Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 8 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 26
    ऋषिः - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    0

    प्रा॑णापा॒नौ चक्षुः॒ श्रोत्र॒मक्षि॑तिश्च॒ क्षिति॑श्च॒ या। व्या॑नोदा॒नौ वाङ्मनः॒ शरी॑रेण॒ त ई॑यन्ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒णा॒पा॒नौ । चक्षु॑: । श्रोत्र॑म् । अक्षि॑ति: । च॒ । क्षिति॑: । च॒ । या । व्या॒न॒ऽउ॒दा॒नौ । वाक् । मन॑: । शरी॑रेण । ते । ई॒य॒न्ते॒ ॥१०.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राणापानौ चक्षुः श्रोत्रमक्षितिश्च क्षितिश्च या। व्यानोदानौ वाङ्मनः शरीरेण त ईयन्ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्राणापानौ । चक्षु: । श्रोत्रम् । अक्षिति: । च । क्षिति: । च । या । व्यानऽउदानौ । वाक् । मन: । शरीरेण । ते । ईयन्ते ॥१०.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्राणापानौ) प्राण और अपान [भीतर और बाहिर जानेवाला श्वास], (चक्षुः) नेत्र, (श्रोत्रम्) कान, (च) और (या) जो (अक्षितिः) [सुख की] निर्हानि (च) और (क्षितिः) [दुःख की] हानि। (व्यानोदानौ) व्यान [सब नाड़ियों में रस पहुँचानेवाला वायु] और उदान [ऊपर को चढ़नेवाला वायु], (वाक्) वाणी और (मनः) मन, (ते) ये सब (शरीरेण) शरीर के साथ (ईयन्ते) चलते हैं ॥२६॥

    भावार्थ

    जीवों में प्राण अपान आदि सब व्यापार शरीर के साथ होते हैं ॥२६॥इस मन्त्र के पहिले तीन पाद ऊपर मन्त्र ४ में आ चुके हैं ॥

    टिप्पणी

    २६−त्रयः पादाः पूर्ववत्-म० ४। (शरीरेण) देहेन (ते) पूर्वोक्ताः पदार्थाः (ईयन्ते) ईङ् गतौ−श्यन्। गच्छन्ति। प्रवर्तन्ते ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    चक्षः श्रोत्रं वाङ् मनः

    पदार्थ

    १. (प्राणापानौ) = प्राण और अपान, (चक्षु: श्रोत्रम्) = आँख व कान, (अक्षितिः च) = क्षय का अभाव, (या च क्षिति:) = और जो क्षय है, (व्यानोदानौ) = व्यानवायु व उदानवायु, (वाक् मनः) = वाणी और मन-(ते) = वे सब शरीरण-इस शरीर के साथ (ईयन्ते) = गतिवाले होते हैं।

    भावार्थ

    प्राणापान आदि शरीर में प्रविष्ट होकर अपने अपने व्यापारों में प्रवृत्त होते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    प्राण, अपान, चक्षुः, श्रोत्र, अक्षिति, और जो क्षिति, व्यान, उदान, वाक् मन, (ते) वे (शरीरेण) शरीर के साथ (ईयन्ते) गति करते हैं, सक्रिय होते हैं।

    टिप्पणी

    [व्याख्या देखो (मन्त्र ४)। ईयन्ते= ईङ = ईङ्, गतौ]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मन्यु रूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (प्राणापानौ) प्राण और अपान (चक्षुः श्रोत्रम्) चक्षु और श्रोत्र (अक्षितिः च क्षितिः च या) शरीर का क्षय होना और स्थिर रहना (व्यानोदानौ) व्यान और उदान (वाङ्मनः) वाणी और मन (ते) वे सब (शरीरेण) शरीर के साथ साथ (ईयन्ते) कार्य करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Constitution of Man

    Meaning

    Prana and apana, inhalation and exhalation of breath, eye, ear, psychic and physical faculties, vyana and udana, all circulating and elevating energy of prana, speech, mind, all these move and act with the body.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Breath and expiration, sight, hearing, indestructibleness and destruction, out-breathing and up-breathing, speech, mind -- they go about (Iya) with the body.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Inhalation and exhalation, eye and ear, decay and indestructibility, vital airs called Prana and Udana voice and mind perform their actions with the body.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Inbreath and outbreath, ear and eye, decay and strength of the body, breath upward and diffused, voice, mind, these quickly move with the body.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २६−त्रयः पादाः पूर्ववत्-म० ४। (शरीरेण) देहेन (ते) पूर्वोक्ताः पदार्थाः (ईयन्ते) ईङ् गतौ−श्यन्। गच्छन्ति। प्रवर्तन्ते ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top