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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 23/ मन्त्र 7
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - अग्निः छन्दः - विराडुष्निक् स्वरः - ऋषभः

    अ॒ग्निं व॑: पू॒र्व्यं हु॑वे॒ होता॑रं चर्षणी॒नाम् । तम॒या वा॒चा गृ॑णे॒ तमु॑ वः स्तुषे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निम् । वः॒ । पू॒र्व्य॑म् । हु॒वे॒ । होता॑रम् । च॒र्ष॒णी॒नाम् । तम् । अ॒या । वा॒चा । गृ॒णे॒ । तम् । ऊँ॒ इति॑ । वः॒ । स्तु॒षे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निं व: पूर्व्यं हुवे होतारं चर्षणीनाम् । तमया वाचा गृणे तमु वः स्तुषे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निम् । वः । पूर्व्यम् । हुवे । होतारम् । चर्षणीनाम् । तम् । अया । वाचा । गृणे । तम् । ऊँ इति । वः । स्तुषे ॥ ८.२३.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 23; मन्त्र » 7
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    हे याज्ञिकाः ! (वः) युष्माकम् (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् (होतारम्) याजकम् (पूर्व्यम्) पूर्वागमनार्हम् (अग्निम्) युद्धकुशलम् (हुवे) आह्वयामि (तम्, अया, वाचा, गृणे) तमेव अनया वाचा शब्दाये (तम्, उ) तमेव (वः) युष्माकं यज्ञरक्षणाय (स्तुषे) स्तुमः ॥७॥

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    विषयः

    अग्निः प्रार्थनीय इति दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे मनुष्याः ! अहमुपासकः । वः=युष्माकं कल्याणाय । पूर्व्यम्=पुरातनम् । चर्षणीनाम्=प्रजानाम् । होतारम् । अग्निम् । हुवे=आह्वयामि=स्तौमि । पुनः । वः=युष्माकम् मङ्गलाय । अया=अनया वाचा । तमग्निम् । गृणे=शंसामि । तमु=तमेव । स्तुषे=स्तौमि ॥७ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    हे याज्ञिक पुरुषो ! (वः) तुम्हारे (चर्षणीनाम्) मनुष्यों के (होतारम्) यज्ञ करानेवाले (पूर्व्यम्) अतएव प्रथम आगमनयोग्य (अग्निम्) युद्धविद्याकुशल विद्वान् को (हुवे) आह्वान करते हैं (तम्) उसको (अया, वाचा) इस वाणी से (गृणे) उच्चारण करते हैं (तम्, उ) उसी को (वः) तुम्हारे यज्ञ की सिद्धि के लिये (स्तुषे) अनुकूल करते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    हे याज्ञिकजनो ! आप लोग युद्धविद्याविशारद विद्वान् को आह्वान कर यज्ञ का आरम्भ करते हैं अर्थात् आप लोग केवल आधिभौतिक हवन ही नहीं करते, किन्तु आधिदैविक तथा आध्यात्मिक यज्ञ भी करते हैं, या यों कहो कि प्रजाजनों में से आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक इन तीनों तापों को मिटाकर अत्यन्त पुरुषार्थरूप अमृत की वृष्टि करते हैं और यज्ञ करने का फल भी यही है, अतएव वेदानुयायी पुरुषों को चाहिये कि उक्त यज्ञों का अनुष्ठान करते हुए स्वयं सुखी हों और प्रजाजनों पर सुख की वृष्टि करें ॥७॥

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    विषय

    अग्नि प्रार्थनीय है, यह इससे दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    हे मनुष्यों ! मैं उपासक (वः) तुम्हारे कल्याण के लिये (पूर्व्यम्) पुरातन (चर्षणीनाम्+होतारम्) प्रजाओं को सब कुछ देनेवाले (अग्निम्) सर्वाधार ईश्वर का (हुवे) आह्वान करता हूँ, पुनः मैं तुम्हारे मङ्गल के लिये (अथा+वाचा) इस वचन से (तम्) उसकी (गृणे) प्रशंसा करता हूँ (तम्) और उसी की (स्तुषे) स्तुति करता हूँ ॥७ ॥

    भावार्थ

    विद्वानों को उचित है कि वे सबके कल्याण के लिये ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना करें ॥७ ॥

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    विषय

    पक्षान्तर में अग्निवत् राजा और विद्वानों का वर्णन। उस के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! मैं ( वः ) आप लोगों को ( चर्षणीनां ) ज्ञान को देखने वाले इन्द्रियों के ( होतारं ) बल देने वाले आत्मा के समान ( चर्षणीनां ) ज्ञानद्रष्टा ऋषियों के ( पूर्व्यं ) सब से पूर्व विद्यमान ज्ञान और शक्ति में परिपूर्ण ( अग्निः ) उस ज्ञानी प्रभु का ( वः हुवे ) तुमको ज्ञानोपदेश करता हूं। और ( तम् ) उस प्रभु की मैं (अया वाचा) इस व्यक्त वेदवाणी से ( गृणे ) स्वयं स्तुति करता हूं और (तम् उ वः स्तुषे ) उसका ही मैं आप लोगों को उपदेश करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्द:—१, ३, १०, १४—१६, १९—२२, २६, २७ निचृदुष्णिक्। २, ४, ५, ७, ११, १७, २५, २९, ३० विराडुष्णिक्। ६, ८, ९, १३, १८ उष्णिक्। १२, २३, २८ पादनिचृदुष्णिक्। २४ आर्ची स्वराडुष्णिक्॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    उसी का शंसन, उसी का स्तवन

    पदार्थ

    [१] मैं (अग्निम्) = उस अग्रेणी प्रभु को (वः पूर्व्यम्) = जो तुम मनुष्यों के पालन व पूरण करनेवालों में उत्तम हैं, (हुवे) = पुकारता हूँ। उस प्रभु को पुकारता हूँ जो (चर्षणीनाम्) = श्रमशील मनुष्यों के लिये (होतारम्) = सब पदार्थों के देनेवाले हैं। प्रभु ही इनके सब यज्ञों को पूर्ण किया करते हैं। [२] (तम्) = उस प्रभु को मैं (आया वाचा) = इस वाणी से (गृणे) = शंसित करता हूँ, इन ज्ञान की वाणियों के द्वारा मैं प्रभु का ही शंसन करता हूँ। (तं उ) = उस प्रभु को ही (वः) = तुम्हारे लिये (स्तुषे) = स्तुत करता हूँ। घर में जब माता-पिता प्रभु का स्तवन करते हैं तो सन्तानों में भी प्रभु का कुछ विचार उत्पन्न होता है। यह स्तवन सन्तानों को भी प्रभु की ओर ले चलता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु का ही शंसन करें, प्रभु का ही स्तवन करें। वे प्रभु ही हमारा पालन व पूरण करनेवाले हैं, व हमारे यज्ञों को सिद्ध करनेवाले हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O devoted people, for you I invoke Agni, eternal power and universal high priest of humanity. By this song of adoration, I worship Agni and exhort you too to adore the universal light and power of divinity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वानांनी सर्वांच्या कल्याणासाठी ईश्वराची स्तुती - प्रार्थना करावी. ॥७॥

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