अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 21
श॒तं ते॒ऽयुतं॑ हाय॒नान्द्वे यु॒गे त्रीणि॑ च॒त्वारि॑ कृण्मः। इ॑न्द्रा॒ग्नी विश्वे॑ दे॒वास्तेऽनु॑ मन्यन्ता॒महृ॑णीयमानाः ॥
स्वर सहित पद पाठश॒तम् । ते॒ । अ॒युत॑म् । हा॒य॒नान् । द्वे इति॑ । यु॒गे इति॑ । त्रीणि॑ । च॒त्वारि॑ । कृ॒ण्म॒: । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । विश्वे॑ । दे॒वा: । ते । अनु॑ । म॒न्य॒न्ता॒म् । अहृ॑णीयमाना: ॥२.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
शतं तेऽयुतं हायनान्द्वे युगे त्रीणि चत्वारि कृण्मः। इन्द्राग्नी विश्वे देवास्तेऽनु मन्यन्तामहृणीयमानाः ॥
स्वर रहित पद पाठशतम् । ते । अयुतम् । हायनान् । द्वे इति । युगे इति । त्रीणि । चत्वारि । कृण्म: । इन्द्राग्नी इति । विश्वे । देवा: । ते । अनु । मन्यन्ताम् । अहृणीयमाना: ॥२.२१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (शतम्) सौ और (अयुतम्) दश सहस्र (हायनान्) वर्षों को [क्रम से] (द्वे युगे) दो युग, (त्रीणि) तीन [युग] और (चत्वारि) चार [युग] (कृण्मः) हम करते हैं। (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि और (ते) वे [प्रसिद्ध] (विश्वे देवाः) सब दिव्य पदार्थ [सूर्य, पृथिवी आदि] (अहृणीयमानाः) संकोच न करते हुए (अनु मन्यन्ताम्) अनुकूल रहें ॥२१॥
भावार्थ
परमेश्वर ने यह सृष्टि और काल चक्र मनुष्य के उपकार के लिये बनाये हैं। विज्ञानी पुरुष परमेश्वर की अपार महिमा में अपना पराक्रम बढ़ाकर नये-नये आविष्कार करके अमर नाम करते हैं ॥२१॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध आ चुका है-अ० १।३५।४ ॥ मन्त्र के पूर्वार्द्ध में सृष्टि का समयक्रम कलियुग, द्वापर, त्रेता और सत्ययुग और वर्षों का अर्थ दैववर्ष जान पड़ता है, सो इस प्रकार है− सन्धिकाल युगकाल १००*१=१०० १०,०००*१=१०,००० १००*२=२०० १०,०००*२=२०,००० १००*३=३०० १०,०००*३=३०,००० १००*४=४०० १०,०००*४=४०,००० योगसन्धि १,००० वर्ष योगयुग १,००,००० योगसन्धि और युग १,०१,००० १-अथर्ववेद काण्ड ८ सूक्त २ मन्त्र २१ के अनुसार युगवर्ष गणना ॥ सूचना−मन्त्र में केवल [सौ, दश सहस्र, वर्षे, दो युग, तीन और चार] पद हैं, कलि आदि पदों की कल्पना की गयी है। एक दैववर्ष में ३६० [तीन सौ साठ] मानुष वा सौर वर्ष होते हैं ॥ सन्धि कलि द्वापर त्रेता कृतयुग चतुर्युगी और दैव वर्ष मानुष दैव वर्ष मानुष दैव वर्ष मानुष दैव वर्ष मानुष दैव वर्ष मानुष युग वा सौर वर्ष वा सौर वर्ष वा सौर वर्ष वा सौर वर्ष वा सौर वर्षसन्धि १०,००० ३६,००० युग १००३६,००,००० २००२०,००० ७२,०००७२,००,००० ३००३०,००० १,०८,०००१,०८,००० ४००४०,००० १,४४,०००१,४४,००,००० १,०००१,००,००० ३,६०,०००३,६०,००,०००योग १०,१०० ३६,३६,००० २०,२०० ७२,७२,००० ३०,३०० १,०९,०८,००० ४०,४०० १,४५,४४,००० १,०१,००० ३,६३,६०,०००२-मनु अध्याय १ श्लोक ६९-७० और सूर्य सिद्धान्त अध्याय १ श्लोक १५-१७ के अनुसार युग वर्ष गणना ॥सन्धिऔर युग कृतयुग श्रेतायुग द्वापरयुग कलियुग चतुर्युगी दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्ष दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्ष दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्ष दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्ष दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्षसन्ध्या वर्षयुग वर्षसंध्यांशवर्ष ४००4000४०० १,४४,०००१४,४०,०००१,४४,०००3003000३०० १,०८,०००१०,८०,०००१,०८,००० २००2000२०० ७२,०००७,२०,०००७२,००० १००1000१०० ३६,०००३,६०,०००३६,००० १०००10000१,००० ३,६०,०००३६,००,०००३,६०,०००योग ४,८०० १७,२८,००० ३,६०० १२,९६,००० २,४०० ८,६४,००० १,२०० ४,३२,००० १२,००० ४३,२०,०००[आगे मनु श्लोक ७१, ७२ के अनुसार बारह सहस्र चतुर्युगी का एक दैव युग और एक सहस्र दैव युग का ब्रह्मा का एक दिन, और इतनी ही रात्री। अर्थात् १२,००० दैव वर्ष*१००० युग*३६० मानुष वर्ष= ४,३२,००,००,०० [चार अरब बत्तीस करोड़] मानुष वर्ष का एक दिन और इतनी वर्षों की ब्रह्मा की रात्री है, परन्तु मन्त्र का संबन्ध इससे नहीं है] ॥
टिप्पणी
२१−(शतम्) कलिसन्धेः शतदैववर्षाणि (ते) तुभ्यम् (अयुतम्) कलियुगस्य दशसहस्रदैववर्षाणि (हायनान्) अ० ३।१०।९। संवत्सरान् (द्वे युगे) द्विगुणितं शतं चायुतं च द्वापरस्य सन्धियुगयोर्दैववर्षाणि (त्रीणि) त्रिगुणितं शतं चायुतं च त्रेतायुगस्य सन्धियुगयोर्दैववर्षाणि (चत्वारि) चतुर्गुणितं शतं चायुतं च कृतयुगस्य सन्धियुगयोर्दैववर्षाणि (कृण्मः) कुर्मः। अन्यद् यथा-अ० १।३५।४। (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नी (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणाः पदार्थाः (ते) प्रसिद्धाः (अनुमन्यन्ताम्) अनुकूला भवन्तु (अहृणीयमानाः) असंकुचन्तः ॥
विषय
शतं, अयुतं, द्वे युगे [कृण्मः ]
पदार्थ
१. हे युवक! (ते शतं हायनान् कृण्म:) = तेरे जीवन को सौ वर्षों का बनाते हैं। इन वर्षों को (अ-युतं) [कृण्मः ] = अपृथक् रूप से करते हैं, अर्थात् तुम इन वर्षों में परस्पर एक-दूसरे से पृथक् न होओ। इसप्रकार पति-पत्नी का एक युग [जोड़ा] बनता है। अब सन्तानों के होने पर (द्वे युगे) = लड़की-लड़के का दूसरा युग होता है। हम तेरे इस दूसरे युग को करते हैं। इसीप्रकार (त्रीणि) = तीन (वचत्वारि) = चार युगों को करते हैं। पुत्र-पौत्रादि के द्वारा अनेक युगलों को करते हैं। २. (इन्द्राग्नी) = इन्द्र और अग्नि तथा (विश्वेदेवा:) = सब देव (अहृणीयमानाः) = किसी प्रकार का क्रोध न करते हुए (अनुमन्यन्ताम्) = तेरे दीर्घजीवन, पत्नी से अवियुक्त जीवन तथा सन्तान-युगलों से सम्पन्न जीवन को अनुमत करें, अर्थात् तू 'इन्द्र'-जितेन्द्रिय बनता हुआ, "अग्नि'-आगे बढ़ने की भावनावाला होता हुआ तथा (विश्वेदेवा:) = सब दिव्य गुणोंवाला होता हुआ इस दीर्घ व सन्तति-समृद्ध जीवनवाला बन।
भावार्थ
प्रभु कहते हैं कि हम तेरे लिए 'सौ वर्ष का साथी से अवियुक्त, सन्तति से सम्पन्न जीवन देते हैं। तू जितेन्द्रिय, प्रगति की भावनावाला व दिव्यगुण सम्पन्न' बनकर उल्लिखित जीवन को प्राप्त कर।
भाषार्थ
हे ब्रह्मचारिन् ! (ते) तेरे लिये (शतम्, हायनान्) सौ वर्ष (कृण्मः) हम निश्चित करते हैं। और (अयुतम्) दस हजार [१०,०००] वर्षों की संख्या (१) के स्थान में पूर्व पूर्व के क्रम में ४३२ रखकर ४३२००० कलियुग की संख्या का निर्माण करते हैं। (द्वे युगे) कलियुग की संख्या को द्विगुणित करके द्वापर की संख्या ८६४००० करते हैं। (त्रीणि युगानि) कलियुग की संख्या को त्रिगुणित करके त्रेता की संख्या १२९६००० करते हैं। (चत्वारि युगानि) कलियुग की संख्या को चार गुणा करके सतयुग की संख्या १७२८००० करते हैं। इस प्रकार चतुर्युगी की संख्या ४३२,०००० वर्ष करते हैं। (इन्द्राग्नी) इन्द्र अर्थात् राजा और अग्नि अर्थात् अग्रणी प्रधानमन्त्री तथा (विश्वे देवाः) तथा राष्ट्र के सब विद्वान् (ते) तेरे परिज्ञान के लिये (अहृणीयमानाः) क्रोध किये विना (अनुमन्यताम्) युगशिक्षा को अनुकूल मान लें अर्थात् इसे स्वीकृत कर लें।
