Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 13 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 25
    ऋषिः - नारदः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    वर्ध॑स्वा॒ सु पु॑रुष्टुत॒ ऋषि॑ष्टुताभिरू॒तिभि॑: । धु॒क्षस्व॑ पि॒प्युषी॒मिष॒मवा॑ च नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वर्ध॑स्व । सु । पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒ । ऋषि॑ऽस्तुताभिः । ऊ॒तिऽभिः॑ । धु॒क्षस्व॑ । पि॒प्युषी॑म् । इष॑म् । अव॑ । च॒ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वर्धस्वा सु पुरुष्टुत ऋषिष्टुताभिरूतिभि: । धुक्षस्व पिप्युषीमिषमवा च नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वर्धस्व । सु । पुरुऽस्तुत । ऋषिऽस्तुताभिः । ऊतिऽभिः । धुक्षस्व । पिप्युषीम् । इषम् । अव । च । नः ॥ ८.१३.२५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 25
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (पुरुष्टुत) हे बहुभिः स्तुत ! (ऋषिष्टुताभिः, ऊतिभिः) ऋषिभिः प्रार्थिताभिः रक्षाभिः (सुवर्धस्व) सुष्ठु वर्धयस्व (पिप्युषीम्, इषम्) तर्पयित्रन्नम् (धुक्षस्व) वर्धयस्व (नः) अस्मानेवम् (अव, च) रक्ष च ॥२५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषयः

    इन्द्रस्य प्रार्थनां करोति ।

    पदार्थः

    हे पुरुष्टुत=बहुस्तुत इन्द्र ! त्वम् । ऋषिष्टुताभिः= ऋषिभिस्तत्त्वदर्शिभिः । स्तुताभिः=प्रचालिताभिश्च । ऊतिभिः= रक्षाभिः=सहायताभिः सह । यद्वा । ऋषिप्रदर्शिताभिः स्तुतिभिः प्रसन्नः सन् । सु=शोभनम् । वर्धस्व=अस्मान् वर्धय=सुखी कुरु । अपि च । नोऽस्मभ्यम् । पिप्युषीम्=प्रवृद्धां सर्वपदार्थसहिताम् । इषम्=अभिलष्यमाणमन्नम् । अव+धुक्षस्व=अवाङ्मुखमस्मदभिमुखं धुक्षस्व=क्षारय देहीत्यर्थः ॥२५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (पुरुष्टुत) हे बहुतों से स्तुत ! (ऋषिष्टुताभिः, ऊतिभिः) ऋषियों से प्रार्थित रक्षाओं द्वारा (सुवर्धस्व) आप मुझे बढ़ाएँ (पिप्युषीम्, इषम्) तृप्तिकर अन्न को (धुक्षस्व) दीप्तिकर बनाएँ, इस प्रकार (नः) हमारी (अव, च) रक्षा करें ॥२५॥

    भावार्थ

    हे सबके स्तुतियोग्य तथा प्रार्थनीय परमेश्वर ! आप अपनी रक्षाओं द्वारा हमें वृद्धि को प्राप्त कराएँ। हमारा खाद्य अन्न हमें पुष्टिकारक तथा दीप्तिकर हो, जिससे हमारी रक्षा हो और हम पुष्ट होकर कान्तिवाले हों ॥२५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    इससे इन्द्र की स्तुति करते हैं ।

    पदार्थ

    (पुरुष्टुत) हे बहुस्तुत महेन्द्र ! (ऋषिष्टु१ताभिः) ऋषियों से प्रशंसित और प्रचालित (ऊतिभिः) सहायता के साथ (सु) अच्छे प्रकार (वर्धस्व) हम लोगों को बढ़ाओ (च) और (पिप्युषीम्) सर्वपदार्थसंयुक्त (इषम्) अन्न (नः) हमको (अवधुक्षस्व) दे ॥२५ ॥

    भावार्थ

    ऋषिप्रदर्शित मार्ग से चले, यह उपदेश इससे देते हैं ॥२५ ॥

    टिप्पणी

    १−ऋषिस्तुत=अनेकमार्ग जगत् में प्रचलित हैं और अपने-अपने मत या धर्म को सब ही सत्य ही मानते हैं । परन्तु उचित यह है कि स्वयं भी परीक्षा करके सत्यता ग्रहण करे । यदि वैसी शक्ति न हो तो तत्त्ववेत्ताओं से प्रवर्त्तित मार्ग पर चले । उन ही परमविवेकी और तत्त्वदर्शी पुरुषों का नाम ऋषि है । अतः भगवान् उपदेश देते हैं कि ऋषियों के मार्ग पर चलो ॥२५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! हे (पुरु-स्तुत) बहुतों से स्तुति करने योग्य प्रभो ! हे बहुतों द्वारा राजपद के लिये प्रस्तुत राजन् ! तू ( ऋषि-स्तुताभिः ) विद्वान् मन्त्रार्थद्रष्टा, तत्वज्ञानी पुरुषों से स्तुति की वा उपदिष्ट ( ऊतिभिः ) ज्ञानवाणियों वा रक्षा के उपायों से वा प्रिय वचनों से ( वर्धस्व ) बढ़ । तू ( पिप्युषीम् ) सब को बढ़ाने वाली और तृप्तिकारक ( इषम् ) अन्नसम्पदा को ( धुक्षस्व ) पृथ्वी से प्राप्त कर और हमें दे और ( निः अव च ) हमारी रक्षा कर । इत्येकादशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    आआध्यापित करनेवाली प्रेरणा

    पदार्थ

    [१] हे (पुरुष्टुत) = बहुतों से स्तुति किये गये प्रभो ! आप (ऋषि स्तुताभिः) = तत्त्वद्रष्टा पुरुषों से प्रशंसित (ऊतिभिः) = रक्षणों के द्वारा (सु वर्धस्व) = हमें सम्यक् बढ़ानेवाले होइये । स्तुति के द्वारा हम प्रभु की रक्षा के पात्र बनते हैं। [२] हे प्रभो! आप (पिप्युषीम्) = हमारा आप्यायन [= वर्धन] करनेवाली (इषम्) = प्रेरणा को (धुक्षस्व) = हमारे में प्रपूरित करिये । हम आपकी प्रेरणा को प्राप्त करें, इस प्रेरणा के अनुसार मार्ग पर चलते हुए हम उन्नति व वृद्धि को प्राप्त करते हैं। हे प्रभो ! आप हमें प्रेरणा प्राप्त कराइये (च) = और (नः) = हमें (अव) = रक्षित करिये। आपकी प्रेरणा हमें वासना आदि के आक्रमण से बचानेवाली हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु का स्तवन करें। प्रभु हमें रक्षण प्राप्त करायें और उत्तम प्रेरणा देते हुए हमें सुरक्षित करें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Help us advance and prosper, lord universally adored and celebrated by sages, protect us with all help and bless us with abundant nutriments for body and mind.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    ऋषिप्रदर्शित मार्गाने चालावे हा उपदेश याद्वारे दिला जात आहे. ॥२५॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top