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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 11
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - विष्टारपङ्क्तिः सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
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    कृ॒णोमि॑ ते प्राणापा॒नौ ज॒रां मृ॒त्युं दी॒र्घमायुः॑ स्व॒स्ति। वै॑वस्व॒तेन॒ प्रहि॑तान्यमदू॒तांश्च॑र॒तोऽप॑ सेधामि॒ सर्वा॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कृ॒णोमि॑ । ते॒ । प्रा॒णा॒पा॒नौ । ज॒राम् । मृ॒त्युम् । दी॒र्घम् । आयु॑: । स्व॒स्ति । वै॒व॒स्व॒तेन॑ । प्रऽहि॑तान् । य॒म॒ऽदू॒तान् । च॒र॒त: । अप॑ । से॒धा॒मि॒ । सर्वा॑न् ॥२.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कृणोमि ते प्राणापानौ जरां मृत्युं दीर्घमायुः स्वस्ति। वैवस्वतेन प्रहितान्यमदूतांश्चरतोऽप सेधामि सर्वान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कृणोमि । ते । प्राणापानौ । जराम् । मृत्युम् । दीर्घम् । आयु: । स्वस्ति । वैवस्वतेन । प्रऽहितान् । यमऽदूतान् । चरत: । अप । सेधामि । सर्वान् ॥२.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (प्राणापानौ) प्राण और अपान, (जराम्=जरया) स्तुति के साथ (मृत्युम्) मृत्यु [प्राणत्याग], (दीर्घम्) दीर्घ (आयुः) जीवन और (स्वस्ति) कल्याण [अच्छी सत्ता] को (कृणोमि) मैं करता हूँ। (वैवस्वतेन) मनुष्यसम्बन्धी [कर्म] द्वारा (प्रहितान्) भेजे हुए, (चरतः) घूमते हुए (सर्वान्) सब (यमदूतान्) मृत्यु के दूतों को (अप सेधामि) मैं हटाता हूँ ॥११॥

    भावार्थ

    ब्रह्मवादी लोग अपनी शारीरिक और आत्मिक दशा सुधारकर सब दरिद्रता, रोग आदि दुःखों को हटाते हैं ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(कृणोमि) करोमि (ते) तव (प्राणापानौ) शरीरे ऊर्ध्वाधःसंचारिणौ वायू (जराम्) अ० ३।११।७। तृतीयार्थे द्वितीया। जरया स्तुत्या (मृत्युम्) मरणम् (दीर्घम्) लम्बमानम् (आयुः) जीवनम् (स्वस्ति) सुसत्ताम्। क्षेमम् (वैवस्वतेन) अ० ६।११६।१। विवस्वत्-अण्। विवस्वन्तो मनुष्याः-निघ० २।३। मनुष्यसम्बन्धिना कर्मणा (प्रहितान्) प्रेरितान् (यमदूतान्) मृत्युसंदेशहरान्। निर्धनत्वरोगादीन् (चरतः) परिभ्रमतः (अप सेधामि) दूरं गमयामि (सर्वान्) निःशेषान् ॥

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    विषय

    जरामृत्युम, दीर्घम् आयुः, स्वस्ति

    पदार्थ

    १. हे पुरुष! (ते) = तेरे लिए (प्राणापानौ) = इस प्राण और अपान को (कृणोमि) = करता हूँ। प्राणापान को मैं तुझमें स्थापित करता हूँ। इस प्राणापान के द्वारा तेरी (जरां मृत्युम्) = जीर्णता व मृत्यु को भी [कृणोमि-to kill] नष्ट करता हूँ। तेरे लिये (दीर्घम् आयुः) = दीर्घजीवन हो और (स्वस्ति) = कल्याण हो। २. (वैवस्वतेन) = विवस्वान् [सूर्य] के पुत्र इस काल से (प्रहितान्) = भेजे हुए (चरत:) = गति करते हुए दिन-रात्रि, मास व ऋतु' रूप कालविभागात्मक (सर्वान् यमदूतान्) = यम [मृत्यु के देवता] के सब दूतों को (अपसेधामि) = आयुष्य-खण्डनरूप कार्य से दूर करता हूँ। से दिन व रात तझे जीर्ण नहीं कर पाते।