टिप्पणी
[अहृणीयमानाः, "हृणीयते क्रुध्यतिकर्मा" (निघं० २।१२), तथा "हृणीङ् रोषणे लज्जायाञ्च" (कण्ड्वादिः)। लज्जा= संकोच। ब्रह्मचारी को युगों की संख्यानिर्माण की शिक्षा दी गई है। मन्त्र में एक चतुर्युगी के काल का कथन किया है, जिसका कि परिज्ञान ब्रह्मचारी अर्थात् विद्यार्थी को करा देना चाहिये। जैसे विद्यार्थी को दिनांक, मास तथा संवत् या सन् का परिज्ञान वर्तमान में कराया जाता है, वैसे वैदिक विद्यार्थी को, एक चतुर्युगी के काल के परिज्ञान का कथन मन्त्र में हुआ है]। मन्त्र में युग शब्द युगार्थक है इसमें निम्नलिखित मन्त्र प्रमाण है। यथा - या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा। मनै नु वभ्रूणामह" शतं धामानि सप्त च ॥ यजु० १२।७५।। (याः) जो (ओषधीः) ओषधियाँ (पूर्वाः जाताः) प्रथम पैदा हुई हैं, (देवेभ्यः) देवों की अपेक्षया (त्रियुगम्, पुरा) तीन युग पहिले अर्थात् पुराकाल में उन (बभ्रूणाम्) भरण-पोषण करने वाली ओषधियों के (शत धामानि, सप्त च) सौ और सात धामों को (अहम्) मैं (नु) निश्चय से (मनै) जानता हूं। [इस मन्त्र में, देवों से तीन युग पुराकाल में उत्पन्न ओषधियों का कथन हुआ है। इसमें पुरातत्त्वविद्या का निर्देश हुआ है। सम्भवतः प्रथम ओषधियों के पुराकाल, तदनन्तर जलीय जन्तुओं के पुराकाल, तदनन्तर पृथिवी वासी जन्तुओं के पुराकाल का निर्देश मन्त्र में हुआ है। तत्पश्चात् देव अर्थात् मनुष्य देवों की उत्पत्ति निर्दिष्ट की है। ये तीन युग हैं कृतयुग [सत्ययुग], त्रेत्रा तथा द्वापरयुग। मनुष्य युग है कलियुग। यजुर्वेद में "तेवेभ्यः", तथा व्याख्येय मन्त्र में "विश्वेदेवाः" का कथन हुआ है। दोनों पदों में “देव" पद का एक ही अभिप्राय है]। "चतुर्युगी" का वर्णन भूमिसम्बन्धी पुरावृत्त के ज्ञान के लिये है। भूमि के पुरातत्त्व के सम्बन्ध में देखो (अथर्व० ११।८।७; १२।१।८,६०)।
इंग्लिश (4)
Subject
Long Life
Meaning
O man, for you we fix a hundred years, and ten thousand years, and, further, ten thousand multiplied by two, three and four, years of age. May Indra and Agni and all Vishvedevas, divinities of nature and humanity, without hesitation and reservation be favourable and support you. (This is a metaphorical and highly mystical mantra which describes the age of the individual person and the age of humanity on earth. The age of the individual is one hundred years, while the age of humanity in each creation cycle is four billion and three hundred and twenty million years.) Satavalekara explains the mantra in a simple manner: We fix a hundred year uninterrupted age for you. There are two yugas, sandhi transitions of morning and evening of the day, three seasons of winter, summer and rains, and four periods of life, Brahmacharya upto 25 years, grhastha upto 50 years, vanaprastha upto 75 years, and sanyasa upto 100 years. The mystical interpretation of the mantra is that the age of humanity is 4,32,00,00,000 (four billion and three hundred and twenty million) years divided over one thousand four-yuga divisions of 43,20000 years each (which is ‘niyuta’, 10,000, multiplied by 432): Kaliyuga 4,32,000 years Dvapara yuga 8,64,000 years Treta yuga 12,96,000 years Satyuga Total 17,28,000 years 43,20,000 years For further details, reference may be made to Kshema-karana Dasa Trivedi’s comment on this mantra in his translation of Atharva-Veda published by Sarvadeshika Arya Pratinidhi Sabha, Delhi.
