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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 23/ मन्त्र 29
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - अग्निः छन्दः - विराडुष्निक् स्वरः - ऋषभः

    त्वं हि सु॑प्र॒तूरसि॒ त्वं नो॒ गोम॑ती॒रिष॑: । म॒हो रा॒यः सा॒तिम॑ग्ने॒ अपा॑ वृधि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । हि । सु॒ऽप्र॒तूः । असि॑ । त्वम् । नः॒ । गोऽम॑तीः । इषः॑ । म॒हः । रा॒यः । सा॒तिम् । अ॒ग्ने॒ । अप॑ । वृ॒धि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं हि सुप्रतूरसि त्वं नो गोमतीरिष: । महो रायः सातिमग्ने अपा वृधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । हि । सुऽप्रतूः । असि । त्वम् । नः । गोऽमतीः । इषः । महः । रायः । सातिम् । अग्ने । अप । वृधि ॥ ८.२३.२९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 23; मन्त्र » 29
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (अग्ने) हे शूरपते ! (त्वम्, हि) त्वमेव (सुप्रतूः, असि) सुष्ठु प्रदातासि (त्वम्, नः) त्वं ह्यस्मभ्यम् (गोमतीः, इषः) गोयुक्तमिष्टम् (महः, रायः) महतो धनस्य (सातिम्) दानशक्तिम् (अपवृधि) प्रयच्छ ॥२९॥

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    विषयः

    प्रार्थनां दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे अग्ने ! त्वम्+हि=त्वमेव । सुप्रतूः+असि=स्तोतॄणां सुष्ठु धनादिप्रदातासि । गोमतीः=गवादियुक्ताः । इषः=अन्नानि । अपि च । महः=महतः । रायः=धनस्य । सातिम्=भागञ्च । अपावृधि=अपावृणु=प्रयच्छ ॥२९ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (अग्ने) हे शूरपते ! (त्वम्, हि) आप ही (सुप्रतूः, असि) सब सुन्दर पदार्थों के प्रदाता हैं (त्वम्, नः) आप ही मेरे लिये (गोमतीः, इषः) गवादियुक्त इष्ट पदार्थों को (महः, रायः) तथा महान् धन की (सातिम्) दानशक्ति को (अपवृधि) दें ॥२९॥

    भावार्थ

    हे शूरवीर विद्वान् योद्धा ! आप ही उत्तमोत्तम पदार्थों और गौ तथा अश्वादि धनों के देनेवाले हैं अर्थात् आप ही दिव्यशक्ति और अनन्त प्रकार के ऐश्वर्य से प्रजा को विभूषित करते हैं, अतएव आप हमारे यज्ञों में सदैव योग देकर हमें दानशील बनावें ॥२९॥

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    विषय

    प्रार्थना इससे दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे सर्वाधार ! (त्वम्+हि) तू ही (सुप्रतूः+असि) उपासक जनों को विविध दान देनेवाला है, (त्वम्) तू (नः) हमको (गोमतीः) गवादि-पशुयुक्त (इषः) अन्नों को और (महः+रायः) महती सम्पत्तियों के (सातिम्) भाग को (अपावृधि) दे ॥२९ ॥

    भावार्थ

    ईश्वर पर विश्वासकर प्रार्थना करे, तब अवश्य ही उसका फल प्राप्त होगा ॥२९ ॥

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    विषय

    अग्नि तुल्य गुणों वाले प्रभु से प्रार्थनाएं।

    भावार्थ

    हे (अग्ने ) प्रकाशक ! प्रकाशस्वरूप ! उन्नति के मार्ग में लेजाने हारे ! ( त्वं हि ) तू निश्चय से ( सु-प्रतूः असि ) उत्तम रीति से धन प्रदान करने हारा है। ( त्वं ) तू ( नः ) हमें (गोमतीः इषः) इन्द्रियों या वाणी से युक्त उत्तम इच्छाओं और भूमि, गवादि पशु समेत अन्न, (महः रायः सातिम् ) बड़े भारी ऐश्वर्य के भाग को ( अप वृधि ) खोल, हमें प्रदान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्द:—१, ३, १०, १४—१६, १९—२२, २६, २७ निचृदुष्णिक्। २, ४, ५, ७, ११, १७, २५, २९, ३० विराडुष्णिक्। ६, ८, ९, १३, १८ उष्णिक्। १२, २३, २८ पादनिचृदुष्णिक्। २४ आर्ची स्वराडुष्णिक्॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    गोमतीः इषः-महः रायः सातिम्

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (त्वम्) = आप (हि) = ही (सुप्रतूः असि) = अच्छी प्रकार शत्रुओं का संहार करनेवाले [तुर्व्] हैं। (त्वम्) = आप (नः) = हमारे लिये (गोमतीः) = प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाली (इषः) = प्रेरणाओं को (अपावृधि) = वासना के आवरण को हटाकर प्राप्त करानेवाले होइये। [२] हे प्रभो! आप (महः रायः) = महान् ऐश्वर्य के (सातिम्) = दान को [अपावृधि] = हमारे लिये आवरण हटाकर प्राप्त कराइये।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु के अनुग्रह से काम-क्रोध आदि शत्रुओं के विनाश के द्वारा हम प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाली प्रेरणाओं को व महान् ऐश्वर्य को प्राप्त करें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, you are the holy giver, you are the giver of food, energy and victory, and abundant wealth of lands and cows, culture and enlightenment. Give us liberally of our share of wealth and grandeur and promote our possibilities of progress.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ईश्वरावर विश्वास करून प्रार्थना करावी. तेव्हा अवश्य त्याचे फळ प्राप्त होईल. ॥२९॥

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