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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 4
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - प्रस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
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    प्रा॒णेन॑ त्वा द्वि॒पदां॒ चतु॑ष्पदाम॒ग्निमि॑व जा॒तम॒भि सं ध॑मामि। नम॑स्ते मृत्यो॒ चक्षु॑षे॒ नमः॑ प्रा॒णाय॑ तेऽकरम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒णेन॑ । त्वा॒ । द्वि॒ऽपदा॑म् । चतु॑:ऽपदाम् । अ॒ग्निम्ऽइ॑व । जा॒तम् । अ॒भ‍ि । सम् । ध॒मा॒मि॒ । नम॑: । ते॒ । मृ॒त्यो॒ इति॑ । चक्षु॑षे । नम॑: । प्रा॒णाय॑ । ते॒ । अ॒क॒र॒म् ॥२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राणेन त्वा द्विपदां चतुष्पदामग्निमिव जातमभि सं धमामि। नमस्ते मृत्यो चक्षुषे नमः प्राणाय तेऽकरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्राणेन । त्वा । द्विऽपदाम् । चतु:ऽपदाम् । अग्निम्ऽइव । जातम् । अभ‍ि । सम् । धमामि । नम: । ते । मृत्यो इति । चक्षुषे । नम: । प्राणाय । ते । अकरम् ॥२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (त्वा) तुझको (द्विपदाम्) दो पायों और (चतुष्पदाम्) चौपायों के (प्राणेन) प्राण से (अभि) सब ओर से (सम् धमामि) मैं फूँकता हूँ, (इव) जैसे (जातम्) उत्पन्न हुए (अग्निम्) अग्नि को। (मृत्यो) हे मृत्यु ! (ते) तेरी (चक्षुषे) दृष्टि को (नमः) नमस्कार और (ते) तेरे (प्राणाय) प्राण [प्रबलता] को (नमः) नमस्कार (अकरम्) मैंने किया है ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य मृत्यु की दृष्टि और प्रबलता विचार कर दोपाये और चौपाये आदि प्राणियों से पुरुषार्थ सीखकर अपने पराक्रम से प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी होवें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(प्राणेन) जीवनेन (त्वा) (द्विपदाम्) मनुष्यादीनाम् (चतुष्पदाम्) गवाश्वादीनाम् (अग्निम्) भौतिकपावकम् (इव) यथा (जातम्) नवोत्पन्नम् (अभि) सर्वतः (सम्) सम्यक् (धमामि) ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः। दीर्घश्वासेन संयोजयामि (नमः) नमस्कारः (ते) तव (मृत्यो) (चक्षुषे) दृष्टये (नमः) प्राणाय प्रकृष्टाय बलाय (ते) तव (अकरम्) कृतवानस्मि ॥

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    विषय

    इन्द्रियों व प्राणों को दीस बनाना

    पदार्थ

    १. प्रभु कहते हैं कि (इव) = जैसे [जातम्] (अग्निम्) = उत्पन्न अग्नि को फंक आदि द्वारा दोस करते हैं, उसी प्रकार (द्विपदाम्) = दोषाये व (चतुष्पदाम्) = चौपाये पशुओं में (जातम्) = उत्पन्न हुए हुए तुझे (प्राणेन अभिसंधमामि) = प्राणशक्ति द्वारा संधमात करता हूँ-दीस करता हूँ। २. जीव उत्तर देता हुआ कहता है कि हे (मृत्यो) = अन्ततः सबका प्राणान्त करनेवाले प्रभो! (ते चक्षुषे नमः) = आपसे दी गई इन चक्षु आदि इन्द्रियों के लिए हम आपको नमस्कार करते हैं। (ते प्राणाय नमः अकरम्) = आपसे दिये गये इन प्राणों के लिए हम आपको नमस्कार करते हैं। हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि आपसे दी गई इन चक्षु आदि इन्द्रियों को तथा आपसे दिये गये इन प्राणों को हम ठीक रक्खें-इनकी शक्ति में क्षीणता न आने दें।

