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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 22
    ऋषिः - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    नि॒न्दाश्च॒ वा अनि॑न्दाश्च॒ यच्च॒ हन्तेति॒ नेति॑ च। शरी॑रं श्र॒द्धा दक्षि॒णाश्र॑द्धा॒ चानु॒ प्रावि॑शन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि॒न्दा: । च॒ । वै । अनि॑न्दा: । च॒ । यत् । च॒ । हन्त॑ । इति॑ । न । इति॑ । च॒ । शरी॑रम् । श्र॒ध्दा । दक्षि॑णा । अश्र॑ध्दा । च॒ । अनु॑ । प्र । अ॒वि॒श॒न् ॥१०.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    निन्दाश्च वा अनिन्दाश्च यच्च हन्तेति नेति च। शरीरं श्रद्धा दक्षिणाश्रद्धा चानु प्राविशन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    निन्दा: । च । वै । अनिन्दा: । च । यत् । च । हन्त । इति । न । इति । च । शरीरम् । श्रध्दा । दक्षिणा । अश्रध्दा । च । अनु । प्र । अविशन् ॥१०.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (निन्दाः) निन्दाएँ [गुणों में दोष लगाने] (च च वै) और भी (अनिन्दाः) अनिन्दाएँ [स्तुति, गुणों के कथन] (च) और (यत्) जो कुछ (हन्त) “हां”−(इति) ऐसा, (च) और (न) “ना”−(इति) ऐसा है और (दक्षिणा) दक्षिणा [प्रतिष्ठा], (श्रद्धा) श्रद्धा [सत्य ईश्वर और वेद में विश्वास] (च) और (अश्रद्धा) अश्रद्धा [ईश्वर और वेद में भक्ति न होना] [इन सब ने] (शरीरम्) शरीर में (अनु) धीरे-धीरे (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥२२॥

    भावार्थ

    मनुष्य विहित कर्मों के करने और निषिद्ध कर्मों को छोड़ने से सुसंस्कार के कारण शरीर द्वारा सुख प्राप्त करता है ॥२२॥

    टिप्पणी

    २२−(निन्दाः) गुरोश्च हलः। पा० ३।३।१०३। णिदि कुत्सायाम्-अ प्रत्ययः। गुणेषु दोषारोपाः (च च) समुच्चये (वै) एव (अनिन्दाः) स्तुतयः। गुणकथनानि (च) (यत्) (च) (हन्त) हन हिंसागत्योः-त प्रत्ययः। हर्षे। स्वीकारे कर्मणां विधिसूचकः शब्दः (इति) वाक्यसमाप्तौ (न) निषेधे। कर्मणां निषेधसूचकः शब्दः (इति) (च) (शरीरम्) (श्रद्धा) सत्ये परमेश्वरे वेदे च विश्वासः (दक्षिणा) प्रतिष्ठा (अश्रद्धा) नास्तिकबुद्धिः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    भूति-अभूति-श्रद्धा-अश्रद्धा

    पदार्थ

    १. (भूति: च वै अभूति: च) = समृद्धि और निश्चय से असमृद्धि, (रातयः) = दानवृत्तियों, (च या:) = और जो (अरातयः) =  अदानवृत्तियाँ हैं, (क्षुधः च) = भूख और (सर्वाः तृष्णा: च) = सब प्रकार की प्यास-ये (शरीरम् अनुप्राविशन्) = शरीर में प्रविष्ट हुई। २. (निन्दाः च वै) = निश्चय से निन्दा की वृत्तियौं, (अनिन्दाः च) = अनिन्दा के भाव, (यत् च हन्ति इति, न इति च) = और जो 'हाँ' या 'न' इसप्रकार इच्छा व अनिच्छा के भाव हैं, (च) = तथा (श्रद्धा) =  धर्मकार्यों में श्रद्धा, उसके लिए (दक्षिणा) = पुरस्कार देने का विचार तथा (अश्रद्धा) = श्रद्धा का न होना-ये सब बातें (शरीरं अनुप्राविशत्) = शरीर में प्रविष्ट हो गई।

    भावार्थ

    शरीर में समृद्धि-असमृद्धि व श्रद्धा-अश्रद्धा आदि नाना भावों की स्थिति होती रहती है। ये ही बातें हमारे उत्थान व पतन का कारण बनती हैं।

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    भाषार्थ

    (च निन्दाः) और निन्दाएं, (वै) निश्चय से (च अनिन्दाः) और स्तुतियां, (च यत्) और जो (हन्त इति) "हां" यह, (च न इति) और "न" यह; (श्रद्धा, दक्षिणा अश्रद्धा च) और श्रद्धा, दक्षिणा, अश्रद्धा- (अनु) तदनन्तर (शरीरम्, प्राविशन्) शरीर में प्रविष्ट हुए।

    टिप्पणी

    [हन्त = स्वीकृति अर्थात् हां। हन्त= ह + न् + त् = ह+न्+अ= ह+ अ + न् = हान् = हां]।

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    विषय

    मन्यु रूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (निन्दाः च वा अनिन्दाः च) समस्त निन्दाओं और अनिन्द्राओं के भाव (यत् च हन्त इति, न इति च) और जो ‘हां’ या , न इस प्रकार के इच्छा और अनिच्छा के भाव हैं (श्रद्धा दक्षिणा अश्रद्धा च) धर्मकार्यों में श्रद्धा, दक्षिणा, उनके लिये पुरस्कार देने के विचार और उनके प्रति अश्रद्धा ये भी (शरीरम् अनु प्राविशन्) शरीर में प्रविष्ट होते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Constitution of Man

    Meaning

    Censure and reproahes, praise and adorations, things surely positive, and the negatives and rejections, thanks-giving, faith, doubt and faithlessness, all these entered the human body.

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    Translation

    Both revilings and non-revilings, both what (says) "come on" (hanta), and "no" faith, the sacrificial fee, and non-faith, entered the body afterward.

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    Translation

    Reproaches, freedom from reproach, blemishes and non- blemishes, belief and disbelief and bounty enter the body.

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    Translation

    Censures, praises, all blamable, all blameless deeds, bounty, belief, and disbelief then entered the body as a home.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(निन्दाः) गुरोश्च हलः। पा० ३।३।१०३। णिदि कुत्सायाम्-अ प्रत्ययः। गुणेषु दोषारोपाः (च च) समुच्चये (वै) एव (अनिन्दाः) स्तुतयः। गुणकथनानि (च) (यत्) (च) (हन्त) हन हिंसागत्योः-त प्रत्ययः। हर्षे। स्वीकारे कर्मणां विधिसूचकः शब्दः (इति) वाक्यसमाप्तौ (न) निषेधे। कर्मणां निषेधसूचकः शब्दः (इति) (च) (शरीरम्) (श्रद्धा) सत्ये परमेश्वरे वेदे च विश्वासः (दक्षिणा) प्रतिष्ठा (अश्रद्धा) नास्तिकबुद्धिः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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