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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 32
    ऋषिः - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    तस्मा॒द्वै वि॒द्वान्पुरु॑षमि॒दं ब्रह्मेति॑ मन्यते। सर्वा॒ ह्यस्मिन्दे॒वता॒ गावो॑ गो॒ष्ठ इ॒वास॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मा॑त् । वै । वि॒द्वान् । पुरु॑षम् । इ॒दम् । ब्रह्म॑ । इति॑ । म॒न्य॒ते॒ । सर्वा॑: । हि । अ॒स्मि॒न् । दे॒वता॑: । गाव॑: । गो॒स्थेऽइ॑व । आस॑ते ॥१०.३२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्माद्वै विद्वान्पुरुषमिदं ब्रह्मेति मन्यते। सर्वा ह्यस्मिन्देवता गावो गोष्ठ इवासते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मात् । वै । विद्वान् । पुरुषम् । इदम् । ब्रह्म । इति । मन्यते । सर्वा: । हि । अस्मिन् । देवता: । गाव: । गोस्थेऽइव । आसते ॥१०.३२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 32
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (तस्मात्) उससे [ब्रह्म से उत्पन्न] (वै) निश्चय करके (पुरुषम्) पुरुष [पुरुष शरीर] को (विद्वान्) जाननेवाला [मनुष्य] “(ब्रह्म) ब्रह्म [परमात्मा] (इदम्) परम ऐश्वर्यवाला है” (इति) ऐसा (मन्यते) मानता है। (हि) क्योंकि (अस्मिन्) इस [परमात्मा] में (सर्वाः) सब (देवताः) दिव्यपदार्थ [पृथिवी, सूर्य आदि लोक] (आसते) ठहरते हैं, (इव) जैसे (गावः) गौएँ (गोष्ठे) गोशाला में [सुख से रहती] हैं ॥३२॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपने शरीर में परमात्मा की अद्भुत स्थूल और सूक्ष्म रचना देखकर समस्त ब्रह्माण्ड का कर्ता, धर्ता और आधार उसको जाने ॥३२॥

    टिप्पणी

    ३२−(तस्मात्) परमात्मनः सकाशात् (वै) एव (विद्वान्) जानन् (पुरुषम्) पुरुषशरीरम् (इदम्) इन्देः कमिन्नलोपश्च। उ० ४।१५७। इदि परमैश्वर्ये-कमिन्। परमैश्वर्ययुक्तम् (ब्रह्म) परमात्मा (इति) एवम् (मन्यते) जानाति (सर्वाः) समस्ताः (हि) यस्मात् (अस्मिन्) परमात्मनि (देवताः) दिव्यपदार्थाः पृथिवीसूर्यादिलोकाः (गावः) धेनवः (गोष्ठे) गोशालायाम् (इव) (आसते) तिष्ठन्ति ॥

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    विषय

    देवमन्दिर

    पदार्थ

    १. (तस्मात्) = उपर्युक्त कारण से-क्योंकि यहाँ भिन्न-भिन्न इन्द्रियों में उस-उस देवता का निवास है (वै) = निश्चयपूर्वक (विद्वान्) = ज्ञानी पुरुष (इदं पुरुषम्) = इस पुरुष-शरीर को (ब्रह्म इति) = 'अत्यन्त महत्त्वपूर्ण [बृहि वृद्धौ] है' इस रूप में (मन्यते) = मानता है। (अस्मिन्) = इस शरीर में (हि) = निश्चय से (सर्वाः देवता:) = सब देव इसप्रकार (आसते) = आसीन होते हैं, (इव) = जैसेकि (गाव: गोष्ठे) = गौएँ गोशाला में।

    भावार्थ

    सब देवों का निवासस्थान यह शरीर वस्तुतः अत्यन्त महत्त्वपूर्ण देवमन्दिर है। इसे पवित्र बनाए रखना हमारा मौलिक कर्तव्य है।

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    भाषार्थ

    (तस्मात्) इस लिये (वै) निश्चय से (विद्वान्) ज्ञानी व्यक्ति, (पुरुषम्) पुरुष को, (मन्यते) मानता है कि (इदं ब्रह्म) यह ब्रह्म है। (हि) क्योंकि (अस्मिन्) इस पुरुष-शरीर में (सर्वाः देवताः) सब देवता (आसते) निवास करते हैं, (इव) जैसे कि (गावः) गौएं (गोष्ठे) गो शाला में।

    टिप्पणी

    [इदं ब्रह्म = पुरुष को "इदं ब्रह्म" कहना, नवीन वेदान्तियों के "अहं बह्म" के अर्थों में नहीं। क्योंकि इस में युक्ति दी है कि पुरुष शरीर में व्यष्टिरूप में सब देवताओं का निवास है (मन्त्र ३०) जैसे कि ब्रह्म में सब देवताओं का निवास है, इस सादृश्य से विद्वान् गौणरूप में पुरुष को ब्रह्म मानता है, नकि वस्तुतः। न केवल अन्य देवताओं का ही अपितु स्वयं ब्रह्म का भी इसमें निवास है। (मन्त्र ३०) इसलिये गौणविधि से पुरुष को ब्रह्म कहा जाता है। अद्वैतवादी मुख्यरूप में अपने को "अहं ब्रह्म" कहते हैं]।

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    विषय

    मन्यु रूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (तस्मात्) इसी कारण (वै) ही (विद्वान्) अध्यात्म तत्व का ज्ञानी पुरुष (पुरुषम्) इस पुरुष को (इदं ब्रह्म इति मन्यते) साक्षात् ब्रह्म करके जानता है। क्योंकि (सर्वाः हि देवताः) समस्त देवगण, समस्त, दिव्य शक्तियां, पृथिवी आदि तत्व (अस्मिन्) इस पुरुष देह में उसी प्रकार (आसते) आ विराजे हैं (गावः गोष्ठे इव) जिस प्रकार बाड़े में गौवें आ बैठती है।

    टिप्पणी

    (च०) ‘शरीरेऽधि समाहिताः’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Constitution of Man

    Meaning

    For this reason, therefore, the man of knowledge regards this person as Brahma almost, because all divinities abide in it as cows live in the stall.

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    Translation

    Therefore, indeed, one who knows man (purusa) thinks "this ` is brahman”, for all dieties are seated in him, as cows in a cow-stall.

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    Translation

    Therefore, the enlightened person knows this body as Brahma, the abode of luminous and wondrous physical elements, as all natural forces abide in it like the cattle in their pen.

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    Translation

    Therefore whoever verily knoweth the structure of the body, regardeth God as supreme. For all the Luminous planets abide in Him as cattle in their pen.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३२−(तस्मात्) परमात्मनः सकाशात् (वै) एव (विद्वान्) जानन् (पुरुषम्) पुरुषशरीरम् (इदम्) इन्देः कमिन्नलोपश्च। उ० ४।१५७। इदि परमैश्वर्ये-कमिन्। परमैश्वर्ययुक्तम् (ब्रह्म) परमात्मा (इति) एवम् (मन्यते) जानाति (सर्वाः) समस्ताः (हि) यस्मात् (अस्मिन्) परमात्मनि (देवताः) दिव्यपदार्थाः पृथिवीसूर्यादिलोकाः (गावः) धेनवः (गोष्ठे) गोशालायाम् (इव) (आसते) तिष्ठन्ति ॥

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