    भावार्थ

    प्राणसाधना के द्वारा हम जीर्णता व मृत्यु से ऊपर उठकर दीर्घजीवन व कल्याण प्रास करें। निरन्तर चलते हुए ये दिन-रात आदि कालविभाग हमें जीर्ण करनेवाले न हों। प्राणसाधना द्वारा हमारी शक्तियों का विकास ही हो।

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    भाषार्थ

    हे माणवक ! (ते) तेरे लिये (प्राणापानौ) प्राण और अपान को (जराम्, मृत्युम्) जरावस्था को, तदनन्तर मृत्यु को, (दीर्घम, आयुः) दीर्घ आयु तथा (स्वस्ति) अविनाश या कल्याण को (कृणोमि) मैं आचार्य करता हूं। (वैवस्वतेन) विवस्वान् अर्थात् सूर्य द्वारा (प्रहितान्) भेजे गए (चरतः) संचरण अर्थात् विचरते हुए, (सर्वान् यमदूतान्) यम के सब दूतों को (अप सेधामि) मैं निवारित करता हूं।

    टिप्पणी

    [वैवस्वतेन = विवस्वान् + स्वार्थे अण, सूर्य द्वारा विवस्वान् या वैवस्वत है सूर्य, सूर्य की जाया है रात्रि। रात्रि माता है यम की। यम द्वारा भेजे गये दूत हैं मच्छर, सांप आदि हिंस्रप्राणी, जो कि मृत्युकारक हैं, और रात्रि में संचरण करते हैं, विचरते हैं। इनके निराकरण का वर्णन मन्त्र में हुआ है। विवस्वान् आदि के स्वरूप के परिज्ञानार्थ देखो (ऋ० १०।१७।१) तथा निरुक्त (१२।१।१२)। जराम्, मृत्युम् = जरावस्था को, तदनन्तर मृत्यु को] ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    O man, I strengthen your prana and apana energies and fortify your health for long life so that your life, all age and death in the natural course be good for your ultimate well being. Thus I ward off the pain of all the strokes of the agents of change sent by Yama, lord of the law of mutability, working through the march of time ordained by the sun.

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    Translation

    I make your out-breath and in-breath, your long life-span, your old age, and death peaceful. I drive away all the roaming death messengers, sent by time, born of the sun (Vaivasvata).

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    Translation

    I, the physician give you the act of outward breath and inward breath, O man ! and I also give you the long life to lead with pleasure and make the old age and death come at mature period. I send away all the messengers of yamas (the days, nights, months, seasons, years etc caused by the sun) which are sent and ‘produced by the sun.

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    Translation

    I firmly establish Prana and Apana (both the breaths) in thee. I keep away from thee, old age and death. I give thee long life, which may prove propitious to thee. I chase away the messengers of death, which roam about.

    Footnote

    I' refers to God. Messengers: Seconds minute, hour, day, month, year, which shorten our life.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(कृणोमि) करोमि (ते) तव (प्राणापानौ) शरीरे ऊर्ध्वाधःसंचारिणौ वायू (जराम्) अ० ३।११।७। तृतीयार्थे द्वितीया। जरया स्तुत्या (मृत्युम्) मरणम् (दीर्घम्) लम्बमानम् (आयुः) जीवनम् (स्वस्ति) सुसत्ताम्। क्षेमम् (वैवस्वतेन) अ० ६।११६।१। विवस्वत्-अण्। विवस्वन्तो मनुष्याः-निघ० २।३। मनुष्यसम्बन्धिना कर्मणा (प्रहितान्) प्रेरितान् (यमदूतान्) मृत्युसंदेशहरान्। निर्धनत्वरोगादीन् (चरतः) परिभ्रमतः (अप सेधामि) दूरं गमयामि (सर्वान्) निःशेषान् ॥

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