Translation
We make your hundred years of life-span ten thousand years extending over two, three, four ages. May the Lord resplendent and adorable, and all the bounties of nature approve it for you ungrudgingly.
Translation
O man! for your mathematical operations, I, the Almighty Divinity make the hundred years as ten lacs (by the method of multiplication) and then place the numbers 4, 3 and 2 before as digits having their value beyond the ten lac dignitary zeros. Let the all-pervading electricity, heat, and all other physical forces without any injury be convenient and comfortable for you. [N.B.: This verse under number 21 is very mysterious one. If the mystery is exploded through sharp penetration it would yield the total age of the universe. Let it be dealt with mathematically. One should first start from one hundred to ten lac—100 X 10000=1000000. By putting the zeros of the value of ten lacs one should place before the numbers 4, 3, 2 and thus calculation will result into the sum of which may be available as under; 4320000000. In this way this is the total age of the universe and all the physical forces working out their operations continue to work so till this period.]
Translation
O man, thine is the age of a hundred years, with two intervals of day and night and three seasons of summer, winter and rains, and four stages of childhood, youth, middle age, and old age. We render your age unbroken, and complete. May the King, Commander-in-chief and all the learned persons willingly admire you for this age!
Footnote
This verse has been translated by some scholars as denoting the time for which the universe lasts, which is called the Brahma Day, and the period for which Matter in its nascent, atomic stage lasts after dissolution, before the world is re-created. This period is termed the Brahma Night. Multiply (शत) by 10,000 (अयुत) and put 2, 3, 4 respectively to the left, we get 4,320000000 years which is the age of the world.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२१−(शतम्) कलिसन्धेः शतदैववर्षाणि (ते) तुभ्यम् (अयुतम्) कलियुगस्य दशसहस्रदैववर्षाणि (हायनान्) अ० ३।१०।९। संवत्सरान् (द्वे युगे) द्विगुणितं शतं चायुतं च द्वापरस्य सन्धियुगयोर्दैववर्षाणि (त्रीणि) त्रिगुणितं शतं चायुतं च त्रेतायुगस्य सन्धियुगयोर्दैववर्षाणि (चत्वारि) चतुर्गुणितं शतं चायुतं च कृतयुगस्य सन्धियुगयोर्दैववर्षाणि (कृण्मः) कुर्मः। अन्यद् यथा-अ० १।३५।४। (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नी (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणाः पदार्थाः (ते) प्रसिद्धाः (अनुमन्यन्ताम्) अनुकूला भवन्तु (अहृणीयमानाः) असंकुचन्तः ॥
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