ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 22
क॒दा त॑ इन्द्र गिर्वणः स्तो॒ता भ॑वाति॒ शंत॑मः । क॒दा नो॒ गव्ये॒ अश्व्ये॒ वसौ॑ दधः ॥
स्वर सहित पद पाठक॒दा । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । गि॒र्व॒णः॒ । स्तो॒ता । भ॒वा॒ति॒ । शम्ऽत॑मः । क॒दा । नः॒ । गव्ये॑ । अश्व्ये॑ । वसौ॑ । द॒धः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कदा त इन्द्र गिर्वणः स्तोता भवाति शंतमः । कदा नो गव्ये अश्व्ये वसौ दधः ॥
स्वर रहित पद पाठकदा । ते । इन्द्र । गिर्वणः । स्तोता । भवाति । शम्ऽतमः । कदा । नः । गव्ये । अश्व्ये । वसौ । दधः ॥ ८.१३.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 22
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
अथ सुखित्वं तत्सकाशाद् याच्यते।
पदार्थः
(गिर्वणः) हे वाचा सेव्य (इन्द्र) परमात्मन् ! (ते, स्तोता) तवोपासकः (कदा) कस्मिन्काले (शंतमः, भवाति) सुखितमो भवेत् (गव्ये) गोसमूहे (अश्व्ये) अश्वसमूहे (वसौ) धने च (नः) अस्मान् (कदा, दधः) कदा दध्याः ॥२२॥
विषयः
अनेन मन्त्रेण प्रार्थ्यते ।
पदार्थः
हे गिर्वणः=गीर्भिः सर्वाभिरुत्तमाभिर्वाग्भिर्वननीय सेवनीय स्तवनीय । इन्द्र ! ते=तव स्तोता । कदा=कस्मिन् काले । शन्तमः=सुखतमोऽतिशयेन सुखवान् । भवाति=भविष्यति । हे इन्द्र ! कदा=कस्मिन् काले । नोऽस्मान् तवाधीनान् । गव्ये=गोसमूहे । अश्व्ये=अश्वसमूहे । वसौ=निवासस्थाने च । दधः=धारयिष्यसि= स्थापयिष्यसि ॥२२ ॥
हिन्दी (4)
विषय
अब सुखी होने के लिये परमात्मा से और याचना करते हैं।
पदार्थ
(गिर्वणः) हे वाणियों द्वारा भजनीय (इन्द्र) परमात्मन् ! (ते, स्तोता) आपका उपासक (कदा) कब (शंतमः, भवाति) अत्यन्त सुखी हो (गव्ये) गोसमूह में (अश्व्ये) अश्वसमूह में (वसौ) धनसमूह में (नः) हमको (कदा, दधः) कब स्थापित करे ॥२२॥
भावार्थ
हे सकल ऐश्वर्य्यसम्पन्न परमात्मन् ! आप अपनी परमकृपा से अपने उपासकों को सुख प्रदान करें और उनको गौ, अश्व, सन्तानरूप प्रजा तथा अन्नादि विविध प्रकार का धन दीजिये, जिससे वह सुखसम्पन्न होकर सदैव आपकी उपासना में प्रवृत्त रहें अर्थात् निरालस होकर सदा यज्ञानुष्ठान करें ॥२२॥
विषय
इस मन्त्र से प्रार्थना करते हैं ।
पदार्थ
(गिर्वणः) हे समस्त उत्तम वाणियों से स्तवनीय ! हे स्तोत्रप्रिय (इन्द्र) इन्द्र ! (ते) तेरा (स्तोता) यशोगायक (कदा) कब (शन्तमः) अतिशय सुखी और कल्याणयुक्त (भवाति) होगा और (कदा) कब (नः) हम अधीनजनों को तू (गव्ये) गोसमूह में (अश्व्ये) घोड़ों के झुण्डों में और (वसौ) उत्तम निवासस्थान में (दधः) रक्खोगे । हे भगवन् ! ऐसी कृपा कर कि तेरे स्तोतृजन सदा सुखी होवें और उन्हें गाएँ घोड़े और अच्छे निवास मिलें ॥२२ ॥
भावार्थ
हे भगवन् ! स्तोता को सौभाग्ययुक्त कर और उसको अन्य अभिलषित पदार्थ दे ॥२२ ॥
विषय
पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।
भावार्थ
हे ( गिर्वणः ) 'गिरा' अर्थात् वेद वाणी से स्तवन करने योग्य, हे वेदत्राणी के दातः ! हे वाणी द्वारा, स्तवन भजन करने योग्य ! हे (इन्द्र) तेजस्विन् ! ( ते स्तोता ) तेरी स्तुति करने वाला ( शन्तमः कदा भवाति ) अति शान्तियुक्त कब होता है ? और ( नः ) हमें ( गव्ये ) गौ आदि पशु, इन्द्रियों और वाणी से समृद्ध ( अश्व्ये वसौ ) अश्वों, विद्वानों और मन आदि साधनों से युक्त भूमि, देह, ज्ञान एवं निवास करने योग्य गृह, आचार्यगृह और राष्ट्र तथा प्रभु-शरण में (कदा दधः) कब रक्खेगा ?
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
[१] प्रभु प्राप्ति के लिये आतुरता को अनुभव करता हुआ स्तोता कहता है कि हे (गिर्वणः) = ज्ञान की वाणियों से सम्भजनीय (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (कदा) = कब (ते स्तोता) = आपका यह स्तवन करनेवाला उपासक (शन्तमः भवाति) = शान्त जीवनवाला होता है? अर्थात् आपका स्तवन करता हुआ कब मैं शान्ति को प्राप्त करूँगा? [२] (कदा) = कब आप (नः) = हमें (गव्ये) = ज्ञानेन्द्रिय सम्बन्धी तथा (अश्व्ये) = कर्मेन्द्रिय सम्बन्धी (वसौ दधः) = वसु में धारण करोगे? अर्थात् कब आपकी कृपा से हमें उत्तम कर्मेन्द्रियाँ व उत्तम ज्ञानेन्द्रियाँ प्राप्त होंगी?
पदार्थ
भावार्थ- प्रभु के स्तवन से शान्ति मिलती है और इन्द्रियाँ प्रशस्त बनती हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord adorable, lord of all adorations, when would your celebrant settle in perfect peace? When would you establish us in the stable wealth of lands, cows and the holy voice, horses, advancement and the ultimate wealth and aim of life?
मराठी (1)
भावार्थ
हे भगवान! त्या प्रशंसकाला सौभाग्ययुक्त करून त्याला इतर अभिलाषित पदार्थ दे. ॥२२॥
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