesh and whence?

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    Translation

    Whence brought he the hair, whence the sinew, whence the bones, the limbs, the joints, the marrow, the flesh ? Who brought from whence ?

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    Translation

    Whence does it brings together hair, whence does sinew and whence does bones. What is that agency which does bring together and whence does bring together limbs, joints marrow and flash.

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    Translation

    Whence, from what region did the creator bring the hair, the sinews, and the bones, limbs, joints, marrow and flesh? Who was the bringer, and from whence?

    Footnote

    These questions raised in 10, 11, 12 are answered in the next verse.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(कुतः) पञ्चम्यास्तसिल्। पा० ५।३।७। कु तिहोः। पा० ७।२।१०४। किमस्तसिल् कु च। कस्मादुपादेयकारणात् (अङ्गा) शरीराङ्गानि (पर्वाणि) शरीरसन्धीन् (मज्जानम्) अस्थ्यन्तर्गतं रसम् (कः) करोतेः-ड। कर्ता प्रजापतिः। कः कमनो या क्रमणो वा सुखो वा-निरु० १०।२२। अन्यद् व्याख्यातम्-म० ११ ॥

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