अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 15
शि॒वास्ते॑ स॒न्त्वोष॑धय॒ उत्त्वा॑हार्ष॒मध॑रस्या॒ उत्त॑रां पृथि॒वीम॒भि। तत्र॑ त्वादि॒त्यौ र॑क्षतां सूर्याचन्द्र॒मसा॑वु॒भा ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒वा: । ते॒ । स॒न्तु॒ । ओष॑धय: । उत् । त्वा॒ । अ॒हा॒र्ष॒म् । अध॑रस्या: । उत्त॑राम् । पृ॒थि॒वीम् । अ॒भि । तत्र॑ । त्वा॒ । आ॒दि॒त्यौ । र॒क्ष॒ता॒म् । सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑ । उ॒भा ॥२.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
शिवास्ते सन्त्वोषधय उत्त्वाहार्षमधरस्या उत्तरां पृथिवीमभि। तत्र त्वादित्यौ रक्षतां सूर्याचन्द्रमसावुभा ॥
स्वर रहित पद पाठशिवा: । ते । सन्तु । ओषधय: । उत् । त्वा । अहार्षम् । अधरस्या: । उत्तराम् । पृथिवीम् । अभि । तत्र । त्वा । आदित्यौ । रक्षताम् । सूर्याचन्द्रमसौ । उभा ॥२.१५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (ओषधयः) ओषधें [अन्न आदि] (शिवाः) मङ्गलकारी (सन्तु) होवें, मैंने (त्वा) तुझको (अधरस्याः) नीची [पृथिवी] से (उत्तराम्) ऊँची (पृथिवीम्) अभि) पृथिवी पर (उत् अहार्षम्) उठाया है। (तत्र) वहाँ [ऊँचे स्थान पर] (त्वा) तुझको (उभा) दोनों (आदित्यौ) प्रकाशमान (सूर्याचन्द्रमसौ) सूर्य और चन्द्रमा [के समान नियम] (रक्षताम्) बचावें ॥१५॥
भावार्थ
मनुष्य अन्न आदि पदार्थों के सुन्दर उपयोग से दिन-दिन अधिक उन्नति करके प्रत्यक्ष सूर्य चन्द्रमा के समान परस्पर पालन करें ॥१५॥
टिप्पणी
१५−(शिवाः) सुखकराः (ते) तुभ्यम् (सन्तु) (ओषधयः) व्रीह्यादयः (उत् अहार्षम्) उद्धृतवानस्मि (त्वा) त्वाम् (अधरस्याः) नीचायाः पृथिव्याः (उत्तराम्) उत्कृष्टाम् (पृथिवीम्) भूमिम् (अभि) प्रति (तत्र) उत्तरस्यां पृथिव्याम् (आदित्यौ) अ० १।९।१। आदीप्यमानौ (रक्षताम्) पालयताम् (सूर्याचन्द्रमसौ) सूर्यचन्द्रौ यथा (उभा) उभौ ॥
विषय
व्रीहि, पर्वतभूमि व सूर्यचन्द्र का सम्पर्क
पदार्थ
हे कुमार! (ते) = तेरे लिए (ओषधयः) = आहारार्थ उपयुज्यमान व्रीहि आदि ओषधियाँ (शिवा: सन्तु) = कल्याणकर हों। मैं (त्वा) = तुझे (अधरस्या:) = नीची व हीन गुणवाली पृथिवी से (उत्तरां पृथिवीम् अभि) = उत्कृष्ट गुणवाली, ऊँची व स्वच्छ वायु से पूर्ण पर्वतभूमि में (उत् अहार्षम्) = ऊपर ले-आता हूँ। (तत्र) = वहाँ (त्वा) = तुझे (उभा) = दोनों (आदित्यौ) = [अदितेः पुत्रौ] स्वास्थ्य को पवित्र [प] व रक्षित करनेवाले [त्र] (सूर्याचन्द्रमसौ) = सूर्य और चन्द्रमा (रक्षताम्) = रक्षित करें
भावार्थ
नीरोगता व दीर्घजीवन के तीन साधन हैं-[क]व्रीहि [चावल] आदि ओषधियों का सेवन, [ख] ऊँचे स्थल [पर्वत] पर निवास, [ग] सूर्य व चन्द्र के प्रकाश में रहना, खुले में रहना।
भाषार्थ
(ते) तेरे लिये (ओषधयः) ओषधियां (शिवाः सन्तु) कल्याणकारिणी हों, (त्वा) तुझे (अधरस्याः) नीचे की भूमि से (उत्तराम् पृथिवीम् अभि) ऊपर की पृथिवी की ओर (उत् अहार्षम्) मैं उठा लाया हूं। (तत्र) वहां अर्थात् पृथिवी पर (उभौ सूर्याचन्द्रमसौ) दोनों सूर्य और चन्द्रमा (आदित्यौ) जो कि निज प्रकाशों द्वारा प्रदीप्त हैं, (त्वा) तुझे (रक्षन्तु) सुरक्षित करें।
टिप्पणी
[अधर की पृथिवी है, समतल भूमि; और उत्तरा पृथिवी है पर्वतभूमि, पर्वत भूमि स्वास्थ्यप्रद होती है। पर्वत भूमि स्वास्थ्यकरी होती है, चूंकि वहां वायु स्वच्छ होती है, और सूर्य की गर्मी कम होती है, चन्द्रमा भी पृथिवी की अशुद्ध वायु से अमिश्रित हुआ प्रकाश देता है। तथा ताजी और विविध प्रकार की ओषधियां भी सुगमता से प्राप्त हो सकती हैं। आदित्यौ। आदित्यः "आदीप्तो भासा" इति वा (निरुक्त २।४।१३), अर्थात् जो सूर्य और चन्द्रमा दीप्ति द्वारा आदीप्त होते हैं]।
इंग्लिश (4)
Subject
Long Life
Meaning
May the herbs and trees and their gifts of medicine be good and kind to you. You know I have retrieved you from a low state of health to a higher level of life and health on earth. And there may the sun and moon, lights of divinity, protect and promote you.
Translation
May the plants (herbs) be propitious to you. I have raised you up to the higher earth from the lower one. May the two sons of eternity, the sun and the moon, protect you there.
Translation
O man ! let the plants having balm be auspicious for you, I have raised you from the lower earth to the upper earth and let there the sun and moon both full of luster’s protect you.
Translation
Auspicious be the Plants to thee! I have upraised thee from the lower to the upper part of the earth. Let the lustrous Sun and Moon prolong thy life there.
Footnote
Upper part: Mountain. A patient for recovery and men for improvement of health should resort to hills, where the air is purer, and the light of the Sun and Moon pleasanter than in a low-level place. ‘Thee’ refers to a patient.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१५−(शिवाः) सुखकराः (ते) तुभ्यम् (सन्तु) (ओषधयः) व्रीह्यादयः (उत् अहार्षम्) उद्धृतवानस्मि (त्वा) त्वाम् (अधरस्याः) नीचायाः पृथिव्याः (उत्तराम्) उत्कृष्टाम् (पृथिवीम्) भूमिम् (अभि) प्रति (तत्र) उत्तरस्यां पृथिव्याम् (आदित्यौ) अ० १।९।१। आदीप्यमानौ (रक्षताम्) पालयताम् (सूर्याचन्द्रमसौ) सूर्यचन्द्रौ यथा (उभा) उभौ ॥
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