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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 22
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - पुरस्ताद्बृहती सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
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    श॒रदे॑ त्वा हेम॒न्ताय॑ वस॒न्ताय॑ ग्री॒ष्माय॒ परि॑ दद्मसि। व॒र्षाणि॒ तुभ्यं॑ स्यो॒नानि॒ येषु॒ वर्ध॑न्त॒ ओष॑धीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒रदे॑ । त्वा॒ । हे॒म॒न्ताय॑ । व॒स॒न्ताय॑ । ग्री॒ष्माय॑ । परि॑ । द॒द्म॒सि॒ । व॒र्षाणि॑ । तुभ्य॑म् । स्यो॒नानि॑ । येषु॑ । वर्ध॑न्ते । ओष॑धी: ॥२.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शरदे त्वा हेमन्ताय वसन्ताय ग्रीष्माय परि दद्मसि। वर्षाणि तुभ्यं स्योनानि येषु वर्धन्त ओषधीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शरदे । त्वा । हेमन्ताय । वसन्ताय । ग्रीष्माय । परि । दद्मसि । वर्षाणि । तुभ्यम् । स्योनानि । येषु । वर्धन्ते । ओषधी: ॥२.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (त्वा) तुझे (शरदे) शरद्, (हेमन्ताय) हेमन्त [और शिशिर], (वसन्ताय) वसन्त और (ग्रीष्माय) ग्रीष्म [ऋतु] को (परि दद्मसि) हम सौंपते हैं। (वर्षाणि) वर्षाएँ (तुभ्यम्) तेरे लिये (स्योनानि) मनभावनी [होवें], (येषु) जिनमें (ओषधीः) औषधें [अन्न आदि वस्तुयें] (वर्द्धन्ते) बढ़ती हैं ॥२२॥

    भावार्थ

    मनुष्य सब ऋतुओं से यथावत् उपयोग लेकर सुखी रहें ॥२२॥ इस मन्त्र का मिलान अ० ६।५५।२। से करो जहाँ छह ऋतुएँ वर्णित हैं ॥

    टिप्पणी

    २२−(परि दद्मसि) समर्पयामः (वर्षाणि) श्रावणभाद्रात्मको मेघकालः (तुभ्यम्) (स्योनानि) सुखकराणि (येषु) (वर्द्धन्ते) उत्पद्यन्ते (ओषधीः) व्रीहियवादयः। अन्यद् व्याख्यातम्-अ० ६।५५।२। (शरदे) आश्विनकार्तिकात्मकाय कालाय (त्वा) त्वाम् (हेमन्ताय) आग्रहायणपौषात्मकाय कालाय। शिशिरसहिताय माघफाल्गुनसहिताय (ग्रीष्माय) ज्येष्ठाषाढात्मकाय कालाय ॥

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    विषय

    ऋतुओं की अनुकूलता

    पदार्थ

    १. हे बालक! हम (त्वा) = तुझे (शरदे) = शरद ऋतु के लिए, इसी प्रकार (हेमन्ताय) = हेमन्त के लिए, (वसन्ताय) = वसन्त के लिए तथा (ग्रीष्माय) = ग्रीष्म के लिए (परिदासि) = देते हैं-सौंपते हैं। ये सब ऋतुएँ तेरे जीवन का रक्षण करनेवाली हों। २. (वर्षाणि) = वर्षाऋतु के दिन भी (तुभ्यं स्योनानि) = तेरे लिए सुखकर हों। वे वर्षा ऋतु के दिन, (येषु) = जिनमें कि (ओषधी: वर्धन्ते) = ओषधियाँ वृद्धि को प्राप्त होती हैं। वे वृष्टि के दिन अपनी बढ़ी हुई ओषधियों से तेरे लिए सुखकर हों।

    भावार्थ

    हमें सब ऋतुओं की अनुकूलता प्राप्त हो, जिससे हम स्वस्थ शरीर, मन व बुद्धि'-वाले बने रहें।

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    भाषार्थ

    (त्वा) तुझे (शरदे) शरदृतु के लिये, (हेमन्ताय) हेमन्त ऋतु के लिये (वसन्ताय) वसन्त ऋतु के लिये (ग्रीष्माय) ग्रीष्म ऋतु के लिये (परिदद्मसि) रक्षार्थ हम सौंपते हैं। (वर्षाणि) बरसातें (तुभ्यम्) तेरे लिये (स्योनानि) सुखदायक हों, (येषु) जिन में (ओषधी) ओषधियां (वर्धन्ते) बढ़ती हैं।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में ऋतुचर्या का निर्देश किया है। वर्षाणि= वर्ष शब्द नपुंसक लिङ्ग में प्रयुक्त है, जिसका अर्थ है वर्षा। स्योनानि "स्योनम् सुखनाम" (निघं० ३।६)]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    O man, we entrust you to the autumn, winter, spring and summer seasons and auspicious years when herbs and trees grow fresh and bloom luxuriantly.

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    Translation

    We hand you over (as a charge) to autumn, to winter, to spring and to summer. For you pleasing be the rains, during which the plants grow up.

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    Translation

    We deliver you, O man! To the care of autumn, winter, spring, and summer, and give you to the auspicious years when the herbs grow, luxuriantly.

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    Translation

    O man, to Autumn we deliver thee, to Winter, Spring and Summer’s care. May the rainy season wherein the plants and herbs grow up, be auspicious for thee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(परि दद्मसि) समर्पयामः (वर्षाणि) श्रावणभाद्रात्मको मेघकालः (तुभ्यम्) (स्योनानि) सुखकराणि (येषु) (वर्द्धन्ते) उत्पद्यन्ते (ओषधीः) व्रीहियवादयः। अन्यद् व्याख्यातम्-अ० ६।५५।२। (शरदे) आश्विनकार्तिकात्मकाय कालाय (त्वा) त्वाम् (हेमन्ताय) आग्रहायणपौषात्मकाय कालाय। शिशिरसहिताय माघफाल्गुनसहिताय (ग्रीष्माय) ज्येष्ठाषाढात्मकाय कालाय ॥

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