ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 11
तू॒तु॒जा॒नो म॑हेम॒तेऽश्वे॑भिः प्रुषि॒तप्सु॑भिः । आ या॑हि य॒ज्ञमा॒शुभि॒: शमिद्धि ते॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतू॒तु॒जा॒नः । म॒हे॒ऽम॒ते । अश्वे॑भिः । प्रु॒षि॒तप्सु॑ऽभिः । आ । या॒हि॒ । य॒ज्ञम् । आ॒शुऽभिः॑ । शम् । इत् । हि । ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तूतुजानो महेमतेऽश्वेभिः प्रुषितप्सुभिः । आ याहि यज्ञमाशुभि: शमिद्धि ते ॥
स्वर रहित पद पाठतूतुजानः । महेऽमते । अश्वेभिः । प्रुषितप्सुऽभिः । आ । याहि । यज्ञम् । आशुऽभिः । शम् । इत् । हि । ते ॥ ८.१३.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(महेमते) हे महाफलाय कृतबुद्धे ! (तूतुजानः) त्वरमाणः (प्रुषितप्सुभिः) कामप्रदरूपैः (आशुभिः) द्रुतगमनैः (अश्वेभिः) शक्तिरूपाश्वैः (यज्ञम्, आयाहि) यज्ञं प्रत्यागच्छ (हि) यतः (ते) तवागमने (शम्, इत्) सुखमेव ॥११॥
विषयः
अथ प्रार्थनां करोति ।
पदार्थः
हे महेमते ! महे=महते फलाय मतिर्यस्यासौ महेमतिः “अलुक्छान्दसः” स तादृश हे इन्द्र । प्रुषितप्सुभिः=स्निग्धरूपैः । आशुभिः=शीघ्रगामिभिः । अश्वेभिः=संसारस्थैः पदार्थैः सह । तूतुजानः=विद्यमानोऽसि तथापि अस्माकं यज्ञम् । आयाहि=आगच्छ । हि यतस्ते गमनम् । शमित्= कल्याणकरमेवास्ति ॥११ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(महेमते) हे महाफलोत्पादक बुद्धिवाले ! (तूतुजानः) शीघ्रता करते हुए आप (प्रुषितप्सुभिः) स्निग्ध=कामप्रदरूपवाली (आशुभिः) शीघ्रगामी (अश्वेभिः) शक्तियों द्वारा (यज्ञम्, आयाहि) यज्ञ के प्रति आइये (हि) क्योंकि (ते) आपके आने में (शमित्) सुख ही सुख है ॥११॥
भावार्थ
इस मन्त्र में अलंकार द्वारा परमात्मा को संबोधित करते हुए याज्ञिक पुरुषों का कथन है कि हे शुभफलों के दाता परमात्मन् ! आप हमारे यज्ञ को प्राप्त होकर अर्थात् अपनी शक्ति द्वारा हमारे यज्ञ को पूर्ण करें, जिससे हम सुख अनुभव करते हुए आपकी उपासना में प्रवृत्त रहें ॥११॥
विषय
इस मन्त्र से प्रार्थना करते हैं ।
पदार्थ
(महेमते) हे महाफलदाता हे महामति परमविज्ञानी परमात्मन् ! यद्यपि तू (प्रुषितप्सुभिः) स्निग्धरूप (आशुभिः) शीघ्रगामी (अश्वेभिः) संसारस्थ पदार्थों के साथ (तूतुजानः) विद्यमान है ही, तथापि (यज्ञम्) हमारे यज्ञ में (आयाहि) प्रत्यक्षरूप से आ । (हि) क्योंकि (ते) तेरा आगमन (शम्+इत्) कल्याणकारक होता है । तेरे आने से ही यज्ञ की सफलता हो सकती है ॥११ ॥
भावार्थ
यज्ञादि शुभकर्मों में वही ईश पूज्य है, अन्य देव नहीं । उसी का पूजन कल्याणकर होता है ॥११ ॥
विषय
पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।
भावार्थ
