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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 14
    ऋषिः - नारदः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    आ तू ग॑हि॒ प्र तु द्र॑व॒ मत्स्वा॑ सु॒तस्य॒ गोम॑तः । तन्तुं॑ तनुष्व पू॒र्व्यं यथा॑ वि॒दे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । तु । ग॒हि॒ । प्र । तु । द्र॒व॒ । मत्स्व॑ । सु॒तस्य॑ । गोऽम॑तः । तन्तु॑म् । त॒नु॒ष्व॒ । पू॒र्व्यम् । यथा॑ । वि॒दे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ तू गहि प्र तु द्रव मत्स्वा सुतस्य गोमतः । तन्तुं तनुष्व पूर्व्यं यथा विदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । तु । गहि । प्र । तु । द्रव । मत्स्व । सुतस्य । गोऽमतः । तन्तुम् । तनुष्व । पूर्व्यम् । यथा । विदे ॥ ८.१३.१४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 14
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! (तु) क्षिप्रम् (आगहि) आयाहि (तु) क्षिप्रम् (प्रद्रव) प्ररक्ष (सुतस्य, गोमतः, मत्स्व) संस्कृतं वाग्मिनं हर्षय (पूर्व्यम्) परम्परागतम् (तन्तुम्) सन्तानं (तनुष्व) वर्धय (यथा, विदे) यथाहमुपलभे ॥१४॥

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    विषयः

    प्रार्थना विधीयते ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! त्वं तु=क्षिप्रम् । आगहि=आगच्छ आगत्य च । अस्माकमुपरि । तु=शीघ्रम् । प्र द्रव=प्रकर्षेण द्रवीभूतो भव । दयादृष्टिं कुरु । अपि । गोमतः=वेदवाणीयुक्तस्य । सुतस्य=यज्ञस्य । मत्स्व=मोदय=आनन्दय । हे इन्द्र ! पूर्व्यम्=पूर्वैः कृतम् । तन्तुम्=सन्तानादिरूपं सूत्रम् । तनुष्व=विस्तारय । यथा=येन प्रकारेण । तं तन्तुमहं विदे=उपलभे ॥१४ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (तु) शीघ्र (आगहि) आइये (तु) शीघ्र ही (प्रद्रव) सुरक्षित करिये (सुतस्य, गोमतः, मत्स्व) संस्कारशुद्ध प्रशस्तवाक् विद्वान् को हर्षित करिये (पूर्व्यम्) अनादि (तन्तुम्) परम्परागत सन्तान को (तनुष्व) बढ़ाइये (यथा, विदे) जिस प्रकार हम लोग आपको जानते रहें ॥१४॥

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! आप कृपा करके संस्कारी तथा प्रशस्त वाक्=बोलने में चतुर विद्वान् पुरुषों को ऐश्वर्य्यसम्पन्न करें और उन्हें पुत्र-पौत्रादि सन्तान से भी वृद्धि को प्राप्त करें, ताकि वह परम्परागत आपको प्रजाजनों पर प्रकाशित करते रहें ॥१४॥

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    विषय

    इससे प्रार्थना करते हैं ।

    पदार्थ

    हे इन्द्र (तू) शीघ्र (आगहि) हमारे शुभकर्मों में प्रकट हो । और (तु) शीघ्र (प्र+द्रव) हम भक्तजनों पर कृपादृष्टि कर और तू (गोमतः) वेदवाणीयुक्त (सुतस्य) यज्ञ को (मत्स्व) आनन्दित कर और (पूर्व्यम्) पूर्व पुरुषों से आचरित (तन्तुम्) सन्तानादि सूत्र को (तनुष्व) विस्तारित कर (यथा) जिससे मैं उस तन्तु को (विदे) प्राप्त कर सकूँ ॥१४ ॥

    भावार्थ

    हे ईश ! तू हमको देख । अच्छे मार्ग में ले चल । यश को बढ़ा । पूर्ववत् पुत्रादिकों को बढ़ा ॥१४ ॥

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    विषय

    पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।

    भावार्थ

    हे प्रभो ! हे आत्मन् ! तू ( आ गहि तु ) आ, प्राप्त हो, ( प्र द्रव तु ) खूब दयापूर्ण होकर मेघवत् आनन्द-रस का वर्षण कर, ( गोमतः सुतस्य ) इन्द्रियों से युक्त उत्पन्न जीव को ( मत्स्व ) आनन्दित कर । ( पूर्व्यं ) पूर्व से विद्यमान ( तन्तुं ) सूत्रवत् अविच्छिन्न सृष्टि को ( तनुष्व ) विस्तृत कर ( यथा ) जिससे मैं जीव भी ( विदे ) ज्ञान प्राप्त करूं । ( २ ) अथवा—हे जीव ! तू आगे आ, आगे बढ़, भूमि से युक्त उत्पन्न ओषधि आदि से तृप्त हो । पूर्व परम्परा से चले आये तन्तु रूप प्रजा सन्तति का विस्तार कर । ( यथा विदे) जिससे तू आनन्द लाभ करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'पूर्व्य तन्तु' का तनन

    पदार्थ

    [१] प्रभु जीव से कहते हैं कि तू (आगहि तु) = आ तो, अर्थात् प्रभु की ओर चलनेवाला बन। प्र द्रव और शीघ्रता से अपने कर्त्तव्य कर्मों को करनेवाला हो। (गोमतः) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाले, इन्द्रियों के प्रशस्त बनानेवाले (सुतस्य) = उत्पन्न हुए हुए सोम का (मत्स्वा) = तू आनन्द ले। इस सोम के रक्षण के द्वारा जीवन में उल्लासवाला बन। [२] (पूर्व्यम्) = सृष्टि के प्रारम्भ में ही दिये गये (तन्तुं तनुष्व) = यज्ञ तन्तु का विस्तार करनेवाला बन। इसलिए तू इस यज्ञ तन्तु का विस्तार कर कि (यथा विदे) = ठीक यथार्थ वस्तुओं का तू ग्रहण कर सके।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु की ओर चलें । कर्त्तव्य कर्मों को स्फूर्ति के साथ करनेवाले हों। सोमरक्षण द्वारा इन्द्रियों को प्रशस्त बनायें। यज्ञशील हों।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Come lord instantly, take us on at the yajna, be kind and gracious, let the flames of fire rise with the joyous music of Vedic hymns and oblations of the gifts of earth. Extend the eternal link of life so that we join you, we join the cosmic yajna, and we join with the life link of our fore-fathers and mother earth, so that we may know that link and live it too with our future generations.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे ईश! तू आम्हाला पाहा. चांगल्या मार्गाने घेऊन जा. यज्ञाची वृद्धी कर. पूर्वीप्रमाणे पुत्रांची वृद्धी कर. ॥१४॥

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