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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 23/ मन्त्र 10
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - अग्निः छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अच्छा॑ नो॒ अङ्गि॑रस्तमं य॒ज्ञासो॑ यन्तु सं॒यत॑: । होता॒ यो अस्ति॑ वि॒क्ष्वा य॒शस्त॑मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अच्छ॑ । नः॒ । अङ्गि॑रःऽतमम् । य॒ज्ञासः॑ । य॒न्तु॒ । स॒म्ऽयतः॑ । होता॑ । यः । अस्ति॑ । वि॒क्षु । आ । य॒शःऽत॑मः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अच्छा नो अङ्गिरस्तमं यज्ञासो यन्तु संयत: । होता यो अस्ति विक्ष्वा यशस्तमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अच्छ । नः । अङ्गिरःऽतमम् । यज्ञासः । यन्तु । सम्ऽयतः । होता । यः । अस्ति । विक्षु । आ । यशःऽतमः ॥ ८.२३.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 23; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (संयतः) सुरक्षिताः (नः, यज्ञासः) अस्माकं यज्ञाः (अङ्गिरस्तमम्) प्राणसदृशतमं ते शूरम् (अच्छ, यन्तु) अभि गच्छन्तु (यः, यशस्तमः) यः अतिशयेन यशस्वी (विक्षु) प्रजासु (आहोता, अस्ति) यज्ञनिष्पादकोऽस्ति ॥१०॥

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    विषयः

    पुनस्तदनुवर्तते ।

    पदार्थः

    नः=अस्माकम् । यज्ञासः=यज्ञाः । संयतः=संयताः=नियमिताः सन्तः अङ्गिरस्तमम्=अतिशयेन सर्वेषां जीवानामङ्गरसम् ईशम् । अच्छ=प्रति । यन्तु=गच्छन्तु । योऽग्निः । विक्षु=प्रजासु । होता । आ=सर्वतः । यशस्तमोऽस्ति ॥१० ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (संयतः) सम्यक् रक्षित (नः, यज्ञासः) हमारे यज्ञ (अङ्गिरस्तमम्) प्राणसदृश उस शूर के (अच्छ, यन्तु) अभिमुख प्राप्त हों (यः, यशस्तमः) जो अत्यन्त यशस्वी (विक्षु) प्रजाओं में (आहोता, अस्ति) यज्ञनिष्पादक है ॥१०॥

    भावार्थ

    भाव यह है कि जिस प्रकार प्राण शरीर के सब अङ्गों का संरक्षक होता है, या यों कहो कि सब अङ्गों में सारभूत प्राण ही कहा जाता है, इसी प्रकार यज्ञ की रक्षा करनेवाले वीरपुरुष यज्ञ के प्राणसदृश हैं, अतएव प्रजाजनों को उचित है कि जिस प्रकार योगीजन प्राणविद्या द्वारा प्राणों को वशीभूत करके अभिनिवेशादि पाँच क्लेशों से रहित हो जाते हैं, इसी प्रकार प्राणरूप वीरों की विद्या द्वारा अविद्यादि पाँच क्लेशों से रहित होना प्रजाजनों का मुख्योद्देश्य होना चाहिये, ताकि सुख का अनुभव करते हुए मनुष्यजीवन को उच्च बनावें ॥१०॥

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    विषय

    पुनः वही विषय आ रहा है ।

    पदार्थ

    (नः) हम लोगों के (यज्ञासः) शुभ कर्म (संयतः) विधिपूर्वक नियमित होकर उसके निकट (यन्तु) पहुँचें, जो (अङ्गिरस्तमम्) प्राणिमात्र के अङ्गों का रसस्वरूप है और (यः) जो अग्निवाच्य ईश्वर (विक्षु) प्रजाओं में (होता) सब कुछ देनेवाले और (आ) सर्व प्रकार से (यशस्तमः+अस्ति) अत्यन्त यशस्वी है ॥१० ॥

    भावार्थ

    हमारे सकल शुभकर्म उसके उद्देश्य से ही हों ॥१० ॥

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    विषय

    पक्षान्तर में अग्निवत् राजा और विद्वानों का वर्णन। उस के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    ( यः ) जो ( विक्षु ) प्रजाओ में ( होता ) सब सुखों का दाता और (यशः-तमः ) कीर्ति और बल में सबसे अधिक ( अस्ति ) है। उसी ( अंगिरस्तमं ) सर्वश्रेष्ठ, ज्ञानी और तपस्वितम पुरुष को ( अच्छा ) प्राप्त कर ( यज्ञासः ) यज्ञ और संगठित दल भी ( सं-यतः सन्तु ) सुसम्बद्ध होकर आगे बढ़ें। इति दशमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्द:—१, ३, १०, १४—१६, १९—२२, २६, २७ निचृदुष्णिक्। २, ४, ५, ७, ११, १७, २५, २९, ३० विराडुष्णिक्। ६, ८, ९, १३, १८ उष्णिक्। १२, २३, २८ पादनिचृदुष्णिक्। २४ आर्ची स्वराडुष्णिक्॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    अंगिरस्तम-यशस्तम

    पदार्थ

    [१] (नः) = हमारे (संयतः) = संयम पूर्वक किये गये, दीक्षा को ग्रहण कर किये गये (यज्ञासः) = यज्ञ (अंगिरस्तम) = उस महान् अंगिरा की अच्छा ओर उस अंग-प्रत्यंग में रस का संचार करनेवाले प्रभु की ओर (यन्तु) = जानेवाले हों। ये यज्ञ हमें प्रभु को प्राप्त करानेवाले हों। [२] उस प्रभु को प्राप्त करानेवाले हों, (यः) = जो (विक्षु) = सब प्रजाओं में स्थित हुए हुए (होता अस्ति) = सब यज्ञों के करनेवाले हैं तथा (अयशस्तम:) = चारों ओर यशस्वितम हैं, सर्वत्र जिनकी महिमा फैली हुई है। सब उत्तम कर्म उस प्रभु की प्रेरणा व शक्ति से ही तो हो रहे हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमें सब यज्ञ प्रभु की ओर ले चलनेवाले हों। इन यज्ञों को वस्तुतः प्रभु ही तो कर रहे होते हैं। वे प्रभु अंगिरस्तम हैं, यशस्तम हैं। हमें भी वे ऐसा ही बनायेंगे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May all our yajnas and other yajnic actions well conducted, together, reach Agni, supreme, most vital life breath of existence and most honourable high priest of yajna among people, who is the ultimate end and aim of the perfection of yajna.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आमचे संपूर्ण शुभकर्म परमात्म्याच्या उद्देशाप्रमाणे व्हावे. ॥१०॥

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