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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 19
    ऋषिः - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    स्वप्नो॒ वै त॒न्द्रीर्निरृ॑तिः पा॒प्मानो॒ नाम॑ दे॒वताः॑। ज॒रा खाल॑त्यं॒ पालि॑त्यं॒ शरी॑र॒मनु॒ प्रावि॑शन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वप्न॑: । वै । त॒न्द्री: । नि:ऽऋ॑ति: । पा॒प्मान॑: । नाम॑ । दे॒वता॑: । ज॒रा । खाल॑त्यम् । पालि॑त्यम् । शरी॑रम् । अनु॑ । प्र । अ॒वि॒श॒न् ॥१०.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वप्नो वै तन्द्रीर्निरृतिः पाप्मानो नाम देवताः। जरा खालत्यं पालित्यं शरीरमनु प्राविशन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वप्न: । वै । तन्द्री: । नि:ऽऋति: । पाप्मान: । नाम । देवता: । जरा । खालत्यम् । पालित्यम् । शरीरम् । अनु । प्र । अविशन् ॥१०.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (स्वप्नः) नींद (वै) और भी (तन्द्रीः) थकावटें, (निर्ऋतिः) अलक्ष्मी, [महामारी, दरिद्रता आदि], (नाम), अर्थात् (पाप्मानः) पाप व्यवहार, (देवताः) दुःखदायी इच्छाएँ, (जरा) बुढ़ापा (खालत्वम्) गंजापन, (पालित्यम्) केशों के भूरेपन ने (शरीरम्) शरीर में (अनु) धीरे-धीरे (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥१९॥

    भावार्थ

    प्राणियों के दुष्टकर्मों के फल से उन के शरीर में निर्बलता के कारण निद्रा आदि दोष घुस पड़ते हैं ॥१९॥

    टिप्पणी

    १९−(स्वप्नः) निद्रा (वै) अपि (तन्द्रीः) तन्द्र्यः आलस्यानि (निर्ऋतिः) अ० २।१०।१। कृच्छ्रापत्तिः-निरु० २।७। (पाप्मानः) अ० ३।३१।३। पापव्यवहाराः (नाम) प्रसिद्धौ (देवताः) दिवु मर्दने-अच्, तल्। हिंसनेच्छा (जरा) वृद्धावस्था (खालत्यम्) खलतिः। उ० ३।११२। स्थल संचलने अतच्, सलोपः, अत इत्वं च। खलतिर्निष्केशशिराः पुरुषः। ततो भावे ष्यञ्। इन्द्रलुप्तरोगः। केशनाशकरोगः (पालित्यम्) पलित−ष्यञ्। केशेषु जरया श्वेतत्वम् (शरीरम्) (अनु) अनुक्रमेण (प्र अविशन्) प्रविष्टवन्तः ॥

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    विषय

    स्वप्नः-पालित्यम्

    पदार्थ

    १. शरीर में इन्द्रियादि देवों के प्रवेश कर लेने पर तथा प्राणापानादि के प्रविष्ट हो जाने पर शरीर सर्वव्यवहारक्षम हो गया। अब इसमें विविध विकारों का भी प्रारम्भ हुआ। (स्वप्न:) = स्वाप [निद्रा], (वै) = निश्चय से (तन्द्री:) = अलसता, (निर्ऋति:) = दुर्गति, (पाप्मान: नाम देवता:) = 'ब्रह्महत्या, सुरापान, स्तेय, परस्त्री-संसर्ग, दु:संग' आदि पापमय व्यवहार [दिव् व्यवहारे], (जरा) = बुढ़ापा, (खालत्यम्) = गजापन, (पालित्यम्) = बालों की सफ़ेदी-ये सब विकार (शरीरम् अनुप्राविशन्) = शरीर में अनुप्रविष्ट हो गये।

    भावार्थ

    शरीर में प्राणन-व्यापार का प्रारम्भ हो जाने पर स्वप्न आदि विकारों का प्रवेश भी हो जाता है।

