Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 17
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - त्रिपदानुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
    0

    यत्क्षु॒रेण॑ म॒र्चय॑ता सुते॒जसा॒ वप्ता॒ वप॑सि केशश्म॒श्रु। शुभं॒ मुखं॒ मा न॒ आयुः॒ प्र मो॑षीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । क्षु॒रेण॑ । म॒र्चय॑ता । सु॒ऽते॒जसा॑ । वप्ता॑ । वप॑सि । के॒श॒ऽश्म॒श्रु । शुभ॑म् । मुख॑म् । मा । न॒: । आयु॑: । प्र । मो॒षी॒: ॥२.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्क्षुरेण मर्चयता सुतेजसा वप्ता वपसि केशश्मश्रु। शुभं मुखं मा न आयुः प्र मोषीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । क्षुरेण । मर्चयता । सुऽतेजसा । वप्ता । वपसि । केशऽश्मश्रु । शुभम् । मुखम् । मा । न: । आयु: । प्र । मोषी: ॥२.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (वप्ता) नापित तू (मर्चयता) [केशों का] पकड़नेवाले (सुतेजसा) बड़े तेज (यत्) जिस (क्षुरेण) छुरा से (केशश्मश्रु) केश और और डाढ़ी-मूँछ को (वपसि) बनाता है, [उससे] (नः) हमारे (शुभम्) सुन्दर (मुखम्) मुख और (आयुः) जीवन को (मा प्र मोषीः) मत घटा ॥१७॥

    भावार्थ

    मनुष्य केशछेदन कराके मुख और जीवन की शोभा बढ़ावें ॥१७॥ यह मन्त्र कुछ भेद से स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि चूड़ाकर्म प्रकरण में आया है ॥

    टिप्पणी

    १७−(यत्) येन (क्षुरेण) क्षौरास्त्रेण (मर्चयता) मर्च शब्दे ग्रहणे च-शतृ। केशानां ग्रहीत्रा (सुतेजसा) सुतीक्ष्णेन (वप्ता) टुवप बीजसन्ताने मुण्डने च-तृन्। केशच्छेत्ता। नापितः (वपसि) मुण्डयसि। छिनत्सि (केशश्मश्रु) क्लिशेरन् लो लोपश्च। उ० ५।३३। क्लिश उपतापे, क्लिशू विबाधने-अन्, लस्य लोपः। इति केशः कचः। श्मश्रु यथा-अ० ५, १९।२। शिरोरोमाणि मुखरोमाणि च (शुभम्) शोभनम् (मुखम्) (नः) अस्माकम् (आयुः) जीवनम् (मा प्र मोषीः) मा प्रहिंसीः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    केशवपन

    पदार्थ

    हे संस्कारक पुरुष! (यत) = जब वसा-केशों का छेत्ता नापित होता हुआ तु (मर्चयता) = अपना व्यापार करनेवाले (सुतेजसा)  सम्यक् तीक्ष्णता से युक्त (क्षुरेण) = उस्तरे से (केशश्मश्रु) = सिर के व दाढ़ी-मूछों के बालों को (वपसि) = काट डालता है, तब (मुखं शुभम्) = मुख को शुभ बना दे और (न:) = हमारी (आयु:) = आयु को (मा प्रमोषी:) = नष्ट करनेवाला न हो।

    भावार्थ

    हे लोगो! तुम तीक्ष्ण, स्वच्छ धारवाले उस्तरे से बाल बनवाओ। सिर के व मुख के बाल बनवाकर सुन्दर मुखवाले होओ। नाई की असावधानी तुम्हारे आयुष्य की कमी का कारण न बने।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (यत्) जो (मर्चयता) शुद्ध और (सुतेजसा) उत्तम प्रकार से तेज (क्षुरेण) उस्त्रे के द्वारा, (वप्ता) तू छेदन करने वाला नापित (केशश्मश्रु) केशों तथा मूंछ दाढ़ी को (वपसि) काटता है, तो (नः) हमारे (शुभम्, मुखम्) मुख की शोभा को बढ़ा, तथा (आयु) जीवनकाल को (मा)(प्रमोषीः) नुकसान पहुंचा।

