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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 9
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - पञ्चपदा जगती सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
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    दे॒वानां॑ हे॒तिः परि॑ त्वा वृणक्तु पा॒रया॑मि त्वा॒ रज॑स॒ उत्त्वा॑ मृ॒त्योर॑पीपरम्। आ॒राद॒ग्निं क्र॒व्यादं॑ नि॒रूहं॑ जी॒वात॑वे ते परि॒धिं द॑धामि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वाना॑म् । हे॒ति: । परि॑ । त्वा॒ । वृ॒ण॒क्तु॒ । पा॒रया॑मि । त्वा॒ । रज॑स: । उत् । त्वा॒ । मृ॒त्यो: । अ॒पी॒प॒र॒म् । आ॒रात् । अ॒ग्निम् । क्र॒व्य॒ऽअद॑म् । नि॒:ऽऊह॑न् । जी॒वात॑वे । ते॒ । प॒रि॒ऽधिम् । द॒धा॒मि॒ ॥२.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवानां हेतिः परि त्वा वृणक्तु पारयामि त्वा रजस उत्त्वा मृत्योरपीपरम्। आरादग्निं क्रव्यादं निरूहं जीवातवे ते परिधिं दधामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवानाम् । हेति: । परि । त्वा । वृणक्तु । पारयामि । त्वा । रजस: । उत् । त्वा । मृत्यो: । अपीपरम् । आरात् । अग्निम् । क्रव्यऽअदम् । नि:ऽऊहन् । जीवातवे । ते । परिऽधिम् । दधामि ॥२.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवानाम्) इन्द्रियों की (हेतिः) चोट (त्वा) तुझे (परि) सर्वथा (वृणक्तु) त्यागे, मैं (त्वा) तुझे (रजसः) राग से (पारयामि) पार करता हूँ, (त्वा) तुझे (मृत्योः) मृत्यु से (उत्) भले प्रकार (अपीपरम्) मैंने पचाया है। (क्रव्यादम्) मांसभक्षक [रोगोत्पादक] (अग्निम्) अग्नि को (आरात्) दूर (निरूहन्) हटाता हुआ मैं (ते) तेरे (जीवातवे) जीवन के लिये (परिधिम्) परिकोटा (दधामि) स्थापित करता हूँ ॥९॥

    भावार्थ

    मनुष्य इन्द्रियों के विकार और विघ्नों को हटा कर अपना जीवन स्थिर करें ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(देवानाम्) इन्द्रियाणाम् (हेतिः) हननम् (परि) सर्वतः (त्वा) (वृणक्तु) वर्जयतु (पारयामि) तारयामि (त्वा) (रजसः) रागात् (उत्) उत्कर्षेण (मृत्योः) मरणात् (अपीपरम्) अ० ८।१।१७। अपालयम् (आरात्) दूरे (अग्निम्) (क्रव्यादम्) मांसभक्षकम्। रोगोत्पादकम् (निरूहन्) निर+वह प्रापणे शतृ, वस्य ऊकारश्छान्दसः। निर्गमयन् (जीवातवे) अ० ६।५।२। जीवनाय (ते) तव (परिधिम्) प्राकारम् (दधामि) स्थापयामि ॥

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    विषय

    परिधि

    पदार्थ

    १. (देवानां हेति:) = देवों का अस्त्र (त्वा परिवृणक्तु) = तुझे दूर से छोड़ जाए-तेरी हिंसा करनेवाला न हो। मैं (त्वा) = तुझे (रजसः पारयामि) = रजोगुण से पार करता हूँ। तृष्णा से ऊपर उठा हुआ तू पाप-मार्ग की ओर नहीं जाता उत्-और (त्वा) = तुझे (मृत्योः अपीपरम्) = मृत्यु से भी पार करता हैं, बचाता हूँ। पाप ही तो मृत्यु का कारण बनता है। २. मैं (क्रव्यादं अग्निम्) = कच्चा मांस खा जानेवाले कामाग्नि को (आरात् निरूहम्) = सुदूर प्राप्त कराता हूँ-तुझसे बहुत दूर फेंकता हूँ। (ते जीवातवे) = तेरे जीवन के लिए (परिधिं दधामि) = प्राकार की स्थापना करता हूँ-मर्यादा की स्थापना करता हूँ। मर्यादा ही वह प्राकार है जो हमें मृत्यु से बचाता है।

