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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 25
    ऋषिः - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    आ॑ला॒पाश्च॑ प्रला॒पाश्चा॑भीलाप॒लप॑श्च॒ ये। शरी॑रं॒ सर्वे॒ प्रावि॑शन्ना॒युजः॑ प्र॒युजो॒ युजः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ऽला॒पा: । च॒ । प्र॒ऽला॒पा: ।च॒ । अ॒भि॒ला॒प॒ऽलप॑: । च॒ । ये । शरी॑रम् । सर्वे॑ । प्र । अ॒वि॒श॒न् । आ॒ऽयुज॑: । प्र॒ऽयुज॑: । युज॑: ॥१०.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आलापाश्च प्रलापाश्चाभीलापलपश्च ये। शरीरं सर्वे प्राविशन्नायुजः प्रयुजो युजः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽलापा: । च । प्रऽलापा: ।च । अभिलापऽलप: । च । ये । शरीरम् । सर्वे । प्र । अविशन् । आऽयुज: । प्रऽयुज: । युज: ॥१०.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 25
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (आलापाः) आलाप [सार्थक बातें] (च) और (प्रलापाः) प्रलाप [अनर्थक बातें, बकवाद] (च च) और (ये) जो (अभिलापलपः) व्याख्यानों के कथनव्यवहार हैं, [उन सब ने और] (आयुजः) उद्योगों, (प्रयुजः) प्रयोजनों और (युजः) योगों [समाधिक्रियाओं], (सर्वे) इन सब ने (शरीरम्) शरीर में (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥२५॥

    भावार्थ

    उत्साह के बढ़ानेवाले आलाप आदि व्यवहार शरीर के साथ मनुष्य को सुखदायक होते हैं ॥२५॥

    टिप्पणी

    २५−(आलापाः) आङ्+लप व्यक्तायां वाचि-घञ्। सार्थकानि वचनानि (प्रलापाः) निरर्थकानि वचनानि (च) (अभिलापलपः) लपेः क्विप्। अभिलापानां व्याख्यानां कथनव्यवहाराः (च) (ये) (सर्वे) (आयुजः) आङ्+युजिर् योगे, युज संयमने-क्विप्। आयोजनानि। उद्योगाः (प्रयुजः) प्रयोजनानि। कारणानि (युजः) युज समाधौ-क्विप्। ध्यानक्रियाः ॥

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    विषय

    आयुज:-प्रयुजः-युजः

    पदार्थ

    १. (आलापा: च) = आभाषण [सार्थक वचन], (प्रलापा: च) = निरर्थक वचन, (ये च) = और जो (अभीलापलप:) = उत्तर-प्रत्युत्तररूप कथन [जो प्रत्यक्ष में दूसरे की बातें सुनकर प्रत्युत्तर में बातें कही जाएँ], (आयुज:) = आयोजन, (प्रयुज:) = प्रयोग और (युज:) = योग [मेल-जोल]-आलाप आदि (सर्वे) = ये सब (शरीरम् प्राविशन्) = शरीर में प्रविष्ट हुए।

    भावार्थ

    जीवित पुरुष आलाप आदि करता है तथा आयोजन आदि में प्रवृत्त होता है।

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    भाषार्थ

    (आलापाः च) और गानविद्या सम्बन्धी आलाप, (प्रलापाः च) निरर्थक भाषण, (अभीलापलपः च ये) और जो परस्पर संमुख हो कर वार्तालाप; (आयुजः) आयोजन१, (प्रयुजः) प्रयोजन (युजः) योजनाएँ - (सर्वे) ये सब (शरीरम्) शरीर में (प्राविशन) प्रविष्ट हुए।

    टिप्पणी

    [मन्त्र २४ में नृत्तानि, और मन्त्र २५ में आलापाः -ये दो शब्द गानविद्या तथा नृत्य के सूचक हैं]।

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    विषय

    मन्यु रूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (आलापाः च) समस्त परस्पर के वार्त्तालाप (प्रलापाः च) समस्त व्यर्थ बकवाद और (अभीलापलपः च ये) जो प्रत्यक्ष में दूसरे की बातें सुनकर प्रत्युत्तर में या देखा देखी जो बातें कही जाती हैं और (आयुजः) समस्त आयोजनाएं (प्रयुजः) समस्त प्रयोग, और प्रयोजन और (युजः) समस्त योजनाएं, विधान या परस्पर मेल-जोल या योगक्रियाएं ये (सर्वे) सब (शरीरं प्राविशन्) शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    (च०) ‘प्रायुजो’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Constitution of Man

    Meaning

    Conversations and communications, complaints and lamentations, declarations and determinations, deceptions and detractions, distractions and ambiguities, plans, performances of things on hand and cooperations entered the human body.

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    Translation

    Both appeals (alapa) and pratings (pralapa), and they who utter (lap) addresses (abhilapa) -- all entered the body, joiners-on (ayuj), joiners-forth (prayuj), joiners.

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    Translation

    Discourse and conversation, shrilling, the motive, purpose and plans—all these enter the body.

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    Translation

    Useful, useless discourse, mutual questions and answers, motives and purposes, and yogic practices all then entered the body.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २५−(आलापाः) आङ्+लप व्यक्तायां वाचि-घञ्। सार्थकानि वचनानि (प्रलापाः) निरर्थकानि वचनानि (च) (अभिलापलपः) लपेः क्विप्। अभिलापानां व्याख्यानां कथनव्यवहाराः (च) (ये) (सर्वे) (आयुजः) आङ्+युजिर् योगे, युज संयमने-क्विप्। आयोजनानि। उद्योगाः (प्रयुजः) प्रयोजनानि। कारणानि (युजः) युज समाधौ-क्विप्। ध्यानक्रियाः ॥

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