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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 18
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
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    शि॒वौ ते॑ स्तां व्रीहिय॒वाव॑बला॒साव॑दोम॒धौ। ए॒तौ यक्ष्मं॒ वि बा॑धेते ए॒तौ मु॑ञ्चतो॒ अंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शि॒वौ । ते॒ । स्ता॒म् । व्री॒हि॒ऽय॒वौ । अ॒ब॒ला॒सौ । अ॒दो॒म॒धौ । ए॒तौ । यक्ष्म॑म् । वि । बा॒धे॒ते॒ इति॑ । ए॒तौ । मु॒ञ्च॒त॒: । अंह॑स: ॥२.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिवौ ते स्तां व्रीहियवावबलासावदोमधौ। एतौ यक्ष्मं वि बाधेते एतौ मुञ्चतो अंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिवौ । ते । स्ताम् । व्रीहिऽयवौ । अबलासौ । अदोमधौ । एतौ । यक्ष्मम् । वि । बाधेते इति । एतौ । मुञ्चत: । अंहस: ॥२.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 18
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (व्रीहियवौ) चावल और जौ (शिवौ) मङ्गल करनेवाले, (अबलासौ) बल के न गिरानेवाले और (अदोमधौ) भोजन में हर्ष करनेवाले (स्ताम्) हों। (एतौ) यह दोनों (यक्ष्मम्) राजरोग को (वि) विशेष करके (बाधेते) हटाते हैं, (एतौ) यह दोनों (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चतः) छुड़ाते हैं ॥१८॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चावल और जौ आदि सात्त्विक अन्न का भोजन प्रसन्न होकर करना चाहिये, जिससे वह पुष्टिकारक हो ॥१८॥

    टिप्पणी

    १८−(शिवौ) सुखकरौ (ते) तुभ्यम् (स्ताम्) (व्रीहियवौ) अन्नविशेषौ (अबलासौ) अ० ६।६३।१। अ+बल+अनु क्षेपणे-क्विप्। शरीरबलस्य अक्षेप्तारौ (अदोमधौ) अद भक्षणे-असुन्+मद हर्षे-अच्, दस्य धः। भोजने हर्षकरौ (एनौ) व्रीहियवौ (यक्ष्मम्) राजरोगम् (वि) विशेषेण (बाधेते) अपनयतः (एतौ) (मुञ्चतः) मोचयतः (अंहसः) कष्टात् ॥

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    विषय

    व्रीहि-यवौ

    पदार्थ

    १. हे अन्न का ग्रहण करनेवाले पुरुष! (ते) = तेरे लिए अन्नत्वेन कल्पित (व्रीहियवौ) = चावल और जौ (शिवौ स्ताम्) = सुखकर हों, (अ-बल असौ) = शरीर-बल को परे फेंकनेवाले न हों [अस् क्षेपणे], अर्थात् बल की वृद्धि करनेवाले हों अथवा ('अ-बलासौ') = कष्टकर न हों। (अदोमधौ) = [अद् मधु] खाने में सुखकारी व मधुर प्रतीत हों। २. (एतौ) = ये दोनों (यक्ष्मम्) = शरीरगत रोग को वि (बाधेते) = विशेषरूप से पीड़ित करते हैं। (एतौ) = ये व्रीहि और यव (अंहसः मुञ्चताः) = मानस व शारीर-पापों व पीड़ाओं से छुड़ाते हैं।

    भावार्थ

    व्रीहि और यव का प्रयोग हमारे दोषों को दूर करके शरीर में बल के आधान द्वारा हमें नीरोगता प्रदान कर कष्टमुक्त करें।


     

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    भाषार्थ

    (ते) तेरे लिये (व्रीहियवौ) धान और जो (शिवौ) कल्याणकारी, (अबलासौ) बलास रोग से रहित, (अदोमधौ= अदोमधू) खाने में मधुर (स्ताम्) हों। (एतौ) ये दोनों (यक्ष्मम्) यक्ष्मा को (वि बाधेते) विशेषतया बाधित करते हैं, उसके आने में बाधा उपस्थित करते हैं, (एतौ) ये दोनों (अंहसः) पाप से (मुञ्चतः) मुक्त करते हैं।

    टिप्पणी

    [अबलासौ = अ + बल + अस् (क्षेपणे), बल का न क्षेपण करने वाले। "अबलासौ= शरीरबलस्य अक्षेप्तारौ, बलकरौ" (सायण)। अदोमधी= अदोमधू मधुरौ (सायण)। अथवा अदोमधौ= अदोमदौ= अदसि भक्षणे मदौ तृप्तिकरौ (मद तृप्तियोगे; चुरादिः, वर्णविकारः)। अंहसः= व्रीहि और यव सात्त्विक भोजन हैं, तामसिक और राजसिक भोजन नहीं, अतः इनका भोजन पाप की ओर प्रवृत्त नहीं करता। मन्त्र १७ में युवावस्था के ब्रह्मचारी का वर्णन हुआ है, उसे सात्त्विक भोजन करने का निर्देश दिया है। युवावस्था में पापकर्म की ओर प्रवृत्ति की सम्भावना हो जाती है]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    Let rice and barley be good and auspicious for you, nourishing, health giving, exhilarating, resistant to debilitating and consumptive conditions. They protect you against sickness, disease and cancerous ailments and save you from sin and anxiety.

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    Translation

    May the rice and barley, free from, wasting disease and Pleasing to eat, be propitious to you. Both these resist the consumption and purge the malady.

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    Translation

    Let the rice and barley causing not any debility and increasing taste be auspicious for you, O man! and let them dispel consumption and deliver you from trouble and pain.

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    Translation

    Auspicious unto thee be rice and barley, nutritious and sweet in taste. They cure consumption and free us from physical suffering.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १८−(शिवौ) सुखकरौ (ते) तुभ्यम् (स्ताम्) (व्रीहियवौ) अन्नविशेषौ (अबलासौ) अ० ६।६३।१। अ+बल+अनु क्षेपणे-क्विप्। शरीरबलस्य अक्षेप्तारौ (अदोमधौ) अद भक्षणे-असुन्+मद हर्षे-अच्, दस्य धः। भोजने हर्षकरौ (एनौ) व्रीहियवौ (यक्ष्मम्) राजरोगम् (वि) विशेषेण (बाधेते) अपनयतः (एतौ) (मुञ्चतः) मोचयतः (अंहसः) कष्टात् ॥

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