    टिप्पणी

    [मर्चयता= "मर्च" धातु शब्दार्थक है। यथा “गज मार्ज शब्दार्थों, मर्च च (चुरादिः) परन्तु उणा० ३।४३ में "मर्च" को सौत्रधातु कहा है (दयानन्दः); "मर्च इति सौत्रो धातुरिति बहवः" (कौमुदी टीका, ज्ञानेन्द्र सरस्वती)। अतः इनके मत में मर्च धातु चुरादिगणी नहीं । मर्च= To cleanse (आप्टे), अर्थात् शोधन। यह अर्थ मन्त्र में सङ्गत प्रतीत होता है। क्षुर को शुद्ध अर्थात् स्वच्छ तथा तेज होना ही चाहिये। सभी क्षौर-कर्म ठीक सम्पन्न हो सकता है। मोषीः = मुष स्तेये। स्तेय द्वारा द्रव्यापहरण किया जाता है। हमारे मुख की शोभा और आयु को वपन द्वारा तू अपहृत न कर, यह भाव है। ब्रह्मचारी विद्याग्रहण के लिये उपनयन पूर्वक गुरु के आश्रय में जाता है। वैदिक विधि में उस समय उसका क्षौरकर्म होना चाहिये। विद्या के ग्रहण में आयु का विचार नहीं है। अल्पायु तथा युवा भी उपनयन पूर्वक विद्या ग्रहण कर सकता है। युवा की दृष्टि से "श्मश्रु" पद पठित है१]। [१. मन्त्र १७ की व्याख्या में सायणाचार्य ने 'देवसविता" का अध्याहार करके अर्थ किया है, "हे संस्कारक पुरुष !" यह अर्थ आधिभौतिक है, आधिदेविक नहीं। इसलिये प्रकरणानुसार "देव और सविता" आदि पदों के आधिभौतिक अर्थ भी सम्भव हैं, यह सायणाचार्य को भी अभिप्रत है। ऋषि दयानन्द ने अपने वैदिक भाष्यों में दैवत नामों के प्रायः आधिभौतिक अर्थ किये हैं। सायणाचार्य के अनुसार सविता है "वप्ता, केशानां छेता नापितः" अर्थात् नाई। वप्ता= वप बीजसन्ताने छेदने च (भ्वादिः)। मन्त्र में वप्ता पद छेदनार्थक है, नापित है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    O barber, as you shave the hair, beard and moustache with a sharp and clean razor, you should not hurt the person’s health and his fine and fair complexion.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    When as a barber, you shave hair (Keša) and beard (Smaéru) with an injuring and very shining razor, make our appearance pleasing to look at. Do not steal away our life-span.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O barber ! when you, with a very sharp and cleansing razor shave our hair and beards steal not our life smoothing our face.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O barber, when, with a very sharp and cleansing razor, our hair and beards thou Harm not our body: Don’t injure our body through inexperience or carelessness, or by the use of a bad non-disinfected razor, which may bruise a part of the face or produce a skin disease like eczema. Swami Dayananda has used this verse for Mundan Sanskar in the Sanskar Vidhi.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(यत्) येन (क्षुरेण) क्षौरास्त्रेण (मर्चयता) मर्च शब्दे ग्रहणे च-शतृ। केशानां ग्रहीत्रा (सुतेजसा) सुतीक्ष्णेन (वप्ता) टुवप बीजसन्ताने मुण्डने च-तृन्। केशच्छेत्ता। नापितः (वपसि) मुण्डयसि। छिनत्सि (केशश्मश्रु) क्लिशेरन् लो लोपश्च। उ० ५।३३। क्लिश उपतापे, क्लिशू विबाधने-अन्, लस्य लोपः। इति केशः कचः। श्मश्रु यथा-अ० ५, १९।२। शिरोरोमाणि मुखरोमाणि च (शुभम्) शोभनम् (मुखम्) (नः) अस्माकम् (आयुः) जीवनम् (मा प्र मोषीः) मा प्रहिंसीः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top