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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 24
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
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    सोरि॑ष्ट॒ न म॑रिष्यसि॒ न म॑रिष्यसि॒ मा बि॑भेः। न वै तत्र॑ म्रियन्ते॒ नो य॑न्ति अध॒मं तमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । अ॒रि॒ष्ट॒ । न । म॒रि॒ष्य॒सि॒ । न । म॒रि॒ष्य॒सि॒ । मा । ब‍ि॒भे॒: । न । वै । तत्र॑ । म्रि॒य॒न्ते॒ । नो इति॑ । य॒न्ति॒ । अ॒ध॒मम् । तम॑: ॥२.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोरिष्ट न मरिष्यसि न मरिष्यसि मा बिभेः। न वै तत्र म्रियन्ते नो यन्ति अधमं तमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । अरिष्ट । न । मरिष्यसि । न । मरिष्यसि । मा । ब‍िभे: । न । वै । तत्र । म्रियन्ते । नो इति । यन्ति । अधमम् । तम: ॥२.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 24
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (अरिष्ट) हे निर्हानि ! (सः) सो तू (न) नहीं (मरिष्यसि) मरेगा, तू (न) नहीं (मरिष्यसि) मरेगा, (मा बिभेः) मत भय कर। (तत्र) वहाँ पर [कोई] (वै) भी (न) नहीं (म्रियन्ते) मरते हैं, (नो) और नहीं (अधमम्) नीचे (तमः) अन्धकार में (यन्ति) जाते हैं ॥२४॥

    भावार्थ

    जहाँ पर मनुष्य ब्रह्म का विचार करते रहते हैं [देखो मन्त्र २५], वहाँ मृत्यु का भय नहीं होता ॥२४॥

    टिप्पणी

    २४−(सः) स त्वम् (अरिष्ट) हे निर्हाने (न) निषेधे (मरिष्यसि) प्राणान् त्यक्ष्यसि (न) (मरिष्यसि) (मा बिभेः) भीतिं मा कुरु (न) (वै) अवश्यम् (तत्र) ब्रह्मणि-मन्त्र २५ (म्रियन्ते) प्राणान् त्यजन्ति (नो) नैव (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (अधमम्) नीचीनम् (तमः) अन्धकारम् ॥

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    विषय

    न मृत्यु, न अधर्म तमः

    पदार्थ

    १. हे (अरिष्ट) = रोगादि से की जानेवाली हिंसा से रहित पुरुष ! (सः) = वह तू (न मरिष्यसि) = मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा, (न मरिष्यसि) = निश्चय ही तु मरने नहीं लगा, इसलिए (मा बिभे:) = डर मत। २. (तत्र) = वहाँ जहाँ कि 'ब्रह्म' को परिधि [रक्षक] बनाया जाता है, (वै) = निश्चय से लोग (न म्रियन्ते) = असमय में मृत्यु का शिकार नहीं होते और (अधमं तमः) = मरणकालीन दु:सह मुर्छा को भी (नो यन्ति) = नहीं प्राप्त होते अथवा मृत्यु के बाद अन्धतमस् से आवृत असुर्य लोकों को प्राप्त नहीं होते।

    भावार्थ

    हम रोगादि से हिंसित न होने पर असमय में मृत्यु का शिकार न होंगे। 'ब्रह्म' को अपनी परिधि बनाने पर न असमय में मरेंगे, न ही अन्धकारमय लोकों को प्राप्त होंगे।

     

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    भाषार्थ

    (सः) वह (अरिष्ट) हे हिंसारहित ! (न मरिष्यसि) तू न मरेगा, (न मरिष्यसि) न मरेगा, (मा बिभेः) तू न भय कर (वै) निश्चय से (तत्र) उस अवस्था में (न म्रियन्ते) नहीं मरते, (नो)(अधमम् तमः) मरणकालीन अधम मूर्छा को (यन्ति) प्राप्त होते हैं ।।२४।।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    You, unviolated, unafraid, will not die, you will not die. Do not fear. There in the state of knowledge, they do not die, nor do they go down to the state of darkness and oblivion.

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    Translation

    Such one, O unharmed, you will not die. You will not die. Do not be afraid. Certainly there they do not die, nor they enter the darkness below.

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    Translation

    You still unharmed would not die, O man! You would not and do not and do not be afraid of it. The persons leading celibacy and enjoying the immortality in God do not die painfully and do not enter the state of darkness and gloom.

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    Translation

    O non-violent immortal soul, thou shalt not die: be not afraid; thou shalt not die. Learned emancipated persons do not die after the attainment of salvation, nor go to the lowest depths of darkness!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २४−(सः) स त्वम् (अरिष्ट) हे निर्हाने (न) निषेधे (मरिष्यसि) प्राणान् त्यक्ष्यसि (न) (मरिष्यसि) (मा बिभेः) भीतिं मा कुरु (न) (वै) अवश्यम् (तत्र) ब्रह्मणि-मन्त्र २५ (म्रियन्ते) प्राणान् त्यजन्ति (नो) नैव (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (अधमम्) नीचीनम् (तमः) अन्धकारम् ॥

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