जिस प्रकार ( तूतुजानः ) शत्रु का नाश करने वाला सेनापति ( प्रुषित-प्सुभिः ) स्रिग्ध रूप या परिपक्व रूप वाले, सुदृढ़ शरीरवान् ( आशुभिः अश्वेभिः यज्ञम् आयाति ) अश्वारोहियों से संगति करता है उसी प्रकार हे ( महेमते ) बड़े भारी राष्ट्र को सञ्चालन करने वा बड़ा फल प्राप्त करने के लिये बड़ी भारी मति, बुद्धि ज्ञान वा संकल्प वाले ! तू ( तूतुजानः ) विश्व का पालन करता हुआ ( प्रुषित-प्सुभिः ) अग्नि, सूर्यादि से प्रुषित, परिपक्व वा घृतादि से सेचित अन्न का भोजन करने वाले अथवा ( प्रुषित-प्सुभिः ) स्निग्ध, परितप्त या तपस्वी देह वाले ( आशुभिः ) शीघ्रगामी, तीव्रबुद्धि, कर्मकुशल ( अश्वेभिः ) दृढ़, विद्वान् पुरुषों और अंगों द्वारा तू ( यज्ञम् ) उपास्य प्रभु और यज्ञ आदि शुभ कर्म को प्राप्त हो । हे विद्वान् पुरुष ! ( ते ) तुझे इस प्रकार ( शम् इत् हि ) अवश्य शान्ति प्राप्त होगी । ( २ ) इसी प्रकार परमेश्वर भी हमारे यज्ञ अर्थात् आत्मा को तेजोयुक्त, सूर्यादि पदार्थों सहित हमें प्राप्त हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
'सशक्त कार्यकारिणी' इन्द्रियाँ
पदार्थ
[१] हे (महेमते) = [महते फलाय मतिर्यस्य] महान् फल के लिये बुद्धिवाले प्रभो ! अर्थात् महान् मोक्षरूप फल को प्राप्त कराने के लिये बुद्धि को देनेवाले प्रभो ! (तूतुजान:) = हमारे शत्रुओं का संहार करते हुए आप उन (अश्वेभिः) = इन्द्रियाश्वों के साथ (यज्ञं आयाहि) = हमारे जीवनयज्ञ में प्राप्त होइये, जो (प्रुषितप्सुभिः) = शक्ति से सिक्त रूपवाले, स्निग्धरूपवाले हैं व (आशुभिः) = शीघ्रता से अपने कर्मों का व्यापन करनेवाले हैं। [२] (ते) = तेरे इस उपासक के लिये (इत् हि) = निश्चय से (शाम्) = शान्ति प्राप्त हो। वस्तुतः जीवन में शान्ति तभी प्राप्त होती है जब कि इन्द्रियाँ उत्तम हों । 'सुख' का शब्दार्थ इन्द्रियों का उत्तम होना [सु] ही तो है। प्रभु कृपा से हमें वे इन्द्रियाँ प्राप्त हों जो सुरक्षित सोम के द्वारा शक्ति के सेचनवाली हों, तथा अपने कार्यों में शीघ्रता से व्याप्त होनेवाली हों।
भावार्थ
भावार्थ-वे बुद्धि को देनेवाले प्रभु हमारे लिये सशक्त कर्मों में व्याप्त होनेवाली इन्द्रियों को दें, जिससे कि हमारा जीवन निरुपद्रव व शान्तिवाला हो ।
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord instant mover and omnipresent, mighty wise, pray come to our yajna by the fastest radiations of light draped in beauty and majesty. Peace be with all celebrants, that’s your gift only.
मराठी (1)
भावार्थ
यज्ञ इत्यादी शुभ कर्मात तोच ईश पूज्य आहे. दुसरा देव नाही. त्याचे पूजन कल्याणकारक असते. ॥११॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal