Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 13
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
    0

    अ॒ग्नेष्टे॑ प्रा॒णम॒मृता॒दायु॑ष्मतो वन्वे जा॒तवे॑दसः। यथा॒ न रिष्या॑ अ॒मृतः॑ स॒जूरस॒स्तत्ते॑ कृणोमि॒ तदु॑ ते॒ समृ॑ध्यताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्ने: । ते॒ । प्रा॒णम् । अ॒मृता॑त् । आयु॑ष्मत: । व॒न्वे॒ । जा॒तऽवे॑दस: । यथा॑ । न । रिष्या॑: । अ॒मृत॑: । स॒ऽजू: । अस॑: । तत् । ते॒ । कृ॒णो॒मि॒ । तत् । ऊं॒ इति॑ । ते॒ । सम् । ऋ॒ध्य॒ता॒म् ॥२.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नेष्टे प्राणममृतादायुष्मतो वन्वे जातवेदसः। यथा न रिष्या अमृतः सजूरसस्तत्ते कृणोमि तदु ते समृध्यताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने: । ते । प्राणम् । अमृतात् । आयुष्मत: । वन्वे । जातऽवेदस: । यथा । न । रिष्या: । अमृत: । सऽजू: । अस: । तत् । ते । कृणोमि । तत् । ऊं इति । ते । सम् । ऋध्यताम् ॥२.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (ते) तेरे (प्राणम्) प्राण को (अमृतात्) अमर, (आयुष्मतः) बड़ी आयुवाले, (जातवेदसः) उत्पन्न पदार्थों के जाननेवाले (अग्नेः) अग्नि [सर्वव्यापक परमेश्वर] से (वन्वे) मैं माँगता हूँ। (यथा) जिससे (न रिष्याः) तू न मरे, (सजूः) [उसके साथ] प्रीतिवाला तू (अमृतः) अमर (असः) रहे, मैं (तत्) वह [कर्म] (ते) तेरे लिये (कृणोमि) करता हूँ, (तत् उ) वही (ते) तेरे लिये (सम्) यथावत् (ऋध्यताम्) सिद्ध होवे ॥१३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा और गुरुजनों की शिक्षा में चलते हैं, वे बलवान् होकर सुख भोगते हैं ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(अग्नेः) सर्वव्यापकात् परमेश्वरात् (ते) तव (प्राणम्) जीवनम् (अमृतात्) अमरात् (आयुष्मतः) दीर्घायुर्युक्तात् (वन्वे) अहं याचे (जातवेदसः) उत्पन्नपदार्थज्ञात् (यथा) येन प्रकारेण (न रिष्याः) मा मृथाः (अमृतः) अमरः (सजूः) परमेश्वरेण सह प्रीतिः (तत्) कर्म (ते) तुभ्यम् (कृणोमि) करोमि (तत्) (उ) अवधारणे (ते) तुभ्यम् (सम्) सम्यक् (ऋध्यताम्) सिध्यतु ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अमृत सजू: असः

    पदार्थ

    १. पुरोहित यजमान से कहता है कि हे पुरुष ! मैं (ते) = तेरे लिए (अग्नेः) = उस अग्रणी प्रभु से (प्राणं वन्वे) = प्राणशक्ति की याचना करता हूँ। उन प्रभु से जो (अमृतात्) = अमृत हैं, जिनकी उपासना में मृत्यु है ही नहीं, (आयुष्मतः) = जो प्रशस्त आयुष्य को प्राप्त करानेवाले हैं, जातवेदसः जो सर्वज्ञ हैं। २. मैं (ते) = तेरे लिए (तत् कृणोमि) = उन कर्तव्य-कर्मों को-प्राणसाधनादि नित्य कर्मों को उपदिष्ट करता हूँ, (यथा न रिष्या:) = जिससे तू हिंसित न हो-रोगादि तुझपर आक्रमण न कर पाएँ। (अ-मृत:) = तेरा जीवन नीरोग हो। (सजू: अस:) = तू उस परमात्मा के साथ होनेवाला हो, तू प्रभुस्मरणपूर्वक कर्त्तव्य-कर्मों को करनेवाला हो, (उ) = और (ते) = तेरे लिए (तत्) = ये सब कर्(समृध्यताम्) = समृद्धि का कारण बनें।

    भावार्थ

    हम प्राणसाधनों द्वारा नौरोग दीर्घजीवन प्राप्त करें। रोगादि से हिंसित न होते हुए 'अमृत' हों, असमय में ही मृत्यु का शिकार न हो जाएँ। प्रभु की उपासना में चलते हुए हम समृद्ध जीवनवाले बनें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    [हे रुग्ण माणवक!] (अमृतात्) अमृतस्वरूप (आयुष्मतः) आयुप्रदाता (जातवेदसः) जातप्रज्ञ अर्थात् प्रज्ञानी (अग्नेः) सर्वाग्रणी परमेश्वर से (ते) तेरे (प्राणम्) प्राण की (वन्वे) मैं याचना करता हूं। (यथा) जिस प्रकार कि (न रिष्याः) तू हिंसित न हो, (अमृतः) और अमृत हो जाय, (सजूः) और परमेश्वर के साथ प्रीति करने वाला (असः) हो जाय। (ते) तेरे लिये (तत्) उस कर्म को (कृणोमि) मैं आचार्य करता हूं, (ते) तेरे लिये (तत् उ) वह कर्म (समृध्यताम्) समृद्धिदायक हो।

    टिप्पणी

    [वन्वे = वनु याचने (तनादिः)। सजूः= स + जुषी प्रीतिसेवनयोः (तनादिः)। मन्त्र में अग्नि द्वारा परमेश्वरार्थ प्रतीत होता है। आयुष्मतः= अथवा जिसके साथ आयुः अर्थात् जीवनकाल का नित्य सम्बन्ध है उस नित्य स्वरूप परमेश्वर से तेरे लिये प्राण की याचना करता१ हूं] [१. ब्रह्मचारी के स्वास्थ्य तथा समृद्धि के लिये आचार्य के हृदय में कितनी उग्र भावना है, यह इन मन्त्रों द्वारा प्रकट हो रहा है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    I ask of immortal, all knowing, all inspiring Agni, giver of life, to give you pranic energy of life so that you do not suffer ill health and disease, live immortal against untimely death and be dedicated to Divinity. This I do for you, and may this prosper for you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    I win your life from the adorable Lord, the immortal, the bestower of life, and the omniscient. I make it so for you,that you may remain uninjured, undying, and contented, May it prosper for you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O man ! I, the physician restore your life to you from the immortal, everlasting and all-pervading fire. I make you so as you not suffer death and harm caused thereby. you may be content, and let this all go well with you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    I win thy life from the Refulgent, Immortal, Everlasting, OmniscientGod. This I procure for thee, that thou mayst not suffer harm, and befriending Him, become free from the fear of death, and all be well with thee.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(अग्नेः) सर्वव्यापकात् परमेश्वरात् (ते) तव (प्राणम्) जीवनम् (अमृतात्) अमरात् (आयुष्मतः) दीर्घायुर्युक्तात् (वन्वे) अहं याचे (जातवेदसः) उत्पन्नपदार्थज्ञात् (यथा) येन प्रकारेण (न रिष्याः) मा मृथाः (अमृतः) अमरः (सजूः) परमेश्वरेण सह प्रीतिः (तत्) कर्म (ते) तुभ्यम् (कृणोमि) करोमि (तत्) (उ) अवधारणे (ते) तुभ्यम् (सम्) सम्यक् (ऋध्यताम्) सिध्यतु ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top