    भावार्थ

    हमें सूर्यादि देवों की अनुकूलता प्राप्त हो तथा हम राजस् वृत्तियों से ऊपर उठकर नीरोग जीवनवाले हों, हम कामाग्नि से न जलाये जाएँ, दीर्घजीवन के लिए मर्यादारूप प्राकार के द्वारा हम जीवन को सुरक्षित करें।

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    भाषार्थ

    (देवानाम्) इन्द्रियों का (हेतिः) आयुध (त्वा) तुझे (परि वृणक्तु) छोड़ दे, (त्वा) तुझे (रजसः) रजोगुण से (पारयामि) में पार करता हूं, और (मृत्योः) मृत्यु से (उत् अपीपरम् त्वा) तुझे उठाकर पालन किया है। (क्रव्यादम् अग्निम्) हिंसाप्राप्त-मांसभक्षक शवाग्नि को (आरात्) दूर (निरूहम्) मैंने निकाल दिया है, (ते) तेरे (जीवातवे) जीवन के लिये (परिधिम्) परिधि को (दधामि) में स्थापित करता हूं।

    टिप्पणी

    [इन्द्रियों का आयुध है, विषयों में विचरना। रजोगुण, इन्द्रियों को विषयों की ओर प्रेरित करता है। रजोगुण मृत्यु का कारण है। क्रव्याद= कच्चे१ मांस का भक्षण करने वाली शवाग्नि । निरूहम्= निर् + वह। परिधि का अर्थ है घेरा। जीवन को जिस घेरे के भीतर रहना चाहिये वह जीवन की परिधि "ब्रह्म" (८।२।२५)] | [१. कच्चे मांस का अभिप्राय है अल्पावस्था तथा युवावस्था के ब्रह्मचारियों का शरीर। आचार्य रोगोपचार द्वारा यह अभिलाषा प्रकट करता है कि ब्रह्मचारी का शरीर शवाग्नि के भेंट न होने पाए। वृद्धावस्था में शरीर परिपक्व हो जाता है। इस अवस्था में शवाग्नि के प्रति शरीर की भेंट तो स्वाभाविक है। कच्चा मांस है बिना पकाया मांस, जिसे कि हिंस्र प्राणी खाते हैं।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    Let the punitive strike of nature’s forces spare you, I have immunised you against the negativities of mutability and metabolic change and thus I recover you from the stroke of untimely death. I have brought you far out of the flesh eating cancerous vitality of the system and thus draw the line of defence for your life and living against ill-health and disease.

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    Translation

    May the dart divine avoid you. I carry you across the midst. I have raised you up from death below. I have kept the flesh-consuming fire away from you. I set up protective enclosure for your life.

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    Translation

    O ailing man! let the hurt inflicting limbs leave you safe aside. I, the learned man deliver you from internal modification of mind and raise you from the death. I driving the flesh-consuming heat which crates diseases far away from you establish some limits, for the smooth sailing of your life.

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    Translation

    May the missile of the forces of nature pass by thee. I save thee from the attack of passions. I have preserved thee from death. Far have I banished flesh-consuming fire: I define a proper code of conduct for thy life’s protection.

    Footnote

    I' refers to God. Missile of nature: Affliction caused by excessive rain, flood, and heat.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(देवानाम्) इन्द्रियाणाम् (हेतिः) हननम् (परि) सर्वतः (त्वा) (वृणक्तु) वर्जयतु (पारयामि) तारयामि (त्वा) (रजसः) रागात् (उत्) उत्कर्षेण (मृत्योः) मरणात् (अपीपरम्) अ० ८।१।१७। अपालयम् (आरात्) दूरे (अग्निम्) (क्रव्यादम्) मांसभक्षकम्। रोगोत्पादकम् (निरूहन्) निर+वह प्रापणे शतृ, वस्य ऊकारश्छान्दसः। निर्गमयन् (जीवातवे) अ० ६।५।२। जीवनाय (ते) तव (परिधिम्) प्राकारम् (दधामि) स्थापयामि ॥

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