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    भाषार्थ

    (स्वप्नः) सोना, (वै) तथा (तन्द्रीः) आलस्य, (निर्ऋतिः) कष्ट, (जरा) बुढ़ापा, (खालत्यम्) गंजापन या 'चित्त-और-इन्द्रियों का स्खलन (सायण), (पालित्यम्) केशों की सुफैदी, ये (नाम पाप्मानः१) प्रसिद्ध पापरूपी (देवताः) देवता (अनु) पीछे (शरीरम् प्राविशन्) शरीर में प्रविष्ट हुए।

    टिप्पणी

    ["खालित्यम्" यह पाठ सायण भाष्य में है। अन्यत्र पाठ है "खालत्यम्"। देवताः = इन पापमय स्वप्न आदि को भी देवता कहा है। सम्भवतः "दिव्" धातु के "स्वप्न" और "मद" अर्थो की दृष्टि से स्वप्न आदि को देवता कहा हो, दिव्यता की दृष्टि से नहीं। अनु= उत्पन्न शिशु में, उत्पत्ति के समय, तो देव अर्थात् दिव्य तत्त्व ही प्रवेश पाते हैं, परन्तु "अनु" अर्थात् तत्पश्चात् कुसङ्ग, नियमोल्लंघन, खान-पान में असावधानी रजस्तमोमय जीवन के कारण शरीर में पापमय तत्त्वों का भी प्रवेश हो जाता है]। [१. "या तयोच्यते सा देवता", इस दृष्टि से स्वप्न आदि भी देवता ही है, चाहे इन में दिव्यता हो, चाहे न हो। अगले मन्त्रों में भी देवता की यही लक्षण जानना चाहिये।]

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    विषय

    मन्यु रूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    प्राण, अपान आदि देव जब उस शरीर में प्रवेश कर चुकते हैं तब (शरीरम्) शरीर में (स्वप्न) स्वप्न, निद्रा (तन्द्रीः) आलस्य (निर्ऋतिः) पाप प्रवृत्ति (पाप्मानः) और नाना पाप के भाव और (देवताः) देव भाव, सात्विक गुण (जरा) वृद्धावस्था, (खालित्यं) गंजापन, (पालित्यं) केश पकना आदि विकार भी (अनु प्राविशन्) प्रविष्ट हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    ‘तन्द्रीनि०’ (तृ०) ‘खालित्यं’ इति सायणाभितः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Constitution of Man

    Meaning

    Dream and sleep, exhaustion and fatigue, want and adversity, sinfulness, negativities of various names and descriptions, age and infirmity, baldness, grey hair, all these followed and entered the body.

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    Translation

    Sleep, weariness, misery (nirrti), the deitiés named evils, old age, baldness, hoariness, entered the body afterward (anu).

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    Translation

    Sleep, laziness, trouble, which are known as sins, the good qualities, old age, baldness and hoary hair make their way into the body.

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    Translation

    Sleep, sloth, poverty, distressing desires arising out of sinful mind, old age, baldness, and hoary hairs then found their way within the body.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १९−(स्वप्नः) निद्रा (वै) अपि (तन्द्रीः) तन्द्र्यः आलस्यानि (निर्ऋतिः) अ० २।१०।१। कृच्छ्रापत्तिः-निरु० २।७। (पाप्मानः) अ० ३।३१।३। पापव्यवहाराः (नाम) प्रसिद्धौ (देवताः) दिवु मर्दने-अच्, तल्। हिंसनेच्छा (जरा) वृद्धावस्था (खालत्यम्) खलतिः। उ० ३।११२। स्थल संचलने अतच्, सलोपः, अत इत्वं च। खलतिर्निष्केशशिराः पुरुषः। ततो भावे ष्यञ्। इन्द्रलुप्तरोगः। केशनाशकरोगः (पालित्यम्) पलित−ष्यञ्। केशेषु जरया श्वेतत्वम् (शरीरम्) (अनु) अनुक्रमेण (प्र अविशन्) प्रविष्टवन्तः ॥

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