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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 5
    ऋषिः - नारदः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    नू॒नं तदि॑न्द्र दद्धि नो॒ यत्त्वा॑ सु॒न्वन्त॒ ईम॑हे । र॒यिं न॑श्चि॒त्रमा भ॑रा स्व॒र्विद॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नू॒नम् । तत् । इ॒न्द्र॒ । द॒द्धि॒ । नः॒ । यत् । त्वा॒ । सु॒न्वन्तः॑ । ईम॑हे । र॒यिम् । नः॒ । चि॒त्रम् । आ । भ॒र॒ । स्वः॒ऽविद॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नूनं तदिन्द्र दद्धि नो यत्त्वा सुन्वन्त ईमहे । रयिं नश्चित्रमा भरा स्वर्विदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नूनम् । तत् । इन्द्र । दद्धि । नः । यत् । त्वा । सुन्वन्तः । ईमहे । रयिम् । नः । चित्रम् । आ । भर । स्वःऽविदम् ॥ ८.१३.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (सुन्वन्तः) यज्ञं कुर्वन्तः (यत्, त्वा, ईमहे) यत् त्वां याचामः (तत्, नः) तदस्मभ्यम् (नूनम्, दद्धि) निश्चयं देहि (नः) अस्माकम् (चित्रम्) विविधम् (स्वर्विदम्) सर्वस्य लम्भयितृ (रयिम्) धनम् (आभर) आहर ॥५॥

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    विषयः

    ईश्वरप्रार्थनां करोति ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! नूनम्=अवश्यम् । तत्प्रसिद्धम्=विज्ञानलक्षणं धनम् । नोऽस्मभ्यम् । दद्धि=ददस्व=देहि । दद दाने । “व्यत्ययेन परस्मैपदं छान्दसः शपो लुक” । यद्धनम् । त्वा=त्वाम् । सुन्वन्तः=पूजयन्तः । वयमीमहे=कामयामहे । हे इन्द्र ! चित्रम्=नानाविधम् । स्वर्विदम्=सुखस्य लम्भकम् । रयिम्=मेधारूपधनम् । आहर=आभर । नोऽस्मदर्थम् ॥५ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (सुन्वन्तः) यज्ञ करते हुए हम (यत्, त्वा, ईमहे) जो आपसे याचना करते हैं, (तत्) वह (नः, नूनम्, दद्धि) हमें निश्चय दें और (नः) हमारे लिये (चित्रम्) विविध (स्वर्विदम्) सबको प्राप्त करानेवाले (रयिम्) धन को (आभर) आहरण करें ॥५॥

    भावार्थ

    हे सब धनों की राशि परमात्मन् ! हम लोग यज्ञ करते हुए जो आपसे याचना करते हैं, उन हमारी इष्ट कामनाओं को कृपा करके पूर्ण करें और हमको विविध प्रकार के धन देकर ऐश्वर्य्यसम्पन्न करें, ताकि हम यज्ञों के करने में सदा समर्थ हों ॥५॥

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    विषय

    ईश्वर की प्रार्थना करते हैं ।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! (नूनम्) तू अवश्य (तत्) प्रसिद्ध विज्ञानरूप धन (नः) हम लोगों को (दद्धि) दे (यत्) जिस धन को (त्वा+सुन्वन्तः) तेरी उपासना करते हुए हम उपासकगण (ईमहे) चाहते हैं । हे इन्द्र ! (चित्रम्) नाना प्रकार के तथा (स्वर्विदम्) सुखजनक बुद्धिरूप (रयिम्) महाधन (नः) हम लोगों के लिये (आभर) ले आ ॥५ ॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा की उपासना मन से करता और उसकी आज्ञा पर सदा चलता, वही सब धन का योग्य है ॥५ ॥

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति । पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! हम लोग ( सुन्वन्तः ) यज्ञादि हुए, ( यत् ) जिस ( स्वर्विदम् ) सुख प्राप्त कराने वाले, ( चित्रम् ) संग्राह्य, उत्तम, आश्चर्यजनक ( रयिं ) ऐश्वर्य को ( त्वा ईमहे ) तुझ से मांगते हैं ( नः ) हमें ( नूनं ) अवश्य ( तत् दद्धि ) उस धन को प्रदान कर । वही धन हमें ( आ भर ) ला, दे । इति सप्तमो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'चित्रं स्वर्विदं' रयिम्

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (नूनम्) = निश्चय से (नः) = हमारे लिये (तत्) = उस धन को (दद्धि) = दीजिये, (यत्) = जिसे (सुन्वत्तः) = अपने अन्दर सोम का सम्पादन करते हुए हम (त्वा ईमहे) = आप से माँगते हैं। [२] हे प्रभो ! (नः) = हमारे लिये रयिं आभर उस धन को प्राप्त कराइये जो (चित्रम्) = [चित्] चेतना को देनेवाला है, ज्ञान का बढ़ानेवाला है और (स्वर्विदम्) = स्वर्ग को प्राप्त करानेवाला है। जिस धन के द्वारा हमारा घर स्वर्ग बनता है और जिससे हमारे ज्ञान की वृद्धि होती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमें उस धन को प्राप्त करायें, जो ज्ञान प्राप्ति के साधनों को जुटाने में सहायक हो, तथा जो हमें आवश्यक भोग्य पदार्थों को प्राप्त कराके सुखमय जीवनवाला बनाये।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of power and potential, bless us with that wealth and prosperity, abundant and versatile, bear and bring us that power and potential full of strength and light of joy which we ask of you and pray for in our joint yajnic efforts of creation and cooperation.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो परमात्म्याची उपासना मनाने करतो व त्याच्या आज्ञेनुसार चालतो, त्याला सर्व धन मिळणे योग्य आहे. ॥५॥

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