ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 23/ मन्त्र 22
प्र॒थ॒मं जा॒तवे॑दसम॒ग्निं य॒ज्ञेषु॑ पू॒र्व्यम् । प्रति॒ स्रुगे॑ति॒ नम॑सा ह॒विष्म॑ती ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒थ॒मम् । जा॒तऽवे॑दसम् । अ॒ग्निम् । य॒ज्ञेषु॑ । पू॒र्व्यम् । प्रति॑ । स्रुक् । ए॒ति॒ । नम॑सा । ह॒विष्म॑ती ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रथमं जातवेदसमग्निं यज्ञेषु पूर्व्यम् । प्रति स्रुगेति नमसा हविष्मती ॥
स्वर रहित पद पाठप्रथमम् । जातऽवेदसम् । अग्निम् । यज्ञेषु । पूर्व्यम् । प्रति । स्रुक् । एति । नमसा । हविष्मती ॥ ८.२३.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 23; मन्त्र » 22
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(जातवेदसम्) सर्वं प्राणिजातं वेत्तारम् (यज्ञेषु, पूर्व्यम्) यज्ञेषु पूर्वमागन्तारम् (अग्निम्) तं शूरम् (हविष्मती, स्रुक्) हविष्पूर्णा स्रुक् (नमसा) स्तुत्या सह (प्रथमम्, प्रत्येति) सर्वेभ्यः प्रथमं प्रत्यागच्छति ॥२२॥
विषयः
अग्निहोत्रं दर्शयति ।
पदार्थः
हविष्मती=घृतवती । स्रुक्=आहुतिप्रक्षेपणी । नमसा= नमःस्वाहादिशब्दैः सह । अग्निम् । प्रत्येति=प्राप्नोति । कीदृशम् । प्रथमम् । जातवेदसम्=सर्वज्ञम् । जातं जातं वेत्तीति । यज्ञेषु । पूर्व्यम्=पुरातनम् ॥२२ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(जातवेदसम्) जो सब प्राणियों को जानता है (यज्ञेषु, पूर्व्यम्) यज्ञों में रक्षार्थ सबसे प्रथम उपस्थित होता है, ऐसे (अग्निम्) शूरपति के प्रति (हविष्मती, स्रुक्) हवि से परिपूर्ण स्रुक् (नमसा) स्तुति के साथ (प्रथमम्, प्रत्येति) सबसे प्रथम जाती है ॥२२॥
भावार्थ
जो सब प्राणियों की रक्षा करता और जो प्रजापालक यज्ञों में सबसे प्रथम उपस्थित होकर यज्ञ का रक्षक होता है, ऐसे शूरपति का अतिथियों के सत्कारार्ह पात्रों द्वारा यज्ञसदन में सब याज्ञिक सत्कार करें ॥२२॥ तात्पर्य्य यह है कि यज्ञभाग के योग्य देवताओं के प्रति ही यज्ञ के स्तवन तथा स्रुक्=यज्ञपात्र सबसे प्रथम सफल होते हैं अर्थात् यज्ञ के पात्र तथा स्तुतियों का साफल्य तभी होता है, जब योग्य शूरवीर अथवा विद्वानों का यज्ञ में सत्कार=पूजन किया जाता है ॥२२॥
विषय
अग्निहोत्र कर्म इससे दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(हविष्मती) घृतवती (स्रुक्) आहुति-प्रक्षेपणी स्रुवा (नमसा) नमः और स्वाहादि शब्दों के साथ (अग्निम्+प्रति+एति) अग्नि के प्रति पहुँचती है, जो (प्रथमम्) सर्वश्रेष्ठ (जातवेदसम्) जिसके साहाय्य से विविध सम्पत्तियाँ होती हैं और (यज्ञेषु+पूर्व्यम्) जो यज्ञादि शुभकर्मों में पुरातन है ॥२२ ॥
भावार्थ
प्रथम स्रुवा आदि सामग्री एकत्रित करके हवन करे और होम के समय भगवान् का मन से स्मरण करता जाए और जो अभिलाषा हो, उसको भी मन में रक्खे ॥२२ ॥
विषय
पक्षान्तर में अग्निवत् राजा और विद्वानों का वर्णन। उस के कर्त्तव्य।
भावार्थ
जिस प्रकार ( यज्ञेषु अग्निं प्रति हविष्मती स्रुग् नमसा प्रति एति ) यज्ञों में अग्नि को लक्ष्य कर हविष्य से युक्त स्रुक्, चमसा नमस्कार-युक्त मन्त्र से आता है उसी प्रकार ( यज्ञेषु ) समस्त उपास्य एवं सत्संग-योग्य पूज्य जनों में ( पूर्व्यम् ) पूर्व एवं ज्ञानशक्ति आदि में पूर्ण ( प्रथमं ) सबसे प्रथम विद्यमान ( जातवेदसम् ) ज्ञानवान्, सर्वैश्वर्यवान्, सर्वज्ञ ( अग्निम् ) प्रकाशस्वरूप प्रभु को लक्ष्य कर ( हविष्मती ) ज्ञान से युक्त ( स्रुक् ) बुद्धि, वाणी ( नमसा ) आदरपूर्वक ( प्रति एति ) उसी को प्राप्त होती और उसी का ज्ञान करती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्द:—१, ३, १०, १४—१६, १९—२२, २६, २७ निचृदुष्णिक्। २, ४, ५, ७, ११, १७, २५, २९, ३० विराडुष्णिक्। ६, ८, ९, १३, १८ उष्णिक्। १२, २३, २८ पादनिचृदुष्णिक्। २४ आर्ची स्वराडुष्णिक्॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
हविष्मती स्रुक्
पदार्थ
[१] 'स्रुक्' वाणी है [वाग्वै स्रुचः श० ६ । ३ । १।८] यह (स्रुक्) = वाणी (हविष्मती) = हविवाली होती हुई, त्यागपूर्वक अदन के स्वभाववाली होती हुई, (नमसा) = नमस्कार के साथ (अग्निम्) = उस अग्ग्रेणी प्रभु की (प्रति एति) = ओर जानेवाला होती है। अर्थात् प्रभु का ही स्तवन करती है। [२] उस प्रभु का जो (प्रथमम्) = सर्वत्र व्यापक हैं [ प्रथ विस्तारे], (जातवेदसम्) = [जाते-जाते-विद्यते] प्रत्येक उत्पन्न पदार्थ में विद्यमान हैं, (अग्निम्) = अग्रेणी हैं और (यज्ञेषु पूर्व्यम्) = यज्ञों के होने पर पालन व पूरण करनेवालों में उत्तम हैं।
भावार्थ
भावार्थ - हमारी वाणी त्याग पूर्वक अदन करती हुई नमस्कार के साथ प्रभु की अर्चना करनेवाली हो। ये प्रभु हमें यज्ञों में प्रवृत्त करके हमारा उत्तमता से पालन करते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
To Agni, first and prime power immanent in everything bom in existence, every ladle full of holy materials moves with chant of faith, reverence and selfless service in yajnas.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रथम स्रुवा इत्यादी सामग्री एकत्रित करून हवन करावे व होम करताना मनाने ईश्वरस्मरण करावे. जी अभिलाषा असेल ती मनात ठेवावी. ॥२२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal