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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 23
    ऋषिः - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    वि॒द्याश्च॒ वा अवि॑द्याश्च॒ यच्चा॒न्यदु॑पदे॒श्यम्। शरी॑रं॒ ब्रह्म॒ प्रावि॑श॒दृचः॒ सामाथो॒ यजुः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्या: । च॒ । वै । अवि॑द्या: । च॒ । यत् । च॒ । अ॒न्यत् । उ॒प॒ऽदे॒श्य᳡म् । शरी॑रम् । ब्रह्म॑ । प्र । अ॒वि॒श॒त् । ऋच॑: । साम॑ । अथो॒ इति॑ । यजु॑: ॥१०.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्याश्च वा अविद्याश्च यच्चान्यदुपदेश्यम्। शरीरं ब्रह्म प्राविशदृचः सामाथो यजुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्या: । च । वै । अविद्या: । च । यत् । च । अन्यत् । उपऽदेश्यम् । शरीरम् । ब्रह्म । प्र । अविशत् । ऋच: । साम । अथो इति । यजु: ॥१०.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (विद्याः) विद्याएँ [तत्त्वज्ञान] (च च वै) और भी (अविद्याः) अविद्याएँ [मिथ्या कल्पनाएँ] (च) और (यत्) जो कुछ (अन्यत्) दूसरा (उपदेश्यम्) उपदेशयोग्य कर्म [विद्या और अविद्या से सम्बन्धवाला विषय है, वह] और (ब्रह्म) ब्रह्म [ब्रह्मचर्य, इन्द्रियसंयम आदि तप] (ऋचः) ऋचाएँ [पदार्थों की गुणप्रकाशक विद्याएँ] (साम=सामानि) सामज्ञान [मोक्षविद्याएँ] (अथो) और भी (यजुः=यजूंषि) यजुर्ज्ञान [ब्रह्मनिरूपक विद्याएँ], [इस सब ने] (शरीरम्) शरीर में (प्र अविशत्) प्रवेश किया ॥२३॥

    भावार्थ

    मनुष्य आचार्य द्वारा विद्या और अविद्या के ज्ञान और ब्रह्मचर्य के धारण करने से चारों वेदों में वर्णित कर्म, उपासना, ज्ञान−त्रयी विद्या में निष्ठा करके आनन्द पाता है ॥२३॥

    टिप्पणी

    २३−(विद्याः) तत्त्वज्ञानानि (च) (वै) (अविद्याः) मिथ्याकल्पनाः (च) (यत्) (च) (अन्यत्) कर्म (उपदेश्यम्) हितकथनेन गम्यम्। विद्याविद्ययोराश्रयभूतम् (शरीरम्) (ब्रह्म) ब्रह्मचर्यम्। इन्द्रियसंयमरूपं तपः (प्राविशत्) प्रविष्टमभवत् (ऋचः) पदार्थानां गुणप्रकाशिका विद्याः (साम) सामानि। मोक्षज्ञानानि (अथो) अपि च (यजुः) यजूंषि। ब्रह्मनिरूपकज्ञानानि ॥

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    विषय

    ऋचः साम अथो यजुः

    पदार्थ

    १. (विद्याः च वै) = निश्चय से आत्मज्ञान [पराविद्या] (अविद्या: च) = और अपरा विद्याएँ [प्रकृति-विज्ञान] (यत् च अन्यत् उपदेश्यम्) = और इनसे भिन्न जो भी उपदेश्य है; वह सब ब्रह्म ज्ञान (शरीरं प्राविशत्) = शरीर में प्रविष्ट हुआ। शरीर में (ऋच:) = ऋचाओं का (साम अथो यजः) = साम और यजुः का भी प्रवेश हुआ "विज्ञान, उपासना व कर्म' तीनों की शरीर में स्थिति हुई।

    भावार्थ

    हमारा शरीर विद्याओं, अविद्याओं, विज्ञान, उपासना व कर्म सभी का आधार बनता है।

     

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    भाषार्थ

    (च विद्याः) और ब्रह्मविद्या सम्बन्धी नानाविधज्ञान, (च अविद्याः) और नानाविध लौकिक ज्ञान, (च यत्) और जो (अन्यत् उपदेश्यम्) अन्य उपदेश योग्य वस्तु, (ब्रह्म) शब्दब्रह्म अर्थात् ओ३म् का ध्यान या ब्रह्मवेद = अथर्ववेद, (अथो) तथा (ऋचः, साम, यजुः) ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद (शरीरम् प्राविशम्) शरीर में प्रविष्ट हुए।

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    विषय

    मन्यु रूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (विद्याः च) समस्त विद्याएं (वा) और (अविद्याः च) समस्त अविद्याएं अर्थात् कर्म जाल और (यत् च) जो कुछ भी (उपदेश्यम्) उपदेश करने योग्य है और (ऋचः) ऋग्वेद (साम अथो यजुः) सामवेद और यजुर्वेद और (ब्रह्म) ब्रह्म वेद, अथर्ववेद ये सब (शरीरं प्राविशन्) इस पुरुष शरीर में प्रविष्ट हुए।

    टिप्पणी

    ‘शरीरं सर्वे प्राविशन्’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Constitution of Man

    Meaning

    Knowledge and ignorance of various kinds, all else that is worth teaching and learning, Brahma, divine discipline and awareness, Rgveda, Samans and Yajurveda and Brahma-Atharva-veda, all entered the human body.

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    Translation

    Both knowledges and ingorances, and what else is to be -taught (upa-dis); the brahman entered the body; the verses, the chant, also the formula.

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    Translation

    All-knowledge and all-ignorance and whatever else is to be learnt, Rigveda, Yajurved, Samveda and Atharvaveda enter the body.

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    Translation

    All knowledge and all ignorance, each other thing that one may learn, the Rigveda, the Sämaveda, the Yajurveda, and the Brahm (Atharva) Veda then entered the body.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २३−(विद्याः) तत्त्वज्ञानानि (च) (वै) (अविद्याः) मिथ्याकल्पनाः (च) (यत्) (च) (अन्यत्) कर्म (उपदेश्यम्) हितकथनेन गम्यम्। विद्याविद्ययोराश्रयभूतम् (शरीरम्) (ब्रह्म) ब्रह्मचर्यम्। इन्द्रियसंयमरूपं तपः (प्राविशत्) प्रविष्टमभवत् (ऋचः) पदार्थानां गुणप्रकाशिका विद्याः (साम) सामानि। मोक्षज्ञानानि (अथो) अपि च (यजुः) यजूंषि। ब्रह्मनिरूपकज्ञानानि ॥

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