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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 7
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
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    अधि॑ ब्रूहि॒ मा र॑भथाः सृ॒जेमं तवै॒व सन्त्सर्व॑हाया इ॒हास्तु॑। भवा॑शर्वौ मृ॒डतं॒ शर्म॑ यच्छतमप॒सिध्य॑ दुरि॒तं ध॑त्त॒मायुः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अधि॑ । ब्रू॒हि॒ । मा । आ । र॒भ॒था॒: । सृ॒ज । इ॒मम् । तव॑ । ए॒व । सन् । सर्व॑ऽहाया: । इ॒ह । अ॒स्तु॒ । भवा॑शर्वौ । मृ॒डत॑म् । शर्म॑ । य॒च्छ॒त॒म् । अ॒प॒ऽसिध्य॑ । दु॒:ऽइ॒तम् । ध॒त्त॒म् । आयु॑: ॥२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधि ब्रूहि मा रभथाः सृजेमं तवैव सन्त्सर्वहाया इहास्तु। भवाशर्वौ मृडतं शर्म यच्छतमपसिध्य दुरितं धत्तमायुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अधि । ब्रूहि । मा । आ । रभथा: । सृज । इमम् । तव । एव । सन् । सर्वऽहाया: । इह । अस्तु । भवाशर्वौ । मृडतम् । शर्म । यच्छतम् । अपऽसिध्य । दु:ऽइतम् । धत्तम् । आयु: ॥२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मृत्यु-म० ८] (अधि ब्रूहि) ढाढ़स दे, (मा आ रभथाः) मत पकड़, (इमम्) इस [पुरुष] को (सृज) छोड़, यह (तव एव सन्) तेरा ही होकर (सर्वहायाः) सब गतिवाला (इह) यहाँ (अस्तु) रहे। (भवाशर्वौ) भव, [सुख देनेवाले प्राण] और शर्व [क्लेश वा मल नाश करनेवाले अपान वायु] तुम दोनों (मृडतम्) प्रसन्न हो, (शर्म) सुख (यच्छतम्) दान करो और (दुरितम्) दुर्गति (अपसिध्य) हटा कर (आयुः) जीवन (धत्तम्) पुष्ट करो ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्य मृत्यु अर्थात् विपत्ति को सम्पत्ति का कारण समझकर पूर्ण साहसी होकर आत्मिक और शारीरिक बल से विघ्न हटाकर कीर्तिमान् होवें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(अधि ब्रूहि) अनुग्रहेण वद (मा आ रभथाः) मा गृहाण (सृज) त्यज (इमम्) जीवम् (तव) (एव) (सन्) (सर्वहायाः) वहिहाधाञ्भ्यश्छन्दसि। उ० ४।२२१। ओहाङ् गतौ-असुन्, युगागमः। सर्वगतिः (इह) अस्मिन् संसारे (अस्तु) (भवाशर्वौ) अ० ४।२८।१। सुखस्य भावयिता कर्ता भवः प्राणः, दुःखस्य शरिता नाशकः शर्वोऽपानवायुश्च तौ (मृडतम्) सुखिनौ भवतम् (शर्म) सुखम् (यच्छतम्) दत्तम् (अपसिध्य) निराकृत्य (दुरितम्) दुर्गतिम् (धत्तम्) पोषयतम् (आयुः) जीवनम् ॥

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    विषय

    भवाशर्वौ

    पदार्थ

    १. उत्तर मन्त्र का 'मृत्यो' यह सम्बोधन यहाँ भी सम्बद्ध होता है। हे मृत्यो! (अधिब्रूहि) = तू इसके लिए आधिक्येन उपदेश देनेवाला हो। तेरा स्मरण इसे उत्तम प्रेरणा प्राप्त कराए। (मा रभथा:) = तू इसका आलिङ्गन मत कर [रभ् to clasp, embrace] (सृज इमम्) = इसे तू छोड़ ही दे अथवा तू इसका उत्तम निर्माण कर । (तव एव सन्) = तेरा ही होता हुआ यह-सदा तेरा चिन्तन [न कि चिन्ता] करता हुआ यह (इह) = यहाँ-इस जीवन में (सर्वहाया: अस्तु) = [ओहाङ्गती] पूर्ण वर्षों तक चलनेवाला हो। यह शतवर्ष के जीवनवाला हो। २. (भवाशर्वौ) = भव और शर्व उत्पत्ति तथा प्रलय के देव-दोनों ही (मृडतम्) = इसपर अनुग्रह करें। यह उत्पत्ति और मृत्यु का विचार करता हुआ जीवन में मार्ग से न भटके और इसप्रकार सुखी जीवनवाला हो। (शर्म यच्छतम्) = ये भव और शर्व इसे सुख दें और (दुरितम्) = दुराचरण को (अपसिध्य) = दूर करके (आयु: धत्तम्) = इसे दीर्घजीवन प्रास कराएँ।