    भावार्थ

    प्रभु प्रत्येक प्राणी को प्राणों द्वारा दीप्स जीवनवाला बनाते हैं। हमारा मूल कर्त्तव्य यही है कि हम प्रभु-प्रदत्त इन्द्रियों व प्राणों को स्वस्थ रखें।

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    भाषार्थ

    (द्विपदां चतुष्पदाम्) दो पायों और चौपायों सम्बन्धी (प्राणेन) प्राण द्वारा (त्वा अभि) हे माणवक ! तुझ पर (संधमामि१) मैं आचार्य प्राण फुंकता हूँ, (इव) जैसे कि (जातम्) नवोत्पन्न (अग्निम्, अभि) अग्नि को [धौंकनी, मुख, पैसे आदि द्वारा फूंका जाता है]। (मृत्यो) हे मृत्यु नामक परमेश्वर [सूक्त १। मन्त्र १] (ते) तेरी (चक्षुषे) कृपादृष्टि के लिये (नमः) नमस्कार तथा (ते) तेरे (प्राणाय) प्राणप्रदस्वरूप के लिये (नमः) नमस्कार (अकरम्) मैं करता हूं, या मैंने किया है।

    टिप्पणी

    [मूर्च्छित हुए माणवक के स्वास्थ्य के लिये, उसे निज मुख आदि द्वारा प्राण अर्थात् प्राणवायु के फूंकने का वर्णन हुआ है। द्विपद्-मनुष्यों तथा चतुष्पद्-पशुओं में जैसे स्वस्थ प्राण होते हैं, तत्सम्बन्धी स्वस्थ प्राण के फूंकने का कथन आचार्य ने किया है। इसलिये आचार्य रुग्ण माणवक को कहता है कि द्विपदों और चतुष्पदों की स्वस्थ प्राणवायु के सदृश प्राणवायु द्वारा मैं आचार्य हे माणवक ! तुझ में, फूंक कर प्राणवायु का संचार करता हूं। इस निमित्त आचार्य मृत्युनामक परमेश्वर की सहायता के लिये उसे नमस्कार करता है]। [१. "संधमामि" द्वारा धौंकनी सूचित होती है। अतः सम्भवतः धौंकनी द्वारा शनैः शनैः स्वच्छ वायु के संचार का कथन हुआ है। मुख द्वारा संचारित वायु स्वच्छ नहीं होती।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    Like fire newly lit and raised, I vest you with life energy of prana, universal as the pranic energy of bipeds and quadrupeds. O Lord of life and death, I offer homage to you, homage to the light of life, homage to divine life energy.

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    Translation

    I blow on you from all sides with the breath of the bipeds and the quadrupeds, as on a newly born fire. Homage to your vision and homage to your vital breath, I pay, O death.

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    Translation

    O man! I blow upon you with the breath of bipeds and quadrupeds like the newly enkindled fire. I praise this death, the vision and breath which it hath returned.

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    Translation

    O soul, just as fire is kindled with the blow of breath or a fan, so do I enliven thee with the breath of bipeds and quadrupeds. O God, the Severer of men from the mortal, I feed the eye granted by Thee with beautiful scenery, and the breath granted by thee with food.

    Footnote

    In the first part God addresses the soul, and in the second, the soul addresses God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(प्राणेन) जीवनेन (त्वा) (द्विपदाम्) मनुष्यादीनाम् (चतुष्पदाम्) गवाश्वादीनाम् (अग्निम्) भौतिकपावकम् (इव) यथा (जातम्) नवोत्पन्नम् (अभि) सर्वतः (सम्) सम्यक् (धमामि) ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः। दीर्घश्वासेन संयोजयामि (नमः) नमस्कारः (ते) तव (मृत्यो) (चक्षुषे) दृष्टये (नमः) प्राणाय प्रकृष्टाय बलाय (ते) तव (अकरम्) कृतवानस्मि ॥

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