    भावार्थ

    मृत्यु का चिन्तन हमें सत् प्रेरणा देनेवाला हो। इसप्रकार हम सन्मार्ग पर चलते हुए असमय में ही मृत्यु का शिकार न हो जाएँ। उत्पत्ति और प्रलय का चिन्तन हमें दुरितों से दूर करके सन्मार्ग में प्रेरित करे और पूर्ण दीर्घजीवन प्राप्त कराए।

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    भाषार्थ

    (अधिब्रूहि) हे परमेश्वर ! अधिकार पूर्वक इसे तू "अपना" कह, (मा आरभयाः = लभस्व) इसे [रोग में] पकड़ न रख (इमम्) इसका (सृज) सर्जन कर, नवजीवन सर्जन कर, (तव एव सन्) तेरा ही हुआ (सर्वहायाः) सब प्रकार की गतियों वाला होकर (इह) इस पृथिवी या आश्रम में (अस्तु) रहे। (भवाशवं) हे नवोत्पत्ति करने वाले ! तथा रोगों का विनाश करने वाले ! (मृडतम्) तुम्हारे दोनों रूप इसे सुखी करें, और (शर्म यच्छतम्) आश्रय प्रदान करें, (दुरितम्) बुरे परिणाम [रोग] कों (अपसिध्य) हटाकर (आयुःधत्तम्) आयु प्रदान करें।

    टिप्पणी

    [आचार्य प्रत्यक्षीकृत परमेश्वर से माणवक के स्वास्थ्य के लिये प्रार्थना करता है। गुणभेद से परमेश्वर के दो नाम हैं भव और शर्व। सर्वहायाः= सर्व + हाङ् (गतौ) + असुन् । असुनि णिद्वद् भावात् युक् (सायण) शर्म गृहनाम (निघं० ३।४)। गृह= आश्रय]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    O lord of life and death, pray speak the word of life, ensnare him not, revive and recreate him. He, being your own, devoted and prayerful, let him be here and live with full vigour and movement. O lord of life, destroyer of disease, be kind and gracious, give peace and health, avert the danger, give him life and good health.

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    Translation

    (O death), comfort (this man); do not seize; leave this man. Being devoted to you alone, may he remain here all his life-time. O Lord of creation and the Lord of destruction, may you, grant him happiness; give him shelter, driving away the distress grant him a full lifespan.

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    Translation

    Let this death make him to speak, let it not take him away. let it leave him to stay here, through this men is the subject of it yet let this man live here in all his vigor, let the Bhava and Sharva, the two fires give this man pleasure and protection and driving away troubles gibe full life.

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    Translation

    O God, the Dissolver of the universe tell this soul how to live long. Harm it not, let it develop. Let this person, being thine, live in this world for full hundred years. O Creation and Dissolution lend joy to this soul, give it full life and drive away misfortunes!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(अधि ब्रूहि) अनुग्रहेण वद (मा आ रभथाः) मा गृहाण (सृज) त्यज (इमम्) जीवम् (तव) (एव) (सन्) (सर्वहायाः) वहिहाधाञ्भ्यश्छन्दसि। उ० ४।२२१। ओहाङ् गतौ-असुन्, युगागमः। सर्वगतिः (इह) अस्मिन् संसारे (अस्तु) (भवाशर्वौ) अ० ४।२८।१। सुखस्य भावयिता कर्ता भवः प्राणः, दुःखस्य शरिता नाशकः शर्वोऽपानवायुश्च तौ (मृडतम्) सुखिनौ भवतम् (शर्म) सुखम् (यच्छतम्) दत्तम् (अपसिध्य) निराकृत्य (दुरितम्) दुर्गतिम् (धत्तम्) पोषयतम् (आयुः) जीवनम् ॥

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